सोमवार, 15 मार्च 2010

बिखरे सितारे:11 फिसलता बचपन

अध्याय  २:बिखरे सितारे:१० फिसलता बचपन (पूर्व भाग:जब बच्ची कुछ ठीक हुई तो उसने अपनी माँ से एक कागज़ तथा पेन्सिल माँगी...और अपनी माँ पे एक नायाब निबंध लिख डाला..." जब मै बीमार थी तो माँ मुझे बड़ा गन्दा खाना खिलती थी..लेकिन तभी तो मै अच्छी हो पायी..वो रोज़ गरम पानी और साबुनसे मेरा बदन पोंछती...मुझे खुशबूदार पावडर लगती...बालों में हलके हलके तेल लगाके, धीरे, धीरे मेरे बाल काढ़ती...." ऐसा और बहुत लिखा...पूजा ने वो नायाब प्रशस्ती पत्रक उसकी टीचर को पढ़ने दिया...जो खो गया..बड़ा अफ़सोस हुआ पूजा को...

और दिन बीतते गए....बच्चे समझदार और सयाने होते गए..अब आगे पढ़ें...)

ऐसा नही था,की, पूजाकी ज़िंदगी में हलके फुल्के लम्हें आते ही नही थे...आते,लेकिन उसके बच्चों के कारण...उनके सयाने पन में  भी निहायत भोलापन  था,मासूमियत थी..
एक बार पूजा खानेकी मेज़ लगा रही थी..पास ही में TV. था...जिसपे चित्रहार चल रहा था..उसका ५/६ साल का बेटा, अमन, देख रहा था..अचानक उसने अपनी माँ से सवाल किया:" माँ ! आप  अपनी शादी के पहले बगीचे में गाना गाते थे या सड़क पे?"
पूजा बेसाख्ता हँस पडी,बोली:" अरे बेटू ये सब तो फिल्मों में होता है...ऐसे थोडेही कोई गाना गता है....!"
बेटा:" आपने कहीँ नही गाना गया?"
पूजा:' नही तो!"
बेटा:" तो फिर आपको शादी करने को किसने कहा? पापा ने आपसे कहा या आपने पपासे?"
पूजा:" हम दोनोने एक दुसरे से कहा ..."
बेटा:" क्या??तुमने भी कहा?"
पूजा:" हाँ...!"
अब बेटेकी भोली आँखें   अचरज से और भी गोल गोल   हो गयीं...!
बेटा:" तुमको इस आदमी के साथ शादी करने के लिए सलकाली ओलडल   तो नही आया था?"
अब पूजा हँस  हँस के बेहाल हुए जा रही थी...!
बेटा:" तो माँ तुम्हाला  दिमाग खलाब  हो गया था जो तुमने इस आदमी के साथ शादी की?"
पूजा हँसते,हँसते लोटपोट हुए जा रही थी...क्या कहती  की, भोलेपनमे बेटे ने हक़ीक़त कह दी थी?

देखते ही,देखते बच्चों का भोला बचपन हाथों से फिसलता जा रहा था...वक़्त की तेज़ रफ़्तार कौन रोक पाया? बिटिया का बचपन तो घर के बड़ों ने छीन लिया था...वो समय से पहले खामोश और परिपक्व हो रही थी...पूजा देख रही थी,लेकिन कुछ कर नही पा रही थी...एक अपराधबोध तले वो दबी जाती,की, बिटिया पे समझदारी थोपी जा रही थी, और पूजा हतबल होके देखती जा रही थी...

इन्हीं दिनों केतकी को पहले तो विषम ज्वर(typhoid )    और बाद में मेंदुज्वर हो गया..पूजा की माँ, मासूमा, दौड़ी चली आयी वरना बिटिया शायद ठीक नही हो पाती...क्योंकि साथ, साथ पूजा की सासू माँ की दोनों आँखें रेटिनल detachment से चली गयीं...उनकी देखभाल की सारी ज़िम्मेदारी पूजा पे थी...इस घटना के कुछ माह पूर्व पूजा के ससुर का देहांत हो गया था..वोभी पता नही क्यों,लेकिन केतकी से खूब ही नफरत करते थे...पूजा को अपने सास-ससुर के रवैय्ये से हमेशा अफ़सोस होता...क्योंकि खुद उसने अपने दादा-दादी का बेहद प्यार पाया था....उसका जन्म किसी त्यौहार की तरह मना था...जबकि,केतकी मानो घर के लिए बोझ थी...इन बातों का नन्हीं केतकी के मन पे क्या आघात हो रहा था, किसने सोचा?भविष्य किसने देखा था?
क्रमश:

16 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

बहुत ही भावुक कर देने वाली कहानी .... बधाई...

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

bahut badhiyaa...

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बेहद रोचक तरीके से आगे बढ रही है कथा. लम्बा गतिरोध व्यवधान डालता है.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और रोचक!
भारतीय नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!

Amitraghat ने कहा…

आप अमित्रघात पर आईं,
amitraghat.blogspot.com

Basanta ने कहा…

One more lovely post! Waiting for next----

रचना दीक्षित ने कहा…

कहानी की गंभीरता व रोचकता बरक़रार है

ललितमोहन त्रिवेदी ने कहा…

क्षमा जी ! कहानी की रोचकता और रहस्यमयता दौनों ही प्रभावित करती हैं ! कभी टिप्पणी चूक जाती है परन्तु रचना पढ़ता अवश्य हूँ !बहुत अच्छा लिख रही हैं आप !

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

ROCHAK PRASTUTI..AABHAR.

bhagyareema ने कहा…

Sometimes simple joys give so much happiness!!

दीपक 'मशाल' ने कहा…

Kshama karen aajkal vyastta ki wajah se nhin padh pa raha.. esters me baith kar padhoonga sab..

ज्योति सिंह ने कहा…

kahaani rochak hoti jaa rahi ,kal kahani padh chuki rahi magar comment karne ke liye bahut intjaar kiya magar box khul na saka aur lautna pada .

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

me bhi padh rahi hu..............................

संहिता ने कहा…

कहानी के सभी भाग बडी ही मार्मिक गाथा का वर्णन कर रहे है । कहीं कहीं पर तो पढते हुए आँसू रोक पाना मुश्किल हो रहा है ।
आशा है कि 10वे भाग के आगे कुछ सुखद क्षण आएंगे ।हमेशा की तरह अगली कडी का इंतज़ार रहेगा ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अच्छी तरह से बढ़ रही है कहानी, पर रफ़्तार कुछ धीमी हो गयी है ......

गौतम राजऋषि ने कहा…

...और अब मैं चाह रहा हूँ केतकी-अमन जल्दी से बड़े हो जायें कि पूजा को कुछ तो सुख नसीब हो।