बुधवार, 18 जनवरी 2012

मेरी लाडली!

याद आ रही है वो संध्या ,जब तेरे पिताने उस शाम गोल्फ से लौटके मुझसे कहा,"मानवी जनवरी के९ तारीख को न्यू जर्सी मे राघव के साथ ब्याह कर ले रही है। उसका फ़ोन आया, जब मै गोल्फ खेल रहा था।"
मै पागलों की भाँती इनकी शक्ल देखती रह गयी! और फिर इनका चेहरा सामने होकरभी गायब-सा हो गया....मन झूलेकी तरह आगे-पीछे हिंदोले लेने लगा। कानोंमे शब्द गूँजे,"मै माँ को लेके कहाँ जानेवाली हूँ?"
तू दो सालकीभी नही थी तब लेकिन जब भी तुझे अंदेसा होता था की मै कहीं बाहर जानेकी तैय्यारीमे हूँ, तब तेरा यही सवाल होता था! तूने  कभी नही पूछा," माँ, तुम मुझे लेके कहाँ जानेवाली हो?" माँ तुझे साथ लिए बिना ना चली जाय, इस बातको कहनेका ये तेरा तरीका हुआ करता था! कहीं तू पीछे ना छोडी जाय, इस डरको शब्दांकित तू हरवक्त ऐसेही किया करती।
सन २००३, नवम्बर  की वो शाम । अपनी लाडली की शादीमे जानेकी अपनी कोईभी संभावना नही है, ये मेरे मनमे अचनाकसे उजागर हुआ। "बाबुल की दुआएं लेती जा..." इस गीतकी पार्श्व भूमीपे तेरी बिदाई मै करनेवाली थी। मुझे मालूम था, तू नही रोयेगी, लेकिन मै अपनी माँ के गले लग खूब रो लेनेवाली थी.....
मुझे याद नही, दो घंटे बीते या तीन, पर एकदमसे मै फूट-फूटके रोने लगी। फिर किसी धुंद मे समाके दिन बीतने लगे। किसी चीज़ मे मुझे दिलचस्पी नही रही। यंत्र की भाँती मै अपनी दिनचर्या निभाती। ८ जनवरी के मध्यरात्री मे मेरी आँख बिना किसी आवाज़ के खुल गयी। घडीपे नज़र पडी और मेरे दोनों हाथ आशीष के लिए उठ गए। शायद इसी पल तेरा ब्याह हो रहा हो!!आँखों मे अश्रुओने भीड़ कर दी.......

तेरे जन्मसेही तेरी भावी ज़िंदगीके बारेमे कितने ख्वाब सँजोए थे मैंने!!कितनी मुश्किलों के बाद तू मुझे हासिल हुई थी,मेरी लाडली! मै इसे नृत्य-गायन ज़रूर सिखाऊँगी, हमेशा सोचा करती। ये मेरी अतृप्त इच्छा थी! तू अपने पैरोंपे खडी रहेगीही रहेगी। जिस क्षेत्र मे तू चाहेगी , उसी का चयन तुझे करने दूँगी। मेरी ससुरालमे ऐसा चलन नही था। बंदिशें थी, पर मै तेरे साथ जमके खडी रहनेवाली थी। मानसिक और आर्थिक स्वतन्त्रता ये दोनों जीवन के अंग मुझे बेहद ज़रूरी लगते थे, लगते हैं।

छोटे, छोटे बोल बोलते-सुनते, न जाने कब हम दोनोंके बीच एक संवाद शुरू हो गया। याद है मुझे, जब मैंने नौकरी शुरू की तो, मेरी पीछे तू मेरी कोई साडी अपने सीनेसे चिपकाए घरमे घूमती तथा मेरी घरमे पैर रखतेही उसे फेंक देती!!तेरी प्यारी मासी जो उस समय मुंबई मे पढ़ती थी, वो तेरे साथ होती,फिरभी, मेरी साडी तुझसे चिपकी रहती!
तू जब भी बीमार पड़ती मेरी नींदे उड़ जाती। पल-पल मुझे डर लगता कि कहीँ तुझे किसीकी नज़र न लग जाए...

