मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

क्या करूँ कैसे करूँ?

पिछली  बार अपनी माँ की देखभाल के बारे में मैंने लिखा था और अपने blogger दोस्तों से सलाह पूछी थी. माँ को अपने पास लाने की पूरी कोशिश कर चुकी हूँ. सभी ने यही सलाह दी थी.   अपनी बेटी की सलाह से सहमत तो मै भी नही. हालाँकि  अपने लिए मै वही चाहूँगी.  मै अपने पती से बार,बार कहती हूँ,की, मुझे नलियों में जकड के मत ज़िंदा रखना. पर हमारे अपने चाहने से क्या होता है? होगा वही जो क़िस्मत में लिखा होगा.

माँ को अपने पास लानेकी कोशिश नाकामयाब हो चुकी है. वो तैयार नही मेरे पास आनेके लिए क्योंकि पिताजी आना नही चाहते और माँ पिताजी को छोडके आ नही सकतीं. पिताजीको मेरे घर रहना बिलकुल नही सुहाता. उनका फ्लैट में दम घुटता है.

परेशान हूँ की अब माँ की बीमारी और बुढापे से सामने आये सवालों से कैसे निपटा जाये?

सभी दोस्तों की,जिन्हों ने टिप्पणी  के ज़रिये मुझे सलाह दी बहुत,बहुत शुक्र गुज़ार हूँ. अब फिर से एक सवाल लेके आयी हूँ. कैसे मनाऊं माँ को? कैसे मनाऊं अपने पिता को? खेत पे रह के उनकी देख भाल करने वाला कोई नही. nurse  को वो रखना नही चाहते. मेरे भाई का बेटा उनके साथ रहता है लेकिन उसकी कोई भी सहायता नही. उसे उनकी property हड़प ने के अलावा और किसी चीज़ में रुची नही. जो एक बहुत प्यारा बच्चा था बचपन में, आज क्या से क्या हो गया.....फिरभी माँ की आँखें खुलती नही. जबकि उसकी खुदगर्जी ज़ाहिर है. भाई -भाभी कोई ज़िम्मेदारी उठाने को राजी नही. नाही वो अपने बेटे से कुछ कहते हैं. भाई यहीं पुणे में रहता है. क्या करूँ कैसे करूँ? दिन-b- दिन मै डिप्रेशन शिकार होती जा रही हूँ.