( गतांक : नरेंद्र ने मुझे आश्वस्त किया!वक़्त इतना बेरहम नही हो सकता! हमें बार,बार मिलाके जुदा नही कर सकता!हमारा भविष्य अब एक दूजे से जुदा नही था! उसने मुझे पूरा यक़ीन दिलाया!
कितने महीनों बाद मुझे एक निश्चिन्तता भरी नींद आयी!बस अब कुछ ही रोज़ का फासला था,मुझमे और मेरे सुनहरे,हँसते भविष्य में!मैंने अपने भयावह वर्तमान पे,नरेंद्र के सहारे विजय पा ली थी....!!".....अब आगे.)
दीपा के लिए वो दिन बड़े ही स्वप्निल थे! नशीले थे! नरेंद्र का संबल जो प्राप्त था! पर क़िस्मत को ये खुशियाँ मंज़ूर नही थीं! दीपा के पती ने बच्चों को हथिया लिया! और दीपा बच्चों के बिना रह नही सकती थी....बच्चे उसकी प्राथमिकता थे! अगर उसका पति एक अच्छा बाप होता तो भी और बात होती. वो तो बेहद सख्त,बेदर्द और बेज़िम्मेदार पिता था. पिता की दहशत के कारण बच्चों का क्या भविष्य होता,ये तो दीपा सोच भी नही सकती थी!
नरेंद्र का ख़याल छोड़ बेरहम यथार्थ को स्वीकार करने के अलावा उसके पास कोई चारा नही बचा. नरेंद्र फिरभी अपनी ज़िद पे अटल था..."मै इंतज़ार करुँगा...!" बार,बार दीपा को वो यही कहता रहता. लेकिन अब दीपा का निश्चय हो चुका था. उसने भी नरेंद्र को अपना अलग भविष्य बनाने के लिए गुहार लगाना जारी किया!
अब दीपा का जीवन उसी नरक में सिमट के रह गया. वही मारपीट,वही मानसिक छल. पर दीपा अपने मक़सद से हिली नही. बच्चों की पढ़ाई और उनकी परवरिश....इसके अलावा अब जीवन में कुछ शेष नही था.
बच्चों को कई बार अपनी माँ के खिलाफ भड़काया जाता....कमरेमे बंद किया जाता,ताकि वो माँ से मिल न सकें....बच्चे हालात को खूब समझते थे. वो छुप-छुपके माँ का जनम दिन मनाते! मात्रु-दिवस मनाते!दीपा के लिए अब यही काफ़ी था.
एक बार दीपा को उसके पतिने लोहे की सलाख से इतनी बेरहमी से पीटा,की,वो खूना खून हो गयी. उस वक़्त बच्चों ने अपनी माँ से कहा," माँ! हमें तुम्हारी ज़िंदगी प्यारी है! तुम्हारा ज़िंदा रहना हमारे लिए सब से अधिक मायने रखता है! हमारी पढ़ाई की चिंता किये बिना तुम चुपचाप,रात को यहाँ से भाग निकालो!"
उसी रात, दीपा, छिपते छिपाते घर से निकल गयी. वो रात उसने अपने एक दूर के रिश्तेदार के घर गुज़ारी. वो लोग उसे डॉक्टर के पास ले गए. टिटनस का इंजेक्शन लगवाया,तथा ज़ख्मों का इलाज कराया. बातों बातों में दीपा ने कहा:
" अडोस-पड़ोस के लोग कई बार मुझे ही दोषी पाते! उन्हें लगता, ये आदमी परिवार को इतना घुमाने फिराने ले जाता है! त्योहारों पे पत्नी को गहनों से लाद देता है! इतना शौकीन है! गाडी है,बंगला है,नौकर चाकर हैं...किसी बात की कमी नही है! ज़रूर कोई तो अंदरूनी बात होगी,जो ये आदमी इतना गुस्सा खा जाता है! कहीँ तो दीपा का क़ुसूर होगा!
लोगों को असलियत क्या पता? और मै किसे बताने जाती? कौन विश्वास रखता? मेरे दो बच्चे जो हो चुके थे!"
ऐसी ही नीरस ज़िंदगी बीतती गयी. चंद हफ्ते दीपा घर से दूर रहती,फिर बच्चों की ख़ातिर लौट आती. उसकी अपनी कोई आमदनी तो थी नही! ना कोई नौकरी करने की इजाज़त उसे देता!दीपा ने आगे बताया:
" इसी तरह एक बार बहुत पिटने के बाद मै माँ के घर चली गयी. एकाध माह हो चुका था,की, ख़बर मिली,मेरे पति बहुत बीमार हैं. अस्पताल में भरती कराया गया है. अब के बच्चे भी डर गए. बच्चों ने मुझे बुला लिया. मै चली गयी.
