एक छुटकी की कहानी सुनाती हूँ। खेतों में पली पढी।...ऊंचे ऊंचे झूले झूलने वाली और सोने से पहले अपनी माँ या दादी से कहानी सुना करनेवाली!
इमली, कच्चे आम और बेर हमेशा खाती रहती।....दांत हमेशा खट्टे रहते।धीरे धीरे वो जवान होती गयी। बेहद समझदार लेकिन उतनी ही हंसमुख और चंचल! बड़ी होके भी उसमे एक छुटकी ,नटखट बच्ची ज़िंदा थी .वो कभी गंभीर होही नहीं पाती।
फिर एक खूबसूरत नौजवान उसकी ज़िंदगी में आया। उन्हें प्यार हो गया। नयनों में सपने बसने लगे। उनका ब्याह भी हो गया। ससुरालवाले इस ब्याह से खुश नहीं थे लेकिन उसने तो ठान ली थी की वो अपने व्यवहार से सबका दिल जीत लेगी।
अब वो 'बड़े' लोगों के बीछ आ गयी थी....उनके गुस्से और गंभीरता से वो घबरा ही गयी। उसपे सभी की हर समय नज़र रहती।...मानो वो नज़र क़ैद में हो!
अब उसने अपने में बसनेवाली उस नटखट लडकी को दबाके रखनेकी कोशिश शुरू कर दी! उसे पता था जीवन क्षणभंगुर होता है! फिर ये परिवार के लोग खुश रहने के बदले मूह लटकाए क्यों घुमते हैं? वो निरागस लडकी समझ नहीं पाती।....
पता नहीं कब उसके अन्दर बसनेवाली वो छुटकी निद्रिस्त हो गयी। अब वो यौवना माता बन गयी। बच्चे बड़े होते गए वैसे,वैसे वो भी उम्र में बड़ी होती गयी। अबतक तो उसके भीतर की वो छुटकी कोमा में ही चली गयी। अंतमे मरही गयी।..आज भी वो सड़ी हुई एक लाश अपने कंधों पे लेके घूमती रहती है! उस लडकी को जो अब औरत बन चुकी थी अपने घरवालों की तरह 'बड़ा' बनना आयाही नहीं। थक चुकी थी वो! उसने तो सिर्फ एक साथी की चाह की थी। हंसमुख।..रूठे तो झटसे मान जानेवाला! उसे पैसों की लालच नहीं थी। अपने साथी के साथ वो मीलों गर्मी और बरसात में पैदल चलती रही होती।...उसे कब महंगी गाड़ियों की चाहत थी? शायद ऐसा भोलापन उसका पागलपन था! वो अपने सहचर को केवल हंसमुख देखना चाहती थी।...उसका दुःख बाँट लेना चाहती थी।...उसे क्या पता था की खुशी बाज़ार में नहीं मिलती! उसके साथी से अपने आपको उससे इतना दूर कर लिया के उसके हाथ उसतक पहुँच ही नहीं पाए।...वो उसका हाथ कभी पकड़ नहीं पाई।.
उसकी दर्द भरी आह आसपास के शोर में किसी ने सूनी ही नहीं! .
अब बचे हैं कुछ निश्वास......दिल की केवल उसे ही सुनायी देने वाली धड़कन और कृष्णपक्ष की काली रातें......और हाँ।....उसके कंधे परकी उस मृत बालिका की लाश!
28 टिप्पणियां:
dil ko hila kar rakh diya .
हृदयस्पर्शी
एक विश्वास के दहारे ज़िन्दगी चलती है। पर वो विश्वास ही जीवन भर चल नहीं पाता।
laash dho kar bhi bhala koi jeevan hai ...jeevan ko har pal sajaana chahiye ...vakt mutthi se ret ki tarah fislataa jata hai ...bahut sad likha hai aapne ..
इतनी नाउम्मीदी ठीक नहीं !
door k dhol suhawne hote hain...ye baat bilkul fit baithti hai is kahani par. bahut marmik kahani.
