(गतांक: मेरे बारे में ये बात मेरी उस सहेली ने मेरे बचपन के दोस्त,अजय को भी बता दी. अजय ने ब्याह नही किया था. वो अचानक एक दिन मेरे पास पहुँचा और कहने लगा, तुम अपने बच्चों को लेके इस घर से निकल पड़ो. छोड़ दो ऐसे आदमी को...अलग हो जाओ...मै तुम से ब्याह करूँगा....अब तो मेरे पास अच्छी खासी नौकरी भी है. तुम्हारे बच्चों को पिता का प्यार भी मिलेगा....!"
मै:" ओह! अजय ने तो सच्चा प्यार निभाया! तुम्हारे साथ को परे कर खड़ा हो गया! आगे क्या हुआ?"
दीपा:" बताती हूँ...बताती हूँ...!"
अब आगे....)
दीपा प्रसंगों का नाट्यमय रीती से बयान कर रही थी. मै एकाग्रता से सुन रही थी. कैसी अजीबोगरीब ज़िंदगी थी....!
दीपा: " अजय ने मुझ से बहुत इसरार किया की,मै उसके साथ चल पडूँ. अजीब मन:स्थिती हो रही थी मेरी! एक ओर मोह हो रहा था की,सबकुछ छोड़,अपने बच्चों के साथ चली जाऊं. दूसरी ओर ये भी समझ में आ रहा था,की, ये सब इतना आसान नही.
अजय ने अपने घर पे केवल उसकी भाभी को बताया था,पर भाभी ने अन्य सदस्यों को आगाह कर दिया. अजय की माँ ने उधम मचा दिया. अजय को इन सब बातों का पता फोन के ज़रिये चल रहा था. उसकी माँ का रक्तचाप बढ़ गया और उसे अस्पताल में भरती कराया गया. अजय उसका सब से लाडला बेटा था. अजय को भी माँ बहुत प्यारी थी. अंत में अजय ने मुझे और दो तीन साल रुकने के लिए इल्तिजा की और चला गया.
इधर मेरे पती को लगातार ये शक हो रहा था की मैंने बहुत से लोगों को उस घटना के बारेमे बताया होगा या बताने का इरादा होगा. उस ने मेरी और ज़्यादा मार पिटाई शुरू कर दी. घर से बाहर निकलने पे पाबंदी लगा दी. घर में सास ससुर थे. सब तमाशबीन बने बैठे रहे. बात क्या हुई थी,ये तो किसी को नही पता था. लेकिन मेरी पिटाई होना कोई नयी बात तो थी नही! बच्चे डरे सहमे रहते.
एक दिन छिपते छुपाते मैंने अजय को एक ख़त लिखा और पोस्ट करने के लिए मेरी उसी सहेली के पास दे दिया. मैंने लिखा,
"प्रिय अजय,
मैंने तुम्हारी बातों पे काफ़ी गौर किया. सब छोड़ छाड़ के, बच्चों समेत तुम्हारे पास रहने आना बेहद मुश्किल है. मेरा पती मुझे डिवोर्स तो देगा नही. हम लोगों को न जाने समाज के कितने ताने सुनने पड़ें! साथ बच्चों को भी लोग ताने मारेंगे! दुनिया ऐसे मामलों में बड़ी बेरहम होती है. उनका तो भविष्य बिगड़ जायेगा.
तुम अपना ब्याह कर लो और ख़ुश रहो. "
मै:" वैसे तो तुमने ठीक निर्णय लिया. गर डिवोर्स मुमकिन होता तो बात फर्क थी. अजय को दुःख तो हुआ होगा!"
दीपा:" हाँ! अजय को दुःख हुआ. उस ने शादी नही की.उसे हरवक्त मेरा इंतज़ार रहता. उस के ख़त मुझे बाकायदगी से मिलते रहे. सहेली के पते पे वो ख़त लिखता था.
इन्हीं सब बातों के चलते मेरे पती ने हमें अहमदाबाद ले जाके रखने का फैसला कर लिया. किसी को बताने की इजाज़त नही थी मुझे,लेकिन मैंने अपने माता-पिता को बता दिया. वो लोग मिलने आए. इतनी तसल्ली हुई की,कमसे कम उन्हें तो पता है!इस इंसान का तो कतई विश्वास नही था. कुछभी कर सकता था!
कुछ ही दिनों में हम अहमदाबाद रहने चले गए. बच्चों को वहाँ स्कूल में दाखिल किया. पती अहमदाबाद आते जाते रहते. जब भी आते,मेरी किसी न किसी बात पे पिटाई हो जाती.हमारे सामने वाला परिवार बहुत अच्छा था. उनका बड़ा बेटा ऐसे में मेरे बच्चों को स्कूल छोड़ आया करता.
