( गतांक:इस प्रसंग से तो मै किसी तरह उभरी..मेरे भाई और बहनोई,दोनों ही ने गौरव को काफ़ी समझाया..इतने सालों में पहली बार,मेरे भाई ने अपना मूह खोला था..मुझे अपने घर और जीवन से रफा दफा करने की बात उस समय तो गौरव ने नही दोहराई....क्या ख़बर थी,की,एक और,इससे कहीँ अधिक भयानक प्रसंग मेरे इंतज़ार में था..?? अब आगे..)
कभी मुड़ के देखती हूँ, तो सोचती हूँ, अपने वैवाहिक जीवन को गर चंद पंक्तियों में बयाँ करना चाहूँ,तो कैसे करूँ? बहुत सरल है..गधे पे बैठे तो क्यों बैठे...उतरे तो क्यों उतरे..! अपना आत्मविश्वास कबका खो बैठी थी...सही गलत के फैसले,मै केवल अपने बलपे नही ले पाती थी..मुझे हर घटना को गौरव की निगाहों से देखना पड़ता..और उसमे सफल होना मुमकिन नही था...उसे किस वक़्त कौनसी बात अखरेगी यह शायद वह खुद भी नही बता सकता तो औरों की क्या कहूँ?
कभी फोन करके सलाह लेना चाहती तो वो कह देता, इतनी-सी बात के लिए तुम मेरा समय क्यों बरबाद करती हो? जो बात मुझे बहुत मामूली लगती और मै तय कर लेती तो मुझे सुनना पड़ता, मेरी सलाह लेना तुम्हें ज़रूरी नही लगा? इतनी बड़ी बात हो गयी और मुझे ख़बर ही नही?
फोनवाली घटना को हुए चंद माह गुज़रे..उस घटना के सदमे से, मेरे एक हफ्ते के भीतर नब्बे प्रतिशत बाल झड गए थे. उसकी ट्रीटमेंट के लिए मैंने एक क्लिनिक में जाना शुरू किया था..वहाँ के सभी स्टाफ के साथ मै बहुत घुलमिल गयी थी.
ट्रीटमेंट के दौरान वहाँ की डॉक्टर ने मुझे बताया:" आप यहाँ बहुत popular हो गयीं हैं ! आपके लिए एक surprise तोहफा है!"
शहर के एक मशहूर beauty पार्लर का गिफ्ट voucher था यह...! मै कभी पार्लर तो जाती नही थी..लेकिन सोचा,किसी दिन चल के सलाह लूँ की, बचे हुए केशों की रचना कैसे की जाये! मुझे हमेशा जूड़ा बनाने की आदत थी..!लेकिन उसका मुहूरत निकल नही पा रहा था.
एक सड़क दुर्घटना के कारण मुझे अचानक अस्पताल में भरती होना पड़ गया..इत्तेफाक़न, मेरा भाई शहर में मौजूद था..साथ हो लिया. एक शल्य चिकित्चा के बाद मुझे चौबीस घंटे ICU में रखा गया..उसने किसी तरह एक प्राइवेट नर्स का इंतज़ाम किया..रात तो गुज़र गयी...सुबह होने पर, चाय-नाश्ते के बहाने जो खिसक गयी तो देर शामतक उसका पता ही नही चला..खैर! मुझे प्राइवेट वार्ड में ले जाने से पहले x-ray के लिए ले जाया गया..वहाँ से कमरे में..
मेरा भाई रातभर मेरे कमरे में रुका रहा..सुबह कमरे को ताला लगा के उसने चाभी काउंटर पे पकड़ा दी..जब मुझे कमरे के सामने लाया गया तो कमरा खुला था! अन्दर प्रवेश करते ही देखा की, वह नर्स और मेरा ड्राइवर सोफे पे विराजमान थे और मेरे मोबाइल फोन के साथ कुछ छेड़छाड़ चली थी..मुझे देखते ही सकपका के ड्राइवर ने फोन मेरी साथ वाली टेबल पे रख दिया..उस वक़्त किसी को कुछ कहने की शक्ती मुझ में नही थी. वैसे भी मुझे इस बात का गुस्सा अधिक था,की, यह दोनों पूरा दिन मेरे पास फटके ही नही..
