गुरुवार, 16 जून 2011

प्यार तेरे रंग हज़ार..

चंद साल पूर्व मै rediffconnexion की मेम्बर बनी. स्क्रैप पे जो प्रोफाइल था वहाँ मैंने अपना वर्क प्रोफाइल डाला. जिन विषयों में मेरी रुची थी....जो मेरे रोज़गार के भी ज़रिये थे,मैंने उन सभी के बारे में विस्तार से जानकारी दी थी.हफ्ते भर के अन्दर मै निराश हो गयी. मुझसे दोस्ती के लिए सब हाथ बढ़ा रहे थे,मेरे कामकाज में किसी को रुची नहीं थी. 

मैंने जल्द ही जो मालूमात ज़रूरी नहीं थी,तुरंत हटा दी. अपना सेल नंबर भी हटा दिया.गर कोई पूछता," आप कहा रहती हैं,तो मेरा जवाब होता,"हिंदी हैं हम,वतन है हिन्दोस्तान हमारा!"

खैर ! ऐसे ही निराशा के दौर में कुछ अच्छे दोस्त मिले. खासकर दो महिलाएँ थीं,जो मुझसे बड़े प्यारसे पेश आतीं...अर्चना जो एक डॉक्टर थी और विवाहिता.आयुषी,जो अपनी पढाई पूरी कर चुकी थी. जॉब के तलाश में थी. अर्चना और आयुषी की  मुझसे पहलेही आपस में जानपहचान थी.मतलब कुछ चंद माह पूर्व.मेल मिलाप नहीं.
मैंने अपने प्रोफाइल पे अपनी एक फोटो लगा रखी थी,जिसमे मैंने बडाही पारंपरिक पोशाख पहना था.सर चुनर से ढंका हुआ था. अन्य सदस्यों  की तरह,इन दोनोको भी इस तस्वीर ने आकर्षित किया.
आयुषी तथा अर्चनाने अपनी कोई तस्वीर नहीं लगाई थी. 

खैर समय बीतता रहा.एक दिन किसी अन्य सदस्य ततः आयुषी के बीच हुआ सम्वाद मैंने उन्हीं के स्क्रैप पे पढ़ा. मै अचानक सजग हो गयी. कुछ तो कहीं गड़बड़ है.....यहाँ पे एक तीसरे,बेहद सुदर्शन युवक का पदार्पण हुआ.नाम था उसका ,सौगात.और इसी के साथ,साथ,कुछ रिश्तों  की गुत्थियाँ बनी और धीरे,धीरे सुलझने भी लगीं.सुलझी....मतलब मेरे सामने कुछ अधिक स्पष्ट होता गया.इस गुत्थी में जो किरदार फंसे थे,वो तो फंसे ही रहे.ये एक अनजान दुनियामे क़दम रखने की फिसलन थी.....उसकी कीमत चुकानी थी,या दर्द सहना था....जोभी हो....इन सबसे निपटना और खुशी,खुशी बाहर निकलना ना -मुमकिन-सा लग रहा था...

मेरा किरदार यहाँ क्या था? मैंने कौनसा रोल निभाया....या निभाने की कोशिश की,ये अगली बार....बड़े ही फ़िल्मी ढंगसे यहाँ प्रेम का एक त्रिकोण बनता जा रहा मुझे नज़र आ रहा था...
क्रमश:






15 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

kshma ji jaldi bahut utsukta ho rahi hai janne ki jaldi....

Urmi ने कहा…

टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! ज़्यादातर पेंटिंग मेरी बनाई हुई है!
बहुत ही सुन्दर और रोचक कहानी! अर्चनी जी और आयुषी जी से मिलना फिर सौगात जी का आना बड़ा दिलचस्प लगा! अब तो अगली कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार है!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

आपने जो भी किरदार निभाया होगा अच्छा ही रहा होगा, अगली कड़ी क इन्तेज़ार रहेगा!

vandana gupta ने कहा…

अब तो आगे का इंतज़ार है।

pragya ने कहा…

interesting....उत्सुकता जग गई क्षमा जी..इंतज़ार है आगे का...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

आप अपने आप में लौट आईं इससे जो खुशी मुझे हासिल हुई है वो मैं बयान नहीं कर सकता.. एक बार फिर आपने उत्सुकता जगाई है, आगे की मालिका की प्रतीक्षा रहेगी.. नहीं कहूँगा कि कहानी फ़िल्मी है!!
:)

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

क्या बात है.. बहुत बढिया

शारदा अरोरा ने कहा…

aapka lekhan hamesha utsukta banaaye rakhta hai ..

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

अभी तो धुंधला सा ही चित्र बना है, आगे की कड़ी में शायद स्‍पष्‍ट नजर आए।

रचना दीक्षित ने कहा…

शुरुआत तो उम्दा है.आगे देखते है होता है क्या.

Basanta ने कहा…

Interesting! Waiting---

Vivek Jain ने कहा…

इंतजार जारी है, विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

अभिषेक मिश्र ने कहा…

वाकई दोस्ती तो वही है, जो तस्वीर देखकर नहीं बल्कि भावनाओं को समझकर की जाती है.

मनोज भारती ने कहा…

इंटरनेट पर बनते रिश्तों में भी भावनाएँ आ ही जाती हैं। बड़े दिनों के बाद आप को पढ़ रहा हूँ...इस कहानी में आपकी शैली कुछ बदली-बदली सी लग रही है।

SHAYARI PAGE ने कहा…

humare blog par bhi aayein..