आज शाम से मुझे दो सवालों से रु-b-रु होना पड़ा.सवाल गहन हैं.....कुछ दर्दनाक भी.रात साढ़े दस बजे मेरी छोटी बहन का फोन आया. मोबाईल के स्क्रीन पे उस वक़्त उसका नाम पढ़ते ही दिल धक्-सा हो गया!
उसने कहना शुरू किया," अम्मा का कुछ मिनटों पहले फोन आया था. वो मुझे तुरंत अपने पास बुला रही हैं.उनका कहना है,की,अब उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता....कौनसी दवाई ली कौनसी लेनी है....कुछ भी नहीं...मेरे लिए तुरंत जाना मुमकिन नहीं.मै पिछले हफ्ते ही वहाँ से लौटी हूँ. अब आप ही जाके उन्हें अपने पास ले आईये.वो न माने तो ज़बरदस्ती करनी होगी.इसके अलावा और कोई चारा ही नहीं.आपका क्या ख़याल है?"
मैंने कहा," अव्वल तो तेरी बात सुन के ही कलेजा धक्-सा हो गया है.हाँ....मै उन्हें ले आऊँगी. लानाही पडेगा....परसों या तरसों चली जाऊँगी. जाने के पहले काफी कुछ इन्तेज़ामात करने होंगे."
अम्मा को दो साल पूर्व कैंसर डिटेक्ट हुआ था. उसकी सर्जरी कामयाब हुई. उसके बाद उन्हें घुटनों के दर्द ने जकड लिया. चलना फिरना भी धीरे धीरे दुश्वार होने लगा.साथ ही Alzheimer की तकलीफ शुरू हो गयी. वो बहुत-सी और ज़रूरी बातें भूलने लगीं. ये पतन बहुत तेजीसे होने लगा. अब घुटनों के ऑपरेशन का भी सवाल सिरपे है....जिसके लिए वो राजी नहीं!
बहन से बतियाके मै अपनी बेटी के कमरे में गयी. वो इंग्लॅण्ड से कुछ दिनों के लिए आयी हुई है. बहन से हुई बात चीत की चर्चा मैंने उसके साथ छेड़ दी. उसने कहा," माँ! आपने अभी ही एक बात का फैसला उनके साथ कर लेना चाहिए. वो इस तरह कबतक जीना चाहेंगी? कलको तो वे स्वयं को भी भूल जायेंगी....क्या ऐसे में मौत को अपनाना बेहतर नहीं?"
फिर एक बार मेरा कलेजा धक्-से रह गया! क्या अपनी माँ से मै ये बात कर सकती हूँ? कर भी लूँ तो इसकी सुविधा भारत में तो नहीं!
बातों के आगे चलते जीवन मृत्युकी बात छिड़ी. बेटी ने कहा," मै इसीलिये बच्चे पैदा करना नहीं चाहती. अंत में जीवन क्या है? एक वेदना का सफ़र.बच्चे पैदा होते हैं....जवान होते हैं.....बूढ़े होते हैं,और बुढ़ापे की सैंकड़ो तकलीफों से घिर जाते हैं! मै किसलिए कोई जीव इस दुनिया में लाऊं जबकि मुझे उसका अंत पता है?"
मै खामोश हो गयी. मेरे पास कोई फल्सुफाना जवाब नहीं था, जिससे उसकी शंका का निरसन होता!
बहुत परेशान हूँ....अपने सभी ब्लॉगर मित्रों से आवाहन करती हूँ,बिनती करती हूँ,की,मुझे कोई उत्तर, कोई उपाय सुझाएँ!
उसने कहना शुरू किया," अम्मा का कुछ मिनटों पहले फोन आया था. वो मुझे तुरंत अपने पास बुला रही हैं.उनका कहना है,की,अब उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता....कौनसी दवाई ली कौनसी लेनी है....कुछ भी नहीं...मेरे लिए तुरंत जाना मुमकिन नहीं.मै पिछले हफ्ते ही वहाँ से लौटी हूँ. अब आप ही जाके उन्हें अपने पास ले आईये.वो न माने तो ज़बरदस्ती करनी होगी.इसके अलावा और कोई चारा ही नहीं.आपका क्या ख़याल है?"
