सोमवार, 22 जुलाई 2013

बिखरे सितारे.!:एक वोभी दिवाली थी

बिखरे सितारे.!१).एक वो भी दिवाली थी...! ...

क्यों हम किसी की या ख़ुद की ज़िंदगानी किसी के साथ साँझा करना चाहते हैं? क्यों एक दास्ताँ बयाँ करना चाहते हैं? हर किसी के अलाहिदा वजूहात हो सकते हैं...मैं यहाँ किस कारण आयी हूँ, ये बता दूँ....
एक ऐसी दास्ताँ सुनाने आयी हूँ, जो शायद आपको चौंका दे...हो सकता है,आप कुछ कहने के लिए आतुर हो जायें..या स्तब्ध हो जाएँ...नही जानती...
विधाता ने हमें इस तरह घडा है,कि, एक उँगली के निशाँ दूसरी से नही मेल खाते...तो एक ज़िंदगी, किसी अन्य ज़िंदगी से कितना मेल खा सकती है ?
मेल खा सकती है, एक हद तक......ज़रूर..लेकिन, एक जैसी कभी नही हो सकती....चंद वाक़यात मेल खा जायें..पर एक सम्पूर्ण जीवन.....चाहे कितना ही छोटा रहा हो ? मुमकिन नही...
यहीँ से एक क़िस्सा गोई आरम्भ होगी...एक दर्द का सफर...जिस में चंद खुशियाँ शामिल..जिस में बेशुमार हादसे शामिल...एक नन्हीं जान इस दुनियामे आयी...और उसके इर्द गिर्द ये दास्ताँ बुनती रही..रहेगी...शायद पढने वाले इस दास्ताँ से हैरान हो जाएँ......कि, ऐसी राहों में, जो इस कथानक के मुख्य किरदार ने चुनी, कितने खतरे पेश आ सकते हैं...इन पुर-ख़तर राहों का अंदेसा तो कभी किसी को नही होता...लेकिन, जिस राह से एक राही गुज़रा हो,वो, पीछे से आनेवाले मुसाफिरों की रहनुमाई ज़रूर कर सकता है...इसी मकसद को लेके शुरुआत कर रही हूँ...

ये तो नही जानती,कि, इस सत्य कथा का अंत कहाँ होगा...कैसे होगा...आप सफर में शामिल हों, ये इल्तिजा कर सकती हूँ...!

१)एक वो भी दिवाली थी...!

क़िस्सा शुरू होता है, आज़ादी के दो परवानों से...जो अपने देश पे हँसते, हँसते मर मिटने को तैयार थे..एक जोड़ा...जो अपने देश को आजाद देखना चाहता था...एक ऐसा जोड़ा,जो, उस महात्मा की एक आवाज़ पे सारे ऐशो आराम तज, हिन्दुस्तान के दूरदराज़ गाँव में आ बसा...उस महात्मा की आवाज़, जिसका नाम गांधी था...

गाँव में आ बसने का मक़सद, केवल अंग्रेज़ी हुकूमत से आज़ादी कैसे हो सकता है? आज़ादी तो एक मानसिकता से चाहिए थी...एक विशाल जन जागृती की ज़रूरत ...इंसान को इंसान समझे जाने की जागृती...ऊँच नीच का भरम दूर करनेकी एक सशक्त कोशिश...काम कठिन था...लेकिन हौसले बुलंद थे...नाकामी शब्द, अपने शब्द कोष से परे कर दिया था,इस युवा जोड़े ने..और उस तरफ़ क़दम बढ़ते जा रहे थे...

अपने जीते जी, देश आज़ाद होगा, ये तो उस जोड़े ने ख्वाबो ख़याल में नही सोचा था...लेकिन,वो सपना साकार हुआ...! आज हम जिसे क़ुरबानी कहें, लेकिन उनके लिए वो सब करना,उनकी खुश क़िस्मती थी...कहानी को ८५ साल पूर्व ले चलूँ, तो परिवार नियोजन अनसुना था...! इस जोड़े ने उन दिनों परिवार नियोजन कर, केवल एक ही औलाद को जन्म दिया...जिसे पूरे पच्चीस साल अपने से दूर रखना पड़ा...गर ये दोनों कारावास के अन्दर बाहर होते रहते तो, एक से अधिक औलाद किस के भरोसे छोड़ते? उस गाँव में ना कोई वैद्यकीय सुविधा थी, ना पढाई की सुविधा थी...इन सारी सुविधाओं की खातिर इस जोड़े ने काफी जद्दो जहद की...लेकिन तबतक तो अपनी इकलौती औलाद,जो एक पुत्र था,उसे, अपने से दूर रखना पडा ही पडा...

