शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

bikhare sitare 22-chalee banke dulhan..

( पिछली कड़ी में मैंने लिखा था, अपने धरम संकट के बारेमे..मै धरम परिवर्तन ना करने के फैसले पे अडिग रही).

उस साल दिवाली आयी और चली गयी...मेरे लिए बिरह का तोहफा दे गयी...ऐसी सूनी, उदास दिवाली मुझे उसके पहले याद नही..
किशोर के अन्य दोस्त हमें मिलने चले आया करते..

एक दिन मै उन्हें असलियत बता बैठी ...बताते समय जारोज़ार रो पडी...उन ३/४ दोस्तों को यह सब सुनके बड़ी हैरत हुई..वो लोग खुद एक धरम संकट में पड़ गए...किशोर को मै 'वो', 'उन्हें' इसी तरह संबोधित करती थी..मैंने अपने विवाह के मसले को लेके अडिग रहने का फैसला सुना दिया, और उन सभी सह कर्मियों को इस फैसले पे नाज़ हुआ..

वो शाम इन्हीं बातों में बीत गयी...३/४ दिनों बाद एक सहकर्मी, गौरव, हमें मिलने चला आया, और उसने मेरी माँ और दादी के आगे एक प्रस्ताव रखा..वो मुझ से ब्याह करने को तैयार था...मै मनही मन डर गयी...मुझे तो यही वहम था की, मेरा कौमार्य भंग हुआ है, और मन 'उन्हें' भुलाने को तैयार नही था...दादा दादी को गौरव के खयालात जनके बड़ा फक्र हुआ...ये बाते दिवाली के ४/५ माह बाद छिडीं..मै मानो एक बुत -सी बन गयी थी...दादी ने गौरव से कहा:
" पहले अपने परिवार से तो सलाह कर लो...कहीँ यहाँ भी इतहास दोहरा न जाय .."
गौरव:" मैंने पिछले ३/४ दिनों में उनसे सलाह मसलत कर ली है...उन्हें कोई परेशानी नही...लेकिन पूजा की राय बेहद ज़रूरी है, वो सदमेसे उभरी नही है..सबसे अहम बात उसके निर्णय की है...उसे समय दें...कही ये ना हो की, उसे पछताना पड़े.."

गौरव अधिक परिपक्व लगा सभीको..परिवार लखनऊ का था..इस दौरान मैंने अपना अंतिम फैसला सुना दिया...खतों द्वारा, और उम्मीद की एक टिमटिमाती लौ को बुझा दिया..प्यारका खुमार उतर रहा था, असलियत के धरा तलपे .....मेरी आँखों से पानी थमता नही था...अपने प्रीतम का पहला स्पर्श याद आता रहा...उस स्पर्शे पुलकित होना कैसे भूलती...वो चांदनी रात जब मै करवटें बदलती रही थी..और अगले रोज़ उनका इंतज़ार कर रही थी...याद आती रही...अपने प्यारका ये हश्र ऐसा होगा ये सोचाही नही था...

घरवालों पे मैंने निर्णय छोड़ दिया..मुझमे मानसिक शक्ती रही नही थी...कुछ भी सोचने की या निर्णय लेने की...१०/१२ दिनों बाद गौरव अपने माता पिता के साथ हमारे  घर आ पहुँचा...मुझे उनके आगे आने में बेहद झिजक महसूस हुई, लेकिन वातावरण बड़ा सहज बना रहा..

खैर !अंत में अगली दिवाली तक सोंच विचार करने समय मुझे मिल गया..गौरव ने मुझे  जल्द बाज़ी ना करने की सलाह दी..ये बात मुझे अच्छी लगी...सबकुछ करीब से जान के उसने निर्णय लिया था...मै शुक्र गुज़ार थी, लेकिन एक डर था, कहीँ ये निर्णय सहानुभूती से तो नही लिया गया? माँ तथा दादी अम्माने ये बात स्पष्ट रूपसे पूछी..
गौरव का जवाब: " मै भी पहली बार देखते ही प्यार कर बैठा था...लेकिन जब किशोर का पता चला तो उसे मुबारक बाद देदी...मन उदास ज़रूर हुआ...और उदास तो अब भी है,की, तमन्ना को इस सदमे से गुज़रना पड़ा.."

किशोर की यादें भुलाना आसान नही था...वो प्रथम प्यार था..लेकिन गौरव के लिए मनमे इज्ज़त पैदा हुई..आने वाली दिवाली के बाद एक मुहूर्त चुना गया और गौरव के साथ कोर्ट में शादी करना तय हुआ.. .मन थोडा उल्लसित होने लगा...गौरव की स्निग्ध, शांत निगाहें आँखों के आगे तैर ने लगी...

शादी के घरमे जो,जो घटता रहता है,वो सब शुरू हो गया...मेरे वस्त्र, निमंत्रण  पत्रिकाएँ, मेहमानों की फेहरिस्त और अन्य ज़रूरती सामान जो नव वधूको ज़रूरी होता है..माँ और दादी बड़े उत्साह और प्यार से तैय्यारियाँ करने लगे..
और ब्याह का दिन आ भी गया...बचपन का घर बिछड़ने लगा..माँ पे बेहद जिम्मेदारी पडी...हमारे गाँव में तो न कोई केटरिंग का रिवाज था, ना होटल थे...घरके मेहमान और बराती सभी का खाना वही बनाती...उसमे उन्हें अतीव रक्स्त्रव की तकलीफ हो रही थी..