मैंने कहा," अव्वल तो तेरी बात सुन के ही कलेजा धक्-सा हो गया है.हाँ....मै उन्हें ले आऊँगी. लानाही पडेगा....परसों या तरसों चली जाऊँगी. जाने के पहले काफी कुछ इन्तेज़ामात करने होंगे."
अम्मा को दो साल पूर्व कैंसर डिटेक्ट हुआ था. उसकी सर्जरी कामयाब हुई. उसके बाद उन्हें घुटनों के दर्द ने जकड लिया. चलना फिरना भी धीरे धीरे दुश्वार होने लगा.साथ ही Alzheimer की तकलीफ शुरू हो गयी. वो बहुत-सी और ज़रूरी बातें भूलने लगीं. ये पतन बहुत तेजीसे होने लगा. अब घुटनों के ऑपरेशन का भी सवाल सिरपे है....जिसके लिए वो राजी नहीं!
बहन से बतियाके मै अपनी बेटी के कमरे में गयी. वो इंग्लॅण्ड से कुछ दिनों के लिए आयी हुई है. बहन से हुई बात चीत की चर्चा मैंने उसके साथ छेड़ दी. उसने कहा," माँ! आपने अभी ही एक बात का फैसला उनके साथ कर लेना चाहिए. वो इस तरह कबतक जीना चाहेंगी? कलको तो वे स्वयं को भी भूल जायेंगी....क्या ऐसे में मौत को अपनाना बेहतर नहीं?"
फिर एक बार मेरा कलेजा धक्-से रह गया! क्या अपनी माँ से मै ये बात कर सकती हूँ? कर भी लूँ तो इसकी सुविधा भारत में तो नहीं!
बातों के आगे चलते जीवन मृत्युकी बात छिड़ी. बेटी ने कहा," मै इसीलिये बच्चे पैदा करना नहीं चाहती. अंत में जीवन क्या है? एक वेदना का सफ़र.बच्चे पैदा होते हैं....जवान होते हैं.....बूढ़े होते हैं,और बुढ़ापे की सैंकड़ो तकलीफों से घिर जाते हैं! मै किसलिए कोई जीव इस दुनिया में लाऊं जबकि मुझे उसका अंत पता है?"
मै खामोश हो गयी. मेरे पास कोई फल्सुफाना जवाब नहीं था, जिससे उसकी शंका का निरसन होता!
बहुत परेशान हूँ....अपने सभी ब्लॉगर मित्रों से आवाहन करती हूँ,बिनती करती हूँ,की,मुझे कोई उत्तर, कोई उपाय सुझाएँ!
42 टिप्पणियां:
maa ko le aayein jaa ke...
@ बच्चे का जन्म ,
अगर बिटिया की व्यवहारिकता आपने अपनाई होती तो वो खुद ही ये सब कहने के लिए मौजूद नहीं होती ! उसे समझना होगा कि कुदरत जैसा और जितना सुख दुःख देती है वही ज़िन्दगी है !
अपनी ज़िन्दगी के वक़्त और वेदनाओं को लेकर फूल खिलना छोड़ देते हैं क्या ? बिटिया की सोच गैर कुदरती है ! उसे बुढ़ापे के वक़्त का ख्याल रहा पर उससे पहले के सुख भी गिनना चाहिए ! आने वाली जान को अंत के ख्याल से शुरूवाती सुखों से वंचित करना कहाँ तक सही है ?
@ मां ,
कई बच्चे बोल नहीं सकते सुन और देख भी नहीं सकते तो क्या मां उन्हें ज़िन्दगी से महरूम कर देती है ?
यह एक अहसास है अपनेपन की मौजूदगी का जब तक हो सके बनाये रखिये !
अगर आप अपने पास बुला लें माँ को तो सबसे अच्छा रहेगा!
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
Meri salaah to yahi hai ki maa ko aap apne sath rakhein... pyaar aur care do aisi cheejein hai jisse vyakti ki badi se badi takleef khatm ho jati hai... unki jindagi k har bache pal ko khushiyon se bharne kee koshish kijiye... dua meri unke aur aapke dono k sath hai... rahi baat apki beti k sonch kee to ye aaj shayad har yuva k man mein ghumta hai... jis parivesh mein bhavnaavihin ho kar hum jee rahe hai waise mein ye sawaal laajmi hai... khair ye alag bahas ka mudda hai... abhi priority aapki maa hai...