कौन था ये जोड़ा? पत्नी राज घराने से सम्बन्ध रखती थी...नज़ाकत और नफ़ासत उसके हर हाव भाव मे टपकती थी..पती भी, उतने ही शाही खानदान से ताल्लुक रखता था...लेकिन सारा ऐशो आराम छोड़ आने का निर्णय लेने में इन्हें पल भर नही लगा...
महलों से उतर वो राजकुमारी, एक मिट्टी के कमरे मे रहने चली आयी...अपने हाथों से रोज़ गाँव मे बने कुएसे पानी खींच ने लगी...हर ऐश के परे, उन दोनों ने अपना जीवन शुरू किया...ग्राम वासियों के लिए,ये जोड़ा एक मिसाल बन गया...उनका कहा हर शब्द ग्राम वासी मान लेते...हर हाल मे सत्य वचन कहने की आदत ने गज़ब निडरता प्रदान की थी..ग्राम वासी जानते थे,कि, इन्हें मौत से कोई डरा नही सकता...

बेटा बीस साल का हुआ और देश आज़ाद हुआ...गज़ब जश्न मने......! और एक साल के बाद, गांधी के मौत का मातम भी...

पुत्र पच्चीस साल का हुआ...पढाई ख़त्म हुई,तो उसका ब्याह कर दिया गया...लडकी गरीब परिवार की थी,जो अपने पिता का छत्र खो चुकी थी..लेकिन थी बेहद सुंदर और सलीक़ेमन्द...ब्याह के दो साल के भीतर,भीतर माँ बनने वाली थी...

कहानी तो उसी क़िस्से से आरंभ होती है...बहू अपनी ज़चगी के लिए नैहर गयी हुई थी...बेटा भी वहीँ गया था..बस ३/४ रोज़ पूर्व...इस जोड़े को अब अपने निजी जीवन मे इसी ख़ुश ख़बरी का इंतज़ार था...! दीवाली के दिन थे...३ नवेम्बर .. ...उस दिन लक्ष्मी पूजन था..शाम के ५ बज रहे होंगे...दोनों अपने खेत मे घूमने निकलने ही वाले थे,कि, सामने से, टेढी मेढ़ी पगडंडी पर अपनी साइकल चलाता हुआ, तारवाला उन्हें नज़र आया...! दोनों ने दिल थाम लिया...! क्या ख़बर होगी...? दो क़दम पीछे खड़ी पत्नी को पती ने आवाज़ दे के कहा:" अरे देखो ज़रा..तार वाला आ रहा है..जल्दी आओ...जल्दी आओ...!"

तार खोलने तक मानो युग बीते..दोनों ने ख़बर पढी और नए, नए दादा बने पुरूष ने अपने घरके अन्दर रुख किया...!

कुछ नक़द उस अनपढ़ तार वाले को थमाए...आज से अर्ध शतक पहले की बात है...अपने हाथ मे पच्चीस रुपये पाके तारवाला गज़ब खुश हो गया..उन दिनों इतने पैसे बहुत मायने रखते थे....दुआएँ देते हुए बोल पड़ा,
"बाबा, समझ गया... पोता हुआ है...! ये दीवाली तो आपके लिए बड़ी शुभ हुई...आपके पीछे तो कितनी दुआएँ हैं...आपका हमेशा भला होगा...!"

दादा: " अरे पगले....! पोता हुआ होता तो एक रुपल्ली भी नही देता..पोती हुई है पोती...इस दिनके लिए तो पायी पायी जोड़ इतने रुपये जोड़े थे..कि, तू ये ख़बर लाये,और तुझे दें...!"

