(पूजा को हमेशा अपने पती से छुपके केतकी की ज़रूरतों को पूरा करना पड़ता. और बेचारी की ज़रूरतें ही कितनी-सी थी? कई बार तो उसे भूखे पेट सो जाना पड़ता! छात्रावास का भोजनालय, केतकी जबतक लौटती, बंद हो जाता और आसपास खान पान की कोई सुविधा नहीं थी.
केतकी वास्तुशास्त्र के ३रे सालमे आ गयी और...अब आगे पढ़ें...)
.....और अमन बी.कॉम के प्रथम वर्षमे. अमन अपने माता पिताके साथ रहता था. जब गौरव का तबादला हुआ तब अमन १२ वी कक्षा में था. उस साल उसे ३ महाविद्यालय बदलने पड़े! खैर!
वास्तुशाश्त्र के ३ रे वर्ष में जब एक बार केतकी अपने माँ पिता के पास आई हुई थी तब, उसने अपनी माँ को बताया की, उसे एक लड़का पसंद है. लड़का, राघव, इंजीनियरिंग का course कर रहा था और वो भी ३ रे साल में था. वो केतकी की बचपनकी सहेली, मुग्धा के क्लास में था.
केतकी ने एक दिन राघव की मुलाक़ात अपनी माँ तथा पितासे करवा दी. लड़का वाक़ई मेघावी और ख़ुशमिज़ाज था. अपनी माँ बाप की एकलौती औलाद. पहले तो पूजा समझी उसके माता पिता उसी शहरमे रहते हैं. उसकी खुशीका ठिकाना न रहा, क्योंकि पूजा और गौरव ने सेवा अवकाश के बाद उसी शहर में रहने का फैसला कर लिया था. लेकिन ये पूजाकी यह खुशफहमी ज़्यादा दिन टिकी नहीं. राघव छ्त्रवास में रहके पढ़ रहा था तथा, उसके माता पिता hydarabaad के बाशिंदे थे. फिरभी पूजा ख़ुश ही हुई की, कमसे कम अपने देशमे तो था!
उस साल पूजा और गौरव के विवाह को २५ साल पूरे होनेवाले थे. पूजा हर प्रकारसे अपनी शादी को खुशगवार बनाये रखने का यत्न किया करती. उसने उस समय उनके जहाँ जहाँ तबादले हुए थे, वहाँ के सब मित्र परिवारों को न्योता दिया. कुछ उसकी अपनी स्कूलकी सहेलियाँ भी शामिल थीं. भाई बहन के परिवार भी आए.
शादी की सालगिरह पड़ती इतवारके रोज़ थी,लेकिन शनिवार की रात को मनाने का तय हुआ, की, बाहर से आनेवाले लोगों को लौटने में सुविधा हो. शनिवारको देर रात ,मतलब रातके एक डेढ़ बजे तक कुछ करीबी दोस्त सहेलियाँ बतियाते रहे. मतलब इतवार का दिन शुरू ही हो गया था. बहन आदि दो दिन रुक के लौटने वाले थे.
सुबह को पूजाके कमरेमे कुछ जल्दी ही खिटर पिटर सुनाई दी. पूजा ने आँख खोली तो भी उसके पास खड़ा था...बहन के कंधेपे पर्स थी...माजरा कुछ समझमे नही आया...बहन ने पूजा के हाथ में चाय की प्याली थमाई...पूजा फटी फटी आँखों से सबको देखे जा रही थी..!
भाई बोला: "आपा आप चाय तो पियो!"
पूजा ने दो घूँट लिए और बहनसे बोली:" तू पर्स लटकाए क्यों घूम रही है?"
भाई . ने पीछे से अपनी आपा को गले लगते हुए कहा:"आपा, दादिअम्मा नहीं रहीं...सुबह, सुबह गुज़र गयीं...चलिए जाना है.."
कुछ पल तो पूजा की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई...और फिर उसे एहसास हुआ की, उसके जीवन का एक अध्याय ख़त्म हुआ. उसके दादा तो जिस साल गौरव का यहाँ तबादला हुआ उसी साल चल बसे थे.दादिअम्मा मानो शादी का सालगिरह हो जानेके इन्तेज़ारमे थीं...
