बुधवार, 2 मई 2012

एक छुटकी की कहानी....

एक छुटकी की कहानी सुनाती हूँ। खेतों में पली पढी।...ऊंचे ऊंचे झूले झूलने वाली   और सोने से पहले अपनी माँ या दादी से कहानी सुना करनेवाली!

इमली, कच्चे  आम और बेर हमेशा खाती रहती।....दांत हमेशा खट्टे रहते।धीरे धीरे वो जवान होती गयी। बेहद समझदार लेकिन उतनी ही हंसमुख और चंचल! बड़ी होके भी उसमे एक छुटकी ,नटखट बच्ची ज़िंदा थी .वो कभी गंभीर होही नहीं पाती।

फिर एक खूबसूरत नौजवान उसकी ज़िंदगी में आया। उन्हें प्यार हो गया। नयनों में सपने बसने लगे। उनका ब्याह भी हो गया। ससुरालवाले इस ब्याह से खुश नहीं थे लेकिन उसने तो ठान ली थी की वो अपने व्यवहार से सबका दिल जीत लेगी। 

अब वो 'बड़े' लोगों के बीछ आ गयी थी....उनके गुस्से और गंभीरता से वो घबरा  ही  गयी। उसपे सभी की हर समय नज़र रहती।...मानो वो नज़र क़ैद में हो!
अब उसने अपने में बसनेवाली उस नटखट लडकी को दबाके रखनेकी कोशिश शुरू कर दी! उसे पता था जीवन क्षणभंगुर होता है! फिर ये परिवार के लोग खुश रहने के बदले मूह लटकाए क्यों घुमते हैं? वो निरागस लडकी समझ नहीं पाती।....

पता नहीं कब उसके अन्दर बसनेवाली वो छुटकी निद्रिस्त हो गयी। अब वो यौवना  माता बन गयी। बच्चे बड़े होते गए वैसे,वैसे वो भी उम्र में बड़ी होती गयी। अबतक तो  उसके भीतर की वो छुटकी कोमा में ही चली गयी। अंतमे मरही गयी।..आज भी वो सड़ी हुई एक लाश अपने कंधों  पे लेके घूमती रहती है! उस लडकी को जो अब औरत बन चुकी थी अपने घरवालों की तरह 'बड़ा' बनना आयाही नहीं। थक चुकी थी  वो! उसने तो सिर्फ एक साथी की चाह की थी। हंसमुख।..रूठे तो झटसे मान जानेवाला! उसे पैसों की लालच नहीं थी। अपने साथी के साथ वो मीलों गर्मी और बरसात में पैदल चलती रही होती।...उसे कब महंगी गाड़ियों की चाहत थी? शायद ऐसा भोलापन उसका पागलपन था! वो अपने सहचर को केवल हंसमुख देखना चाहती थी।...उसका दुःख बाँट लेना चाहती थी।...उसे क्या पता था की खुशी बाज़ार में नहीं मिलती! उसके साथी से अपने आपको उससे इतना दूर कर लिया के उसके हाथ उसतक पहुँच ही नहीं पाए।...वो उसका हाथ कभी पकड़ नहीं पाई।.
उसकी दर्द भरी  आह आसपास के शोर में  किसी ने सूनी  ही नहीं! .

अब बचे हैं कुछ निश्वास......दिल की केवल उसे ही सुनायी देने वाली धड़कन और कृष्णपक्ष की काली रातें......और हाँ।....उसके कंधे परकी उस मृत बालिका की लाश!