तू दो सालकी भी नही हुई थी के तेरे छोटे भी का दुनियामे आगमन हुआ। याद है तुझे, हम दोनोंके बीछ रोज़ कुछ न कुछ मज़ेकी बात हुआ करती? तू ३ सालकी हुई और तेरी स्कूल शुरू हुई। मुम्बई की नर्सरीमे एक वर्ष बिताया तूने। तेरे पिताके एक के बाद एक तबादलों का सिलसिला जारीही रहा। बदलते शहरों के साथ पाठशालाएँ बदलती रही। अपनी उम्रसे बोहोत संजीदा, तेज़ दिमाग और बातूनी बच्ची थी तू। कालांतर से , मुझे ख़ुद पता नही चला,कब, तू शांत और एकान्तप्रिय होती चली गयी। बेहद सयानी बन गई। मुझे समझाही नही या समझमे आता गया पर मै अपने हालत की वजहसे कुछ कर न सकी। आज मुझे इस बातका बेहद अफ़सोस है। क्या तू, मेरी लाडली, अल्हड़तासे अपना बचपन, अपनी जवानी जी पायी?? नही न??मेरी बच्ची, मुझे इस बातका रह-रहके खेद होता है। मै तेरे वो दिन कैसे लौटाऊ ??मेरी अपनी ज़िंदगी तारपरकी कसरत थी। उसे निभानेमे तेरी मुझे पलपल मदद हुई। मैही नादान, जो ना समझी। बिटिया, मुझे अब तो बता, क्या इसी कारन तुझे एकाकी, असुरक्षित महसूस होता रहा??
जबसे मै कमाने लगी, चाहे वो पाक कलाके वर्ग हों, चाहे अपनी कला हो या जोभी ज़रिया रहा,मिला, मैंने तिनका, तिनका जोड़ बचत की। तुम बच्चों की भावी ज़िंदगी के लिए, तुम्हारी पढ़ाई के लिए, किसी तरह तुम्हारी आनेवाली ज़िंदगी आर्थिक तौरसे सुरक्षित हो इसलिए। ज़रूरी पढ़ाई की संधी हाथसे निकल न जाय इसकारण । तुम्हारा भविष्य बनानेकी अथक कोशिशमे मैंने तुम्हारे, ख़ास कर तेरे, वर्तमान को दुर्लक्षित तो नही किया?
ज़िंदगी के इस मोड़ से मुडके देखती हूँ तो अपराध बोधसे अस्वस्थ हो जाती हूँ। क्या यहीँ मेरी गलती हुई? क्या तू मुझे माफ़ कर सकेगी? पलकोंमे मेरी बूँदें भर आती हैं, जब मुझे तेरा वो नन्हा-सा चेहरा याद आता है। वो मासूमियत, जो संजीदगीमे न जानूँ कब तबदील हो गयी....!
अपने तनहा लम्होंमे जब तू याद आती है, तो दिल करता है, अभी उसी वक्त काश तुझे अपनी बाहोँ मे लेके अपने दिलकी भडास निकाल दूँ!!निकाल सकूँ!!मेरी बाहें, मेरा आँचल इतना लंबा कहाँ, जो सात समंदर पार पहुँच  पाये??ना मेरी सेहत ऐसी के तेरे पास उड़के चली आयूँ!!नाही आर्थिक हालात!!अंधेरी रातोंमे अपना सिरहाना भिगोती हूँ। जब सुबह होती है, तो घरमे झाँकती किरनों मे मुझे उजाला नज़र नही आता....जहाँ तेरा मुखडा नही, वो घर मुझे मेरा नही लगता...गर तू स्वीकार करे तो अपनी दुनियाँ तुझपे वार दूँ मेरी लाडली!


37 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

अहा! कितनी ममता भरी है आपकी बातों में। मन को भिंगा दी इस पोस्ट ने।

रवि कुमार ने कहा…

बेहतर...

शारदा अरोरा ने कहा…

man ko bhigo gaee aapki post ...kahte hai hone vali baat ho kar rahti hai , ab gam n kare aur aap achchha sochti hain ..itna hi kafi hai...aapke vibrations convey ho jaayenge ...

Aruna Kapoor ने कहा…

माँ की ममता ऐसी ही होती है!...लाडली के लिए हंमेशा मन से दुवाएं उठती है!....बहुत सुन्दर वर्णन!

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

भावुक करने वाली पोस्ट है दी.

vikram7 ने कहा…

sach maa kii mamataa ka koii javaab naii,ati sundar vrnan.

