गुरुवार, 29 मार्च 2012

रिश्ते निभाऊं कैसे?

अजित गुप्ता जी का आलेख पढ़ा....रिश्तों में एक खुशबू होती है...उसे पढने के पहले ही मेरे मनमे सवाल था....मेरे घरके रिश्तों को किसकी नज़र लगी हुई है? जब पारिवारिक रिश्तों को देखती हूँ तो अपने आप को हरा हुआ महसूस करती हूँ. मेरे ब्याह के बाद आजतक रिश्तों को संजोये रखने में मेरी उम्र बीत गयी लेकिन घरमे शांती नसीब नहीं हुई. असर ये हो गया है की   बिलकुल खामोश हो गयी हूँ...गुमसुम.

पिछले पंद्रह दिन पूर्व हुए एक वाकये से मुझे लिखने का मन किया. बहुत सोचा....लिखूं या न लिखूं? जब मुझे बेटी हुई तब मेरे ससुराल वाले नाराज़ हुए क्योंकि उन्हें बेटा चाहिए था. मुझे हर समय अपनी बेटी को लेके चिंता लगी रहती. उसकी ज़रूरतें  छुप के पूरी करती रही. बाप बेटी में हरदम तनाव रहता. शादी होने तक तो बेटी बाप से ज़बान नहीं लड़ाती थी लेकिन शादी के बाद उसका मिज़ाज बहुत गुस्सैल हो गया. अब जब कभी आती है तो मुझे बेहद तनाव महसूस होता है. और उस दिन तो हद हो गयी....वो अपने काम से भारत आयी हुई थी/है...बाप बेटी में ऐसा झगडा हुआ की बाप  ने बिटिया को घरसे निकल जाने को कह दिया...मुझे कुछ ही दिन पहले दिलका दौरा  पडा  था....उन दोनोका झगडा सुन मेरा दिल दहल गया! उस झगडे को किसी तरह निबटाया तो चार रोज़ पहले भाई बहन में ऐसा झगडा हुआ की मेरे बेटे ने गुस्से में  आके बहन का सामान घरके बहार फेंकना शुरू कर दिया!बिटिया ने भी  अपने भाई को कटु अलफ़ाज़ कहने में कोई कमी नहीं छोडी थी. वैसे ताउम्र कोशिश करने के बावजूद दोनों में आपसी प्यार नहीं था....लेकिन इस हदतक बिटिया के मन में ज़हर होगा मुझे कल्पना नहीं थी. बिटिया ने फोन करके अपने पति को हमारे घर आने से मना  कर दिया.

अपने पति तथा सास का गुस्सैल मिज़ाज तो  सारी उम्र बर्दाश्त करती रही....सिरदर्द और डिप्रेशन शिकार तो बरसों से हूँ....अब तो मेरे मनमे हर समय आत्महत्या करने का विचार रहने लगा है....जानती हूँ,आप सब कहेंगे ये कायरता है,लेकिन बर्दाश्त की भी एक हद होती है....दिलके दौरे के कारन डिप्रेशन की दवाई भी नहीं ले सकती....नाही  सर दर्द की..ज़िंदगी में बिटिया ने मेरा साथ भी बहुत निभाया है,लेकिन मेरे साथ भी बहुत बदतमीज़ हो गयी है....उसके आगे भी खामोश रहती हूँ.....आप सभी से पूछती हूँ,इस दौर से बाहर  निकलूं तो कैसे? रिश्ते निभाऊं  कैसे?

रविवार, 18 मार्च 2012

झूठ बोले तो...!

ख़राब सेहत के कारन पुराना किस्सा पोस्ट कर रही हूँ! क्षमा करें!


इस क़िस्सेको बरसों बाद मैंने अपनी दादी को बताया तो वो एक ओर शर्मा, शर्मा के लाल हुई, दूसरी ओर हँसतीं गयीं....इतना कि आँखों से पानी बहने लगा...

मेरी उम्र कुछ रही होगी ४ सालकी। मेरा नैहर गांवमे था/है । बिजली तो होती नही। गर्मियों मे मुझे अपनी दादी या अपनी माँ के पलंग के नीचे लेटना बड़ा अच्छा लगता। मै पहले फर्शको गीले कपडेसे पोंछ लेती और फ़िर उसपे लेट जाती....साथ कभी चित्रोंकी किताब होती या स्लेट । स्लेट पे पेंसिलसे चित्र बनाती मिटाती रहती।

ऐसीही एक दोपहर याद है.....मै दादीके पलंग के नीचे दुबकी हुई थी....कुछ देर बाद माँ और दादी पलंग पे बैठ बतियाने लगी....उसमेसे कुछ अल्फाज़ मेरे कानपे पड़े...बातें हो रही थी किसी अनब्याही लड़कीके बारेमे....उसे शादीसे पहले बच्चा होनेवाला था...उन दोनों की बातों परसे मुझे ये एहसास तो हुआ,कि, ऐसा होना ठीक नही। खैर!