ब्याह्के एक दिन पहले मै सारा खेत घूम आयी...हर बूटा पत्ती अपने मनपे अंकित करना चाह रही थी...लौटी तो   दादी ने मेरी उदासी भांप ली और साडी कमरमे खोंस मेरे साथ badminton खेलने तैयार हो गयी...बहुत खूब खेलती थीं...मै तो केवल एक गेम जीती...आखों के आगे एक धुंद-सी छाई रही..दादी को गठिया का मर्ज़ था लेकिन उस बहादुर औरत ने अपने दर्द की  जीवन में कभी शिकायत नही की..

अंत में मै किसी और की ही दुल्हन बनी...जब विदाई का समय आया तो, तो मनमे एक ज़बरदस्त कसक कचोटने लगी...ज़िंदगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ...होने वाला था...जब ट्रेन में बैठे और ट्रेन आगे बढ़ने लगी तो मन पीछे मेरे बचपन वाले घरमे दौड़ गया...वो माँ की गोद, दादा दादी का  स्नेह, खुले ख़यालात,सब मानो एक किसी अन्य दुनिया की बातें महसूस होने लगीं...मैंने जल्द बाज़ी तो नही की?

'बाबुल, छूट  चला तेरा अंगना",ये गीत मन गुनगुनाने  लगा...पती का अंगना कैसा होगा? क्या होगा क़िस्मत में मेरे? अपने परिजनों का प्यार या, तिरस्कार...नही जान पा रही थी...क्या गौरव मेरा साथ निभाएँगे ? एक नौका तट छोड़ चली थी...पता नही किस ओर चली थी..पी का घर पास आता रहा, और भयभीत मन अपने नैहर में अटका रहा...नव परिणीता की आँखों में सपनों के अलावा डर शायद अधिक था...पहला कटु अनुभव जो हुआ था...छाछ भी फूँक के  पीनेका मन हो तो गलत नही था..
गाडी लखनऊ पहुची और ग्रुप्रवेश पे ही, एक झलक मिल गयी...किसी को धीरेसे कहते हुए सुना," ये गौरव भी ना.. पता नही किसी की उतरन ले आया है , लडकी सुन्दर है तो क्या ..उसे भी एकसे एक बढ़िया मिल सकती थी"...मै स्तब्ध हो गयी...वातावरण यहाँ भी कुछ अलग नही था...एक सदमा-सा ज़रूर महसूस हुआ...

क्रमश:
अगली कड़ी से 'बिखरे सितारे' का दूसरा अध्याय  शुरू होगा...

15 टिप्‍पणियां:

जोगी ने कहा…

waah..khaani ne kaafi achha mod le liya hai , besabri se agli kadi ke intajar me :)

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

"ये गौरव भी ना.. पता नही किसी की उतरन ले आया है "

बहुत ही सहजता से आपने सबकुछ कह डाला....
आप ..लिखती रहे हम आते रहते हैं....
बस ये है कि कभी-कभी टिपण्णी नहीं दे पाते.....
बहुत अच्छा...वाह ..कहके चले जाना हमें अच्छा नहीं लगता..
लेकिन ये बताना चाहते हैं कि आपको पढ़ते हमेशा ही हैं.....
और आपकी लेखनी को सलाम भी करते हैं....
बहुत ही सरलता से सीधी सच्ची बात कहतीं हैं आप...
आज भी अच्छा लगा पढ़ना आपको.....हमेशा की तरह....!!

Basanta ने कहा…

Great narration again! While reading your story, I become Pooja herself and feel all that she is going through. You have that power of writing.
I am waiting eagerly for the next part. I hope everything will go well with Pooja, at least her husband will love and support her.

mark rai ने कहा…

बाबुल, छूट चला तेरा अंगना",ये गीत मन गुनगुने लगा...पती का अंगना कैसा होगा? क्या होगा क़िस्मत में मेरे? अपने परिजनों का प्यार या, तिरस्कार...नही जान पा रही थी...क्या गौरव मेरा साथ निभाएँगे ? एक नौका तट छोड़ चली थी..

laajwaab............

Bhagyashree ने कहा…

Powerful narration. I too cried along with Puja

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

kahaani me interest badta ja raha hai.....lagta hai aspas hi kuch gata hai sab..ilkhne ka andaaz hi aisa hai.....achha ho kahaani ka end happy ho.....

गौतम राजऋषि ने कहा…

अभी बस तांक-झांक करने आया था...आ रहा हूं फिर से पढ़ने!

Rajeysha ने कहा…

छोटी सी गुड़ि‍या की लंबी कहानी.....

दीपक 'मशाल' ने कहा…

I will read the story in the evenong today, only then can give any comment. http://swarnimpal.blogspot.com/

शोभना चौरे ने कहा…

kafi rochak hoti ja rhi hai khani

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुंदर और लाजवाब कहानी लिखा है आपने! इस कहानी की अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

kahaani का ये mod pasand आया ........ rochakta bani हुयी है .......

दीपक 'मशाल' ने कहा…

Aapke likhne ka andaaz behad pasand aaya, har kisi ke bas ki baat nahin itne sundar tareeke se kisi ke dard ko, wo bhi schchi kahani ko is tarah pesh kar sake... Agli kadi ke intezaar me...
Jai Hind...

Bhagyashree ने कहा…

Kshamaji I am humbled by your kind words. Yes we can email each other, Have left my email ID in my previous post(Limits).Thanks.

गौतम राजऋषि ने कहा…

पूजा...तमन्ना....

इतने सारे ट्विस्ट कहानी में कि उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़...और गौरव का आगमन। उम्मीद है ये एक स्थायित्व लेकर आयेगा...

सहज ही विश्वास नहीं होता है कि कथा-नायिक ने कलम खुद थाम ली है। एक झुरझुरी दौड़ जाती है सोच कर ही कि इन्हें कितना कुछ झेलना पड़ा है।

अगली कड़ी का बेसब्री से इंतजार है अब।