(गतांक : तीन अखबारों में अब मेरे साप्ताहिक column छपने लगे..लेकिन ,लेकिन..बच्चों की याद..खासकर केतकी की, मुझे रुलाती रही...जीवन में उसे चैन नही हासिल हुआ...और चाहे गलती किसीकी हो...उसकी ज़िम्मेदार,एक माँ की तौरपे मै भी थी..आज माँ की मामता मुझे चैन नही लेने दे रही थी...)
ऐसेही दिन बीतते रहे...मुझे रोज़ केतकी के मेलका इंतज़ार रहता.. चाहे वो दो पंक्तियाँ क्यों न हो..उसके जानेके चंद दिनों बाद गौरव का ऐसी जगह तबादला हुआ जहाँ घर नहीं था. नयी पोस्ट बनी थी और उसे deputation पे बुलाया गया था..मै कुछ दिन अपने नैहर रह आयी..
'सामान बाँध के तैयार रहो...ताकि मकान मिलतेही निकल सको..." ,गौरव ने मुझे कह रखा था..तीन माह बीत गए लेकिन मकान का इंतज़ाम नहीं हुआ...बच्चों से दूर होके मुझे वैसेही उदासी ने घेर रखा था..अब तो गौरव के न होने के कारण घरपे लोगों का आना जानाभी बहुत कम हो गया..
केतकी जब गयी तब मैंने सोचा था,की, अब मै अपनी कला प्रदर्शनी करुँगी...कुछ तो मन लगेगा..मैंने उस लिहाज़ से कपड़ा,धागे आदि खरीद लिए...और बस तभी गौरव का तबादला हो गया..किसी भी समय सामान समेट दूसरी जगह जाना होगा सोच मैंने प्रदर्शनी का ख़याल दिलसे निकाल दिया..
सरकारी नियम के अनुसार मै उस मकान में तीन माह्से अधिक नही रह सकती थी..किसी ने मुझे मकान खाली करनेको कहा नहीं था,लेकिन मेराही मन मानता नहीं था...गौरव की जगह जो अफ़सर आए थे,वो अथिति गृह में रह रहे थे..क्या करूँ? सामान लेके कहाँ जाऊँ ? सिर्फ मेरे रहनेकी बात होती तो मै अपने नैहर में रह लेती..
अंतमे गौरवही लौट आया..उसे राज्य सरकार ने बुला तो लिया लेकिन कोई पोस्ट खाली नही थी..वो बिना पोस्ट का था,तो मकान का सवाल आही गया..अंत में बंगलौर में एक बेडरूम और रसोई वाला फ्लैट किरायेपर लेनेका तय हुआ..पर वो नौबत नहीं आयी,और उसकी पोस्टिंग बंगलौर में ही हो गयी...
देखते ही देखते केतकी को जाके तक़रीबन एक साल हो गया. वो दो सप्ताह के लिए भारत आयी. उस समय हम उसके भावी ससुराल वालों से मिले. कोशिश थी की, राघव तथा उसकी पढाई ख़त्म होतेही ब्याह कर दिया जाय...लेकिन ससुराल वालों के लिहाजसे कोई मुहूर्त अगले साल भरमे नही था...
केतकी के स्वभाव में आया परिवर्तन कायम था...बहुत चिडचिडी हो गयी थी...ख़ास कर मेरे साथ..कई बार मै अकेलेमे रो लेती..इतने बरसोंका तनाव अब उसपे असर दिखा रहा था..अपने पितासे तो वो कुछ कह नहीं सकती लेकिन भड़ास मुझपे निकलती..और उसके लौटने का समय भी आ गया..बिटिया आई और गयी...मै उसे आँख भर देख भी न पाई..बातचीत तो दूर..
मेरी चिड़िया फिर एकबार सात समंदर पार चली गयी..