जीवन के कुछ ऐसे हालात होते हैं जिनका सामना हौसला और सकारात्मक सोच के साथ करना पड़ता है।
हो मुकम्मल तीरगी ऐसा कभी देखा न था
एक शम्अ बुझ गई तो दूसरी जलने लगी
मेरी समझ में ही नहीं आता कि आखिर कोई भी भारतीय स्त्री-पुरुष इच्छा-मृत्यु की सलाह कैसे दे सकता है? वो भी उस व्यक्ति के लिये जो उसकी नानी है? क्या भूल जाना उनके लिये मौत की सज़ा हो गया? हमारे यहां तो ये जानते हुए भी कि हमारा परिजन दस-बीस दिन से ज़्यादा का मेहमान नहीं है, अन्तिम क्षण तक उसका इलाज़ करवाने की परम्परा है. हमारा सब का दिल भी यही करने को कहता है. कोई बिस्तर पर पीड़ा झेलता पड़ा मरीज़ हो तो उसके लिये मौत की कामना करना अलग बात है.
आप तुरन्त मां को अपने पास ले आइये. बेटी से किसी भी सही राय की उम्मीद मत रखिए. उसकी बातें पढ के लगता ही नहीं कि वो कोई मानवीय राय दे पायेगी.
मेरी टिप्पणी स्पैम में गई है ?
माँ को साथ ले आयें, माँ से अनमोल जीवन में कुछ भी नहीं !
क्षमा जे इंसानों के साथ ऑन-ऑफ का स्विच नहीं होता जिसे हम जब चाहे अपनी मर्जी से चलादें या बंद कर दें.. इसकी स्विच जिसने अपने हाथों में थाम रखी है उसके सिवा किसी को अधिकार नहीं के उसके काम में दखलंदाजी करे!!
बिटिया ने जो कहा वह पश्चिमी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है.. आप खुद क्या सोचती हैं???
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है!
आपके ब्लॉग पर अधिक से अधिक पाठक पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
सबसे पहले तो माँ को ले आये, और उनकी खूब सेवा करें,
और अपनी बेटी को समझाए की यही स्रष्टि का नियम है ये ऐसे ही चलेगा
वो लोग बहुत खुशनसीब होते हैं जिनकी मां होती हैं.... आप अपनी मां को अपने पास ले आएं, सब अच्छा होगा। रही बात आपकी बेटी की, वक्त के साथ उसे भी रिश्तों की समझ आ जाएगी।
Hi..
Aapki vyatha sunkar dil bhar aaya.. Mujhe aapki ek baat bahut akhari hai.. Aapne likha hai ki YAH SUVIDHA BHARAT MAIN NAHI. To kya aap khud bhi yahi chahti hain?? Varna kisi jinda vyakti ko maar dene ki sweekruti aapko SUVIDHA kyon lagti bhala?? Shayad aap bhi unki beemari se bahut dukhi hain athwa aap par bhi aapki videsh nivasini beti ka jyada asar hai jo beti ke es sanwad par es prakaar ka prashn aapke dimaag main aaya hai.. Koi bhi bharteey mansikta vala vyakti kisi ko maar dene ki vakalat nahi kar sakta..dekhiyega yahan aapka ek bhi bloger mitr ya pathaak ye nahi kahega.. Maa ki sewa karen, jaise bachpan main unhone aapki kari..bachcha paida hota hai to use sab yaad rahta hai kya..fir bhi har maa use apne kaleje se laga kar nahi rakhti kya..ab apni Maa ko kaleje se lagane ki aapki baari hai.. Logon ko aapne bhi barson koma main rahte dekha hoga..to kya un sabhi ko mar jana chahiye.???
Apni dadi ke liye jis poti ke aise vichar hon..sochiyega, jab aapki bari aayegi to ye aapki bhi yun hi tilanjali na de de..so abhi samay hai..hoshiyaar ho jaiye.. Aage aapke sath bhi yahi ho sakta hai.. Jo ladki sirf esliye bachche nahi chahti ki ve ek din mar jayenge, vo aapse ya parivaar se kitna muhabbat karti hogi eska andaja sahaj hi laga ja sakta hai..