अगले दिन गौरव कुछ देर के लिए आके लौट गया..मुझे अस्पताल में हफ्ता भर रहना पडा. घर लौटी..कमजोरी महसूस हो रही थी..हर थोड़ी देरसे मुझे लेट जाना पड़ता..खैर! कुछ डेढ़ माह के बाद एक शादी में शरीक होने मुझे गौरव के पास जाना था.
जाने से दो तीन दिन पूर्व मैंने अपना नेटपे डाला हुआ प्रोफाइल खोला..इरादा था,की,गर कुछ बेहुदे कमेंट्स आए हों तो उन्हें डिलीट कर दूं...देखा तो एक कमेन्ट था," आप कहाँ हैं मोह्तरेमा?"
नाम और तसवीर तो थी,पर मुझे कुछ याद नही आ रहा था..मैंने उस व्यक्ती का प्रोफाइल खोला...वहाँ उसका परिचय था..अभिनय का शौक़ीन ..फ़िल्मी दुनिया में पैर ज़माने की कोशिश चल रही थी..
जवाब में मैंने लिखा:" मै बहुत कम अपना प्रोफाइल खोलती हूँ,इसलिए देर से जवाब दे रही हूँ..अगले माह मै स्वयं एक फिल्म making का course करने जा रही हूँ..देखती हूँ क्या हश्र होता है!"( इस course के बारे में मैंने गौरव से संमती ले ली थी).
वो on लाइन था..उसका तुरंत जवाब आया:" अरे वाह! एक बात और..मैंने आपका कथा संग्रह पढ़ा! आप visualise बहुत अच्छा करती हैं..एक के बाद एक तसवीर खींची जाती है! मुझे तो आपसे प्रत्यक्ष भेंट करने का मन कर रहा है! मुझे यक़ीन है,की,आप स्क्रिप्ट writing और स्क्रीन प्ले बहुत अच्छा लिख सकेंगी ! मै खुद एक भोजपुरी फिल्म के साथ जुड़ा हूँ,और स्क्रिप्ट writer खोजने का काम मुझे सौंपा गया है! "
मेरे प्रोफाइल पर से मैंने अपने शहर का नाम हटा दिया था! लेकिन मेरी किताब के पिछले पन्ने पे मेरे बारे में जानकारी थी...यह बात मुझे याद नही रही !
मैंने जवाब में लिखा:" अरे भाई! आप क्यों मुंबई आने लगे?"
उसने लिखा :" मुंबई? आप मुंबई में रहती हैं?"
मै:" हाँ..!
वो :" पर आपकी किताब के पिछले पन्नेपर तो कुछ और लिखा हुआ है! आप घबराईये मत! आपका अन्य कोई पता मेरे पास नही है! बिना इजाज़त के मै आप तक नही पहुँच सकता!"
मै शर्मिन्दा ज़रूर हुई..! पर उसे स्क्रैप पे लिखने के लिए मैंने एकदम से रोक दिया! मेरे कामसे जुडी हुई इ-मेल ID उसे दी और लिखा:" मै अब यह सब डिलीट करने जा रही हूँ..अपने scrap पर से भी यह सब संवाद कृपया हटा दें!"
उसी शाम,अपना नाम बताते हुए,एक sms आया.." माफ़ करें! मैंने यह नंबर आपके प्रोफाइल पर से हासिल किया..हो सकता है, कुछ अन्य लोगों ने भी लिख लिया हो! जब तक आप इजाज़त न दें,मै आपको फोन नही करूँगा."
मैंने पढ़ लिया पर उसका कोई जवाब नही दिया.
चंद रोज़ बाद मै गौरव के पास चली गयी. जिस दिन समारोह था,उसी दिन शाम को मेरे मोबाइल पे एक sms आया. कुछ संता बंता का घिसा पिटा जोक!
अचानक गौरव ने मेरे हाथों से मोबाइल छीन लिया..और कुर्सी पे बैठ, उसके विविध बटन दबाने लगा. मै कुछ देरके लिए बिस्तर पे लेट गयी. तक़रीबन आधे घंटे के बाद मैंने उससे पूछा:" आप क्या कर रहे हैं ?"
गौरव :" देख रहा हूँ, इसमें कौनसी सुविधाएँ उपलब्ध हैं..."
मै खामोश रही.
