( गतांक: पती को अपना न्यूनगंड खलता था और इस बात को छुपा के रखने की चाहत में वो दीपा पे बात बेबात बरस पड़ता. उस के लिए ऐसा करना मर्दानगी थी....उस के इसी न्यूनगंड ने एक बार उससे बड़ी ही भयानक बात करवा दी. कम से कम दीपा के पास" उस " घटना के स्पष्टीकरण के लिए और कोई पर्याय नही. उस घटना का विवरण मै दीपाके शब्दों में देना चाहूँगी.
अब आगे पढ़ें. देरी के लिए माफी चाहती हूँ. व्यस्तता कुछ ज़्यादाही बढ़ गयी है.)
मेरी तथा दीपा की एक दिन बड़ी अन्तरंग बातें चल रहीं थीं. उसी दौरान उसने मुझे इस घटना के बारेमे बताया.उसी के शब्दों में बता रही हूँ.
दीपा: " एक बार हमलोग बच्चों को लेके गोआ घूमने गए. वापसी पे रत्नागिरी रुकना था. बस से सफ़र कर रहे थे. मै दोनों बच्चों के साथ सब से पिछली सीट पे बैठी थी. मेरे पती अलगसे,दो सीट छोड़ के बैठे थे. देखने वाले सहजही अनुमान लगा सकते होंगे की, हम पती-पत्नी में कुछ ख़ास लगाव नही है. खैर.
मेरी साथवाली सीट पे एक आदमी आके बैठ गया. मुझसे ज़रुरत से ज़्यादा सटके. मुझे उसकी हरकत बड़ी घिनौनी लगी. मैंने मेरे बेटे को अपनी जगह बिठाया और उसकी सीट पे मै बैठ गयी.
एक जगह बस रुकी तो मेरे पती ने उस आदमी से बड़े दोस्ताना तरीकेसे बातचीत शुरू कर दी. मन ही मन मुझे बेहद गुस्सा आया. लगा,कैसा इंसान है! देख रहा था,की, वो आदमी मुझसे कैसे सटके बैठा था,फिरभी उस पे इतना प्यार उमड़ रहा था!
मैंने बच्चों को कुछ खिलाया पिलाया और हमारा सफ़र जारी रहा. अब के वो आदमी मेरे पती के साथ बैठ गया.
हम रत्नागिरी पहुँच के एक होटल में ठहरे. वो आदमी भी उसी होटल में रुका. शाम को वो तथा मेरे पति एक साथ घूमने भी गए. होटल कुछ ख़ास आरामदेह नही था. लेकिन मुझे इस बात की अधिक परवाह नही रहती,क्योंकि नयी,नयी जगहें देखना मुझे खुद को बड़ा भाता था.
अगले दिन रात को जब हम चारों हमारे कमरेमे सो रहे थे तो अचानक से मेरी आँख खुली. मुझे लगा मानो मेरे बिस्तरपे कोई है! जब तक मै सम्भलती तब तक वो व्यक्ती मेरे जिस्म पे औंधा लेट गया. मै चीखना नही चाह रही थी. डर था की ,कहीँ बच्चे उठ गए तो बेहद घबरा जायेंगे. मैंने अपना पूरा ज़ोर लगा के उस व्यक्ती को धक्का लगाया. उसी हडबडी में मेरे सिरहाने रखा हुआ पानी का घडा धडाम से गिर पडा. उस पे स्टील का ढक्कन तथा ग्लास था. उसका भी काफ़ी ज़ोरसे आवाज़ हुआ. तभी कमरे के बाहर के गलियारे में maneger ने बत्ती जलाई और पूछा, सब ठीक तो है?
वो आदमी छलांग लगा के हट गया और दरवाज़े के पासवाली दीवार को सटके खड़ा हो गया . फिर दरवाज़ा खोलके बाहर निकल गया. मै बच गयी. जानती थी,की,ये बात मेरे पती को उसी समय बताने से क़तई फायदा नही. और ऐसा हो नही सकता था,की, घड़े की आवाज़ से वो जग ना गए हों! मै हैरान हुई की,बच्चे कैसे सोते रहे!
वो रात मेरी आँखों ही आँखों में गुज़री. डर,सदमा,गुस्सा....सब कुछ इतना था की, बता नही सकती. सुबह जब मैंने मेरे पतिसे रातवाली घटना के बारे में कहना चाहा तो जनाब ने कहा," अरे! वो तो मैही था! तुम्हें इतनी भी अक्ल नही?"
मैंने अपना सर पीट लिया!! ज़ाहिरन,उस आदमी को मेरे पति की शह थी. उसकी मर्ज़ी के बिना वो आदमी ऐसा क़दम उठाने की हिम्मत नही कर सकता था! "
किस्सा सुन मै दंग रह गयी! उफ़! कैसा पति था? और ये सब करने करवाने की वजह हम दोनों की समझ के परे!!
क्रमश:
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
19 टिप्पणियां:
आज इस कथा को कल्पना कहने की हिम्मत नहीं मुझमें... मिला हूँ मैं एक ऐसे ही व्यक्ति से...
पहले जब उसके बारे में सुना था तो विश्वास नहीं हुआ था, अफवाह लगा..लेकिन जब सबूत मिला तो यकीन करना पड़ा..
off kya kya hota hai.....jindgee me.........
rongte khade ho jate hai sirf padne matr se....
jin par beetatee hai usakee kalpana bhee nahee kar saktee.........
This world is strange, such people too exist----.
Following the story with passion--
यकबयक भरोसा नहीं होता ! भयावह !
behad bhayavah tasveer pesh kar di.
बहुत ही भयानक रात और उससे भी ज्यादा उसका पति. विश्वास करने को जी तो नहीं चाहता ...
तकलीफ देह ...इन आदिम नरों की कमी नहीं है यहाँ ..
बढ़िया लिखती हो ...भविष्य में पढने के लिए अनुसरण कर रहा हूँ ...शुभकामनायें !
Aapki kahanee men stree ke utpeedan kee charam seema milatee hai. kahani ke pehale hisse bhee padhoongi .Idher bahut dino se blog jagat se door thee. Wahee gharelu wyastaten.
aisa lag raha hai ki ..kahaani ka drishy aakhon ke saamne se gujar raha hai...aage intzaar hai..thanks..
आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
Bahut Khubsurat Abhivyakti.
पढ़ कर यह प्रश्न बरबस ही मन में उठता है क्या इंसान इतना गिर सकता है !
भविष्य में आदमी की पहचान भी उसकी घिनौनी हरकतों से घबराएगी !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
दीपा 1,2,3,4 … सब कहानिया एक साथ पढ़ डाली |
गज़ब की कहानी !
ये कुछ लोग इतने complicated mentality के क्यु होते है |
अगले भाग का इंतज़ार रहेगा |
khsama ji,
aise samwedanhin insaan puri maanawata par kalank hain !
hriday ko chir kar rakh diya .
-gyanchand marmagya
आज बड़े दिनों बाद मौका मिला ब्लॉग पर आने का...आते ही आपके ब्लॉग पर आई....क्षमा जी, बड़ा अजीब लगता है ऐसी कहानियाँ पढ़कर...उदासी और भयानकता को जीते कैसे हैं कुछ लोग...मन कहता है कि काश ये कहानियाँ सच न हों....
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
भयावह ..दिल दहला देने वाला कथानक.
उफ! ऐसे भी लोग होते है.. त्रासद
एक टिप्पणी भेजें