सबसे पहले माफी चाहती हूँ की इतने दिनों तक दूसरा भाग नही लिखा. ख़राब नेट और तबियत के चलते ये खाता हुई है!
( गतांक:" तो इतनी जल्दी शादी क्यों कर दी गयी तुम्हारी? ऐसी क्या परेशानी आन पडी थी तुम्हारे घरवालोंको?"...मैंने पूछ ही लिया..
"हाँ...बात कुछ ऐसी ही थी..."
दीपा ने सिलसिलेवार बताना शुरू कर दिया....
अब आगे).
दीपा बताने लगी तो अपने बचपन में खोती चली गयी. या यूँ कहूँ,बचपने में!!स्कूल के दिनों में उसका परिवार ऐसी जगह पे रहता था,जहाँ मकान से मकान जुड़े हुए थे...उनके आँगन भी जुड़े हुए थे. बच्चे हर समय पड़ोसियों के आते जाते रहते. माहौल ऐसा रहता जैसे एक बड़ा-सा परिवार इकट्ठे रह रहा हो.गरमी की रातों में सब के बिस्तर आँगन में लगते और एक दूसरे से गप लड़ाते हुए सब नींद की आगोश में चले जाते!
१० वी क्लास तक तो लड़के लड़कियाँ सब इकट्ठे खेलते ,इकट्ठे स्कूल जाते,पुस्तकालय जाते. आपस में किताबों का आदान प्रदान चलता. लेकिन १० वी क्लास में आते ही दीपाकी माँ ने इकट्ठे खेलने कूदने पे बंदिश लगा दी.
दीपाके पड़ोस में एक लड़का रहता था,जो था उसी क्लास में लेकिन पढता किसी अन्य शहरमे. १० वी क्लास के बाद जब गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू हुई तो पुस्तकालय से किताबें लाने का ,आपस में बाँट के पढने का सिलसिला शुरू हो गया. तब ये लड़का भी पड़ोस में आया हुआ था. दीपा की सहेली ने दीपाकी एक किताब उस लड़के को दे रखी थी. दीपा ने जब वो वापस चाही तो सहेली ने कहा,पड़ोस से ले लो.
दीपा डर गयी. माँ ने लड़कों से बोलचाल मेलजोल बंद जो कर रखा था. सहेली ने दीपाके घर से उस लड़के को आवाज़ लगा के पूछा ," किताब कब तक पढके ख़त्म होगी?'
लड़का:" हो गयी...ले जाओ चाहो तो...!"
सहेली:" बड़ी जल्दी हो गयी?"
लड़का:" हाँ! हो गयी...ले जाओ और दीपा को दे दो.लेकिन उसे कहो बाद में फिर एक बार मुझे ही दे दे!!"
दीपा जब किताब पढने बैठी तो कुछ पन्ने पलटने के बाद उसमे से एक चिट्ठी निकली. उस पे लिखा हुआ था," दीपा,मै तुम से बहुत प्यार करता हूँ! जवाब ज़रूर देना. किताब मुझे ही लौटाना. किसी और के हाथ ना लगे!"
दीपा रोमांचित हो उठी,क्योंकि लड़का उसे भी बहुत पसंद था! पर अब क्या किया जाये? उस लड़के के साथ, जिसका नाम अजय था, वो खुद तो मिल बोल सकती नही थी. माँ की पैनी निगाह रहती! उसने अपनी एक सहेली को विश्वास में लेके बताया की, माजरा क्या है. सहेली ने उनकी किताबें एक दूजे को पहुँचाने का ज़िम्मा स्वीकार कर लिया. छुट्टियों के दौरान वो उनकी थोड़ी बहुत मुलाक़ातें भी करवा देती. जब वो अपने स्कूल के शहर लौट जाता तो उसके ख़त उसी सहेली के घर पे आया करते.
इस तरह दो साल बीत गए. दीपा खतों को घर में रखने से डरा करती,लेकिन फाड़ के फ़ेंक देने का भी दीपा का मन नही करता! ऐसे में इन मकानों के पीछे वाले कूएमे वो ख़त डाल दिया करती!१२ वी क्लास में जब वो दोनों आए तो दीपा की माँ के हाथ एक ख़त पड़ गया. और इम्तेहानों के ख़त्म होते ही झट मंगनी पट ब्याह! दीपाको समझ में आने से पहले वो परिणीता बन गयी! लड़के के बारे में किसी ने ख़ास खोज बीन की नही. पैसेवाला घर था,इसी में सब ख़ुश थे. वैसे भी लडकी के लक्षण ठीक नही थे !!अगर बाहर के लोग जान जाते तो और मुसीबत होती!
अजय बेहद निराश हो गया. लेकिन उम्र एक ही होने के कारण वह नौकरी भी नही कर सकता था! उसकी तो पूरी पढ़ाई होनी थी! पर उसने आनेवाले सालों में दीपाका बेहद अच्छा साथ निभाया! उसे हमेशा महसूस कराया की उसकी जद्दोजहद में वो अकेली नही है.
क्रमश:
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12 टिप्पणियां:
पता नहीं कैसे पिछली मालिका छूट गई थी मुझसे..शायद परेशानी के दौर में.. उम्मीद है सेहत अब दुरुस्त हो गई होगी..
दीपा की कहानी अच्छी शुरू हुई है.. लगभग सबने बचपन ये सब किया, सुना और देखा होगा... अच्छा लग रहा है उम्र के इस मुकाम पर वो सब फिर से जीना दीपा की कहानी के जरिये!!
सेहत का ख़्याल रखिये!!
दीपा के हाथ एक ख़त पड़ गया या दीपा के पापा के हाथ खत पड़ गया!माहौल मेरे दूसरे ब्लॉग की यादें जैसा ही है।
बांध लिया अफ़साने ने, आगे देखें क्या होता है.
आह ! चलिये स्वास्थ्य लाभ बना रहे.
बहुत ही उम्दा जा रही है कहानी. देखतें हैं कि अंजाम तक पहुंचते पहुंचते क्या और रंग दिखते हैं
कहानी रोचक है। अगली कड़ी का इंतज़ार।
ये खत जो ना करें ?
कहानी बहुत ही सुंदर और रोचक लग रही है! देखते हैं आगे क्या होता है! इंतज़ार रहेगा अगली कड़ी का!
कहानी काफ़ी रोचक है अब अगली कडी का इंतज़ार है।
एक और सफ़र की बेहतर शुरूआत...
बाल विवाह?
कौतूहल को बढाती हुई कथा ....
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