वो ज़ारोज़ार रो पडी. चाहे जिस भी उम्र में उसके दादा दादी का निधन हुआ, उन तीनो भाई बहनों के लिए वो एक सपूर्ण अध्याय का समापन था...
जब उनकी गाडियाँ उनके फ़ार्म हाउस के गेट से अन्दर पहुँची तो पूजा के लिए उस घरको बिना दादा दादी के देखना असह्य हो उठा..सच का सामना करना ही था...
चंद रोज़ वहाँ रुक, पूजा लौट आई...गौरव और बच्चे तो उसी रोज़ शामको लौट गए.पूजा ने अपने मनको केतकी के ब्याह के विचारों में लगाने की कोशिश की.
सालगिरह के कुछ रोज़ पहले ही पूजा ने अपनी एक सहेली के साथ मिलके अपनी कलाकृतियों की प्रदर्शनी की थी,जो बहुत कामयाब हुई थी. पूजा ख़ुश थी,की, अब उसे एक स्थायी काम मिल गया. उनका चाहे कहीं तबादला हो, उसकी सहेली उसी शहरसे देखरेख करेगी. पूजा ने डिज़ाइन आदिका ज़िम्मा खुदपे ले लिया था..लेकिन चंद ही रोज़ में सहेली ने अपनी मजबूरी बता दी...इतनी माथा पच्ची उसके बस की नही थी.
इधर पूजा को पता चला की, राघव तो अगले साल आगेकी पढाई के लिए अमरीका जानेवाला था....वहीँ नौकरी भी करनेवाला था...तथा, केतकी ने भी आगेकी ( M.arch ) . के लिए वहीँ जानेकी सोच रखी थी. पूजा अंदरही अन्दर टूटने लगी. उसकी लाडली इतनी दूर अपना घोंसला बना लेगी, उसने कभी सोचही नही था...
केतकी का आखरी साल ख़त्म हुआ औरपूजा ने अमरीका जाने की तैय्यारी शुरू कर दी. उसे शिश्यव्रुत्ती भी मिल रही थी. GRE की तैय्यारी करने के लिए वो अपने माँ पिता के साथ रहने चली आई इनटर्न शिप उसने वहीँ से की. एन दिन कंप्यूटर के आगे बैठ केतकी कुछ काम रही थी. पूजा उसके लिए फल काटके ले गयी ..... प्लेट पकडाते हुए उसने पीछेसे केतकी के गले में बाहें डाली और कहा," तुम्ही बच्चे मेरी दुनिया हो..."
केतकी ने एक झटके से उसे परे करते हुए कह दिया," माँ तुम अपनी दुनिया अब हमसे अलग बनाओ...अपनी दुनिया में हमें मत खींचो...अब मुझे पढाई करने दो प्लीज़.."
पूजा झट से हट गयी और अपने कमरे में जाके खूब रोई...उसका मानो जीने का हर सहारा छीन रहा था...वो और और अकेली पड़ती जा रही थी...गौरव तो अपने दफ्तर के काम में व्यस्त रहता...लेकिन वैसे भी औरत के इन कोमल भावों को उसने कब समझा?
उसी समय गौरव फिर एक तबादला हुआ...अबके अमन को भी पीछे छोड़ना पड़ा क्योंकि, उसका M.BA का साल था. इसबार तबादले के पश्चात जो घर मिला वो बेहद बड़ा था...ना अडोस ना पड़ोस...केतकी आती जाती रहती...अब अपनी माँ के साथ उसका बर्ताव बेहद चिडचिडा हो गया था..पूजा का नर्वस ब्रेक डाउन हो गया था. ...केतकी इन सब बातों को अब बर्दाश्त नही कर पा रही थी. इन सब बातों के लिए उसे उसकी माँ भी उतनीही ज़िम्मेदार लग रही थी जितने के पिता..
