मै :" मै हज़ार बार कह चुकी हूँ,की,मेरी शूटिंग भी हुई थी और रेकॉर्डिंग भी! और गर नही है विश्वास तो उसी व्यक्ती से पूछ लो...और मै क्या कह सकती हूँ...इस विषय पे मै और एक शब्द भी सुनना नही चाहती...ख़ास कर तुम से..मै आत्म ह्त्या कर लूँगी...मेरे बरदाश्त की अब हद हो गयी है...!" खैर!
दो माह के बाद इन जनाब का एक माफी नामा आया. उन्हें पश्च्याताप हो रहा था..देर आए,दुरुस्त आए..पर मै बहुत कुछ खो चुकी थी...आत्म विश्वास और अपनों का विश्वास..खासकर अपनी बेटी का..गौरव के अविश्वास की तो आदत पड़ गयी थी...अब आगे.)
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इन्हीं हालातों के चलते एक बार पूजा और उसकी माँ के दरमियान अन्तरंग बातें हो रही थी.माँ ने कहा:" पता नही,ख़ता किसकी होती है,और भुगतना किसे पड़ता है! अजब दुनिया है...कभी सोचती हूँ,तूने,मेरी इस बिटिया ने कभी किसी का बुरा न किया...उसकी क़िस्मत में क्यों इतना दर्द लिखा है?
"अन्दर से इक आवाज़ आती है-इसका सिरा मेरी माँ से जुड़ता है..तेरी नानी ने अपनी ननद की बेटी से बहुत बुरा बर्ताव किया था. जबकि तेरी इस मासी ने कभी उन्हें पलट के लफ्ज़ नही कहा..बेचारी बिन माँ बाप की अनाथ लडकी थी...मै तो उनसे काफ़ी छोटी थी...तब नही समझ पाती थी,लेकिन आज लगता है,क़ुदरत ने यह न्याय किया है...ना जीवन में मुझे चैन मिला न तुझे..."
पूजा गहरी सोच में पड़ गयी थी. उसे याद आया,उसका ही लिखा एक आलेख,जिसमे उसने लिखा था--श्रवन कुमार ने श्राप तो राजा दशरथ को दिया था. उस श्राप से उसके अंधे माता पिता की मुश्किलें तो कम नही हुई. लेकिन उसका असर कहाँ से कहाँ हुआ.
राम को बनवास भेजनेवाली कैकेयी ने खुद भुगता. माता कौशल्या ने भुगता, भरत की पत्नी,लक्ष्मण की पत्नी और सीता..इन सबने भुगता...इन तीनों के नैहर वालों ने उसकी आँच सही होगी...न सिर्फ यह,अंत में,सीता के बच्चे लव कुश जो राजपुत्र थे,वाल्मिकी मुनी ने वन में पाला पोसा.
सीता ने अग्नी परिक्षा दी,फिरभी क़िस्मत में वनवास ही लिखा था. ..इन सब की क्या खता थी?
नही,पूजा तमन्ना स्वयं को सीता नही समझती है. ऐसा कोई मुगालता उसे नही है. वो केवल एक इंसान है. इंसान जो गलतियाँ करता है,वह गलतियाँ उससे भी हुई. पर अपराध नही.
उसे अनेक बार अनेकों ने सवाल पूछे....उसने ऐसे पती को छोड़ क्यों नही दिया? इसका तो बहुत सरल जवाब रहा.. वह अपने बच्चों के बिना कदापि नही रह सकती. और गौरव ने उसे बच्चों के लिए ज़रूर तडपाया होता. वैसे भी उसे लगता की,पती से अलग हो जाना बहुत ही आसान उपाय कहलाता है..खैर यह सच तो नही,लेकिन जैसे की वह कहती है,क्या पता,उस बात पे भी दोष उसी के सर मढ़ा जाता...साथ रहते हुए भी गौरव ने बच्चों को कई बार उनके आपसी तकरार की एकही बाज़ू बतायी थी. पूजा भरसक कोशिश करती की,यह तकरार आपसमे ही निपट जाये. पर उसे पता तक न चलता और गौरव अमन को अपने तरीके से बात बता देता.
इस जीवनी लेखन की शुरुआत ठीक पिछले वर्ष इन्हीं दिनों हुई थी...पूजा की दादा-दादी के शुरुआती जीवन से यह दास्ताँ आरम्भ हुई...और अब आके थमी है...दास्ताँ या किस्सा गोई तो थमी है,जीवन नही. जीवन आगे क्या रंग दिखाएगा किसे पता?