तीन चार दिनों बाद मै पुनश्च बंगलौर लौट गयी.लौटे ही मेरे ड्राइवर ने छुट्टी की माँग की.गौरव के पास .जाने से पहले वो तक़रीबन हफ्ते भर की छुट्टे ले चुका था. वो बदतमीज़ी भी हदसे अधिक करने लगा था. मैंने उसे काम परसे हटा दिया..कई बार मुझसे बिना कहे, गाडी लेके अपने परिवार के कामों के ख़ातिर निकल जाया करता..बरदाश्त की भी एक सीमा होती है.....उसके पश्च्यात जब मैंने गाडी में पेट्रोल भरा तो पता चला की,वो हर बार मुझ से ३०० रुपये अधिक लेता रहा..यह सब सुन के भी,उसे हटाने पर गौरव बहुत नाराज़ हो गया..मेरी समझ में न आया,की,आखिर ऐसी भी क्या बात है जो मुझे ही दोष दिया जा रहा है..?
एक हफ्ते के पश्च्यात मुझे पास ही के एक शहर में,रोटरी द्वारा, महिला दिवस के आयोजन में शामिल होने का न्योता था. प्रमुख अतिथी के हैसियत से मुझे 'भाषण' देनेके लिए कहा गया था,पर मैंने इनकार करते हुए सवाल जवाब के ज़रिये, एक संवाद स्थापित करने की इच्छा ज़ाहिर की. वहाँ जाने के लिए तो मैंने एक ड्राइवर का इंतज़ाम कर दिया..माँ से बात हुई,तो उन्हों ने गाँव से एक ड्राइवर भेजने की बात कही. यह लड़का हमारे खेतों पढ़ी पला बढ़ा था..
अपने मनोवैज्ञानिक को मै हर बात बता दिया करती थी. यह भी बता दी. महिला दिवस का आयोजन बढ़िया रहा. स्थानिक अखबारों ने आयोजन को सचित्र सराहा. किसीने वहाँ से चलते समय एक अखबार मुझे थमा दिया.
मै बहुत जल्दी में लौट आयी. अमन का अगले दिन जन्मदिन था. उसका एक मित्र बंगलौर से वहाँ जानेवाला था. अमन ने मेरे हाथों बने केक तथा पेस्ट्रीज की माँग की थी..मैंने सहर्ष स्वीकार कर ली थी...घर पहुँच पूरी रात मै उस काम में जुटी रही..थोड़ा अधिक बन गया था..मैंने फ्रिज में रख दिया.
अगले दिन गौरव से पूछा:" कैसा लगा केक?"
गौरव:" मेरे लिए बचा ही नही.."
मै" कमाल है! आपने अपने लाल को झाड़ा नही? एक टुकडा बचा के नही रख सकता था!"
गौरव:" खैर..मै इन बातों को कोई तूल नही देना चाहता..हर कोई अपनी मर्जी का मालिक है...!"
बाद में मै मनही मन ख़ुश हुए की, केक और पेस्ट्रीज बचे हैं. गर अगले तीन या चार दिनों में गौरव आया,तो उसे खिला सकती हूँ!
शाम को उस प्रोफाइल वाले लड़के की ओर से एक और sms मुझे मिला. वो किसी काम से बंगलौर आनेवाला था. चाहता था,की,मै वाकई स्क्रिप्ट लिखने की ज़िम्मेदारी लूँ..उसने एक इ-मेल भेजी थी, इस मुतल्लक..और पढने की इल्तिजा की. मैंने पढ़ के अपने डॉक्टर को भी सब कुछ बताया. मन ही मन मुझे विश्वास नही हो रहा था,की, मुझे वाक़ई ऐसा मौक़ा मिल रहा है..बात निश्चित होने तक मैंने चुप्पी साध ली..
उस दरमियान गौरव भी आया. अगले दिन रात के भोजन के बाद मैंने रखे हुए व्यंजन परोसके उसे चकित करने की सोच रखी..लेकिन दोपहर के भोजन के बाद जब मै रसोई का छुटपुट काम निपटा रही थी...अचानक आके गौरव ने कहा:" मै निकल रहा हूँ.."
मै: " अरे? आप तो कल जानेवाले थे! "
गौरव:" मै अभी ही जा रहा हूँ.."
और वह निकल गया ! मै दंग रह गयी..!
अगले दिन सोमवार था..इस दिन मेरे डॉक्टर आया करते थे. रविवार की शाम मुझे अपने hair क्लिनिक से फोन आया..:' मैडम आप कल चलिए ना पार्लर! वरना vouchar की तारीख टल जायेगी!"