जिस रोज़ अस्पताल पहुँची,उसी रोज़ डॉक्टर ने मुझे अपने केबिन में बुलाया. ....ये कह के की उन्हें मुझ से कुछ बहुत ज़रूरी बात अकेले में करनी है.पति की गंभीर हालत तो मुझे दिख ही रही थी. पैसा पानी की तरह बह रहा था. मै केबिन में गयी तो डॉक्टर बोले, मै बिना किसी लागलपेट के सीधी बात कह रहा हूँ.तुम्हारे पति को AIDS है. उसके बचने की उम्मीद नही है. लेकिन तुम्हें तथा तुम्हारे बच्चों को तुरंत अपना चेकअप कराना होगा.HIV positive होने की शक्यता नकारी नही जा सकती...'
" मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गयी! हे भगवान्! बस इतनाही होना बचा था? जाते,जाते हमें ये आदमी क्या तोहफा दे चला??"
क्रमश:
कितने महीनों बाद मुझे एक निश्चिन्तता भरी नींद आयी!बस अब कुछ ही रोज़ का फासला था,मुझमे और मेरे सुनहरे,हँसते भविष्य में!मैंने अपने भयावह वर्तमान पे,नरेंद्र के सहारे विजय पा ली थी....!!".....अब आगे.)
दीपा के लिए वो दिन बड़े ही स्वप्निल थे! नशीले थे! नरेंद्र का संबल जो प्राप्त था! पर क़िस्मत को ये खुशियाँ मंज़ूर नही थीं! दीपा के पती ने बच्चों को हथिया लिया! और दीपा बच्चों के बिना रह नही सकती थी....बच्चे उसकी प्राथमिकता थे! अगर उसका पति एक अच्छा बाप होता तो भी और बात होती. वो तो बेहद सख्त,बेदर्द और बेज़िम्मेदार पिता था. पिता की दहशत के कारण बच्चों का क्या भविष्य होता,ये तो दीपा सोच भी नही सकती थी!
नरेंद्र का ख़याल छोड़ बेरहम यथार्थ को स्वीकार करने के अलावा उसके पास कोई चारा नही बचा. नरेंद्र फिरभी अपनी ज़िद पे अटल था..."मै इंतज़ार करुँगा...!" बार,बार दीपा को वो यही कहता रहता. लेकिन अब दीपा का निश्चय हो चुका था. उसने भी नरेंद्र को अपना अलग भविष्य बनाने के लिए गुहार लगाना जारी किया!
अब दीपा का जीवन उसी नरक में सिमट के रह गया. वही मारपीट,वही मानसिक छल. पर दीपा अपने मक़सद से हिली नही. बच्चों की पढ़ाई और उनकी परवरिश....इसके अलावा अब जीवन में कुछ शेष नही था.
बच्चों को कई बार अपनी माँ के खिलाफ भड़काया जाता....कमरेमे बंद किया जाता,ताकि वो माँ से मिल न सकें....बच्चे हालात को खूब समझते थे. वो छुप-छुपके माँ का जनम दिन मनाते! मात्रु-दिवस मनाते!दीपा के लिए अब यही काफ़ी था.
एक बार दीपा को उसके पतिने लोहे की सलाख से इतनी बेरहमी से पीटा,की,वो खूना खून हो गयी. उस वक़्त बच्चों ने अपनी माँ से कहा," माँ! हमें तुम्हारी ज़िंदगी प्यारी है! तुम्हारा ज़िंदा रहना हमारे लिए सब से अधिक मायने रखता है! हमारी पढ़ाई की चिंता किये बिना तुम चुपचाप,रात को यहाँ से भाग निकालो!"
उसी रात, दीपा, छिपते छिपाते घर से निकल गयी. वो रात उसने अपने एक दूर के रिश्तेदार के घर गुज़ारी. वो लोग उसे डॉक्टर के पास ले गए. टिटनस का इंजेक्शन लगवाया,तथा ज़ख्मों का इलाज कराया. बातों बातों में दीपा ने कहा:
" अडोस-पड़ोस के लोग कई बार मुझे ही दोषी पाते! उन्हें लगता, ये आदमी परिवार को इतना घुमाने फिराने ले जाता है! त्योहारों पे पत्नी को गहनों से लाद देता है! इतना शौकीन है! गाडी है,बंगला है,नौकर चाकर हैं...किसी बात की कमी नही है! ज़रूर कोई तो अंदरूनी बात होगी,जो ये आदमी इतना गुस्सा खा जाता है! कहीँ तो दीपा का क़ुसूर होगा!