ऐसे ही एक दिन पती महाशय मुझे मारपीट के चल दिए. उस दिन पड़ोस में कुछ धार्मिक कार्यक्रम था. अचानक से मेरे दरवाज़े पे एक अजनबी आवाज़ सुनायी दी. आवाजमे बेहद कशिश थी. कुछ पल मै असंजस में पड़ गयी.कौन हो सकता है? इतने में उस व्यक्ती ने कहा, मुझे तुम्हारे पड़ोसी रंजन ने भेजा है! आज उसे बच्चों को स्कूल ले जाने का समय नही है...मै ले जाता हूँ! आप डरिये मत और दरवाज़ा खोल दीजिये!
मैंने दरवाज़ा खोला. एक विलक्षण आकर्षक व्यक्तिमत्व का आदमी सामने खड़ा था!उस ने मेरे बच्चों को स्कूल पहुँच भी दिया और लेके भी आ गया. साथ,साथ मेरे चोटों पे लगाने के लिए मरहम भी ले आया. मुझे इतनी चोट आयी कैसे ये बात उसकी समझ के परे थी और मै बताने में अपनी तौहीन समझती थी!
लेकिन उस दिन के बाद से हम दोनोमे दोस्ती हो गयी जो धीरे,धीरे घनिष्टता में परिवर्तित होने लगी. मुझे उसका सहवास अच्छा लगने लगा. बच्चे भी उसके साथ हिलमिल गए. वो उनकी पढ़ाई भी ले लेता....हम सब को घुमाने भी ले जाया करता.
अबतक मुझे उसपे विश्वास हो गया था और मैंने अपने हालात उसके सामने खुलके बता दिए.
एक रोज़ हम चारों सिनेमा देखने गए थे. फिल्म के दौरान अचानक से उसने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया. मै रोमांचित हो उठी! फिल्म ख़त्म होने के बाद जब हम घर लौटे तो उसने मुझ से कहा,मै तुम से शादी करना चाहता हूँ. तुम्हारे बच्चों में भी मेरा मन रम गया है.....
मै दंग रह गयी!"
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25 टिप्पणियां:
कहानी कई भावनात्मक मोड़ ले रही है.
अगली कड़ी का इन्तजार है.
very nice ....n very interesting....
संस्मरण बहुत बढ़िया रहा!
घटनाएँ जितनी तेज़ी से गह्टती हैं आपकी कहानियों में कि सहसा अविश्वास करने को जी चाहता है कि ये सत्यकथा है... हाँ एक फ़िल्मी कथानक की तरह.. एक पल अजय से और दूसरे ही पल सिर्फ एक मुलाक़ात में या चंद मुलाक़ातों में एक और व्यक्ति के लिये दिल में स्थान पैदा करना... बहुत कुछ फिल्मी स्क्रीनप्ले की तरह है...
कई सवाल भी साथ साथ चलते हैं कहानी के...जो अनुत्तरित रह जाते हैं!!
एक अफ्ज़ में कहूँ तो इंटेरेस्टिंग!!
रोचक मोड पर छोड देती हो हर बार्।
dukh gahra raha hai..
अरे ये कथा तो और भी ज्यादा रोमांचक मोड पर पहुँच गई है जबकि हमारा अनुमान केवल अजय तक सीमित था !
बहुत ही सुन्दर ...अगली कड़ी का इंतजार रहेगा ।
kahaani lekhan men aap maahir hain ..
अप्रत्याशित स्थिति...फिर कुछ ख़ौफनाक घटने वाला है...
बहुत सुन्दर
bahut sundar
bahut sundar
कहानी अच्छे मोड़ पर है ! उत्सुकता बरकरार है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
ab aage kya hoga , nahut sundar
kahani ko ek romanchak mod par laa chhoda hai jisse paathko ki utsukta peek par hai. agli kadi ka intzar hai.
बहुत बढ़िया, अगली कड़ी का इंतजार बरकरार है.
कथा रोमांचक मोड पर पहुँच गई है ....
अच्छी चल रही है कहानी पर कई बार रफ़्तार धीमी हो जाती है
बड़ी बेसब्री से इंतज़ार है अगली कड़ी का......काफी दिन हो गए...
आज ही आई... इसके पहले की कड़ियाँ नहीं पढ़ें थीं, सो पहले उन्हें पढी...
बहुत खूब...
अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा...
दीपा की कहानी फिर से पकड ली आज । पता नही मुझे तो विश्वास नही कि ये आदमी भी सही है ।
दर्द के कितने नाम भी हों...स्नेह की महक पहुँचने का अहसास ..कितना सुकून देती है उत्सुकता हो रही है....सादर अभिनन्दन....
एक नया मोड़
एक नया मोड़
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