मैंने हाँ कर दी..उस दिन वह लड़का भी आनेवाला था..उसे अवि करके संबोधित करते हैं...पहले तो मैंने मना कर दिया था..जब गौरव चला गया तो मैंने उसे समय दे दिया.
सुबह पार्लर से उस लडकी,प्रिया के साथ लौटते हुए,मैंने अपने डॉक्टर को pick up कर लिया..मेरे नैहर से आया नया ड्राइवर था..उसे रास्तों की जानकारी क़तई भी नही थी.हर हाल में मुझे उसके साथ जाना ही जाना था...वह लडकी, प्रिया मेरे साथ थी..और मेरे लिए फूलों का गजरा ले आयी थी...मैंने हँसते हुए अपने डॉक्टर से कहा, मेरे बालों से तीन गुना बड़ा यह गजरा है..!"
घर पहुँच प्रिया बैठक में बैठ गयी और मै डॉक्टर से बात चीत करने लगी..अविके बारेमे भी उन्हें बताया...यह भी बताया,की,मैंने अभी घर में किसी को बताया नही है..सब मेरा मज़ाक उड़ाने लग जायेंगे...कुछ बात बने तो कहूँ..!"
डॉक्टर चलने लगे तो मै और प्रिया उनके साथ हो लिए..अवि को रेलवे स्थानक से लाना था..वही समस्या..ड्राइवर को स्थानक पता नही था..अवि को रास्ते पता नही थे..फिर भी उसने मुझे आने से रोकना चाहा..पर समय का भी अभाव था..डॉक्टर के सामने ही मैंने उसे फोन करके बता दिया,की, मै लाल साड़ी और काला ब्लाउज पहने हुए हूँ..
स्थानक पे अवि आसानी से मिल गया..घर जाते समय बोला:" मेरा बंगलौर आना बड़ा lucky साबित हो रहा है..मुझे एक छोड़ आठ फिल्मों का ऑफर है!"
मै:" मुबारक हो!"
हमारी बिल्डिंग पे पहुँचे तो नीचे गौरव का एक सह्कर्मी खडा मिला..वह गौरव से मिलने जा रहा था..गौरव ने अपना golf किट तथा टेनिस racket मंगवाया था...मै उसे लेके ऊपर आयी...सारा सामान पकड़ा दिया..उसके जाने के कुछ ही मिनटों में मैंने देखा,की, उसने टेनिस racket तो कुर्सी पे ही छोड़ दिया था...मैंने तुरंत उसे फोन लगाने की कोशिश की..लेकिन लगाही नही...गौरव को फोन कर मैंने बताया,की, racket यहीं रह गया..
दोपहर के दो बजने वाले थे..मैंने पिछली रात का ही रहा सहा खाना परोस दिया...जूली ने उस दिन अचानक छुट्टी माँगी थी..खैर! पिछली रात मुझे एक इंजेक्शन लेना पड़ गया था...डॉक्टर ने दवाई में भी हेरफेर किया था...मुझे बेहद नींद आने लगी..अंत में मैंने अवि से कह दिया:' मुझे कुछ देर सोना ही पडेगा.."
उसे ड्राइवर के साथ कहीँ घूमने भी नही भेज सकती थी,क्योंकि उसे रास्तेही पता नही थे ! अवि के आगे मैंने कुछ किताबें रख दी.ड्राइवर से कहा,की, फोन तथा दरवाज़े की घंटी की ओर ध्यान रखे..और अपना कमरा बंद कर सो गयी..
साढ़े चार पाँच बजे के करीब दरवाज़े पे बज रही घंटी से मेरी आँख खुली...कमरे से बाहर निकलते ही मैंने ड्राइवर को आवाज़ दी..वह भी सो गया था...जब तक आया तब तक मैंने दरवाज़ा खोल दिया..और अपने सामने खड़े लोगों को देख हैरान रह गयी...! लोग क्या, अब जब सोचती हूँ,तो एक भयानक तूफ़ान मेरे द्वार पे खडा था...मेरा द्वार? मेरा अपना कोई द्वार या घर था?
क्रमश:
कभी मुड़ के देखती हूँ, तो सोचती हूँ, अपने वैवाहिक जीवन को गर चंद पंक्तियों में बयाँ करना चाहूँ,तो कैसे करूँ? बहुत सरल है..गधे पे बैठे तो क्यों बैठे...उतरे तो क्यों उतरे..! अपना आत्मविश्वास कबका खो बैठी थी...सही गलत के फैसले,मै केवल अपने बलपे नही ले पाती थी..मुझे हर घटना को गौरव की निगाहों से देखना पड़ता..और उसमे सफल होना मुमकिन नही था...उसे किस वक़्त कौनसी बात अखरेगी यह शायद वह खुद भी नही बता सकता तो औरों की क्या कहूँ?