मेरी माँ , खेतपरकी कई औरतोंकी ज़चगी के लिए दौड़ पड़ती। हमारे घरसे ज़रा हटके दादा ने खेतपे काम करनेवालोंके लिए मकान बनवा रखे थे। वहाँसे कोई महिला माँ को बुलाने आती और माँ तुंरत पानी खौलातीं, एक चाकू, एक क़ैचीभी उबालके साथ रख लेती...साथमे २/४ साफ़ सुथरे कपडेके टुकड़े होते....फिर कुछ देरमे पता चलता..."उस औरत" को या तो लड़का हुआ या लडकी....

एक दिन मै अपने बिस्तरपे ऐसेही लोट मटोल कर रही थी...माँ मेरी अलमारीमे इस्त्री किए हुए कपड़े लगा रही थीं....
मुझे उस दोपेहेरवाली बात याद आ गयी..और मै पूछ बैठी," शादीके पहले बच्चा कैसे होता होता है?"
माँ की ओर देखा तो वो काफ़ी हैरान लगीं...मुझे लगा, शायद इन्हें नही पता होगा...ऐसा होना ठीक नही, ये तो उन दोनोकी बातों परसे मै जानही गयी थी...

मैंने सोचा, क्यों न माँ का काम आसन कर दिया जाय..मै बोली," कुछ बुरी बात करतें हैं तो ऐसा होता है?"
" हाँ, हाँ...ठीक कहा तुमने..." माँ ने झटसे कहा और उनका चेहरा कुछ आश्वस्त हुआ।
अब मेरे मनमे आया, ऐसी कौनसी बुरी बात होगी जो बच्चा पैदा हो जाता है.....?
फिर एकबार उनसे मुखातिब हो गयी," अम्मा...कौनसी बुरी बात?"

अब फ़िर एकबार वो कपड़े रखते,रखते रुक गयीं...मेरी तरफ़ बड़े गौरसे देखा....फ़िर एक बार मुझे लगा, शायद येभी इन्हें ना पता हो...मेरे लिए झूट बोलना सबसे अधिक बुरा कहलाया जाता था...
तो मैंने कहा," क्या झूट बोलते हैं तो ऐसा होता है"?
"हाँ...झूट बोलते हैं तो ऐसा होता है...अब ज़रा बकबक बंद करो..मुझे अपना काम करने दो.."माँ बोलीं...

वैसे मेरी समझमे नही आया कि , वो सिर्फ़ कपड़े रख रही थीं, कोई पढ़ाई तो कर नही रही थी...तो मेरी बातसे उनका कौनसा काम रुक रहा था? खैर, मै वहाँसे उठ कहीँ और मटरगश्ती करने चली गयी।

इस घटनाके कुछ ही दिनों बादकी बात है...रातमे अपने बिस्तरमे माँ मुझे सुला रहीं थीं....और मेरे पेटमे दर्द होने लगा...हाँ! एक और बात मैं सुना करती...... जब कोई महिला, बस्तीपरसे किसीके ज़चगीकी खबर लाती...वो हमेशा कहती,"...फलाँ, फलाँ के पेटमे दर्द होने लगा है..."
और उसके बाद माँ कुछ दौड़भाग करतीं...और बच्चा दुनियामे हाज़िर !

अब जब मेरा पेट दुखने लगा तो मै परेशाँ हो उठी...मैंने बोला हुआ एक झूट मुझे याद आया...एक दिन पहले मैंने और खेतपरकी एक लड़कीने इमली खाई थी। माँ जब खाना खानेको कहने लगीं, तो दांत खट्टे होनेके कारण मै चबा नही पा रही थी...
माँ ने पूछा," क्यों ,इमली खाई थी ना?"
मैंने पता नही क्यों झूट बोल दिया," नही...नही खाई थी..."
"सच कह रही है? नही खाई? तो फ़िर चबानेमे मुश्किल क्यों हो रही है?" माँ का एक और सवाल...
"भूक नही है...मुझे खाना नही खाना...", मैंने कहना शुरू किया....

इतनेमे दादा वहाँ पोहोंचे...उन्हें लगा शायद माँ ज़बरदस्ती कर रही हैं..उन्होंने टोक दिया," ज़बरदस्ती मत करो...भूक ना हो तो मत खिलाओ..वरना उसका पेट गड़बड़ हो जायेगा"....मै बच गयी।
वैसे मेरे दादा बेहद शिस्त प्रीय व्यक्ती थे। खाना पसंद नही इसलिए नही खाना, ये बात कभी नही चलती..जो बना है वोही खाना होता...लेकिन गर भूक नही है,तो ज़बरदस्ती नही...येभी नियम था...

