( गतांक: कुछ दिन और बीते....दीपा बेक़रार हो गयी...फिर अचानक से एक दिन प्रसाद का फोन आ गया! दीपा फिर से खिल गयी! लेकिन उस दिन के बाद वो फिर गायब हो गया! और अब के तो बहुत दिन बीत गए! मुझे दीपा को लेकर चिंता होने लगी. पिछली बार तो प्रसाद ने बहुत माफी माँगी थी...अपनी व्यस्तता बताई थी,और आश्वासन दिया था,की, फिर से ऐसा नहीं होगा! और इसी तरह सप्ताह के बाद सप्ताह बीतते गए....
अब आगे....)
प्रसाद के ऐसे व्यवहार के कारण दीपा बहुत विचलित थी. वो जीवन में एक स्थिरता चाह रही थी. एक मन मीत जिसे वो अपने मन की कह सके....जिस के साथ रोजमर्रा की ज़िंदगी साझा कर सके...वैसे तो दीपा के साथ बहुतों ने संपर्क किया था,लेकिन दीपा अब ब्याह करना नहीं चाह रही थी. किसी का हाथ पकड़ सके, किसी की बाहों में बाहें डाल सके...किसी के साथ खामोश लम्हें बिता सके,या फिर फ़ोन पे खूब बतिया सके....इससे अधिक आगे उसे नही बढ़ाना था. उसे प्रसाद में वैसा व्यक्ती दिखाई दिया था,पर प्रसाद वो नही था...
इसी तररह महीनों बीते. एक दिन शाम हम दोनों मेरी छत पे बैठे बतिया रहे थे. दीपा उदास लग रही थी. बोली: "मेरा प्रसाद से बातें करने का बहुत मन करता है,और वो है की,फोन ही नही उठाता....! क्या करूँ?"
मै:" क्या तुम चाहोगी की,मै अपने फ़ोन से एक बार उसका नंबर मिलाके देखूँ? बता दूँ उसे,गर वो फ़ोन उठाये तो, की तुम कितनी विचलित हो? मै ये नही बताउँगी की तुम मेरे सामने बैठी हो...की उसे फोन करने के बारे में हमने एक दूजे से सलाह की है...सिर्फ इतना कहूँगी,के मै तुम से मिली,और मुझ से तुम्हारी हालत देखी नही गयी...और मैंने तुम से उसका नंबर माँग लिया..."
दीपा ने खुश होकर कहा:" सच? तुम ऐसा करोगी?"
मै:" क्यों नही? ये लो मेरा फ़ोन और घुमा दो उसका नंबर! देखती हूँ,उठाता है या नही!"
दीपा ने तुरंत नंबर घुमा के फ़ोन मुझे पकड़ा दिया....और उधर से प्रसाद ने फ़ोन उठा भी लिया! मैंने अपना परिचय देते हुए कहा,
" देखिये, मुझ से दीपा की हालत देखी नही जाती! आप उसे फ़ोन क्यों नही करते? या उसका फ़ोन आता है,तो क्यों नही उठाते? खैर! जो भी आपके वजूहात हों,आप तुरंत उसे फ़ोन करेंगे तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी और उसे सुकून मिलेगा..."
प्रसाद इनकार नही कर सका. मैंने फ़ोन रखा और दूसरी और दीपा का फोन बजा! दोनों ने बड़ी देरतक बातें कीं. बाद में दीपा ने बड़े इतमिनान से मुझे सारी बातें दोहराके बतायीं . प्रसाद ने उससे वादा किया की अब वो नियम से फ़ोन करेगा...या गर दीपा का फ़ोन होगा तो ज़रूर उठा लेगा...व्यस्त रहा तो बाद में बात कर लेगा! उदास,अस्वस्थ दीपा,अचानक खिल उठी थी!
क्रमश:
9 टिप्पणियां:
पढ रही हूं, लगातार. आज पिछले दो अंक एक साथ पढे.
सच एक बार बात करने सो जो इत्मीनान मिलता है वह महसूस किया जा सकता है. अब तो दीपा की परेशानियों का कोई निश्चित समाधान मिले तभी मज़ा आयेगा.
अच्छी जा रही है कहानी. बधाई.
प्रसाद ने कोई वज़ह बताई कि वो क्यों दीपा को Avoid कर रहा था?? मतलब दीपा ने प्रसाद को उलाहना देते हुए भी यह नहीं जानना चाहा... बेचारी!! मुझे तो अभी भी डर लग रहा है!!
कहानी मे रोचकता बनी हुई है आगे का इंतज़ार है अब्।
interesting , kya kahen ki thage jaane ka dar is kahaani men lagaataar banaa hua hai ,
रोचक, जारी रखिए.
:)....kabhi kabhi chhut jata hai, par achchha lagta hai yahan aana!
deepa ke man me kuchh umeed to jagi ,achchhi kahani hai
अति सुन्दर उतना ही सुन्दर आपके हर शब्द बस इसी तह लगे रहिये
व्यस्तता के कारण देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.
आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् और आशा करता हु अप्प मुझे इसी तरह प्रोत्सन करते रहेगे
दिनेश पारीक
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