इधर अमनकी पढ़ाई भी ख़त्म हो गयी..उसने M.B.A कर लिया और उसे चंडीगढ़ में नौकरी मिल गयी. केतकी पढाई के साथ नौकरी भी कर रही थी. ...उसे final परिक्षा में अवार्ड भी मिला..मै बहुत ख़ुश हुई..लगा,बच्ची की मेहनत रंग लाई..
उसने भी नौकरी के लिए अर्ज़ियाँ दे रखी थी....उसे उसी शहर में नौकरी मिली जहाँ राघव को मिली थी..
एक दिन शाम गौरव घर आया और मुझ से बोला," केतकी का फोन था..वो और राघव अगले माह रजिस्टर पद्धती से ब्याह कर ले रहे हैं..."
सुनके कुछ देर तो मेरी कोई प्रतिक्रया नही हुई...पर धीरे,धीरे मनमे बात उतरी..बिटिया का ब्याह और मै नही जा सकूँगी...कहाँ तो उसके ब्याह को लेके इतने सपने संजोये थे...उसके सारे कपडे मै खुद डिजाईन करने वाली थी...' बाबुल की दुआएँ लेती जा',इस गीत के पार्श्वभूमी में उसकी बिदाई करने वाली थी..जानती थी,की, वो नही रोयेगी, लेकिन मै अपनी माँ के गले लग खूब रोने वाली थी...
मेरी आँखों के आगे से गौरव का चेहरा ना जाने कब हट गया और मै ज़ारोज़ार रोने लगी...चंद घंटों की बिटिया मेरी निगाहों में समा गयी...वो आँखें भींचा हुआ कोमल मुखड़ा..जिसके इर्द गिर्द मै सपने बुनने वाली थी...उसे अपनी बाहों में लिया तो अनायास एक दुआ निकली...हे ईश्वर! इसकी राह के सारे काँटे मुझे दे देना...उसकी राहों में फूल ही फूल बिछा देना...
उसके जीवन का इतना अहम दिन और मै वहाँ हाज़िर नही...? दिल को मनाना मुश्किल था...नियती पे मेरा कोई वश नही था...ईश्वर क्यों मेरी ममता का इस तरह इम्तेहान ले रहा था? मैंने ऐसा कौनसा जुर्म कर दिया था? किया था..मेरे रहते,मेरी बिटियाको ज़ुल्म सहना पड़ा था..मुझे क़ीमत चुकानी थी...पर मेरा मन माने तो ना...
क्रमश:
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
34 टिप्पणियां:
शायद औरत होने का कर्ज़ उतार रही हैं……………॥ज्यादा कहने की स्थिति मे नही हूँ।
बिटिया का ब्याह और मै नही जा सकूँगी...कहाँ तो उसके ब्याह को लेके इतने सपने संजोये थे...उसके सारे कपडे मै खुद डिजाईन करने वाली थी...' बाबुल की दुआएँ लेती जा',इस गीत के पार्श्वभूमी में उसकी बिदाई करने वाली थी..जानती थी,की, वो नही रोयेगी, लेकिन मै अपनी माँ के गले लग खूब रोने वाली थी...
दिल को छू लेने वाला संवाद है.
मुझे अफ्सोस है इस सिलसिले मैं शुरू से क्यों नहीं शामिल हुआ...भावभीनी धरावहिक कड़ी...
इस दिल को छू लेने वाली कहानी को मुझे पूरा फिर से पढना पड़ेगा.... इस कड़ी की यह कहानी अच्छी लगी.... अब पीछे वाली कहानियां पढ़ता हूँ.....
shayad aurat hone ki vajah se ye sab aapko sehna pad raha hai
क्षमा जी क्षमा करें बीच से कुछ कड़ियाँ मिस हो गई है एक बार फिर पीछे जाना होगा...बहुत बेहतरीन और भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बधाई देना चाहूँगा...
दिल को छू लेने वाला संवाद ,बेहतरीन और भावपूर्ण प्रस्तुति
पता ही नहीं चल रहा क्या लिखूँ.....