Maa ki seva karen unke paas rahkar..unko apne paas rakhkar nahi.. Aur apne budhpe ke liye bhi kuchh intejaam kar len..ye aapki bitiya to aapke prati aisi bhi sanvedansheel na hogi, jaisi aap apni Maa ke prati hain..
Aapko meri pratikriya buri lagi ho to kshama chahta hun..mujhe bhi ye baat bahut kharab lagi ki jo bujurg ho gaya use aise tajne ki koshish ki jaye..
Deepak Shukla..
यही श्रृष्टि का क्रम है , जीवन चक्र है , पौधों ,कीट पतंगों से लेकर मानव तक एक सा ...
माँ भूल जाएँगी मगर जब तक हमें याद होगा हमारी माँ ही होंगी !
शायद कटु लगे लेकिन निवेदन कि अनर्गल और वाहियात फलसफे में न उलझें....
माँ से बड़ा कुछ नहीं... उनके प्रति अपने निस्वार्थ कर्तव्य का पालन ही शास्वत है....
सादर....
कुछ कमी रह गई बिटिया की परवरिश में। जिस चिंतन के कारण वह बच्चे पैदा करने के खिलाफ हैं,उसी सोच की यदि आप होतीं तो बिटिया को यह चिंतन का अवसर भी न मिलता। उनकी सोच मदर इंडिया के उस गाने जैसी लगती है जिसमें कहा गया है कि दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा,जीवन है अगर ज़हर तो पीना ही पड़ेगा।
नहीं,न तो दुनिया में आना कोई मज़बूरी है,न जीवन कोई जहर। यह एक नकारात्मक दृष्टिकोण है जिसके कारण ही अपने आसपास जीवन का कोई स्पंदन महसूस नहीं होता।
सबका अपना-अपना प्रारब्ध है और ध्यान रहे कि पुरूषार्थ ही कालक्रम में चलकर प्रारब्ध बन जाता है।
अरे इसमे सोचना कैसा आप माँ को लाइये ये सोच पश्चिमी सभ्यता की हो सकती है हमारी नही ………सृष्टि का क्रम बदलने वाले हम कौन हो सकते हैं जैसी चल रही है आगे भी चलती रहेगी।
मन को घर लाइए.........
sharda arora sharda.arora9@gmail.com to me
ये बेटी ने क्या भ्रम पाल लिया ...इस रास्ते पर सिर्फ तकलीफ है , कुछ
बातों को ईश्वर का हुक्म समझ कर मान लेना चाहिए , मगर ये सारी दुनिया
मूर्ख तो नहीं है जो अपने बच्चों में अपना आप देखती है ...दुनिया को चलने
के लिए बहाना चाहिए होता है ...बच्चे यूं समझो जैसे अपनी ही कृति होते
हैं . हर बात से मुंह मोड़ने का मतलब है रुक जाना ...जीवन तो चलने का नाम
है ...शुभ कर्मों से जीवन को सुन्दर बनाना चाहिए ...पीड़ा का मतलब ये नहीं
है कि जीवन को भार समझलिया जाए ...
जीवन कोई सजा नहीं है
दर्द तो है पर कज़ा नहीं है ....
Whoa, thanks for writing about it. The subject seems intriguing. Will make a note of your web-site and pop back again. Seems like an awesome source. Take care.
From everything is canvas
एक ही उपाय....माँ को साथ ले आयें.
माँ ..एक रिश्ता नहीं एक भावना ओर वजूद का नाम है ..प्रत्येक मनुष्य को एक दिन वृद्ध हो ही जाना है ..जीवन चक्र में ...माता पिता की सेवा ओर उनके इस संसार से गौरव पूर्ण विदाई हमारा कर्तब्य ही नहीं बल्कि भावना प्रधान धर्म भी होता है ..अतिथि है हम इस संसार में ..विदा होते समय अपनों से घिरे रहना चाहते है....माँ को अपने पास बुला लीजियेगा....सादर !!