जो भी हो माँ तो माँ थी...उसने अपनी जोभी जमा पूंजी गौरव से छुपाके राखी थी,वो केतकी के अमेरिका जानेके खर्च में लगा दी. और फिर वो दिनभी आ गया जब उसे अमरीका जाना था...हवाई अड्डे पे पूजा ,गौरव और केतकी खड़े थे..पूजा के आँखों से पिछले महीनों से रोका हुआ पानी बह निकला था...उसने अपनी लाडली के आँखों में झाँका...वहाँ भविष्य के सपने चमक रहे थे..जुदाई का एकभी क़तरा उन आँखों में नही था...एक क़तरा जो पूजा को उस वक़्त आश्वस्त करता,की, उसकी बेटी उसे याद करगी..उसकी जुदाई को महसूस करेगी...उसे उस स्कूल के दिनका एक आँसू याद आ रहा था,जो नन्हीं केतकी ने बहाया था...जब स्कूल बस बच्ची को पीछे भूल आगे निकल गयी थी...समय भी आगे निकल गया था...माँ की ममता पीछे रह गयी थी...
क्रमश:
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24 टिप्पणियां:
उफ़्फ़ ! इतनी पीडा कैसे कोई सह सकता है ?………॥जिन बच्चों के लिये वो जी रही है यदि वो भी ना समझें तो उसके जीवन का क्या मकसद रह गया?अब तक यूँ लग रहा था कि शायद अब पूजा के जीवन मे बदलाव आये मगर लगता है अभी इम्तिहान बाकी है।
rochak, maarmik, sundar kathaa.pls continue.
लेकिन केतकी के अचानक बदले ऐसे व्यवहार की वज़ह क्या थी?
बहुत रोचक..
जीवनी की श्रंखला जीने का मन्त्र सिखाती है!
itna lamba sangarsh kahi thamta hi nahi ,pooja me adbhut sahanshakti hai ,umda .
Poor Pooza!
Very touching but maybe Ketaki was also going thru some internal conflicts. In todays difficult world survival itself is a big task
rochak aur intzar shuru.
dil ko chu le janu wali
dil ko chu le janu wali
pyari aur dil ko chu le jane wali ................
क्या लेखन कला है ?कमाल है ........एकदम बाँध कर रखती है. साँस की लय भी कहानी की लय से बांध जाना चाहती है.अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी. आभार
बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ये कहानी पढ़ना शुरु किया है, विचार फिर कभी रखुंगा
फिर वो दिनभी आ गया जब उसे अमरीका जाना था...हवाई अड्डे पे पूजा ,गौरव और केतकी खड़े थे..पूजा के आँखों से पिछले महीनों से रोका हुआ पानी बह निकला था...उसने अपनी लाडली के आँखों में झाँका...वहाँ भविष्य के सपने चमक रहे थे..जुदाई का एकभी क़तरा उन आँखों में नही था...एक क़तरा जो पूजा को उस वक़्त आश्वस्त करता,की, उसकी बेटी उसे याद करगी..उसकी जुदाई को महसूस करेगी...उसे उस स्कूल के दिनका एक आँसू याद आ रहा था,जो नन्हीं केतकी ने बहाया था...जब स्कूल बस बच्ची को पीछे भूल आगे निकल गयी थी...समय भी आगे निकल गया था...माँ की ममता पीछे रह गयी थी...
अंतस से लिखी प्रभावशाली कहानी। शब्दों में आंतरिक सच लिपटा हुआ आया । दर्द तो फिर आना ही था।
समकालीन टूटते बिखरते मजबूर विकास का उम्दा चित्रण। अनुभूतियों की ‘शमा’ मौजूद है, ‘क्षमा’ बनकर।
मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का आभर, मुझपर निरंतर नज़र रखने के लिए चाहें तो एड करलें, अपने ब्लाग में।
धन्यवाद!
बहुत बढ़िया | काबिले तारीफ़ है! बधाई| जीवन की यही कडुवी सच्चाई है|
Bahut hi marmik kahani...
badhai.
हे भगवान...अब केतकी भी। उफ़्फ़्फ़्फ़!
लेकिन क्यों मगर?
padha tho khoti hi chali gayi,pooja ,ketki aur dard ka rishta, pehle ki kahani bhi itminaan se padhungi.rochak katha.
Agli kadi ka intzaar hai.
काबिले तारीफ़ है! बधाई!
कल 13/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बढ़िया लिखा है.....आगे की कड़ी की प्रतीक्षा में....रोचक है...!!
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