पिछली बार अपनी माँ की देखभाल के बारे में मैंने लिखा था और अपने blogger दोस्तों से सलाह पूछी थी. माँ को अपने पास लाने की पूरी कोशिश कर चुकी हूँ. सभी ने यही सलाह दी थी. अपनी बेटी की सलाह से सहमत तो मै भी नही. हालाँकि अपने लिए मै वही चाहूँगी. मै अपने पती से बार,बार कहती हूँ,की, मुझे नलियों में जकड के मत ज़िंदा रखना. पर हमारे अपने चाहने से क्या होता है? होगा वही जो क़िस्मत में लिखा होगा.
माँ को अपने पास लानेकी कोशिश नाकामयाब हो चुकी है. वो तैयार नही मेरे पास आनेके लिए क्योंकि पिताजी आना नही चाहते और माँ पिताजी को छोडके आ नही सकतीं. पिताजीको मेरे घर रहना बिलकुल नही सुहाता. उनका फ्लैट में दम घुटता है.
परेशान हूँ की अब माँ की बीमारी और बुढापे से सामने आये सवालों से कैसे निपटा जाये?
सभी दोस्तों की,जिन्हों ने टिप्पणी के ज़रिये मुझे सलाह दी बहुत,बहुत शुक्र गुज़ार हूँ. अब फिर से एक सवाल लेके आयी हूँ. कैसे मनाऊं माँ को? कैसे मनाऊं अपने पिता को? खेत पे रह के उनकी देख भाल करने वाला कोई नही. nurse को वो रखना नही चाहते. मेरे भाई का बेटा उनके साथ रहता है लेकिन उसकी कोई भी सहायता नही. उसे उनकी property हड़प ने के अलावा और किसी चीज़ में रुची नही. जो एक बहुत प्यारा बच्चा था बचपन में, आज क्या से क्या हो गया.....फिरभी माँ की आँखें खुलती नही. जबकि उसकी खुदगर्जी ज़ाहिर है. भाई -भाभी कोई ज़िम्मेदारी उठाने को राजी नही. नाही वो अपने बेटे से कुछ कहते हैं. भाई यहीं पुणे में रहता है. क्या करूँ कैसे करूँ? दिन-b- दिन मै डिप्रेशन शिकार होती जा रही हूँ.
माँ को अपने पास लानेकी कोशिश नाकामयाब हो चुकी है. वो तैयार नही मेरे पास आनेके लिए क्योंकि पिताजी आना नही चाहते और माँ पिताजी को छोडके आ नही सकतीं. पिताजीको मेरे घर रहना बिलकुल नही सुहाता. उनका फ्लैट में दम घुटता है.
परेशान हूँ की अब माँ की बीमारी और बुढापे से सामने आये सवालों से कैसे निपटा जाये?
सभी दोस्तों की,जिन्हों ने टिप्पणी के ज़रिये मुझे सलाह दी बहुत,बहुत शुक्र गुज़ार हूँ. अब फिर से एक सवाल लेके आयी हूँ. कैसे मनाऊं माँ को? कैसे मनाऊं अपने पिता को? खेत पे रह के उनकी देख भाल करने वाला कोई नही. nurse को वो रखना नही चाहते. मेरे भाई का बेटा उनके साथ रहता है लेकिन उसकी कोई भी सहायता नही. उसे उनकी property हड़प ने के अलावा और किसी चीज़ में रुची नही. जो एक बहुत प्यारा बच्चा था बचपन में, आज क्या से क्या हो गया.....फिरभी माँ की आँखें खुलती नही. जबकि उसकी खुदगर्जी ज़ाहिर है. भाई -भाभी कोई ज़िम्मेदारी उठाने को राजी नही. नाही वो अपने बेटे से कुछ कहते हैं. भाई यहीं पुणे में रहता है. क्या करूँ कैसे करूँ? दिन-b- दिन मै डिप्रेशन शिकार होती जा रही हूँ.
25 टिप्पणियां:
उनकी स्थिति और पारिवारिक माहौल देखते हुए बस यही कहा जा सकता है कि (कहते हुए अच्छा नहीं लगता)जितनी भी उम्र उनकी बची है, उन्हें खुश रखने की कोशिश की जाए... बुजुर्गों को अपनी जड़ों से बड़ा मोह होता है, क्योंकि उसके साथ उनकी अच्छी बुरी कई स्मृतियाँ जुडी होती हैं और वो उनसे अलग नहीं होना चाहते. इसलिए जितना हो सके और जैसे भी हो सके उनके स्वास्थय से अधिक उनकी खुशी का ख्याल रखा जाए.. वे खुश रहेंगे तो स्वस्थ भी रहेंगे!! बाकी तो आपो खुद समझती हैं
मतलब की दुनिया है सारी,
बिछड़े सभी बारी-बारी!
