हफ्ता दस दिन मेरे पास रह के माँ पिताजी आज गाँव वापस लौट गए. माँ कैंसर की मरीज़ हैं. उनका चेक अप करवाना था.
Mai चाह रही थी की आये ही हैं तो कुछ रोज़ और रुक जाते. ख़ास कर जब माँ ने ये कह दिया,"बेटा ! समझ लो इसके बाद हम ना आ पाएंगे! सफ़र ने बहुत थका दिया!"
लेकिन पिताजी जिद पे अड़े रहे की नियत दिन लौटना ही लौटना है. कहते हुए दुःख होता है और शर्म भी आती है की वो हमेशा से बेहद खुदगर्ज़ किस्म के इंसान रहे. खुद की छोड़ किसी और की इच्छाओं या ज़रूरतों से उन्हें कभी कोई सरोकार रहा ही नहीं. माँ की तो हर छोटी बड़ी इच्छा को उन्हों ने हमेशा दरकिनार ही किया. माँ हैं की उनपे वारे न्यारे जाती रहती हैं! कैंसर की इतनी बड़ी सर्जरी के बाद जब उन्हें होश आया तो पहली बात मूह से निकली, "इन्हों ने ठीक से खाना खाया था? इनको दवाईयां दी गयीं थीं?"
पिताजी किसी तरह से अपाहिज नहीं हैं! अपनी दवाई खुद ले सकते हैं! लेकिन आदत जो हो गयी थी की हरेक चीज़ सामने परोसी जाए! एक ग्लास पानी भी कभी अपने हाथों से लिया हो, मुझे याद नहीं! बहुत बार माँ पे गुस्सा भी आ जाता है की, इतना परावलम्बी क्यों बना दिया पिताजी को?
माँ पिताजी गाँवसे अपनी कार से आये थे. सर्जरी के बाद माँ को मिलने के लिए लोग लगातार आते रहते. ऐसे में ज़रूरी था की, आने जाने वालों के साथ कोई बोले बैठे. मेरा अधिकतर समय रसोई में लग जाता. पिताजी ये ज़िम्मेदारी निभा सकते थे . उन्हें बातें करना बहुत भाता है! यहाँ फर्क इतना था, की, बातचीत का केंद्र वो नहीं,उनकी पत्नी थी! ये बात उनके बस की नहीं थी! वो केवल अपने बारे में बातें कर सकते हैं! सर्जरी के तीसरे दिन उन्हों ने गाडी ड्राईवर लिया और गाँव लौट गए! अपनी पत्नी के सेहत की ऐसी के तैसी! सोचती हूँ, कोई व्यक्ती इतना स्वार्थी कैसे हो सकता है?
31 टिप्पणियां:
बेहद दुखद ! पुरुषवर्ग सच में इतना स्वार्थी हो गया है कि पूछिये मत ! उसे सिर्फ अपनी सुख सुविधाओं की पड़ी रहती है, वो यह कभी नहीं सोचता है कि उसके साथी को भी उसके उतने ही साथ की भी जरूरत है|
ये मानसिकता है....उन लोगों की जो शायद कुछ दायरों को तोड़ नहीं पाते...या खुद के बाहर की दुनिया में कभी झांक नहीं पाते...
www.kumarkashish.blogspot.com
मन को उद्वेलित करने वाली बहुत सम्वेदनशील पोस्ट।
आपका सोचना सही है.
ये तो सच्चाई है .
पहेली संख्या -४२
तौबा !
यह तो अधिकतर घरों के साथ सच है।
नि:शब्द.
Don't know what to say! Such people don't have any sensitivity to others' pains and needs.
क्षमाजी!
आश्चर्य नहीं हुआ कि कितनी तल्खी से ,बेबाकी से और साहस से पिता के चरित्र को आपने चित्रित किया है। बेगम अख्तर साहिबा की गाई मकबूल ठुमरी में कहें तो ....
.‘‘अपनों के सितम हमसे बताए नहीं जाते ,
ये हादसे वो है जो छुपाए नहीं जाते ।’’
निरन्तर बिला नागा आपके करम और प्रोत्साहन को विनम्र प्रणाम। सातत्य की सस्नेह अभिलाषा है
मुझे तो लगता है दीदी कि उस वक्त के पुरुष अपनी पत्नियों का खयाल रखने या उनकी इच्छा पूरी करने में अपनी हेठी समझते थे. क्योंकि जिस उम्र के आपके मां-पापा हैं, उस उम्र के अधिकांश पुरुष इसी मानसिकता के देखे हैं मैने.
सच्चाई को आपने बहुत खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है ! शानदार प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
कोई व्यक्ती इतना स्वार्थी कैसे हो सकता है?...................ho sakta hai use swarthi bana diya gaya ho kya pata chehare badal diye gaye ho....everything is possible in this world...ye bhi ho sakta hai ki wah wakai swarthi ho.....bahut achcha laga is line ko padhkar...
पुरुषों ने ऊँचे स्तंभ से उतरना तो अभी इस पुश्त से शुरु किया है । मेरे जीजाजी भी इसी तरह के व्यक्ति हैं अब जब मेरी बहन रही नही तो रोते रहते हैं पर उनके रहते कभी उनकी कद्र की है ...........
बेहद दुखद ! ...
dukhad...
इसे ही शायद दुनिया कहते हैं।
बहुत अफसोसनाक घटना है यह.. स्वार्थी होने की हद!!
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पता नहीं कैसे पहली बार ये पोस्ट क्या छूटी, आपने आना ही छोड़ दिया.
आपका संस्मरण मन को भावुक कर गया । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है ।धन्यवाद ।
बहुत सुन्दर संस्मरण।
शुभकामनायें.
aapka behtreen sansmaran me dil me ek ajjeb ssi halchal paida ker gaya......marm sparshi .......
पत्नी ख़याल रखे यही चाहते हैं सब , लेकिन पत्नी की सेहत का ध्यान रखना विरले ही करते होंगे। निसंदेह स्वार्थी।
sahmat hun is post se,kyonki maine bhi ye dekha hai ......
दीदी, सादर प्रणाम,जटामांसी तो मैं आपको भेज चुकी हूँ न ,आपने इसी का तो काढा बनाकर पिया था.
भूल गयीं क्या ?
आज के समाज को आइना दिखाती बहुत ही सार्थक पोस्ट..
बहुत सुंदर
सार्थक पोस्ट..
बहुत सुंदर
सामाजिक चित्रण जो आपकी कथाओं में मिलता है एकदम अद्भुत होता और सीधे दिल को छूता है. अगला अंक?
संवेदनापूर्ण संस्मरण.
एक उभरती युवा प्रतिभा
kadvi sachhai hai kshama ji, kai aise ghar hain jisme stree bas ek khayal rakhne wala purja hoti hai parivaar ka....
मन को भावुक कर गया .... संस्मरण
मन भर आया ..ऐसे कई वाकये हैं जब जीवन संगिनी की जीवन भर की गयी सेवा कि आदत सी पद जाती है और मनुष्य उसके सुख दुःख को उपेक्षित कर केवल अपने विषय में ही सोचता है ............भावुक सस्मरण .......
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