बुधवार, 1 सितंबर 2010

इन सितारों से आगे..5

सम्वेदना के स्वर ने कहा…
क्षमा जी...बीमार होने के कारण दो दिन से घर पर ही हूँ इसलिए बिखरे सितारे पूरा पढ गया... मुझे इसको पूरा पढ जाने के लिए दो बातों ने प्रेरित किया... पहला आपका ये कहना कि ये दुबारा आपने सिर्फ मेरे लिए लगाई है और दूसरा जो मैंने पहले भी कहा है कि आपकी सम्वेदनशीलता मुझे अपने करीब महसूस होती है...आज सारे एपिसोड्स पर एक समीक्षा रूपी प्रतिक्रिया दे रहा हूँ... एक, आपने यह कथामाला आत्मकथ्य शैली में लिखी है और जितनी बारीकी से घटनाक्रम लिखा गया है, वह तभी सम्भव है जब यह सारी दुर्घटनाएं स्वयम झेली हों. पूजा तमना की चारित्रिक विशेषताएँ भी आपके किरदार से मेल खाती हैं. लिहाजा हर स्थल पर यह प्रतीत होता है कि यह पूरा कथानक आपकी आत्मकथा है. अगर नहीं, तो आपका लेखन इतना जीवंत है कि आपने हर चरित्र को जैसे जीकर देखा है. दो, जीवन में मैंने भी कई ऐसे लोगों को देखा है जिनके विषय में कह सकते हैं कि दुर्भाग्य की जीती जागती मिसाल रहे हैं वो लोग. लेकिन पूजा की व्यथा सुनकर ऐसा लगता है कि दुर्भाग्य ने हर क़दम पर उसका दामन थाम रखा था. इतनी मुश्किलें, इतनी दुश्वारियाँ और इतनी तकलीफें कि खुद दुःख भी अपनी आँखें मूँद ले. और इतनी तकलीफें झेलकर भी कोई ज़िंदा हो, फिर वो पत्थर हो चुका होगा. मुश्किलें मुझपर पड़ी इतनी कि आसाँ हो गईं. लेकिन पूजा के लिए असानी जैसी कोई राह ही नहीं थी. पता नहीं किस काली कलम से अपनी किस्मत लिखवाकर आई थी वो.



सम्वेदना के स्वर ने कहा…
तीन, एक बहुत पुरानी कहावत है कि खराब सिक्के पुराने सिक्कों का चलन रोक देते हैं. बुराइयाँ ऐसे ऐसे रूप धरकर सामने आती हैं कि अच्छाइयों से ज़्यादा हसीन लगें. इतनी बुलंद आवाज़ में चीखती हैं कि सच्चाई की आवाज़ घुट जाए. और वही पूजा के साथ भी हुआ. ऐसा हर किसी के साथ होता है कभी न कभी. मेरे साथ भी हुआ. लेकिन हफ्ते, महीने भर के लिए. पूजा की बदकिस्मती का ये आलम कि सारीज़िंदगी चलता रहा ये खेल उसके साथ. चार, शादी का जो रिश्ता गौरव के साथ हुआ वो बुनियाद ही गलत थी. जो शादी सहानुभूति के भाव के साथ हो न कि प्यार के भाव के साथ, वो निभ नहीं सकती. समाज में ऐसे कई उदाहरण हैं. वो एक गलत फैसला सारी ज़िंदगी तबाह कर गया पूजा की. पाँच, यह बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है और उसके उत्तर की अपेक्षा भी करता हूँ. क्या सचमुच दुर्भाग्य पूजा के साथ इस तरह चिपका था कि एक साथ सारे उसके ख़िलाफ हो गए! उसके बच्चे, जिन्होने उसे अपने बचपन से देखा, उसकी गोद में पले बढे, उसकी बहन जो उसकी सुख दुख की गवाह थी, उसके नौकर नौकरानी, ड्राइवर, परिवार, समाज, दोस्त, रिश्तेदार, डॉक्टर, नर्स, सारे के सारे गौरव के पक्ष में हो गए ऐसा क्या नशा पिला दिया था गौरव ने. यह प्रश्न पूजा के सतीत्व से जुड़ा नहीं है, लेकिन गौरव के संदर्भ में एक ठोस प्रमाण है. आखिर ऐसी क्या कमी थी पूजा में कि तमाम अच्छाइयों के बाद भी उसका विरोध किया उसके अपनों ने. .क्षमा: पूजा के साथ जो लोग खिलाफ हो गए,उसका महत्त्व पूर्ण कारण था वह डॉक्टर.अलावा इसके गौरव का अपनी पत्नी बारे में नौकरों से पूछताछ करना...हर मुमकिन तरीकेसे पूजा को मानो नज़र क़ैद में रखना. उसकी गतिविधियों का अपनी सुविधा के अनुसार मतलब निकाल लेना. गौरव का मिज़ाज ही ऐसा था," जिसे तैश में खौफे खुदा न रहे!"उसे जो मतलब निकलना होता,निकलके एक पूजा के अलावा अन्यत्र हर जगह उसकी चर्चा कर बदनामी करना. उसने रिश्ते की गरिमा कभी समझी ही नही. वो चाहे जिससे विवाह करता,हश्र यही होता. शक ले डूबता.कई विवाह समझौते की बुनियाद पे होते हैं,लेकिन ज़रूरी नही की,हश्र ऐसा हो.इंसान गर परिपक्व होता है तो कुछ हदतक आपसी सामंजस्य बना लेनेमे सफल ज़रूर होता है.



