सोमवार, 25 जनवरी 2010

बिखरे सितारे! ५: नन्ही कली...

पूर्व भाग: पूजाका दोबारा गर्भ पात हो गया. माँ तथा बहन तब उसके घर पहुँचे थे. पूजाका जीवन, उसका दुःख दर्द उनकी आँखों के आगे एक खुली किताब बन गया. अब आगे पढ़ें.


कुछ दिन बाद माँ और छोटी बहन तो चले गए,लेकिन दिलमे एक गहरा सदमा लेकर. माँ भी समझ नही पा रही थी,की, गर गौरव को इस तरह बर्ताव करना था तो उसने पूजासे ब्याह किया क्यों? खैर...दिन इसी तरह गुज़रते रहे.

एक दिन गौरव खबर लाया की, उसका तबादला इलाहाबाद हो गया है. मन ही मन पूजा ख़ुश हुई. उसे लगा, शायद दिल्ली से बाहर निकल गौरव का रवैय्या बदलेगा. दिल्ली में रहते समय, कई बार किशोर  का आमना सामना हो जाता. पूजा के मन में उसके लिए कडवाहट के अलावा कुछ न था पर गौरव के दिल में एक वहम, एक जलन बनी रहती. हर ऐसे समारोह के बाद वो पूजा को ताने ज़रूर सुनाता.

पूजा का दूसरा गर्भपात हुए तकरीबन एक साल होने आया था और उसे फिर से गर्भ नही ठहरा था. उसके ससुराल वालों के लिए  यह भी चिंता का विषय बन गया. लेकिन पूजा ने तभी खबर सुना दी. अबके एहतियातन पूजा को दो माह चलने फिरने या सीढ़ी उतरने के लिए मनाई की गयी. पूजा की माँ उसके साथ रहने आ गयी. चौथा माह गुज़र गया तो सबने आश्वस्त होनेकी साँस ली.

पाँचवा माह शुरू हुआ ही था,की, पूजा का nervous ब्रेक डाउन हो गया. उसके मन में एक डर समा गया की, कहीँ घरवालों की कहा सुनी में आके गौरव उसे छोड़ न दे. वो रो रो के गौरव से आश्वासन माँगती और उसे नही मिलता. एक और बात से वह डर गयी. किसी ने भविष्य वाणी कर दी की, पूजा को दो औलाद होगी तथा दोनों बेटे होंगे. पूजा और अधिक डर गयी...सभी परिवार वाले मान के चल रहे थे,की, उसे बेटाही   होगा. ...जबकी पूजा मनही मन डरने लगी...कहीँ बेटी हुई तो? उस बच्ची का क्या हश्र होगा? उस निष्पाप जीव को क्या उसके ससुरालवाले अपनाएंगे? क्या उसे वो प्यार मिलेगा जिसकी वो हक़दार होगी?

गुज़रते दिनों के साथ पूजा की मनोदशा और अधिक ख़राब होती गयी. जब प्रसव के दिन करीब आए तो उसकी डॉक्टर ने सिजेरियन की सलाह दी. एक और कारण भी था...गर्भ उलटा था..डॉक्टर को डर लगा की, प्रसव के दौरान गर गर्भ को  कुछ हो गया तो पूजा या तो पगला जायेगी या मरही जायेगी..तारीख तय कर ली गयी और इलाहाबाद के सिविल हॉस्पिटल में उसे दाखिल कराया गया. दोपहर तक उसका ऑपरेशन हो गया. जब उसकी आँख  खुली तो उसे बेटी होने की खबर मिली.  उसके मनमे बच्ची के प्रती प्यार के अलावा अपार करुणा भर गयी..अपनी माँ को खबर सुनाते हुए, गौरव ने कहा,"माँ तुझे सुनके खुशी तो नही होगी..बेटी हुई है.."

बेटीका जीवन अब पूजा के लिए चुनौती बन गया. अस्पताल से पूजा घर लौटी तो नवागत की खुशी के तौरपे किसी के मुह्पे हँसी न थी. एक पूजा की माँ तथा, अंतिम दिनों में आयी बहन थी, जो बेहद ख़ुश थे.पूजा जानती थी, की, उसकी बिटिया का उसके नैहर में खूब स्वागत होगा. भरी गर्मी में ३ दिन का सफ़र कर पूजा अपने नैहर पहुँच गयी. वहाँ उसे पहली बार माँ होने की खुशी हुई.

आनेवाले दिनों में उसका भय सही साबित हुआ...उसे बच्ची को छूने के लिए भी घरवालों  इजाज़त लेनी पड़ती. पूजा को अपने नैहर आए कुछ ही दिन हुए थे,की, गौरव के तबादले की खबर उसे ख़त द्वारा मिली. तबादला कर्नाटक में हुआ था. गौरव सामान बाँधने से पूर्व अपनी नयी पोस्ट का मुआयना करने आया. उस समय वो वो पूजा के नैहर आया.

सब नाश्ते की मेज़ पे बैठे हुए थे की, कमरेमे से बच्ची की रोने की  ज़ोरदार आवाज़ आयी. पूजा उठने लगी तो गौरव ने कहा:" तुम अपना नाश्ता ख़तम करो तब जाना. अभी मेराभी नाश्ता नही हुआ और तुम चली? कल जन्मी बच्ची से ये असर? तुम्हारा मेरे प्रती रवैय्या ही बदल गया!"
पूजा चुपचाप   कुर्सी पे बैठ गयी. पूजा की दादी उठ खड़ी होने लगी तो गौरव ने उन्हें भी रोक दिया...बेचारी दादी...उनके घर में उन्हीं को उठने की इजाज़त नही थी! बच्ची और न जाने कितनी देर रोती गयी, और साथ दादी भी...वो चुपचाप आँसूं बहाती रहीं...पूजा को तो उतनी भी इजाज़त नही थी...जब सबकी चाय ख़त्म हुई तब गौरव ने कहा:
" अब जाओ अपनी लाडली के पास! ऐसे बर्ताव कर रही हो जैसे दुनिया में कोई पहली बार माँ बना हो!"
जो भी हो, पूजा तो पहली बार माँ बनी थी !