कभी फोन करके सलाह लेना चाहती तो वो कह देता, इतनी-सी बात के लिए तुम मेरा समय क्यों बरबाद करती हो? जो बात मुझे बहुत मामूली लगती और मै तय कर लेती तो मुझे सुनना पड़ता, मेरी सलाह लेना तुम्हें ज़रूरी नही लगा? इतनी बड़ी बात हो गयी और मुझे ख़बर ही नही?
फोनवाली घटना को हुए चंद माह गुज़रे..उस घटना के सदमे से, मेरे एक हफ्ते के भीतर नब्बे प्रतिशत बाल झड गए थे. उसकी ट्रीटमेंट के लिए मैंने एक क्लिनिक में जाना शुरू किया था..वहाँ के सभी स्टाफ के साथ मै बहुत घुलमिल गयी थी.
ट्रीटमेंट के दौरान वहाँ की डॉक्टर ने मुझे बताया:" आप यहाँ बहुत popular हो गयीं हैं ! आपके लिए एक surprise तोहफा है!"
शहर के एक मशहूर beauty पार्लर का गिफ्ट voucher था यह...! मै कभी पार्लर तो जाती नही थी..लेकिन सोचा,किसी दिन चल के सलाह लूँ की, बचे हुए केशों की रचना कैसे की जाये! मुझे हमेशा जूड़ा बनाने की आदत थी..!लेकिन उसका मुहूरत निकल नही पा रहा था.
एक सड़क दुर्घटना के कारण मुझे अचानक अस्पताल में भरती होना पड़ गया..इत्तेफाक़न, मेरा भाई शहर में मौजूद था..साथ हो लिया. एक शल्य चिकित्चा के बाद मुझे चौबीस घंटे ICU में रखा गया..उसने किसी तरह एक प्राइवेट नर्स का इंतज़ाम किया..रात तो गुज़र गयी...सुबह होने पर, चाय-नाश्ते के बहाने जो खिसक गयी तो देर शामतक उसका पता ही नही चला..खैर! मुझे प्राइवेट वार्ड में ले जाने से पहले x-ray के लिए ले जाया गया..वहाँ से कमरे में..
मेरा भाई रातभर मेरे कमरे में रुका रहा..सुबह कमरे को ताला लगा के उसने चाभी काउंटर पे पकड़ा दी..जब मुझे कमरे के सामने लाया गया तो कमरा खुला था! अन्दर प्रवेश करते ही देखा की, वह नर्स और मेरा ड्राइवर सोफे पे विराजमान थे और मेरे मोबाइल फोन के साथ कुछ छेड़छाड़ चली थी..मुझे देखते ही सकपका के ड्राइवर ने फोन मेरी साथ वाली टेबल पे रख दिया..उस वक़्त किसी को कुछ कहने की शक्ती मुझ में नही थी. वैसे भी मुझे इस बात का गुस्सा अधिक था,की, यह दोनों पूरा दिन मेरे पास फटके ही नही..
अगले दिन गौरव कुछ देर के लिए आके लौट गया..मुझे अस्पताल में हफ्ता भर रहना पडा. घर लौटी..कमजोरी महसूस हो रही थी..हर थोड़ी देरसे मुझे लेट जाना पड़ता..खैर! कुछ डेढ़ माह के बाद एक शादी में शरीक होने मुझे गौरव के पास जाना था.
जाने से दो तीन दिन पूर्व मैंने अपना नेटपे डाला हुआ प्रोफाइल खोला..इरादा था,की,गर कुछ बेहुदे कमेंट्स आए हों तो उन्हें डिलीट कर दूं...देखा तो एक कमेन्ट था," आप कहाँ हैं मोह्तरेमा?"
नाम और तसवीर तो थी,पर मुझे कुछ याद नही आ रहा था..मैंने उस व्यक्ती का प्रोफाइल खोला...वहाँ उसका परिचय था..अभिनय का शौक़ीन ..फ़िल्मी दुनिया में पैर ज़माने की कोशिश चल रही थी..