सम्वेदना के स्वर ने कहा…
क्षमा जी.. यह आपकी अपनी कहानी हो न हो, कहानी कहने का अंदाज़ इसको अपना लेता है. आपका परिचय आपके ब्लॉग पर उपलब्ध नहीं है, फिर भी आपके बारे में जो अंदाज़ा मैंने लगाया था, वो बहुत हद तक सही निकला... और यह बात मैं आपकी इस शृंखला को पधने से पहले ही कह चुका था..ख़ैर उन बातों का कोई ताल्लुक नहीं इस बात से. अपना ई मेल देंगी, यदि आपत्ति न हो तो. सरिता दी ने भी आपसे मेल आई डी माँगा था. मेरा सुझव है कि आप मेरी यह टिप्पणी प्रकाशित न करें. अपने तक रखें और हो सके तो अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तरअवश्य दें. पुनश्चः “बाबुल की दुआएँ लेती जा” का असर देखा न आपने!! कितनी बदल जाती है दुनिया. मैंने अपनी इकलौती बहन की शादी में “बाबुल की दुआएँ” की जगह “काहे को ब्याही” बजवाया था. -सलिल इस मालिका का पुनः प्रकाशन 'संवेदना के स्वर' के लिए ख़ास तौर पे किया था...साथ,साथ अली साहब भी कुछ कड़ियाँ मिस कर गए थे.वे  कड़ी डर कड़ी पढ़ते और कथानक के साथ बह निकलते...  पूजा के साथ होते अन्याय को देख तमतमा उठते... आप लोगों का तहे दिलसे बार,बार शुक्रिया...डर असल मेरे पास अलफ़ाज़ नही हैं,की,मै अपनी भावनाओं को कैसे व्यक्त करूँ.आप सभी मेरे इस सफ़र के साथी और रहनुमा रहे. Dr.Bhawna ने कहा… सच में दिल दहला देने वाला सत्य पढ़कर मैं तो कल रात सो भी नहीं पाई, हद होती है इंसान के गिरने की, कितना सहा पूज़ा ने दर्द जब ज्यादा होता है जब अपने उस दर्द में नश्तर चुभाते हैं... 
भावनाजी  भी  लगातार  जुडी  रहीं  और और आपने देखा,किस क़दर भावुक होके टिप्पणियाँ देती रहीं! आप सभी के निरंतर रुण में रहूँगी! कमेंट्स तो खैर और अनगिनत थे,और सभी की शुक्रगुजार हूँ.समाहित उन कमेंट्स को किया है,जिनमे निरंतरता बनी रही. सच तो ये भी है की,इतने लम्बे अरसे तक निरंतरता बनाये रखना आसान नही होता. समाप्त कुछ तकनीकी समस्या है,की,मै चाह्के भी,और तमाम कोशिशों के बावजूद  para अलग नही कर पा रही हूँ!

15 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

हम्म!!किस्मत जान कसे लिखी जाती है...पढ़ रहे हैं..जारी रहें.

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये

उम्मतें ने कहा…

बडी सुन्दर टिप्पणियां हैं !

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

हिन्दी भारत की आत्मा ही नहीं, धड़कन भी है। यह भारत के व्यापक भू-भाग में फैली शिष्ट और साहित्यिक भषा है।

vandana gupta ने कहा…

यही तो औरत के जीवन की त्रासदी है सब कुछ् झेलती है फिर भी कटहरे मे खडी रहती है ता-उम्र्…………………इस बारीकी को जिस तरह क्षमा जी ने उकेरा है उसके लिये शब्दों मे व्यक्त करना असंभव है ये तो ओ ही समझ सकता है जिस पर बीती हो।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये

arvind ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी शृंखला है।
आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को श्री कृष्ण जन्म की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं!

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

अनोखा अंदाज़!! शुक्रिया, हमारी टिप्पणियों को जगह देने का...

अपनीवाणी ने कहा…

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वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बढिया है.

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बढिया है.

rashmi ravija ने कहा…

बहुत ही बढ़िया अंदाज़...बड़ी सार्थक और सुन्दर टिप्पणियाँ हैं...

रचना दीक्षित ने कहा…

बडी सुन्दर टिप्पणियां हैं अच्छी प्रस्तुति।

Urmi ने कहा…

शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

very nice...!

निर्मला कपिला ने कहा…

आतम कथानक शैली मे लिखी गयी सुन्दर कहानी। बधाई।