जब पूजा कमरेमे गयी और बिटिया को उठाने लगी तो देखा उसपे कई सारी लाल चीटियाँ चिपकी हुई थी...नन्हीं जान उसी के कारण बदहवास होके रो रही थी..!
उसके पीछे,पीछे कमरे में आए गौरव से वह बोली:" इसे तो चीटियों ने डस लिया था, इसीलिये रो रही है..."
गौरव: " तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे सांप या बिच्छू ने डंख मार दिया हो...इसकी जान जा रही हो...चीटी के काटने से यह मर थोड़े ही जायेगी?"
पूजा ने   उसे जल्दी जल्दी नहला डाला...
बच्ची केवल ३० दिन की थी..आगे पूरी ज़िंदगी पडी थी...पूजाकी आँखों के आगे भविष्य का नज़ारा घूम गया..
क्रमश:

शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

बिखरे सितारे !३ सितम औरभी थे!

पूर्व भाग..अजीबोगरीब मानसिक तथा शारीरिक तकलीफोंसे गुज़रती रही पूजा. उसके ब्याह को छ: माह हो गए और उसके पिता उसे मायके लेने आए.अब आगे ओ पढ़ें:

पूजा मायके पहुँची तो बेहद खामोश रहने लगी. वो क़तई नही चाहती थी की, उसके मायके वाले उसकी पीड़ा जान सकें. उसके दादा जी को शंका आती रही  की सबकुछ ठीक नही है,लेकिन पूजा उन्हें हरबार खामोश कर देती. अपने कमरेमे बंद पडी पूजा को वे बाहर निकालना चाहते तो और उसकी खामोशी की वजह पूछते तो पूजा कह बैठती:
"कुछ भी तो नही..! आप क्यों खामखा परेशान होते हैं? मुझे अपने घर  नींद कम मिलती है,इसलिए यहाँ सोती रहती हूँ !"

दादा जी छोटा -सा मूह लेके परे हो जाते. एक माह रुक पूजा अपने ससुराल लौट गयी. बेहद अंतर्मुखी हो गयी थी. सफ़र के दौरान उसने प्रण कर लिया की, चाहे जो हो जाय,वो अपने घरवालों का रवैय्या बदल के रहेगी...! हर मुमकिन कोशिश करेगी की, उनके चेहरों पे मुस्कान रहे..लेकिन ये उसकी क़िस्मत में नही था..

पती को लगता की, वो अगर घरवालों का साथ देते हुए उसे अपमानित न करेगा तो बीबी का गुलाम कहलायेगा! घरवाले उसे नीचा दिखानेका या अपमानित करनेका एक भी मौक़ा छोड़ते नही थे! पूजा अकेली पड़ती गयी...! उसके मनमे आता,की, गर उसका साथ नही देना था तो गौरव ने उसके साथ ब्याह किया ही क्यों?

पूजा एक अजीब-सी उदासी  में घिर गयी. ऐसे में उसके फिर एकबार पैर भारी हो गए. दिवाली आने वाली थी...और उसकी माँ तथा बहन पहुँच  गए. ! पूजा को फिर से रक्त स्त्राव शुरू हो गया और बिस्तरमे रहने की हिदायत दी गयी.

माँ और छोटी बहन के आँखों से पूजा की स्थती छुपाई न जा सकी. माँ को हालात देख बेहद सदमा पहुँचा. घरवालों ने माँ को भी कई बार बातों ही बातों में ज़लील किया. इन सब बातों के चलते पूजा का दोबारा गर्भपात हो गया. इस बार डॉक्टर तो दूसरी थी लेकिन उसने बच्चे का लिंग घरवालों को बता दिया. पहली बार भी लड़का था. कौन जनता था की, इन बातों का कितना दूरगामी असर होगा?

अस्पताल से पूजा जब घर आयी तो दर्द में थी. पिछले कुछ दिनों से बिस्तर में रहने के कारण कपडे आदी धो न सकी थी. सास ने उसे बुला के कपड़ों का ढेर आगे रख दिया और कहा," इन्हें पहले दो लो फिर आराम की सोचना. "
पूजाकी माँ:" मै धो देती हूँ...इसे दर्द हो रहा है..."
सास:" अजी ऐसे दर्द बतेरे देख रखे हैं..ये कौन बच्चा पैदा करके आयी है...आप हमारे घरके मामलों में दखल ना दें..इसे ज्यादा नज़ाक़त दिखाने  की ज़रुरत नही है..!"
माँ खामोश रह गयी. छुपके आँसू बहाने  के अलावा उनके  पास अन्य चारा नही था. गौरव भी हर चीज़ खुली आँखों से देखता रहा. माँ तथा बहन के रहते ऐसी अन्य कई बाते हुई जो माँ और बहन के आगे पूजा की ज़िंदगी खुली किताब की तरह दिखा गयीं..ये तो भविष्य की एक झलक थी.
क्रमश:

शनिवार, 9 जनवरी 2010

पूजा की कहानी...

२/३ दिनों में पूजा की कहानी आगे बढ़ेगी..देरी के लिए माफी चाहती हूँ..ख़राब तबियत इसकी वजह रही..आप सभीका प्यार बना रहे यही दुआ है!