सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

बिखरे सितारे-६ तूफ़ान भरी राहें!

गौरव: " तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे सांप या बिच्छू ने डंख मार दिया हो...इसकी जान जा रही हो...चीटी के काटने से यह मर थोड़े ही जायेगी?"
पूजा ने   उसे जल्दी जल्दी नहला डाला...
बच्ची केवल ३० दिन की थी..आगे पूरी ज़िंदगी पडी थी...पूजाकी आँखों के आगे भविष्य का नज़ारा घूम गया..अब आगे पढ़ें...

२ माह की बच्ची को लेके  पूजा बंगलोर अपने नैहर से चली आयी थी.
गुज़रते दिनों के साथ पूजाको रोज़ ही ना जाने कितनीही कठिनाईयों   का सामना करना पड़ता! चैन से वो बच्ची को स्तनपान भी न करा पाती..सास की दो मिनट के अन्दर आवाज़ लग जाती:
" तुम जब देखो तब इसे लिए बैठ जाती हो...यहाँ चाहे किसीको चाय चाहिए हो या नाश्ता...तुम्हें तो पहले उस लडकी की पडी रहती है..हमारे घरमे तो ये ३ री लडकी है..अब बेगम साहिबा उठिए और हमें पराठें बना दें!  लगता है,तुम्हें  और कोई कामही नही...!"
पूजा: बस पाँच मिनट रुक जाएँ आप.. मै तुरंत बना दूँगी...सुबह से ३ बार इसे रोता छोड़ मै उठ गयी हूँ.."
सासूमा :" तो हमपे एहसान किया है? घरके काम तुम नही करोगी   तो और कौन?"
गौरव: " सुना नही माँ ने क्या कहा? माँ से बढ़के   आज ये हो गयी? रखो इसे नीचे और माँ जो कह रहीं हैं करो.."
बिचारी उस नन्ही-सी जान को फिर  एकबार भूखे पेट अपने पलनेमे जाना पड़ा...बेचारी बड़ी करुण सुरमे रोने लगी..
पूजा गरम,गरम  पराठे बना अपनी सास को परोसती गयी..
पराठें बन गए तो कुत्तेको घुमाके लानेका आदेश मिला. पूजाने फिर बिनती की:" बच्ची भूक के मारे रोये जा रही है...मुझे १० मिनट देदो, मै घुमा लाऊँगी ..please !
गौरव:" तुमने लडकी को सरपे चढ़ा रखा है...चलो मेरे साथ लिफ्ट में नीचे उतारो, मै दफ्तर निकल पडूँगा, तुम  कुत्तेको घुमाके ले आओ...ये भी बाहर जानेके लिए मचल रहा है..."
अंतमे हुआ वही जो गौरव और उसकी सास चाहती!पूजा की आँखें नम होती जा रही थीं..जब भी उसके पलने के पास से पूजा गुज़रती, वो बड़ी आशासे अपनी माँ को देखती...और तवज्जो न पाके  रो उठती.
कुत्तेको  घुमाने के पश्च्यात उसने सबकी इजाज़त ली तब वो बच्ची को दूध पिला सकी.

एक बार पूजा घरकी बालकॉनी  में खड़ी हो, बिटिया को परिंदे दिखा रही थी...वहाँ कौवे भी थे. कुत्तेको कव्वों से बेहद चिढ थी...उसने जैसे ही कव्वे को  देखा, उसने ज़ोरदार हमला बोल दिया...बच्ची डर के मारे चींख उठी..पूजा ने  उसे अपने काँधों पे चिपकाके वहाँ से हट जाने का  सोंचा...लेकिन गौरव ने टांग अड़ा दी:
गौरव:"ये मेरे कुत्तेसे डरती है? देखता हूँ कबतक डरती है..."
कहके उसने कुत्तेको और कव्वे दिखाए...कुत्ता और जोरसे भोंक के हमला बोलने लगा...
अंतमे पूजा गौरव के प्रतिकार करने के बावजूद बच्ची को कमरेमे ले आयी...बच्ची बुरी तरह सहम गयी थी..काँप-सी रही थी..उसे शांत करने के लिए स्तनपान के अलावा और कोई तरीका नही था...जैसे ही बच्ची दूध पीने लगी, गौरव ने  एक और तमाशा खड़ा कर दिय!
गौरव: " तुम तो एकदम गाँव की गंवार  औरतों की तरह इस चिपकाये फिरती  हो!इसे बोतल का दूध पिलाओ..मै देखता हूँ कैसे और कबतक नही पीती.."
उसने बच्ची को पलंग पे डलवाया और पूजाको आदेश दिया:" चलो लाओ दूध बनाके.."
पूजा: " आप तो जानते हैं की ये बोतल से नही पीती, थोड़ी और बड़ी होगी तब पीने लग जाय...!"
गौरव: " जो मै कह रहा हूँ, वैसा करो..अब लाओ ये बोतल मुझे पकडाओ ..तुम्हारेसे गर रोना धोना  बर्दाश्त न हो तो दूसरे कमरेमे चली जाओ!"
पूजने गौरव को बोतल पकड़ा दी और सहमी-सी वहीँ पे कोनेमे बैठ गयी..
बच्ची बदहवास-सी अपनी माँ को घूरे जा रही थी..उसकी ओर बाहें फैला रही थी...उसे बोतल से चिढ थी..पूरे एक घंटा ये तमाशा चला ! अंतमे पूजाने बच्ची को  गौरव से छीन लिया और कमरा अंदरसे बंद कर दिया.

