शनिवार, 7 अगस्त 2010

बिखरे सितारे भाग ३:क्या करूँ?क्या करूँ?


( गतांक:शाम के साढ़े चार पाँच बजे के करीब दरवाज़े पे बज रही घंटी से मेरी आँख खुली...कमरे से बाहर निकलते ही मैंने ड्राइवर को आवाज़ दी..वह भी सो गया था...जब तक आया तब तक मैंने दरवाज़ा खोल दिया..और अपने सामने खड़े लोगों को देख हैरान रह गयी...! लोग क्या, अब जब सोचती हूँ,तो एक भयानक तूफ़ान मेरे द्वार पे खडा था...मेरा द्वार? मेरा अपना कोई द्वार या घर था?
अब आगे...)

दरवाज़ा खोला तो दंग रह गयी..सामने खड़े थे,गौरव तथा मेरे भाई   और बहन...! कुछ आकलन हो उससे पहले और कुछ लोग अन्दर आए..कुछ गौरव के सह्कर्मी,कुछ हम लोगों के दोस्त, कुछ पुलिस विभाग के लोग...बातों और घटनाओं का सिलसिला, सही क्रम से तो याद नही...कोई कुछ कह रहा था..कोई कुछ कर रहा था..मेरी संवेदनाएँ,मानो नष्ट हुए जा रहीं थीं..

गौरव :" मै तुम दोनों को अनैतिक संबंधों के तहत गिरफ्तार  करवा दूँगा...(अवि की ओर मुड़ के)गर मेरे पास बंदूक होती तो मैंने इस पे गोली दाग दी होती..."
बमुश्किल मेरा मूह खुला:" गोली दागनी हो तो मुझ पे दाग दो..यह लड़का बिना इजाज़त के अन्दर नही आया है.."
किसी ने अवी से उसके कागज़ात छीन लिए...मैंने गौरव को अपने मोबाइल से उसकी तस्वीरें लेते देखा..
पता नही किस वक़्त मै अपने भाई बहन के साथ कमरे में गयी...चिल्लाने की आवाज़ सुनी तो बाहर निकली..देखा एक व्यक्ती अवि को चाटें मार रहा था..मैंने टोकने की कोशिश की...उनमे से एक अवि को बाहर ले गया..बाद में पता चला,उसे ट्रेन में बिठा दिया गया..

गौरव कमरेमे आया...कुछ फूल मेरे जुड़े से निकल सिरहाने पड़े थे...
गौरव: " देखा..दुल्हन की तरह सज के बैठी थी...और यह sms देखो..every time you  see this sms , consider that you are being hugged a thousand times .."
मैंने कहना चाहा की,वह sms उन्हीं की भांजी का है..महिला दिवस के दिन भेजा हुआ..वो मुझे अपनी माँ की जगह देती रही है...पता नही,मुह से अल्फाज़ निकले या नही..
फिर गौरव ने एक डायरी  उठायी,जिसे वो किताब समझ रहा था...उस पे लिखा हुआ था,"Love,live & laugh"...
गौरव :" इसी  में  से  यह  औरत  एक  दिन  किसी  को  फोन  पे  पढ़  के  सुना  रही  थी ...बेहयाई  की  इन्तेहा  है .."

वह डायरी मुझे मेरे भांजे ने दी थी...उसमे स्त्री भ्रूण ह्त्या को लेके मैंने एक कविता लिखी थी...मैंने कईयों को सुनाई थी...किसे कहती? किसे समझाती? कौन सुनने वाला था उस वक़्त? शायद मै अपनी वाचा भी खो बैठी थी...
गौरव की कमरे के बाहर से आवाज़ आयी:" मै जा रहा हूँ..." फिर तुरंत मेरी बहन और भाई को मुखातिब होके बोला" तुम लोग भी जाओ..रहने दो इसे रंगरलियाँ  मनाने के लिए अकेली!"
खैर वो दोनों तो रुके रहे...गौरव चला गया...दिमाग में इतना दर्ज हो रहा था,की,बहन-भाई,दोनों पूरी तरह ,गौरव के बहकावे में आ गए हैं...दोनों को मेरे बर्ताव पे शर्मिन्दगी महसूस हो रही है...वो रात भी गुज़र गयी...मुझे अपने लिए कोई और ठिकाना ढूंढना होगा,यह बात मुझे कही गयी..