पापा इसलिए नहीं आना चाह रहे होंगे क्योंकि उन्हें उस जगह से गहरा लगाव होगा जहां उनका पूरा जीवन बीता है, और मां, पिता को छोड कैसे चले जाएगी।
वो अपनी जडों से अलग नही होना चाहते, आपकी जड वो हैं, आप भी उनसे अलग न होईए, कोशिश कीजिए कि समय समय पर उनके पास जाने की...
बुजुर्गों को अपनी जड़ों से बड़ा मोह होता है उसे छोड़्ना नही चाह्ते..कोशिश करे उन्हें खुश रखें....
क्या कहें सिवाय इसके कि अपनी कोशिश करती रहिये और उन्हे कुछ उदाहरण दीजिये या उन्हे कहिये कि वो चाहे तो पैसे देकर रह लें मगर रहे आपके पास ताकि आप उनकी देखभाल कर सको शायद तब मान जायें।
खुदगर्जी का पर्दा उठाना दुरूह है यद्यपि कोशिश करना तो हमारा धर्म है. शेष इश्वेर के हांथों छोड देने के अलावा कुछ भी करना या कर पाना संभव नहीं लगता.
ताज्जुब ये है कि भाई और भाभी उन्हें अपने यहां लाना नहीं चाहते और बेटे को उनपर थोप रखा है ! खैर मुद्दा फ़िलहाल ये नहीं है ! कुछ दिन बदलाव के नाम पर मां और पिता जी को एक साथ लाने की कोशिश कीजिये ! शायद रास्ता निकले !
atulniy-***
वंदनाजी की बात बहुत व्यावहारिक लग रही है उन्हें मानाने के लिए .......
समस्या गंभीर है मगर आप हिम्मत न हारें ! उन्हें मानाने की कोशिश निरंतर रखे, हालाँकि उनकी जिद के आगे वैसे भी किसी की नहीं चलेगी, उनका अपनी जगह से लगाव होना ज़ाहिर सी बात है मगर प्रयास जारी रखे !
समस्या गंभीर है मगर आप हिम्मत न हारें ! उन्हें मानाने की कोशिश निरंतर रखे, हालाँकि उनकी जिद के आगे वैसे भी किसी की नहीं चलेगी, उनका अपनी जगह से लगाव होना ज़ाहिर सी बात है मगर प्रयास जारी रखे !
ऐसे भीतरी सवालों का जवाब भी भीतर से ही आएगा।फिर भी...............
माता-पिता को बीमारी अथवा फ्लैट में स्थानाभाव से ज्यादा चिंता अपने जीते-जी अचल सम्पत्ति को सहेजने की है,हालांकि कोई माता-पिता इसे साफ तौर पर स्वीकार नहीं करते। कैंसर और कुछ नहीं,मन की गांठ का घातक रूप है।
कुछ दिन आप उनके पास जाकर रहिए और आना-जाना बनाकर रखिए।
क्या मेरी टिप्पणियां स्पैम हो रही हैं चेक कर लीजियेगा !
hmmmm
सबका अपना पाथेय पंथ एकाकी है ,अब होश हुआ जब इने गिने दिन बाकी हैं .ये क्या कम है :आप में भावना है .पिताजी कहा करते थे भावना से कर्तव्य बड़ा होता है आप अपना फर्ज़ निभा चुकी हैं फल आपके हाथ में नहीं है .
समस्या गंभीर पर ,हिम्मत बनाये रखें
जी, बहुत बढिया
बहुत बढ़िया ....नववर्ष आगमन पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ...
बहुत सटीक लिखा .
नए साल की हार्दिक शुभकामनायें.
समस्या तो गंभीर है,हिम्मत से निर्णय ले,...
नया साल आपके जीवन को प्रेम एवं विश्वास से महकाता रहे,
मेरी नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--
दरासल जदॆं आसानी से नहीं छूटती।
आप किसी भी तरह से अपना फर्ज़ पूरा करती रहें
पेरेंट्स के मुद्दे पर कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ। सपरिवार आपको नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
नव वर्ष पर आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें।
सच्चाई तो यही है कि बच्चों की तरह माता-पिता भी जिद्दी किस्माके होते है...अत: उन्हें मनाने की कोशिश जारी रखनी चाहिए!...शायद मान जाए और समस्या का हल निकल आए!
...क्षमाजी आप को भी नए वर्ष के पर्व पर मेंरी तरफ से ढेरों हार्दिक शुभकामनाएं!
क्षमा जी , अचानक से कोई भी परिवर्तन संभव नहीं और वो भी मानसिक परिवर्तन बुजुर्गों का ..
वो हमेशा के लिए साथ जाने को राज़ी नहीं होंगे पर कुछ माह साथ वो रहें आपके ,ऐसी कोशिश तो कर सकती हैं, और रही उनके पूरी तरह साथ रहने को तैयार होने की तो वो सब भगवन पर छोड़ दें उनकी इच्छा से ही कुछ भी होता है बस अपने कर्म करते चलें.........काफी समय बाद आ पाई हूँ माफ़ी चाहती हूँ.
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