जवाब में मैंने लिखा:" मै बहुत कम अपना प्रोफाइल खोलती हूँ,इसलिए देर से जवाब दे रही हूँ..अगले माह मै स्वयं एक फिल्म making का course करने जा रही हूँ..देखती हूँ क्या हश्र होता है!"( इस course के बारे में मैंने गौरव से संमती ले ली थी).
वो on लाइन था..उसका तुरंत जवाब आया:" अरे वाह! एक बात और..मैंने आपका कथा संग्रह पढ़ा! आप visualise बहुत अच्छा करती हैं..एक के बाद एक तसवीर खींची जाती है! मुझे तो आपसे प्रत्यक्ष भेंट करने का मन कर रहा है! मुझे यक़ीन है,की,आप स्क्रिप्ट writing और स्क्रीन प्ले बहुत अच्छा लिख सकेंगी ! मै खुद एक भोजपुरी फिल्म के साथ जुड़ा हूँ,और स्क्रिप्ट writer खोजने का काम मुझे सौंपा गया है! "
मेरे प्रोफाइल पर से मैंने अपने शहर का नाम हटा दिया था! लेकिन मेरी किताब के पिछले पन्ने पे मेरे बारे में जानकारी थी...यह बात मुझे याद नही रही !
मैंने जवाब में लिखा:" अरे भाई! आप क्यों मुंबई आने लगे?"
उसने लिखा :" मुंबई? आप मुंबई में रहती हैं?"
मै:" हाँ..!
वो :" पर आपकी किताब के पिछले पन्नेपर तो कुछ और लिखा हुआ है! आप घबराईये मत! आपका अन्य कोई पता मेरे पास नही है! बिना इजाज़त के मै आप तक नही पहुँच सकता!"
मै शर्मिन्दा ज़रूर हुई..! पर उसे स्क्रैप पे लिखने के लिए मैंने एकदम से रोक दिया! मेरे कामसे जुडी हुई इ-मेल ID उसे दी और लिखा:" मै अब यह सब डिलीट करने जा रही हूँ..अपने scrap पर से भी यह सब संवाद कृपया हटा दें!"
उसी शाम,अपना नाम बताते हुए,एक sms आया.." माफ़ करें! मैंने यह नंबर आपके प्रोफाइल पर से हासिल किया..हो सकता है, कुछ अन्य लोगों ने भी लिख लिया हो! जब तक आप इजाज़त न दें,मै आपको फोन नही करूँगा."
मैंने पढ़ लिया पर उसका कोई जवाब नही दिया.
चंद रोज़ बाद मै गौरव के पास चली गयी. जिस दिन समारोह था,उसी दिन शाम को मेरे मोबाइल पे एक sms आया. कुछ संता बंता का घिसा पिटा जोक!
अचानक गौरव ने मेरे हाथों से मोबाइल छीन लिया..और कुर्सी पे बैठ, उसके विविध बटन दबाने लगा. मै कुछ देरके लिए बिस्तर पे लेट गयी. तक़रीबन आधे घंटे के बाद मैंने उससे पूछा:" आप क्या कर रहे हैं ?"
गौरव :" देख रहा हूँ, इसमें कौनसी सुविधाएँ उपलब्ध हैं..."
मै खामोश रही.
तीन चार दिनों बाद मै पुनश्च बंगलौर लौट गयी.लौटे ही मेरे ड्राइवर ने छुट्टी की माँग की.गौरव के पास .जाने से पहले वो तक़रीबन हफ्ते भर की छुट्टे ले चुका था. वो बदतमीज़ी भी हदसे अधिक करने लगा था. मैंने उसे काम परसे हटा दिया..कई बार मुझसे बिना कहे, गाडी लेके अपने परिवार के कामों के ख़ातिर निकल जाया करता..बरदाश्त की भी एक सीमा होती है.....उसके पश्च्यात जब मैंने गाडी में पेट्रोल भरा तो पता चला की,वो हर बार मुझ से ३०० रुपये अधिक लेता रहा..यह सब सुन के भी,उसे हटाने पर गौरव बहुत नाराज़ हो गया..मेरी समझ में न आया,की,आखिर ऐसी भी क्या बात है जो मुझे ही दोष दिया जा रहा है..?