उस रात नींद में न जाने वो कितनी बार डरके रोते हुए उठी...लेकिन मासूम का प्यार देखो...सुबह अपने पितापे दृष्टी पड़तेही खिल उठी..पूजा की आँखों से   चुपचाप नीर बहा..हर गुज़रता दिन न जाने कितनी चुनौतियाँ भरा होता!
सास अक्सर मिलने जुलने वालों से कहती." अरी बड़ी चीवट जात है..पहले दो लड्कोंको  खा गयी..इसे जो पैदा होना था..कुलक्षनी है.."
इस मासूम जान की ज़िम्मेदारी अब केवल पूजाकी थी..बीमारी, दावा दारू, हर चीज़ में अडंगा खड़ा हो जाता..इतनीसी बीमारी के लिए कोई डॉक्टर के जाता है?
क्रमश:

26 टिप्‍पणियां:

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

इतनी कठिनाइयों के बाद भी पूजा का धैर्य एक मिशाल है जल्द ही हार मान लेने वाली औरतों के लिए..एक सुंदर भावपूर्ण कहानी...अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा...धन्यवाद जी इस सुंदर कहानी के लिए..

दीपक 'मशाल' ने कहा…

man karta hai gaurav aur uske maa jaisa koi sach me ho to dauda dauda ke maaroon..

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

कोई शख्स इतना बेरहम भी हो सकता है!! पढ के रोंगटे खडे हो गये. बेहद मार्मिक और जीवंत चित्रण.

Mithilesh dubey ने कहा…

बढिया लिखा है आपने , कहानी के शुरुआत से लेकर अन्त तक आपने बाँध कर रखा , अगले अंक का इन्तजार रहेगा ।

ज्योति सिंह ने कहा…

kitni dukh ki baat hai ,man ki pida samjhne ki bajaye use kurdte hi rahte hai .
aankhen nam ho jaati hai naari ke aese durvyavhaar se .sneh ki paatr ki vajaye ,kupaatr ki bhagidaar ho jaati hai ,nirdosh ,abla kathghare me hi khadi rahti hai .
ek geet yaad aa raha hai ------
chal ri sajni ab kya soche
kajra na bah jaaye rote rote ,
babul pachhtaye aankhon ko malke
kahye diya pardesh tukde ko dil ke ......bahut nam

Basanta ने कहा…

So sad! A heartbreaking story!

mark rai ने कहा…

bahut hi badhiya....aise bhi hota hai..padh kar aankhon ke saamne saare drishy aa gaye...

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

wah wah wah...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मार्मिक .......... कहानी कई प्रश्न खड़े करती है .......... समाज की इस कुसंगति से कब निजात मिलेगी ...... प्रवाह में बह रही है कहानी ...... अगले अंक की प्रतीक्षा रहेगी ..... .......

Ravi Rajbhar ने कहा…

Wah bahut sunder....

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

kahani badti ja rahi hai jaise jaise puja ki preshania bhi kaisee kismat hai chahe kahani hi sahi..

R. Ramesh ने कहा…

thanks my dear friend for passing by:) sure u doing well..cheers..

Apanatva ने कहा…

Bahut hee marmik jeevan chitran.............
kya aisaa bhee hota hai ................ ?

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत सुन्दर कहानी
सामाजिक कुरीतियों समाज के पैरों की बेड़ियाँ बनी हुई है|
बहुत बहुत आभार...........

pragya ने कहा…

waiting....

Asha Joglekar ने कहा…

आज भी लडकियों के प्रति इतना दुर्व्यवहार हो रहा है हमारे समाज में । आपकी कहानी इस सत्य को बहुत भावपूर्ण शैली में रखती है ।

Unknown ने कहा…

बच्ची बदहवास-सी अपनी माँ को घूरे जा रही थी..उसकी ओर बाहें फैला रही थी...उसे बोतल से चिढ थी..पूरे एक घंटा ये तमाशा चला ! अंतमे पूजाने बच्ची को गौरव से छीन लिया और कमरा अंदरसे बंद कर दिया.

bahut achha likha hai aapne...

ज़मीर ने कहा…

Achi lagi yeh kadi .Ab pura padne ki iccha hai.

शमीम ने कहा…

यह भाग भी अचछा लगा . फिर से अगली कडी का इन्तज़ार ......

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

aaj aapke maadhyam se nayee vidha ke darshan mile ! saadhuvaad !

Urmi ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! शुरू से लेकर अंत तक आपने बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! बधाई!

दीपक 'मशाल' ने कहा…

shaq to mujhe pahle se hi ki ye koi kahani nahin... aur jaan kar bahut dukh hua ki kisee ne sach me itnee takleef uthaain aur itna atyachaar karne wala rakshas bhi koi tha ..

संहिता ने कहा…

कहानी के पात्र ,माँ और पति ,दोनो कितने कठोर है । दिल मे जरा भी दर्द नहीं

गौतम राजऋषि ने कहा…

सहज ही विश्वास नही होता कि लोग इतने क्रुर भी हो सकते हैं...खास कर गौरव को लेकर।

S R Bharti ने कहा…

Aapki kahaniyan bahut hi manoranjak tath gyaanvardhak hain.

S R Bharti ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है,
आपकी कहानी सत्य को बहुत भावपूर्ण शैली में रखती है ।
बधाई!