(गतांक :अब समय था,एक हलकी-सी चैन की साँस लेने का,की दीपा का भाई हार्ट attack से चल बसा ! और इस सदमे से परिवार अभी उभरा नहीं था,की, दीपाका बहनोई एक हादसे में चल बसा! दीपा के माता पिता पे अब और दो बेवाओं की ज़िम्मेदारी आन पडी....एक अपनी बहू...एक अपनी बेटी,जो पती के निधन के बाद अपने मायके चली आयी. दीपा के सभी सहारे टूटते गए!तीन बहन भाई.....और एक भी परिवार सम्पूर्ण नहीं...सुखी नहीं!
दूसरी ओर दीपा को पता चला की,नरेंद्र अभी भी उसकी आस लगाये बैठा है!
अब आगे....)
दीपाका पूरा परिवार ही सदमों से गुज़र रहा था. उन सदमों में दो और परिवार जुड़े हुए थे. एक तो दीपा के बहनोई का, दूसरा उसकी भाभी के मायके का!! कौन किसे सहारा दे!!
इधर जब दीपा को नरेंद्र के बारेमे पता चला तो उसने फिर एक बार साफ़,साफ़ ना कर दी. अब उसे अपनी जवान हो रही बेटी की अधिक चिंता थी. एक भी गलत क़दम बेटी के भविष्य पे असर करता. नरेंद्र ने दीपा का आठ साल इंतज़ार किया,ये बात दीपा के लिए बहुत बड़ी थी.लेकिन समाज के सीमित दायरे में रहते हुए,दीपा को फूँक फूँक के क़दम उठाने थे!मजबूरियाँ थीं! बच्चे हमेशा ही उसकी प्राथमिकता रहे !
वैसे,बच्चों में परिपक्वता समय से पहले आ रही थी. बच्चे नौकरी करते हुए पढ़ रहे थे . अपनी आर्थिक अवस्था खूब समझते थे. कोई हठ ,कोई फ़िज़ूल खर्ची नहीं करते.
प्लाट के जो पैसे मिले थे, दीपा तथा उसके पिताजी ने मिलके,उसमे से एक छोटा-सा फ्लैट खरीदा. कम से कम किराये का झमेला बंद हुआ! बेटा महाविद्यालय में पहुँचा और उसे आठ हज़ार रुपये माहवार की नौकरी मिली. वो कॉलेज की पढ़ाई बाहरसे ही कर रहा था. उसने ज़िद करके अपनी माँ की नौकरी छुडवा दी. १५०० रुपयों के लिए,अब माँ क्यों इतना कष्ट करे,यही उसकी भावना थी. घर का सारा काम तो वो करती ही थी.
दिन अपनी गती से बीतते गए. बेटी ने कंप्यूटर ग्राफिक्स में पदवी हासिल की और नौकरी पे लग गयी. दीपा को उस के ब्याह की चिंता रहने लगी. इत्तेफाक़न एक संजीदा और आकर्षक युवक को लडकी पसंद आ गयी. लड़के के माता-पिता ज़रा अकडू और पुराने ख़यालात के लोग थे. लड़का बहुत अच्छी तनख्वाह पे नौकरी कर रहा था. ख़ुशमिज़ाज था. दीपा ने अन्य बातें नज़रंदाज़ कर दीं. ब्याह तय हुआ तो घर में खुशी का माहौल आ गया! बरसों बाद ऐसा मौक़ा आ रहा था! सब दिलो जान से जुट गए.
ब्याह अच्छे से हो गया...लडकी बिदा हो गयी...उसी शहरमे...और दीपा भयानक depression में चली गयी. उसका nervous breakdown ही हो गया! बरसों उसने अपनेआप को सहेजे रखा था...अब वो बिखर,बिखर गयी..
क्रमश:
24 टिप्पणियां:
बहुत भावपूर्ण,आगे की प्रतीक्षा है.
sansmaran bahut sarthak v sateek shabdon me prastut kar rahi hain aap .shubhkamnayen ..
आगे का इंतज़ार...
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (05.03.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
उसे नौकरी नहीं छोड़ना चाहिये थी.. उस परिस्थिति में पंदरह हज़ार बहुत होते हैं.. और डिप्रेशन क्यों.. वो भी तब जब सब ठीक हो चला था!!!
Salilji! Naukaree 1500/- kee thee pandrah hazaar kee nahee!
ओह! एक ज़ीरो ज़्यादा हो गया.. फिर भी नौकरी के कारण मसरूफियत रहती, थोड़ा मन बहल जाता और आमदनी का जरिया तो था ही!!
