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"हर खुशी हो वहाँ तू जहाँ भी रहे,
चाँद धुन्दला सही,ग़म नही है मुझे,
चांदनी हो वहाँ तू जहाँ भी रहे,
रौशनी हो वहाँ तू जहाँ भी रहे.
poonam
Apanatva ने कहा… agalee kadee ke intzar me dhadkane bad gayee hai.....
- कहानी का यह भाग, मर्म स्पर्शी ! हमेशा की तरह !! जीवन मे पग पग पर समस्याए !!!! और कितना संघर्ष है , पूजा के जीवन मे??? यहां पति अपनी पत्नी की भावनाओ और उसकी परेशानियों को समझना ही नही चाहता है । पूजा के जीवन को जटिल बना कर रख दिया है । क्षमा जी , मेरे ब्लोग पर आपने सन्देश भेजा, इसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद!!! वास्तव मे पिछले कुछ दिनो मे मेरी अत्यधिक व्यस्तता के कारण ब्लोग पर कुछ लिख नही पायी हूँ । परंतु आपका ब्लोग नियमित रूप से पढ रही हूँ । इस मार्मिक कहानी ने मुझे बान्ध के रखा है । पुन: आशावादी हूँ ,कि अगली कडीयों मे शायद पूजा के जीवन मे खुशियो के पल आयेंगे।
- जहाँ तेरा मुखड़ा नही, वो आशियाँ मेरा नही, इस घरमे झाँकती किरणों मे उजाला नही! चीज़ हो सिर्फ़ कोई , उजाले जैसी, हो जोभी, मुझे तसल्ली नही! ...bahut marmik. samvedanshil....pataa nahi aap itna dard kahan se laati hain...vah... bahut sundar. मो सम कौन ? ने कहा… आपके ब्लाग पर पन्द्रह बीस दिन में एक बार ही आता हूं। इस तरह कम से कम तीन चार बार सस्पेंस में जाने से बच जाता हूं। आखिरी तीन चार कडि़यां तो बहुत ही धाराप्रवाह चली हैं। आज फ़िर आगे क्या होगा की उत्सुकता लेकर लौट रहा हूं। जब भी लगता है कि बस, अब बहुत हो चुका, अगली पोस्ट और बड़े सवाल अधूरे छोड़ जाती है। लिखती रहें आप, दर्द शेयर करने से कम होता है। संजय भास्कर ने कहा… लघुकथा सा लगा आपका यह संस्मरण! बहुत सुन्दर! VICHAAR SHOONYA ने कहा… मैं थोडा सा उलझन में हूँ की ये कहानी हैं या वास्तविकता? जो कुछ भी लिखा गया है वो वास्तविक सा लगता है और ऊपर लिखा भी है ek jivanee. तो क्या ये सब सच हैं या फिर एक शानदार कहानी? दिलीप ने कहा… oh behad maarmik ant ki baat rula gayi....bachche kabhi kabhi kuch aisa keh dete hain ki nayanon se ashru barbas hi nikal padte hain...maarmik rachna गौतम राजरिशी ने कहा… पूजा/तमन्ना की इस यात्रा में इब्तिदा से संग रहा और अचानक से ये आखिरी किश्त का ऐलान जैसे सोयी नींद से जगा गया है। मुझे लग रहा था कि अंत में सब ठीक ही हो जायेगा....लेकिन ये आखिरी कड़ी और ऊपर से संपादित। क्या कुछ बीती होगी आप पर, हम तो पढ़ कर एक छटांश भी भाँप न पाये होंगे। दर्द की ये दास्तान शायद जाने कितने दिनों तक हांट करते रहे मुझे। आप जहाँ भी हों मैम...क्या कहूँ...just wishing you all the best...may god give you all the strength वन्दना ने कहा… कभी कभी हालात इंसान के बस मे नही होते और उसे किसि न किसी मजबूरी के कारण रिश्तों को ढोना ही पड्ता है और उस पर भारतीय स्त्री वो तो हमेशा ही दूसरों के लिये जीती आयी है तो इस मानसिकता से कभी बाहर ही नही आ पाती और अपने बच्चों की खातिर तो कभी समाज की खातिर तो कभी पति की खातिर अनचाहे रिश्तों का बोझ ढोती चली जाती है ………………शायद पूजा का भी यही हाल रहा है ना चाहते हुये भी ज़हर के घूँट ज़िन्दगी पिलाती चली गयी और पूजा पीती चली गयी मगर कोई पूछे उसे इस ज़िन्दगी और रिश्तों से क्या मिला………खुद को मिटाकर सब पर लुटाकर क्या मिला? जिनकी खातिर उसने अपने जीवन की आहुति दी उसका सिला उसे क्या मिला? ना जाने कब नारी सिर्फ़ अपने लिये जीना सिखेगी या समाज के खोखले नियमो से लड सकेगी? ऐसे ना जाने कितने ही अनुत्तरित प्रश्न मूँह बाये खडे हैं अपने जवाब के इंतज़ार में।
- इस क़दर भावना प्रधान और तहे दिल से दी गयी टिप्पणीयों ने मेरा हौसला बनाये रखा ....साथ चल रहे कारवाँ का एहसास होता रहा...कैसे शुक्रिया अदा करूँ? अगली और अंतिम कड़ी में अली साहब और संवेदनाका संसार इनका अलग से शुक्रिया अदा करना है...इन्हीं चंद पाठकों के लिए इसका पुनः प्रकाशन किया...
- क्रमश:..
10 टिप्पणियां:
कथा पर प्रतिक्रिया देने वालों का शुक्रगुज़ार होने का आपका तरीका यूनिक है !
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
नेट से दूर रहने के कारण पूरी कहानी पढ नही पाई थी समय मिलते ही पढती हूँ। आभार।
क्षमा जी, टिप्पणियों के लिए शुक्र गुज़ारी कैसी ?
आपकी लेखनी अद्भूत रही | ये मेरा मानना है |
आज मैंने अपने ब्लॉग पर “क्षमा जी का ब्लॉग –एक अनुभव “ इस शीर्षक से पोस्ट डाली है | जरूर पढ़िएगा |
Tippni ka is tarah se upyog dekhna achcha laga
maaf karen bahut der se aapke blog par aaye...hamaari tippaniyon ko itna samman dene ki liye bahut bahut dhanyavaad.
अली जी के शब्दों में ही मेरे भी शब्द समाहित हैं
janmaashtmi ki mubaarak baad,,,,
majrooh likh rahe hain wo ahle wafaa kaa naam,
ham bhi khade huye hain gunahgaar ki tarah...
achi prastuti..
जिसने भी एक कड़ी भी पढ़ी वो क्षमा जी के ब्लॉग को पढने के लिये बार बार उनके ब्लॉग से जुड़ा । गौरव को न छोड़ने का निर्णय लेना ही तो कठिन काम था और उसी मुश्किल डगर पर ये किरदार चला , वैसे भी कोई अपने अतीत को काट कर अलग नहीं कर पाता। ऐसा लगता रहा कि जैसे व्यथा खुद लेखनी पकड़ कर जीवन्त हो उठी हो ।
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