अगले दिन माँ भी पहुँच गयीं...डॉक्टर के आने का वो दिन नही था,पर वो भी पहुँच गए...
डॉक्टर:" तुम्हारे पती को अवि के बारे में ख़बर किसने दी?"
मै खामोश रही...मन में आया, शायद जो गोल्फ सेट लेने आया था उसने दी होगी...डॉक्टर चले गए...मै फिर एक कटघरे में खड़ी रह गयी...माँ,बहन,भाई...सब मेरी तफ्तीश में जुड़  गए...सवालों की बौछार...इन्हीं बातों के चलते मुझे बताया गया की,वह ड्रायवर,जो मेरे नैहर से आया था, अपने गाँव भाग निकला..गौरव से बहुत डर गया था..

देर रात केतकी का फोन,मेरी बहन के मोबाईल पे आया....उसने पूछा:" माँ,क्या हालचाल हैं?"
मै:" सब ठीक है, बेटे..."
केतकी:" मैंने सुना,कल बड़ा हंगामा हुआ...!"
मै :' ओह..! तो तुझे किसने बताया?"
केतकी:" मुझे पता चल गया..."
अब मै रो पडी...हे भगवान् ! इसका मतलब बात मेरे बेटी-दामाद तक पहुँचा दी गयी? क्या करूँ? क्या करूँ?
केतकी:" रो मत माँ...! हम दोनों आपके साथ हैं...उस लड़के का क्या हुआ..?"
मै :" उसकी पिटाई हुई..."..मुझे बीच ही में टोक के केतकी ने कहा:" क्या? क्या कह रही हो? उसे पीटा..?"
उसकी आवाज़ में हैरत के सिवा अब बेहद गुस्सा भी था...वो अमरीका से अगले हफ्ते भारत आनेवाली थी..

जब पहुँची,तो सारी कहानी की कुछ कड़ियाँ जुड़ने लगीं...जब गौरव ने मुझ से मोबाइल छीना था,तब मुझे आए हुए सब sms बहुतों को फॉरवर्ड किये थे...उसने मुझ से कहा था की,वह मेरे सेट में उपलब्ध सुविधाएँ देख रहा है....मेरी बहन और केतकी की फोन पे बात चीत भी हुई थी..बहन ने केतकी से कहा था" खबरदार,जो तूने माँ का साथ दिया..वह धोकेबाज़ है..."
जिस ड्रायवर को मैंने काम से हटा दिया था...अब समझ में आने लगा...मेरे मोबाइल का उसने बेहद गलत इस्तेमाल किया था...जूली का झूट भी इसमें शामिल था....
सब से भयानक बात जो सामने आयी वो यह थी...मेरे डॉक्टर ने मुझे ज़बरदस्त धोखा दिया था....एक डॉक्टर की शपथ को कूड़े में फेंक दिया था...क्यों? क्यों किया उसने ऐसा? एक जासूस का किरदार निभाते हुए, उसने हर तरह की झूटी बातें हर किसी से कहीँ थीं..यह कैसा विश्वास घात था...?जो पूरे एक साल से चल रहा था...
क्रमश:

7 टिप्‍पणियां:

रचना दीक्षित ने कहा…

क्षमा जी बहुत अच्छी चल रही है ये कहानी, पर शक का भी कोई इलाज हुआ है क्या ???? जाने ऐसा क्यों लग रहा है अपकि ये कहानी कहीं पढ़ी है आपके ही ब्लॉग पर हो सकता है मुझे भी शक हो रहा हो. अन्यथा न लें.

उम्मतें ने कहा…

आप इसे दोबारा प्रकाशित ना भी करतीं तो भी ये सब मुझे जस का तस याद है ! कुछ घटनाएं पढकर भूलना मुमकिन नहीं होता !

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

HBMedia ने कहा…

बहुत अच्छी कहानी चल रही है...

arvind ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

Asha Joglekar ने कहा…

क्षमा जी क्या कहानी है, विश्वास नही होता कोई पती अपनी ही पत्नी के खिलाफ ऐसी साजिशें रच सकता है । आपकी ये कहानी पीछे जाकर पढ आई क्यूं कि लिंक नही लग रही थी । आप जबरदस्त लेखिका हैं ऐसे लिखती हैं जैसे आपने ये स्वयं भुगता है या बहुत करीब से देखा है ।