क्या नटखट और भोली बालिकाओं की यही नियती होती है?..क्या तील तील कर टूट जाना ही उनकी जिंदगी होती है?...बेहद मर्म स्पर्शी दास्तां!
एक मर्मस्पर्शी और विचारोत्तेजक कथा।
इस कहानी में जो लड़की का दर्द दीखता है वह दर्द बहुसंख्यक लड़कियों का दर्द है. नया घर नया माहौल नए लोग और तमाम आशाएं धीरे धीरे सब साथ छोड देतीं है अंत में वह एक काम करने की मशीन बन कर रह जाती है.
zindagi ki yahee reet hai!
ufffffffffffffff.... :(
बहुत सी स्त्रियों के कान्घे पर एक मृतप्राय छुटकी रहती है...कहीं खो चुकी...कहीं दम तोडती...समाज की प्रायः ७५ प्रतिशत स्त्रियों की यही कहानी है... फिर वे बन जाती हैं एक मशीन , काँधे पर मरणासन्न पड़ी उस छुटकी को बहलाते हुए....अपने कर्तव्यों को एक आदर्श माँ , पत्नी और बहु बनकर निभाते हुए...
gahri pakad ke sath marmik prastuti ...abhar kshama ji
हृदयस्पर्शी.
kitani hi chhutaki isi tarah dam tod deti hai.marmik..
Aapki ye kahani dil ko chu gayi....
उसके साथी से अपने आपको उससे इतना दूर कर लिया के उसके हाथ उसतक पहुँच ही नहीं पाए।...वो उसका हाथ कभी पकड़ नहीं पाई।.
उसकी दर्द भरी आह आसपास के शोर में किसी ने सूनी ही नहीं! .
अब बचे हैं कुछ निश्वास......दिल की केवल उसे ही सुनायी देने वाली धड़कन और कृष्णपक्ष की काली रातें......और हाँ।....उसके कंधे परकी उस मृत बालिका की लाश!
उपर्युक्त पक्तियां मन को झकझोर गई । मनुष्य जो चाहता है ,वैसा हो नही हो पाता है एवं यही गम हमेशा मन को सालता रहता है । बहुत ङी भावनात्मक पोस्ट । मेरे पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
क्षमा जी मन को छू गयी ये कहानी ..काश उस प्यारी बाला की यादें आज उसको लाश की जगह कोमल पुष्प से लगते हंसमुख साथी मिलता तो आनंद और आता .... ..जय श्री राधे - भ्रमर 5
भ्रमर का दर्द और दर्पण
wo chutki fir se jee ja sakti hai...bas ek patvaar chahiye naavik ko....
दिल से देखने वालों के लिए ये दुनिया और ज़िंदगी दुखांत है और दिमाग से देखने वालों के लिए सुखांत....
A very heart touching story.
सुन्दर प्रस्तुति
छुटकी को उठाइये । उसको कोमा से बाहर लाइये उसे मरने नही दे सकते हम । क्यूं कि वह ठुटकी हम सब के भीतर है ।
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
छोटी परन्तु मर्मसपर्शी ।
किसी कवि की रचना देखूं !
दर्द उभरता , दिखता है !
प्यार, नेह दुर्लभ से लगते ,
क्लेश हर जगह मिलता है !
क्या शिक्षा विद्वानों को दूं ,टिप्पणियों में, रोते गीत !
निज रचनाएं ,दर्पण मन का, दर्द समझते मेरे गीत !
Read more: http://satish-saxena.blogspot.com/#ixzz1xmUUlS6v
अँखें नम ! क्या कहू।मुझे भी वो पल कभी नही भूलते जब जवान बेटा आखिरी साँसें ले रहा था और मै जोर से उसका हाथ पकडे बैठी थी पर कहांखं रोप्क पाई उसे?
हृदयस्पर्शी और विचारोत्तेजक.
अब आपकी तबियत कैसी है?
एक टिप्पणी भेजें