(गतांक :दीपा:" मैंने डिवोर्स लेने से इनकार कर दिया. और चाराही नही था...!"
मै:" और नरेंद्र?? उसे क्या कहा??"
दीपा:" दिल पे पत्थर रख के मुझे उसे इनकार करना पडा....जहाँ तक बच्चों का सवाल था,मै भावावेग में कोई भी निर्णय लेना नही चाहती थी..."
मै:" ओह! तो नरेंद्र की क्या प्रतिक्रया हुई?"
दीपा:" नरेंद्र ने कहा,मै इंतज़ार करुँगा!" अब आगे)
दीपा और मै घंटों बतियाते रहते.हम दोनों ही अतीत में खो जाते.दीपाके जीवन में नरन्द्र के प्यारकी शक्ती अथाह थी. इन सब घटनाओं के घटते,घटते नरेंद्र उसे मिलने आया. दोनों की मुलाक़ात,दीपाकी सहेली के घर हुई. उन्हें मिले कई माह हो चुके थे.दीपा को सामने पाते ही उसने बाहों में भर लिया!दीपा से कहा:"मैंने तुमें छोड़ देने के लिए नही थामा है.तुम मेरी ज़िंदगी का अविभाज्य हिस्सा बन चुकी हो!हरपल तुम्हारे संग हूँ.....रहूँगा!"
दीपा:" मैंने उसकी बाहों में अपनेआपको कितना महफूज़ पाया मै बता नही सकती!लगा,सारी मुश्किलें,सवालात अपनेआप हल हो जायेंगे! थोड़े से विश्वास की ज़रुरत है!नरेंद्र ने बच्चों को लेके मुझे निश्चिन्त करने के ख़ातिर कहा,की,वो अपनी जायदाद एक हिस्सा तुरंत बच्चों के नाम कर देगा और मुझे trustee बना देगा! बच्चों के भविष्य को लेके मुझे होनेवाली हर चिंता का उसने निवारण कर दिया!
कितनी शक्ती थी उसके प्यार में! मेरा हर डर काफूर हो गया!सब कुछ सुनहरा नज़र आने लगा!
हमने जल्द से जल्द ब्याह कर लेने का निर्णय ले लिया!मै बादलों पे उड़ने लगी.
ये बात जब मेरे पति के कानों पे जा पहुँची तो उसने अपना पैंतरा बदल दिया!उसने फिर न्यायलय में गुहार लगाते हुए कहा,की, बच्चों की माँ बच्चों के पालन पोषण ज़िम्मा नही ले सकती. वो कमाती नही, तो उनका भरण पोषण कैसे करेगी?बच्चों का हक़दार उसने खुद को बताया!
घबरा के मै फिर एकबार नरेंद्र की बाहों में सिमट आयी!वही रास्ता सुझाएगा.....सवालों के जवाब वही ढूँढ लेगा....
नरेंद्र ने मुझे आश्वस्त किया!वक़्त इतना बेरहम नही हो सकता! हमें बार,बार मिलाके जुदा नही कर सकता!हमारा भविष्य अब एक दूजे से जुदा नही था! उसने मुझे पूरा यक़ीन दिलाया!
कितने महीनों बाद मुझे एक निश्चिन्तता भरी नींद आयी!बस अब कुछ ही रोज़ का फासला था,मुझमे और मेरे सुनहरे,हँसते भविष्य में!मैंने अपने भयावह वर्तमान पे,नरेंद्र के सहारे विजय पा ली थी....!!"
क्रमश:
मै:" और नरेंद्र?? उसे क्या कहा??"
दीपा:" दिल पे पत्थर रख के मुझे उसे इनकार करना पडा....जहाँ तक बच्चों का सवाल था,मै भावावेग में कोई भी निर्णय लेना नही चाहती थी..."
मै:" ओह! तो नरेंद्र की क्या प्रतिक्रया हुई?"
दीपा:" नरेंद्र ने कहा,मै इंतज़ार करुँगा!" अब आगे)
दीपा और मै घंटों बतियाते रहते.हम दोनों ही अतीत में खो जाते.दीपाके जीवन में नरन्द्र के प्यारकी शक्ती अथाह थी. इन सब घटनाओं के घटते,घटते नरेंद्र उसे मिलने आया. दोनों की मुलाक़ात,दीपाकी सहेली के घर हुई. उन्हें मिले कई माह हो चुके थे.दीपा को सामने पाते ही उसने बाहों में भर लिया!दीपा से कहा:"मैंने तुमें छोड़ देने के लिए नही थामा है.तुम मेरी ज़िंदगी का अविभाज्य हिस्सा बन चुकी हो!हरपल तुम्हारे संग हूँ.....रहूँगा!"