लोगों को असलियत क्या पता? और मै किसे बताने जाती? कौन विश्वास रखता? मेरे दो बच्चे जो हो चुके थे!"
ऐसी ही नीरस ज़िंदगी बीतती गयी. चंद हफ्ते दीपा घर से दूर रहती,फिर बच्चों की ख़ातिर लौट आती. उसकी अपनी कोई आमदनी तो थी नही! ना कोई नौकरी करने की इजाज़त उसे देता!दीपा ने आगे बताया:
" इसी तरह एक बार बहुत पिटने के बाद मै माँ के घर चली गयी. एकाध माह हो चुका था,की, ख़बर मिली,मेरे पति बहुत बीमार हैं. अस्पताल में भरती कराया गया है. अब के बच्चे भी डर गए. बच्चों ने मुझे बुला लिया. मै चली गयी.
जिस रोज़ अस्पताल पहुँची,उसी रोज़ डॉक्टर ने मुझे अपने केबिन में बुलाया. ....ये कह के की उन्हें मुझ से कुछ बहुत ज़रूरी बात अकेले में करनी है.पति की गंभीर हालत तो मुझे दिख ही रही थी. पैसा पानी की तरह बह रहा था. मै केबिन में गयी तो डॉक्टर बोले, मै बिना किसी लागलपेट के सीधी बात कह रहा हूँ.तुम्हारे पति को AIDS है. उसके बचने की उम्मीद नही है. लेकिन तुम्हें तथा तुम्हारे बच्चों को तुरंत अपना चेकअप कराना होगा.HIV positive होने की शक्यता नकारी नही जा सकती...'
" मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गयी! हे भगवान्! बस इतनाही होना बचा था? जाते,जाते हमें ये आदमी क्या तोहफा दे चला??"
क्रमश:
21 टिप्पणियां:
कहानी के मोड़ बड़े रॉलरकोस्टर से हैं!! और आख़िर में यह एड्स भी!! देखें आगे कहानी क्या मोड़ लेती है!!
खतरनाक मोड ला दिया. जल्दी अगला अंक जल्दी पेश कीजिये.
बहुत ही रोचक. मार्मिक भी.
आपकी संस्मरण शृंखला बहुत रोचकता के साथ प्रेरणा देती है
Ummeed hai ki sab achchha hi hoga..
ये तो बहुत ही भयावह मोड़ पर कहानी आ गई...इससे आगे का अंक सोच कर ज़रा सा डर लग रहा है...दीपा और बच्चों को एड्स हो जाए, ये दिल बिल्कुल नहीं चाहता...
Hi...
Pichhle 5 maheenon se main bahar tha...so chah kar bhi net aur blog se ru-ba-ru nahin ho saka...es beech kafi kuchh badal gaya hai...
Puja ki kahani ke baad es beech kayee kahaniyan beet gayi prateet hoti hain...
khair ab se hi sahi...ek din baith kar sabhi uplabdh post padhta hun tab jakar aaga-peechha kuchh samajh aayega...
vaise to aapki kahaniyon ka dard pathak apne hruday main mahsoos hi karte hain..jo maine bhi mahsoos kiya hai vartman post padh kar...par ab Deepa-01 se kahani padhunga tab tippani punah preshit karunga...
Deepak...
kahani bahut hi zabardast morh le rahi hai. aur kahani ka (kramshya) bhi pathak ko bechaini de jata hai ki aage kya hoga?
sach main bahut khoob
भयानक !
बहुत ही रोचक.
dilchasp lekhan.................................likhte rahiye.bada maza aa raha hai padh kar
kahani me nayab mod!!!!
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति ...मन को छूते भाव हैं कई जगह ...आपका मेरे ब्लाग पर प्रोत्साहन हमेशा मेरे लिये एक आशीर्वाद सा लगता है आभार ।
आपकी यह कहानी... संस्मरण अच्छा लगा है... आपकी यह कथा कल चर्चामंच पर रखूंगी.. शुक्रवार को... अतः आप चर्चामंच पर भी अपने विचार दे कर हमें अनुग्रहित करेंगे ..
http://charchamanch.blogspot.com
सादर
बस इसी की कमी थी । बेचारी दीपा ।
घूमते घामते आपके चिट्ठे पर पहुंची तो देखा एक रोचक मर्मस्पर्शी कहानी चल रही है. आगे की किस्त का इंतज़ार है.
kitni vivashata hai yahan ,marmik rachna ,sundar bhi .
wo kahte hain na jasusi upanayas ki tarah har panna kuchh naya kahe hue..:)
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति|
aapki kahani ne zindgi ke dukhon ko jeevant kar diya.bahut hi marmik...
aaj pehli baar aai khani pdi rochak par dukhd .
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