एक हफ्ते के पश्च्यात मुझे पास ही के एक शहर में,रोटरी द्वारा, महिला दिवस के आयोजन में शामिल होने का न्योता था. प्रमुख अतिथी के हैसियत से मुझे 'भाषण' देनेके लिए कहा गया था,पर मैंने इनकार करते हुए सवाल जवाब के ज़रिये, एक संवाद स्थापित करने की इच्छा ज़ाहिर की. वहाँ जाने के लिए तो मैंने एक ड्राइवर का इंतज़ाम कर दिया..माँ से बात हुई,तो उन्हों ने गाँव से एक ड्राइवर भेजने की बात कही. यह लड़का हमारे खेतों पढ़ी पला बढ़ा था..
अपने मनोवैज्ञानिक को मै हर बात बता दिया करती थी. यह भी बता दी. महिला दिवस का आयोजन बढ़िया रहा. स्थानिक अखबारों ने आयोजन को सचित्र सराहा. किसीने वहाँ से चलते समय एक अखबार मुझे थमा दिया.
मै बहुत जल्दी में लौट आयी. अमन का अगले दिन जन्मदिन था. उसका एक मित्र बंगलौर से वहाँ जानेवाला था. अमन ने मेरे हाथों बने केक तथा पेस्ट्रीज की माँग की थी..मैंने सहर्ष स्वीकार कर ली थी...घर पहुँच पूरी रात मै उस काम में जुटी रही..थोड़ा अधिक बन गया था..मैंने फ्रिज में रख दिया.
अगले दिन गौरव से पूछा:" कैसा लगा केक?"
गौरव:" मेरे लिए बचा ही नही.."
मै" कमाल है! आपने अपने लाल को झाड़ा नही? एक टुकडा बचा के नही रख सकता था!"
गौरव:" खैर..मै इन बातों को कोई तूल नही देना चाहता..हर कोई अपनी मर्जी का मालिक है...!"
बाद में मै मनही मन ख़ुश हुए की, केक और पेस्ट्रीज बचे हैं. गर अगले तीन या चार दिनों में गौरव आया,तो उसे खिला सकती हूँ!
शाम को उस प्रोफाइल वाले लड़के की ओर से एक और sms मुझे मिला. वो किसी काम से बंगलौर आनेवाला था. चाहता था,की,मै वाकई स्क्रिप्ट लिखने की ज़िम्मेदारी लूँ..उसने एक इ-मेल भेजी थी, इस मुतल्लक..और पढने की इल्तिजा की. मैंने पढ़ के अपने डॉक्टर को भी सब कुछ बताया. मन ही मन मुझे विश्वास नही हो रहा था,की, मुझे वाक़ई ऐसा मौक़ा मिल रहा है..बात निश्चित होने तक मैंने चुप्पी साध ली..
उस दरमियान गौरव भी आया. अगले दिन रात के भोजन के बाद मैंने रखे हुए व्यंजन परोसके उसे चकित करने की सोच रखी..लेकिन दोपहर के भोजन के बाद जब मै रसोई का छुटपुट काम निपटा रही थी...अचानक आके गौरव ने कहा:" मै निकल रहा हूँ.."
मै: " अरे? आप तो कल जानेवाले थे! "
गौरव:" मै अभी ही जा रहा हूँ.."
और वह निकल गया ! मै दंग रह गयी..!
अगले दिन सोमवार था..इस दिन मेरे डॉक्टर आया करते थे. रविवार की शाम मुझे अपने hair क्लिनिक से फोन आया..:' मैडम आप कल चलिए ना पार्लर! वरना vouchar की तारीख टल जायेगी!"
मैंने हाँ कर दी..उस दिन वह लड़का भी आनेवाला था..उसे अवि करके संबोधित करते हैं...पहले तो मैंने मना कर दिया था..जब गौरव चला गया तो मैंने उसे समय दे दिया.
सुबह पार्लर से उस लडकी,प्रिया के साथ लौटते हुए,मैंने अपने डॉक्टर को pick up कर लिया..मेरे नैहर से आया नया ड्राइवर था..उसे रास्तों की जानकारी क़तई भी नही थी.हर हाल में मुझे उसके साथ जाना ही जाना था...वह लडकी, प्रिया मेरे साथ थी..और मेरे लिए फूलों का गजरा ले आयी थी...मैंने हँसते हुए अपने डॉक्टर से कहा, मेरे बालों से तीन गुना बड़ा यह गजरा है..!"