तारवाला : " बाबा...तब तो आपके घर देवी आयी है...वरना तो हर कोई बेटा,बेटा ही करता रहता है..आपके लिए ये कन्या बहुत शुभ हो..बहुत शुभ हो...!"

दादा :" और इस बच्ची का आगे चलके जो भी नाम रखा जाएगा...उसके पहले,'पूजा' नाम पुकारा जाएगा...!"
तारवाला हैरान हो उनकी शक्ल देखने लगा...! क्या बात थी उसमे हैरत की...?वो पती पत्नी मुस्लिम परिवार से ताल्लुक़ रखते थे...!
तारवाले ने फिर एक बार उन दोनों के आगे हाथ जोड़े...अपनी साइकल पे टाँग चढाई और खुशी,खुशी लौट गया..! उसकी तो वाक़ई दिवाली मन गयी थी...! मुँह से कई सारे आशीष दिए जा रहा था...!

कौन थी वो खुश नसीब जो इस परिवार के आँखों का सितारा बनने जा रही थी...? जो इनकी तमन्ना बनने जा रही थी...उस नन्हीं जान को क्या ख़बर थी,कि, उसके आगमन से किसी की दुनिया इतनी रौशन हो गयी...?

दादी के होंठ खुशी के मारे काँप रहे थे...नवागत के स्वागत मे बुनाई कढाई तो उसने कबकी शुरू कर दी थी..लेकिन अब तो लडकी को मद्दे नज़र रख,वो अपना हुनर बिखेरने वाली थी...पूरे ४२ दिनों का इंतज़ार था, उस बच्ची का नज़ारा होने मे...सर्दियाँ शुरू हो जानी थी...ओह...क्या,क्या करना था...!

दोनों ने मिल कैसे, कैसे सपने बुनने शुरू किए..!

क्रमश:

आगे, आगे कोशिश रहेगी,कि, उस बच्ची की जो भी तस्वीरें उपलब्ध हैं, उन्हें ब्लॉग पे पोस्ट करूँगी..अलावा...उसका वो पुश्तैनी मकान...जिसे बाद मे मिट्टी के घरसे निकल, उस जोड़े ने पत्थर का बना लिया...गाँव से कुछ बाहर...कवेलू वाला...जिसकी कहानी कहना शुरू की है,उससे बेहद अच्छी तरह वाबस्ता हूँ..बेहद क़रीब से जाना है उसे ..
 
 
 
 
एक वोभी दिवाली थी

12 टिप्‍पणियां:

Rajesh Kumari ने कहा…

आपकी इस शानदार प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार २३/७ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है सस्नेह ।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

आगे का इन्तज़ार है !

उम्मतें ने कहा…

वो बेहद भले लोग थे ! उनकी सोच वक़्त से आगे की सोच थी !

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

agli kadi ka intezar

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर...अगली कड़ी का इंतजार...

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

bahut rochak aur aage ke liye jigyasa bani hui hai .

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

bahut rochak aur aage ke liye jigyasa bani hui hai .

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बढिया,
आगे का इंतजार


मुझे लगता है कि राजनीति से जुड़ी दो बातें आपको जाननी जरूरी है।
"आधा सच " ब्लाग पर BJP के लिए खतरा बन रहे आडवाणी !
http://aadhasachonline.blogspot.in/2013/07/bjp.html?showComment=1374596042756#c7527682429187200337
और हमारे दूसरे ब्लाग रोजनामचा पर बुरे फस गए बेचारे राहुल !
http://dailyreportsonline.blogspot.in/2013/07/blog-post.html

Ramakant Singh ने कहा…

अगली कड़ी का इंतजार बेसब्री से

sourabh sharma ने कहा…

kya ye sachchi ghatna par aadharit hai

mark rai ने कहा…

क़िस्सा शुरू होता है, आज़ादी के दो परवानों से...जो अपने देश पे हँसते, हँसते मर मिटने को तैयार थे..एक जोड़ा...जो अपने देश को आजाद देखना चाहता था.............
.........बहुत सुन्दर.

Asha Joglekar ने कहा…

कहानी कहने का आपमें एक अनोखा गुण है । जोडे की आगे की कहनी जानने को बेसब्र ।