चंद सवालों के जवाब जीवन में नही मिलते...तो इस जीवनी में भी कुछ सवाल अनुत्तरित रहे हैं. केतकी को आज भी पूजा दोष नही देती. मानसिक तौर से वह भी बिखर गयी थी. जब कभी उसे केतकी पे गुस्सा भी आता है,तो वह संभल जाती है...यह सोच के,की,इस बच्ची ने बचपन में बहुत अन्याय भुगता है.
केतकी और उसका पती,शुरू में अमरीका में थे. दो साल इंग्लॅण्ड में रहे.अब कनाडा जाने की सोच रहे हैं. अमन कभी कभार नाइजीरिया जाने की बात करता है..एक अकेला पन पूजा को घेरे रहता है.
पूजा की चंद तस्वीरें पोस्ट कर रही हूँ. उसने बनाई लघु फिल्म 'धरोहर' से यह ली हैं.
( 3 या 4 दिनों बाद यह मालिका ब्लॉग पर से हटा दी जायेगी . सभी पाठक ,जो इस मालिका से जुड़े रहे ,उनका तहे दिलसे शुक्रिया अदा करती हूँ . उनकी हौसला अफ़्ज़ायी के बिना यह मालिका लिखना संभव न होता ! किसी को कुछ सवाल पूछने हों इस दरमियान तो ज़रूर पूछें!)
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28 टिप्पणियां:
कुछ नहीं पूछना है जी। हम लोगों के साथ शेयर करने के लिये शुक्रिया।
आभार।
क्या पूछूं ? जो मुनासिब लगे कहिये !
तस्वीरें तो दिखी नहीं..
फोटोग्राफ नहीं देख पा रहे हम क्षमा जी...
कभी कभी हालात इंसान के बस मे नही होते और उसे किसि न किसी मजबूरी के कारण रिश्तों को ढोना ही पड्ता है और उस पर भारतीय स्त्री वो तो हमेशा ही दूसरों के लिये जीती आयी है तो इस मानसिकता से कभी बाहर ही नही आ पाती और अपने बच्चों की खातिर तो कभी समाज की खातिर तो कभी पति की खातिर अनचाहे रिश्तों का बोझ ढोती चली जाती है ………………शायद पूजा का भी यही हाल रहा है ना चाहते हुये भी ज़हर के घूँट ज़िन्दगी पिलाती चली गयी और पूजा पीती चली गयी मगर कोई पूछे उसे इस ज़िन्दगी और रिश्तों से क्या मिला………खुद को मिटाकर सब पर लुटाकर क्या मिला? जिनकी खातिर उसने अपने जीवन की आहुति दी उसका सिला उसे क्या मिला? ना जाने कब नारी सिर्फ़ अपने लिये जीना सिखेगी या समाज के खोखले नियमो से लड सकेगी? ऐसे ना जाने कितने ही अनुत्तरित प्रश्न मूँह बाये खडे हैं अपने जवाब के इंतज़ार में।
तस्वीरें मुझे दिख रहीं हैं , पाठक नही देख पा रहे ...क्या कारण होगा ,समझ में नहीं आ रहा .! फिर भी कोशिश करुँगी किसी एक्सपर्ट से पूछ के .
very disturbing story, yes what we sow, we do reap, if we don't then maybe our offspring or maybe ourselves in the next birth,the circle of good and bad goes on
tasveer hame bhi nahi dikh raha......!!
anyway ek aisee kahani jo jindagi ki tasveer dikhati hai...!!!
hamare blog pe naya post aapke intzaar me...:D
बेहद ख़ूबसूरत और शानदार आलेख! उम्दा प्रस्तुती!
फोटो होते तो और अच्छा रहता।
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क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।
क्या सवाल पूछेगा कोई जब सारी बातें ही खोल के रख दी गईं हों!
तस्वीरें नहीं दिख रहीं, उसकी जगह ये इरर दिखता है-
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बहुत ही भावनापूर्ण कहानी रही...सारी तो नहीं पढ़ पायी पर बीच बीच में पढ़ती रही...बड़ी सहज शैली में सच्चाई के करीब लिखा है...बहुत सुन्दर
आपका आलेख गहरे विचारों से परिपूर्ण होता है।
tasvir nahi dikhi...kuch error hoga shayad...khair achhi aur bhawuk kahani
Thank you for giving us this chance to read this heart breaking story. I read all the parts. I couldn't stop myself from crying every time I came to this blog. I just wonder why life gives so much pain and tragedy to a person? And why some people are so cruel?
