शामिले ज़िन्दगीके चरागों ने
पेशे खिदमत अँधेरा किया,
मैंने खुदको जला लिया,
रौशने राहोंके ख़ातिर ,
शाम ढलते बनके शमा!
मुझे तो उजाला न मिला,
पर सुना, चंद राह्गीरोंको
थोड़ा-सा हौसला ज़रूर मिला....
अब सेहर होनेको है ,
ये शमा बुझनेको है,
जो रातमे जलते हैं,
वो कब सेहर देखते हैं?
वैसे तो इस ब्लॉग पे मै अपनी पद्य रचनाएँ नही डालती,लेकिन आज डाल रही हूँ।वो भी एक पुरानी रचना।
पेशे खिदमत अँधेरा किया,
मैंने खुदको जला लिया,
रौशने राहोंके ख़ातिर ,
शाम ढलते बनके शमा!
मुझे तो उजाला न मिला,
पर सुना, चंद राह्गीरोंको
थोड़ा-सा हौसला ज़रूर मिला....
अब सेहर होनेको है ,
ये शमा बुझनेको है,
जो रातमे जलते हैं,
वो कब सेहर देखते हैं?
वैसे तो इस ब्लॉग पे मै अपनी पद्य रचनाएँ नही डालती,लेकिन आज डाल रही हूँ।वो भी एक पुरानी रचना।
6 टिप्पणियां:
अब सेहर होनेको है ,
ये शमा बुझनेको है,
जो रातमे जलते हैं,
वो कब सेहर देखते हैं?
सन्देश देती रचना
क्षमा जी बहुत सुंदर नज़्म. पहली बार ही आपकी नज़्म से रूबरू हुई. बहुत बढ़िया और भावपूर्ण.
behtreen....
आपकी हर कविता गहरे भावों से भरी होती है और आपको जानने के बारे में हमारी राहें अधिक रौशन करती हैं।
बहुत सुंदर नज़्म. बेमिसाल
नज्म सुन्दर है ...मगर ये कह रही है ...कोई जान से जाता है तभी क्या उजाला होता है ...
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