अब वो सारी बातें मेरे सामने घूम गयीं...मैंने झूट बोला था...और अब मेरा पेटभी दुःख रहा था...मुझे अब बच्चा होगा...मेरी पोल खुल जायेगी...मैंने इमली खाके झूट बोला, ये सारी दुनियाको पता चलेगा....अब मै क्या करुँ?
कुछ देर मुझे थपक, अम्मा, वहाँसे उठ गयीं...

मै धीरेसे उठी और पाखानेमे जाके बैठ गयी...बच्चा हुआ तो मै इसे पानीसे बहा दूँगी...किसी को पता नही चलेगा...
लेकिन दर्द ज्यूँ के त्यूँ....एक ४ सालका बच्चा कितनी देर बैठ सकता है....मै फ़िर अपने बिस्तरमे आके लेट गयी....
कुछ देर बाद फ़िर वही किया...पाखानेमे जाके बैठ गयी...बच्चे का नामोनिशान नहीं...

अबके जब बिस्तरमे लेटी तो अपने ऊपर रज़ाई ओढ़ ली...सोचा, गर बच्चा हो गया नीन्दमे, तो रज़ाई के भीतर किसीको दिखेगा नही...मै चुपचाप इसका फैसला कर दूँगी...लेकिन उस रात जितनी मैंने ईश्वरसे दुआएँ माँगी, शायद ज़िन्दगीमे कभी नही..
"बस इतनी बार मुझे माफ़ कर दे...फिर कभी झूठ   नही बोलूँगी....मै इस बच्चे का क्या करूँगी? सब लोग मुझपे कितना हँसेंगे? ".....जब, जब आँख खुलती, मै ऊपरवालेके आगे गुहार लगाती और रज़ाई टटोल लेती...

खैर, सुबह मैंने फ़िर एकबार रज़ायीमे हाथ डाला और टटोला...... कुछ नही था..पेट दर्द भी नही था...ऊपरवालेने मेरी सुन ली...!!!!

रविवार, 4 मार्च 2012

बचपन

कभी अपना बचपन याद आता है तो कभी बच्चों का! याद आ रहा एक वाकया जब हम औरंगाबाद में थे. मेरा बेटा दो साल का था और  अंगूठा चूसा करता था. मुझे सब परिवारवाले कहा करते,की,किसी तरह इसकी आदत छुडाओ. मै सब कथकंडे अपना चुकी थी लेकिन बेअसर!

एक दिन बिस्तर पे बैठे बैठे मैंने सोचा बेटे से कुछ कहूँ....कहा'" बेटे,देखो तुम्हारी माँ अंगूठा नही चूसती.....तुम्हारी नानी,नाना दादा, दादी कोई नहीं चूसता.."मैंने लम्बी चौड़ी फेहरिस्त उसके आगे रख दी. उसने मेरे गोदी में अपना सर रखते हुए,मूँह  से अंगूठा निकाला...मै खुश! कुछ असर हुआ शायद! तभी वो तुतलाते हुए बोल पड़ा," उन छबको बोलो चूसने को," और अंगूठा वापस मूह में! मै खामोश!

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

दिलका दौरा

दिलके दौरे के बाद घर आ गयी थी. आज पहली बार डॉक्टर से मिलने गयी. बातों बातों में पता चला की,मुझे ताउम्र अब चंद दवाइयाँ लेनी होंगी और चंद दवाइयाँ ताउम्र ले नही सकती. दोनों बातों से परेशान हूँ.सरदर्द की ( migraine )की पुरानी मरीज़ हूँ.मर्ज़ इस क़दर है  की मुझे morphene  तक लेनी पड़ती थी तब जाके दर्द से निजात मिलती! अब डिस्पिरिन से काम कैसे चल सकता है?दिल के दौरे का कारन इन्हीं दवाईयों को ठहराया जा रहा है!एक ओर कुआ दूसरी ओर खाई! अस्पताल से लौटी तब सरदर्द इतना था की दर्द की दवाई चोरी छुपे खाही ली! भविष्य में भुगतना तो मुझे ही पड़ेगा और कैसे वो कह नही सकती! क्या करूँ क्या न करूँ?

जो दवाई ताउम्र लेनी पड़ेगी वो है एस्पिरिन! जिसे blood  thinner  के तौरपे इस्तेमाल किया जाता है. जिसका मतलब होता है मुझे सुई चुभने से या रसोई में उँगली कट जाने से भी बचाना होगा वरना खून बहने लगा तो रुकेगा नहीं!

मेरे मर्ज़ के बारेमे जान के माँ तो बहुत परेशान हैं. खराब तबियत के बावजूद मुझसे मिलने आ रही हैं.
शायद ये सब सहने की बातें हैं,कहने की नही,लेकिन ब्लॉगर दोस्तों से साझा किये  बिना रह भी नही सकती! अब की होली जीवन का ये रंग भी दिखा रही है!