So tragic and so true; its usually the mother who has to bear the childs anger, frustrations etc.
Does Gaurav ever realise what a gem he has as his wife?
आपकी पोस्ट पढ़ कर मन व्यथित हो गया बस मौन ही रहना चाहूंगी ...
भावों में डूब कर चल रही है लेखनी,इन्तजार और धन्यवाद.
माँ और उसकी ममता भी असहाय हो जाती है..बच्चों के फैसलों के आगे!
बहुत भावपूर्ण लिखा है ..आगे के भाग की प्रतीक्षा रहेगी.
--
आपने कई अनगिनत किताबें पङी पर क्या
आपने कबीर की अनुराग सागर पङी ये नही
पङी तो समझो कुछ नही पङा
Heartbreaking---
auchhi prastuti ...........kabile tarif shandar
आपने कमाल का लिखा है जब मेरा रिश्ता तय हुआ उस वक़्त मै भी खूब रोई क्योकि तब मै स्नातक के अंतिम वर्ष मै थी इसके बाद जब शादी हुई तब भी खूब रोई बचपन से जिन के साथ मै रही उन्हें छोड़ कर जाना वाकई दुःख देता है
दिल छू लिया है तूने ओ ब्लॉगर !
ये कड़ी दिल को छू गयी ....
Dil baitha ja raha hai ye sab padhkar.. sach me tootte sapne, bikhre sitare jaisa kuchh hai yahan
शमा जी,
उस दिन की एक छोटी सी गुफ्तगू के बाद बड़े दिनों से दूर था, आह लौटते ही पिछले सारी कड़ियाँ जोड़ने का काम कर रहा हूँ।
माँ होने के मायने सार्थक करती हुई इस कड़ी में से अभी बाहर आना मुश्किल है.....
बहुत ही मार्मिक।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
पूरा पढने की इच्छा । माँ महान है ।
बिटिया का ब्याह और मै नही जा सकूँगी...
ये पीड़ा अभी कुछ दिन पहले मैंने भोगी है ,इसका दर्द तो बस आसन हिला देता है ऊपर वाले का भी ,सच बहुत गहन पीड़ा है ये ..........
यही होती है माँ, बच्चे चाहे रूठे रहें माँ की ममता बच्चों के लिये छलकती ही रहती है चाहे वे सामने हों या नहों ।
बिटिया का ब्याह और मै नही जा सकूँगी.....इस वाक्य में आपके दिल का सारा दर्द उभर आया है ।
स्रियां जीवन में कितनी गंभीर समस्याओं से झूझ रही होती है...इसका शब्दों मे सचित्र वर्णन आपने किया है आपने क्षमाजी!...रुबरु कराने के लिए धन्यवाद!.... मेरी कहानी आपको पसंद आई...इसके लिए मै खुशी का अनुभव कर रही हूं!
स्रियां जीवन में कितनी गंभीर समस्याओं से झूझ रही होती है...इसका शब्दों मे सचित्र वर्णन आपने किया है आपने क्षमाजी!...रुबरु कराने के लिए धन्यवाद!.... मेरी कहानी आपको पसंद आई...इसके लिए मै खुशी का अनुभव कर रही हूं!
aapka blog bahut hi sundar hai.ab aata rahunga
kshmaji your blog is very nice
क्षमा जी,सुन्दर भाव पूर्ण रचना..बधाई
badhiya kahani.......
पढ़ते हुए ...आंसू रोक लिए बस ,,,..इस से ज्यादा नहीं कह सकते....एक औरत ऐसी तो होती है
http://athaah.blogspot.com/
शमा जी,
बहुत ही मार्मिक।
SANJAY BHASKAR
बीतते समय के साथ भी पूजा के दर्द कम होने की बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं। केतकी का व्यवहार हैरान कर देने वाला है।
...उम्मीद है अगली किश्तों में कम-से-कम अमन ठंढी बयार लेकर आयेगा पूजा की तपती जिंदगी में
एक टिप्पणी भेजें