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - अंजुरि में कुछ कतरों को सहेज़ा है …………ब्लॉग बुलेटिन

उम्मतें ने कहा…

बेहद ज़ज्बाती आलेख है ! कोई हल नहीं पीढ़ियों का फर्क है वे जब इस पीढ़ी में पहुंचेंगी तब समझेंगी !

शायद यह संस्मरण मैंने पहले भी पढ़ा है आपके यहां !

ZEAL ने कहा…

very touching ...

vidya ने कहा…

बहुत सुन्दर..पता नहीं क्यूँ लगा कि इसे लिखते वक्त आपकी आँखें बहीं होंगीं...मेरी तो पढ़ कर ही बह गयीं...............

Atul Shrivastava ने कहा…

दिल को छूती पोस्‍ट।
बेहतरीन।

Smart Indian ने कहा…

हृदयस्पर्शी शब्द! बीता वक़्त तो बस यादों में ही वापस लौटता है।

Rakesh Kumar ने कहा…

आपने अपने दिल का गहन दर्द यहाँ उंडेला है.
एक माँ के दिल की थाह परमात्मा ही जान
सकता है.आपके दर्द से मन अभिभूत है.
इस दर्द का अनुभव वैराग्य की अनुभूति
कराता है.ईश्वर से दिल लगाने के लिए
जिसकी परम आवश्यकता है.

ईश्वर जो भी करता है,अच्छे के लिए करता है.
दर्द का अनुभव भी वह कुछ और बेहतर सिखाने
के लिए ही करवाता है.

ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ ही कि आपको सांत्वना प्रदान कर,धीरज देवे और अनुकूल परिस्थितियों प्रदान करे.

आप मेरे ब्लॉग पर आतीं है,बहुत अच्छा लगता है,अपनत्व महसूस होता है.
इस बार 'हनुमान लीला-भाग ३'पर आईयेगा,आपको जरूर अच्छा लगेगा.

मै आपको क्षमा कहूँ या kshama?

Urmi ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत! हर एक शब्द दिल को छु गई! उम्दा प्रस्तुती!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

माँ बेटी के रिश्तों का बेबाक बयान और हर बार की तरह दिल को छूता हुआ... आपकी ईमानदार अभिव्यक्ति को सलाम!!

vikram7 ने कहा…

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

vikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

ममतामयी पोस्ट...हृदयस्पर्शी एक माँ के मन के भाव....

virendra sharma ने कहा…

माँ के स्नेहिल स्पर्श से संसिक्त पोस्ट .

रचना दीक्षित ने कहा…

दिल को छू लेती है यह दास्तान. बहुत बधाई.

Apanatva ने कहा…

marmsparshee dastan bhara lekhan bhigo gaya.
ab pahile se bettar mahsoos kar rahee hoo......
Accha laga aapka yaad rakhana......

amrendra "amar" ने कहा…

bahut sunder marmsparshi prastuti

avanti singh ने कहा…

pahli baar yhan aaee hun aap ki post ne bhaavvibhor kiya....bahut khub likhti hai aap....

Udan Tashtari ने कहा…

माँ की ममता-शब्दों में अहसासती!!

P.N. Subramanian ने कहा…

Man bhar aaya.

बेनामी ने कहा…

हृदयस्पर्शी पोस्‍ट...

Anupama Tripathi ने कहा…

bhav prabal ...rachna ...

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

भावुक कर देने वाली पोस्ट....

Shabad shabad ने कहा…

हृदयस्पर्शी पोस्‍ट...हर एक शब्द दिल को छूता हुआ

Deepak Shukla ने कहा…

Adarneey Kshma ji

aapke es blog par bikhre sitaaron main humne sada se hi jo dard mansoos kiya hai voh akathneey hai... Jeevan apni gati se chalta rahta hai aur hum sab Eshwar ke hathon ki kathputliyan ban uski door se naachte rahte hain.. Kabhi apne nirnay par glani hoti hai to kabhi santushti... Bitiya ke bachpan main unke bhavishy ke liye kary kar bachat karne vali aap eklauti maa nahi hain... Kaam karne wali pratyek mahila ko ghar se bahar nikalna hi padta hai...har bachcha apne maata-pita ka sameepya chahta hai... Bitiya chhoti thi tab chahe na samajh payi ho par bade hone par use swyam samajh aa gaya hoga.. Wo aapke vatsalya ko samajhti hogi haan har vyakti ka apne manobhav vyakt karne ka apna tareeka hota hai..ho sakta hai wo chupi main hi bahut kuchh kah deti ho...!!!...