घर पहुँच प्रिया बैठक में बैठ गयी और मै डॉक्टर से बात चीत करने लगी..अविके बारेमे भी उन्हें बताया...यह भी बताया,की,मैंने अभी घर में किसी को बताया नही है..सब मेरा मज़ाक उड़ाने लग जायेंगे...कुछ बात बने तो कहूँ..!"
डॉक्टर चलने लगे तो मै और प्रिया उनके साथ हो लिए..अवि को रेलवे स्थानक से लाना था..वही समस्या..ड्राइवर को स्थानक पता नही था..अवि को रास्ते पता नही थे..फिर भी उसने मुझे आने से रोकना चाहा..पर समय का भी अभाव था..डॉक्टर के सामने ही मैंने उसे फोन करके बता दिया,की, मै लाल साड़ी और काला ब्लाउज पहने हुए हूँ..
स्थानक पे अवि आसानी से मिल गया..घर जाते समय बोला:" मेरा बंगलौर आना बड़ा lucky साबित हो रहा है..मुझे एक छोड़ आठ फिल्मों का ऑफर है!"
मै:" मुबारक हो!"
हमारी बिल्डिंग पे पहुँचे तो नीचे गौरव का एक सह्कर्मी खडा मिला..वह गौरव से मिलने जा रहा था..गौरव ने अपना golf किट तथा टेनिस racket मंगवाया था...मै उसे लेके ऊपर आयी...सारा सामान पकड़ा दिया..उसके जाने के कुछ ही मिनटों में मैंने देखा,की, उसने टेनिस racket तो कुर्सी पे ही छोड़ दिया था...मैंने तुरंत उसे फोन लगाने की कोशिश की..लेकिन लगाही नही...गौरव को फोन कर मैंने बताया,की, racket यहीं रह गया..
दोपहर के दो बजने वाले थे..मैंने पिछली रात का ही रहा सहा खाना परोस दिया...जूली ने उस दिन अचानक छुट्टी माँगी थी..खैर! पिछली रात मुझे एक इंजेक्शन लेना पड़ गया था...डॉक्टर ने दवाई में भी हेरफेर किया था...मुझे बेहद नींद आने लगी..अंत में मैंने अवि से कह दिया:' मुझे कुछ देर सोना ही पडेगा.."
उसे ड्राइवर के साथ कहीँ घूमने भी नही भेज सकती थी,क्योंकि उसे रास्तेही पता नही थे ! अवि के आगे मैंने कुछ किताबें रख दी.ड्राइवर से कहा,की, फोन तथा दरवाज़े की घंटी की ओर ध्यान रखे..और अपना कमरा बंद कर सो गयी..
साढ़े चार पाँच बजे के करीब दरवाज़े पे बज रही घंटी से मेरी आँख खुली...कमरे से बाहर निकलते ही मैंने ड्राइवर को आवाज़ दी..वह भी सो गया था...जब तक आया तब तक मैंने दरवाज़ा खोल दिया..और अपने सामने खड़े लोगों को देख हैरान रह गयी...! लोग क्या, अब जब सोचती हूँ,तो एक भयानक तूफ़ान मेरे द्वार पे खडा था...मेरा द्वार? मेरा अपना कोई द्वार या घर था?
क्रमश:
5 टिप्पणियां:
कहानी अच्छी चल रही है शस्त्र क्रिया को शल्य क्रिया कर लें ऐसा मुझे लगता है
इसे दोबारा पढ़ रहा हूं बस कुछ पंक्तियां अफ़सोस के साथ कापी पेस्ट कर रहा हूं !
"कभी फोन करके सलाह लेना चाहती तो वो कह देता, इतनी-सी बात के लिए तुम मेरा समय क्यों बरबाद करती हो? जो बात मुझे बहुत मामूली लगती और मै तय कर लेती तो मुझे सुनना पड़ता, मेरी सलाह लेना तुम्हें ज़रूरी नही लगा? इतनी बड़ी बात हो गयी और मुझे ख़बर ही नही?"
hmm!! badhiya...........lekin iss post me aap thori jaldi me lag rahi hain...........:)
anyway kahani ko khatm kar ke hi rukenge:D
अपने वैवाहिक जीवन को गर चंद पंक्तियों में बयाँ करना चाहूँ,तो कैसे करूँ? बहुत सरल है..गधे पे बैठे तो क्यों बैठे...उतरे तो क्यों उतरे..!
:)
apna himalaya gaman hi sahi rahega...
बेहतर...
लगातार पढ़ना चल रहा है...
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