कल में विवेकानन्दजी को पढ रही थी। इसलिए उन्हीं के शब्दों को यहां दोहरा रही हूं जिससे आपके दिशा मिले। अमेरिकावासियों के एक प्रश्न-कि भारत में महिलाओं की स्थिती क्या है, के उत्तर में उन्होंने कहा कि पश्चिम में गृहस्वामिनी पत्नी होती है और भारत में यह स्थान मां का है। इसलिए मैं आप लोगों से पूछता हूं कि आपके यहां मां का स्थान कहां हैं? बहुत बड़ा भाषण है इसलिए बस एक ही लाइन लिख रही हूं। इसलिए हमारे यहां सबकुछ मां है, पश्चिम में मां कुछ भी नहीं। इसलिए हमारा धर्म है मां की सेवा करना लेकिन बिटिया पश्चिम से प्रभावित है इसलिए वह कह रही है कि इस फालतू चीज को समाप्त कर दो।
Sorry for being late in this blog again!
I think you should bring her with you and give her happy moments.Life is precious and it should be cherished. And she is your mother! Nothing is precious than a mother!
I completely disagree with your daughter's thinking in this regard.
इसमे पूछने वाली कोनसी बात है ? माँ बार बार नहीं मिलती , और माँ की इस उम्र में
आपको एक माँ की तरह माँ की सेवा करनी है
dil ko chune vali...
माँ माँ माँ
बस माँ.
देश के लिए प्यारी मात्र भूमि मानकर
नौजवान प्राण निछावर कर देते हैं.
माँ के स्वरुप में ही ईश्वर का स्वरुप है.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा kshma जी.
माता जी को साथ लायें... इस से आपकी बेटी को भी सीख मिलेगी.. क्यूंकि यह सृष्टि का नियम तो निर्जीवों पर भी लागु है और प्राणियों पर भी... ब्रह्माण्ड की उत्पति के बाद कितने सितारे धूमिल हो गए... पृथ्वी की भी एक आयु है.. सभी की ... और मौत का कैसा भय .. बुदापे का क्या डर .. जब सब घरवाले उम्र का नहीं रिश्तों का प्रेम और जिम्मेदारियों को समझें ...
अधिक सोचना क्या ? माँ को घर ले आईये..सब ठीक ही होगा...
टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
धैर्य रखना होगा, जवाब समय दे देगा.
bahut hi shandar tarah se likha hai...aap ko bahut bahut badhai.
मां को साथ रखें. बेटी की सोच को बदलें.सूरज उगता है तो अस्त भी होता है. जीवन हर रंग में बेहद खूबसूरत है.
माँ को साथ लायें उनको अपनापन महसूस करायें चाहे वे आपको ना पहचानें आपके सेवाभाव को जरूर पहचानेंगी । बेटी को बताना होगा कि हम इस सृष्टि का एक हिस्सा हैं उसके लिये वेदना से गुजरकर सुख को पाना होता है सृजन का आनंद कैसे पायेगी वह बिना बच्चों को जन्म दिये ।
भारतीय संस्कारों ने जो सिखाया है वही करिए ...अनावश्यक तर्क इन मामलों में शेष जीवन सालते हैं !
aap aai bahut hi achchha laga ,kai mahine huye sabko padhe huye ,ab ye sukhad anubhav phir se le rahi hoon ,maa se jaroor miliye aur unke saath rahiye .
no suggestions
just thinking
is umra mein sabse jyada jarurat apno ke pyar ki hoti hai...so aapko unhe saath hi rakhna chahiye.
welcome to my blog :)
माँ को तो ले ही आना है। सेवा भी करनी है। इसमें कोई तर्क वितर्क की आवश्यकता नहीं। बिटिया की बात लाख गलत हो लेकिन एक प्रश्न तो छोड़ ही जाती है कि जब हम ऑन बेड..अपाहिज पड़े हों तो क्या इच्छा मृत्यु की मांग करना गलत है?
मैं तो चाहुंगा कि हे ईश्वर! जब मैं अशक्त हो किसी पर बोझ बनूं उससे पहले मुझे उठा लेना धरती से।
जीवन के कटु सत्य हैं...
बेटी को कहिये जीवन मिश्रण है...इसमें कई पल मीठे भी हैं...
जैसे वो आई है इंग्लैंड से तो उसकी माँ कितनी खुश है...और वो भी माँ के साथ तृप्त है...
मिठास के संग कुछ कड़वे सत्य झेलना ही तो जीवन है...
बहुत अच्छी रचना लगी आपकी...
मेरे ब्लॉग पर आप आईं क्षमा जी,आपका बहुत बहुत आभार.
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.
आपके सुविचार मेरे लिए अनमोल हैं.
man ko sath layen....
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