नोकरी ना छोडती तो डिप्रेशन से बच जाती दीपा । बेटी की जिम्मेवारी अच्छेसे निबाने की खुशी ही होती । अगली कडी का इनतजार है ।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ...अगली कड़ी की प्रतीक्षा में ..।
आगे की प्रतीक्षा है...
बहुत दिलचस्प .... बहुत रोचक ....
dilchaspi badh gayee....lekin lag raha hai, aap bhi jaldi me ho..:)
बेटी की शादी निपट जाने के बाद निश्चिन्त हो जाने के बजाये डिप्रेशन होने की वज़ह क्या रही होगी ?
बहुत भाव पूर्ण ढंग से लिखी गयी है यह किस्त ,अगली किस्त का इंतजार रहेगा |
कभी कभी , जीवन से लड़ते रहने में ही एक ताकत मिलती है जो व्यक्ति को संभाले रखती है । लेकिन सुकून की थोड़ी सी बयार आते ही व्यक्ति बिखर जाता है । संघर्ष की आदत जो हो चुकी होती है।
aap bahut intzaar karva rahi hai. chaliye koi baat nahi kush accha parhne k liye intzaar bhi chalega.
बहुत अच्छी चल रही है कहानी अब बेटी की शादी के अकेला पन तो खलना ही था. पर अचानक डिप्रेशन.....
नर्वस ब्रेकडाउन का कारन शायद अगली कड़ी में ही मिलेगा. दीपा के जीवन में खुशीयां ज्यादा दिन नहीं टिकने पाती. इंटरेस्टिंग.
बेटी की शादी अच्छी तरह निपट जाने के बाद भी दीपा के डिप्रेसन में जाने की क्या वजह हो सकती है , जानने की उत्सुकता है !
कहानी की अगली कड़ी का इन्तजार है
कहानी रोचक होती चली जा रही है , ऐसे वक्त में नर्वस ब्रेक डाउन का कारण मुझे समझ आता है ...कि महिलायें इतनी भावुक संवेदन शील होती हैं जब जब उन्हें ये अहसास होता है कि उम्र का एक बड़ा हिस्सा गुजर चुका है और उनके हिस्से क्या आया ..जब बच्चे घर छोड़ते हैं ...ये उनके लिए एक बड़ा नाजुक मोड़ होता है ...कभी कभी संभलना मुश्किल होता है .
आदरणीय क्षमा जी, सादर प्रणाम
आपके बारे में हमें "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" पर शिखा कौशिक व शालिनी कौशिक जी द्वारा लिखे गए पोस्ट के माध्यम से जानकारी मिली, जिसका लिंक है...... http://www.upkhabar.in/2011/03/jay-ho-part-3.html
इस ब्लॉग की परिकल्पना हमने एक भारतीय ब्लॉग परिवार के रूप में की है. हम चाहते है की इस परिवार से प्रत्येक वह भारतीय जुड़े जिसे अपने देश के प्रति प्रेम, समाज को एक नजरिये से देखने की चाहत, हिन्दू-मुस्लिम न होकर पहले वह भारतीय हो, जिसे खुद को हिन्दुस्तानी कहने पर गर्व हो, जो इंसानियत धर्म को मानता हो. और जो अन्याय, जुल्म की खिलाफत करना जानता हो, जो विवादित बातों से परे हो, जो दूसरी की भावनाओ का सम्मान करना जानता हो.
और इस परिवार में दोस्त, भाई,बहन, माँ, बेटी जैसे मर्यादित रिश्तो का मान रख सके.
धार्मिक विवादों से परे एक ऐसा परिवार जिसमे आत्मिक लगाव हो..........
मैं इस बृहद परिवार का एक छोटा सा सदस्य आपको निमंत्रण देने आया हूँ. यदि इस परिवार को अपना आशीर्वाद व सहयोग देने के लिए follower व लेखक बन कर हमारा मान बढ़ाएं...साथ ही मार्गदर्शन करें.
आपकी प्रतीक्षा में...........
हरीश सिंह
संस्थापक/संयोजक "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" www.upkhabar.in/
मैं पिछले कुछ महीनों से ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए लिखने का वक़्त नहीं मिला और आपके ब्लॉग पर नहीं आ सकी!
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत सुन्दर और उम्दा ! बेहतरीन प्रस्तुती!
आपकी लेखनी को सलाम !
अरे बाबा ये आखिर मे आकर आप हमे क्यो हार्ट अटैक देती हैं …………अब ऐसा क्या हुआ उसके साथ?
सच में जिंदगी में क्या क्या- रंग दिखाती है ... ..हंसती खेलती जिंदगी में कब ग्रहण लग जाता है कुछ नहीं कह सकता हैं...
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