Pratyek Maa yahi chahti hai ki uski beti ko aarthik aur samajik svatanrta mile...jo sapne wo na jee payi hon wo uski beti jiye...aapne bhi yahi kiya...aur aisa na hota to saat samandar paar kabhi na jaa pati... Haan vyaktigat taur par main aapki bitiya ke vahan vivah kar lene par santusht nahi hun...koi bhi majboori ya swatantrata aapko yah haq nahi deti ki aap apne abhibhavakon ke sapnon par chal kar apne sapno ko saakar karen... Aapki bitiya ko ya to hahan vivaah karna chahiye tha ya kam se kam aap sabko vahan bula lena chahiye tha... Par ab jo ho gaya wo ho gaya...wo kitna bhi door rahe...mujhe vishvas hai ki bitiya ke man main aapka maan, prem aur aasakti sadev rahi hai aur rahegi...

Eshvar aapki bitiya aur uski Maa ko sadev khush rakhe...!!!

Vaise ek baat batayen aapko......aapke aalekh padhkar swatah hi aankhen chhalchala uthti hain... Aankhon ke kor ab bhi geele hain...shayad humare bachche bhi esi raah chalen...ab tak sanjoye sab sapne jab tootenge tab humara dard bhi yun hi mukhar ho uthega...shayad...

Khair jo humare haath main hai nahi uske liye kyon khud ko pratadit karna... Hai na..!!!...to aap bhi yahi maanen...jo bhi hua hai usme aapka koi dosh nahi...karne wala wo hai....usi ke ishare par sab kuchh ho raha hai... Ek kavita prastut hai...shayad aapko achhi lage....

Kudrat ne dono hain banaye...
Diye phool ke sang main shool...
Jeevan chalta rahe sada hi..
Bhale paisthiti ho pratikool...

Jaisa lekha bhagya main jiske..
Vaisa hi wo paata hai...
Sukh-dukh main wo sath sabhi ke..
Hardam sath nibhata hai...

Bade dukhon ko chhota maane..
Thodi khushiyon ko jyaada...
Jeevan main jo dard ho koi..
Swtah hi hota hai aadha...

Jo hai.jitna, hai vo apna...
Jo na hai kyon, ho parvaah...
Eshwar par hum, chhod den sab kuchh...
Vohi karega bas nirvaah....

Jaisa nrutya nachaaye Eshwar..
Vaisa nrutya hi karna hai...
Kantak path hi ho jeevan, par..
Sahaj bhav se chalna hai...

Saadar..

Deepak..

sangita ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत! हर एक शब्द दिल को छु गई! उम्दा प्रस्तुती!

Minakshi Pant ने कहा…

दर्द और अपनेपन के भाव को बहुत सुन्दर ठंग से प्रस्तुत किया गया है बहुत दर्द पर सुखद अहसास बहुत खूब |

Murari Pareek ने कहा…

माँ शब्द को यथार्थ दीखा दिया इतना स्नेह इतनी ममता,के बावजूद भी मन की शंका ...सचमुच यही है माँ.. ...वो सचमुच पिछले जन्म के बड़े गुनाहगार रहे होते हैं जिन्हें माँ नसीब नहीं...

Shayar Ashok : Assistant manager (Central Bank) ने कहा…

बहुत खुबसूरत प्रस्तुति !!

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत भावपूर्ण...दिल को छू जाती प्रस्तुति...

vikram7 ने कहा…

ॐ नमः शिवाय !! महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाये.

Mamta Bajpai ने कहा…

मन भीग भीग गया आपके साथ ..पर ये नियति है बीते पल लौट कर कभी नहीं आ सकते
जिस दिन आपकी बेटी स्वयं माँ बनेगी तब बिना कुछ कहे ही आपकी सम्पूर्ण भावनाएं समझ जायेगी ...देखिएगा आप ये ही सत्य है

Bhawna Kukreti ने कहा…

MAN BHAR AYA HAI .