By the way, I too couldn't see any photos.
क्या कहूँ? इस कहानी ने मुझे कई बार बहुत रुलाया है ।
Very heart touching story…
And thought provoking also.
On a general note,
To all..
आगे, भविष्य मे जीवन सुखमय रहे,
अपने ,अपनो को समझे व परिवार मे सौहार्द्र बना रहे ।
पूजा गहरी सोच में पड़ गयी थी. उसे याद आया,उसका ही लिखा एक आलेख,जिसमे उसने लिखा था--श्रवन कुमार ने श्राप तो राजा दशरथ को दिया था. उस श्राप से उसके अंधे माता पिता की मुश्किलें तो कम नही हुई. लेकिन उसका असर कहाँ से कहाँ हुआ.
राम को बनवास भेजनेवाली कैकेयी ने खुद भुगता. माता कौशल्या ने भुगता, भारत की पत्नी,लक्ष्मण की पत्नी और सीता..इन सबने भुगता...इन तीनों के नैहर वालों ने उसकी आँच सही होगी...न सिर्फ यह,अंत में,सीता के बच्चे लव कुश जो राजपुत्र थे,वाल्मिकी मुनी ने वन में पाला पोसा.
सीता ने अग्नी परिक्षा दी,फिरभी कीमत ने उसे वनवास ही दिया..इन सब की क्या खता थी
aapki ye baate bahut achchhi lagi jo kai prashn saheje hai .tasvir nahi dikhi .
रोचक एवं भावपूर्ण ।
इतनी सुघड़ भाषा ब्लॉग में तो कम ही देखाई देती है.प्रवाह तो है ही...संवेदनाओं को हौले हौले झक झोरती है धीरे-धीरे बढती कथा..
तस्वीर सच में नहीं दिख रही है
wah wah!
Bahut khoob!
ham poochhna to chaah rahe hain, lekin kuchh poochh nahin paa rahe hain.....!
फोटोग्राफ्स किसी वजह से नजर नहीं आ रही!... यह मालिका अति सुंदर है!...यथा स्थान पर सुयोग्य शब्दों का चयन और कहानी में एक रसता बनाए रखना एक कला है...और आपने बखूबी इस कला को प्रदर्शित किया है क्षमाजी, धन्यवाद
sundar, saral bhasha se saji rachna ...abhar
बेहद ख़ूबसूरत और शानदार प्रस्तुती!
Hi..
Pichhle maah avkash par tha so 8 jun se aage ki kadiyan aaj padhi hain..
Yun to Puja ji ki jeevni main utarardh ke jeevan ki kadiyon main dard hi dard samaya hai par antin 2-3 kadiyon main dard ki enteha hai..aur uska karan bhi hai.. Jab pati patni par anyay karta hai to uska sambal uske bachche bante hain.. Aman ne to pahle hi khud ko alag kar liya tha par wo beti jiske sath uski maa ne hamesha sath nibhaya ho, agar wo bhi maa ko tiraskrut kare to athah peeda hona swabhavik hi hai..
Meri Eshwar se prarthna hai ki Puja ji swasth aur khush rahen aur apni beti ka pyaar paayen jiski ki unhen avyashakta hai.. ESHWAR unke bachchon ko bhi sadbuddhi de jisse wo apni janani ke aatmik dard ko samjhen aur unka sahara banen..
Aapne likha hai ki kuchh photo lagaye hain, par koi photo hame to na dikhe..
Jeevan ke saare dard aur avishwas bhare pal aapne hamen sunaye hain.. Shayad kalantar main kuchh khushi bhi aapke jeevan main aaye..tab krupya use bhi humse share avashya kariyega.. Hamen us pal ki pratiksha rahegi..
Aapka aalekh padhne ke uprant mujhe apni maa ki shiddat se yaad aayi aur unse aadha ghanta phone par baat karne ke uprant aapko yah uttar likhne baitha hun.. Har maa ka hruday apni santan main basha hota hai.. Mera phone pate hi unki aawaj main jo khushi mujhe sunayi deti hai voh avarnaneeya hai..
Eshwar ketki aur aman ko dil se aapke paas le aaye..
Eshwar aap par krupa banaye rakhe aur aap khush rahen..
DEEPAK..
dont know what to say....
just cant believe that the story ended or it has just started...?
please convey my best of regards to pooja/tamanna ji...and thanx to you ma'm for making us all go thorough such a tragic and touching story...
what will happen to this blog now?
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