दीपा:" मैंने उसकी बाहों में अपनेआपको कितना महफूज़ पाया मै बता नही सकती!लगा,सारी मुश्किलें,सवालात अपनेआप हल हो जायेंगे! थोड़े से विश्वास की ज़रुरत है!नरेंद्र ने बच्चों को लेके मुझे निश्चिन्त करने के ख़ातिर कहा,की,वो अपनी जायदाद एक हिस्सा तुरंत बच्चों के नाम कर देगा और मुझे trustee बना देगा! बच्चों के भविष्य को लेके मुझे होनेवाली हर चिंता का उसने निवारण कर दिया!
कितनी शक्ती थी उसके प्यार में! मेरा हर डर काफूर हो गया!सब कुछ सुनहरा नज़र आने लगा!
हमने जल्द से जल्द ब्याह कर लेने का निर्णय ले लिया!मै बादलों पे उड़ने लगी.
ये बात जब मेरे पति के कानों पे जा पहुँची तो उसने अपना पैंतरा बदल दिया!उसने फिर न्यायलय में गुहार लगाते हुए कहा,की, बच्चों की माँ बच्चों के पालन पोषण ज़िम्मा नही ले सकती. वो कमाती नही, तो उनका भरण पोषण कैसे करेगी?बच्चों का हक़दार उसने खुद को बताया!
घबरा के मै फिर एकबार नरेंद्र की बाहों में सिमट आयी!वही रास्ता सुझाएगा.....सवालों के जवाब वही ढूँढ लेगा....
नरेंद्र ने मुझे आश्वस्त किया!वक़्त इतना बेरहम नही हो सकता! हमें बार,बार मिलाके जुदा नही कर सकता!हमारा भविष्य अब एक दूजे से जुदा नही था! उसने मुझे पूरा यक़ीन दिलाया!
कितने महीनों बाद मुझे एक निश्चिन्तता भरी नींद आयी!बस अब कुछ ही रोज़ का फासला था,मुझमे और मेरे सुनहरे,हँसते भविष्य में!मैंने अपने भयावह वर्तमान पे,नरेंद्र के सहारे विजय पा ली थी....!!"
क्रमश:
11 टिप्पणियां:
बहुत मन है कि नरेन्द्र के साथ उसकी ज़िन्दगी हमेशा के लिए मिल जाए और फिर उसे कभी किसी तूफान का सामना न करना पड़े...पर डर है कि शायद ऐसा हो न....
अरे कहाँ लाकर क्रमश: ला दिया ? अब फिर एक लम्बा इन्तज़ार करना पडेगा।
अमूमन आप जिस तरह के संस्मरण लाती रही हैं उसके हिसाब से मैं तो नरेंद्र पर भी भरोसा नहीं कर पा रहा हूं !
@ अमूमन आप जिस तरह के संस्मरण लाती रही हैं उसके हिसाब से मैं तो नरेंद्र पर भी भरोसा नहीं कर पा रहा हूं
अली साहब, मैं तो दीपा (की मानसिक स्थिति) पर भी भरोसा नहीं कर पा रहा हूँ।
बहुत रोचक,आगे का इन्तजार है.
पहले भी कहा था मैंने कि कहानी प्रेडिक्टेबल है.. नरेंद्र भावावेश में डूबा है अभी तक... हक़ीक़त से दूर... फिर भी पता नहीं आपने क्या अंत सोच/सुन रखा है.. हम सुन रहे हैं.. आप कहते जाइये!!
नरेंद्र पर भी भरोसा नहीं कर पाना मुस्किल होता जा रहा है. ऐसा एहसास लगता है दूसरों को भी हो रहा है. उतकंठा बढती जा रही है,
pehle to itni acchi kahani k liye badhayi. doosra main soch raha hu ki accha hi hai jo main apke blog par pehli baar aaya to late hi aya kyuki agar jaldi aa jata to mujhe bhi doosro ki tarah hi intzaar karna parta jo ki mujhe nahi karna para maine aab tak ki sari kahani parh li hai aur ek utsukta c hai ki aage kya hoga? par ek shabd te mujhe chirh bhi ho gayi hai vo hai (kramshya)
itni jabardast kahani k liye sachi dil se badhayi
लगता है नरेन्द्र उसके जीवन में खुशियों की सौगात लेकर आया है, काश ऐसा ही हो, मगर कहानी आगे क्या मोड़ लेती है कह नहीं सकते !
अगली कड़ी का इंतज़ार !
रोचक कहानी...
''मिलिए रेखाओं के अप्रतिम जादूगर से.....'
संत्रास सहने के बाद सुकून के पल बहुत सुन्दर लगते हैं ...
शेष फिर पढूँगा...
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