- हौलनाक ....ये वक़्त किसी पे ना गुज़रे ! जितनी बार पढता हूँ चोट सी लगती है !
- उफ़ बहुत ही भयानक परिणाम रहा………………ऐसा तो कोई सोच भी नही सकता था…………………………और अभी आगे भी मुश्किलों भरा सफ़र जान दुख हो रहा है…………कोई कैसे इतना सह सकता है।
- बहुत सी बातें हैं जो बिन कहे ही की जाती हैं. सुंदर. rashmi ravija ने कहा… बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ..कहानी में भी कविता का आभास,वो खुला आसमान और चाँद का सफ़र...किसी बीते युग की बात लगती है ..स्मरण दिलाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया शिवराज गूजर. ने कहा… पहली बार आपके ब्लॉग पर आया. सच मानिये पहली बार में ही आपकी कलम का मुरीद हो गया.
- बाँध लेने की क्षमता है आपकी कलम मे..अब तो सारे बिखरे सितारे इकट्ठे करने पड़ेंगे एक दिन..और अगली किश्त की प्रतीक्षा भी है..
- "उसके मिट्टी से सने पैरों के निशाँ वाली एक चद्दर ही हम रख लेते तो कितना अच्छा होता...." कितनी अच्छी बात कही है - काश यह समझदारी सब में नैसर्गिक ही होती तो दुनिया कितनी खूबसूरत होती!
- क्षमा जी ! सादर प्रणाम ! आज तीसरी कड़ी पढ़ी । अच्छा लगी । बड़े-बुजुर्गों का स्नेह भाव और उनकी तन्हाई का सुंदर चित्रण हुआ है । रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा… एक अच्छा सफ़र रहा... आपके साथ ऊपर-नीचे होते रहे.... पर इसे हटाना...यह क्यूं आखिर...? शहरोज़ ने कहा… इतनी सुघड़ भाषा ब्लॉग में तो कम ही देखाई देती है.प्रवाह तो है ही...संवेदनाओं को हौले हौले झक झोरती है धीरे-धीरे बढती कथा.. pragya ने कहा… मन ही नहीं करता की ये कहानी कहीं पर ख़त्म हो ..
- क्षमा जी ! कहानी की रोचकता और रहस्यमयता दौनों ही प्रभावित करती हैं ! कभी टिप्पणी चूक जाती है परन्तु रचना पढ़ता अवश्य हूँ !बहुत अच्छा लिख रही हैं आप !
- क्या लेखन कला है ?कमाल है ........एकदम बाँध कर रखती है. साँस की लय भी कहानी की लय से बांध जाना चाहती है.अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी. आभार Dr.R.Ramkumar ने कहा… फिर वो दिनभी आ गया जब उसे अमरीका जाना था...हवाई अड्डे पे पूजा ,गौरव और केतकी खड़े थे..पूजा के आँखों से पिछले महीनों से रोका हुआ पानी बह निकला था...उसने अपनी लाडली के आँखों में झाँका...वहाँ भविष्य के सपने चमक रहे थे..जुदाई का एकभी क़तरा उन आँखों में नही था...एक क़तरा जो पूजा को उस वक़्त आश्वस्त करता,की, उसकी बेटी उसे याद करगी..उसकी जुदाई को महसूस करेगी...उसे उस स्कूल के दिनका एक आँसू याद आ रहा था,जो नन्हीं केतकी ने बहाया था...जब स्कूल बस बच्ची को पीछे भूल आगे निकल गयी थी...समय भी आगे निकल गया था...माँ की ममता पीछे रह गयी थी... अंतस से लिखी प्रभावशाली कहानी। शब्दों में आंतरिक सच लिपटा हुआ आया । दर्द तो फिर आना ही था। समकालीन टूटते बिखरते मजबूर विकास का उम्दा चित्रण। अनुभूतियों की ‘शमा’ मौजूद है, ‘क्षमा’ बनकर। ali ने कहा… क्षमा जी आज फुर्सत से पढ़ा ... लगता है मन रम जायेगा चूंकि यह आलेख धारावाहिक की शक्ल में है इसलिए मुझे आगा पीछा सोचने और प्रतिक्रिया देने का अवसर दीजिये ! आज बस इतना ही कि पढना अच्छा लग रहा है ! शुक्रिया ! अल्पना वर्मा ने कहा… माँ और उसकी ममता भी असहाय हो जाती है..बच्चों के फैसलों के आगे! बहुत भावपूर्ण लिखा है ..आगे के भाग की प्रतीक्षा रहेगी.
- पूरा पढने की इच्छा । माँ महान है ।
- बिटिया का ब्याह और मै नही जा सकूँगी... ये पीड़ा अभी कुछ दिन पहले मैंने भोगी है ,इसका दर्द तो बस आसन हिला देता है ऊपर वाले का भी ,सच बहुत गहन पीड़ा है ये ..........
- यही होती है माँ, बच्चे चाहे रूठे रहें माँ की ममता बच्चों के लिये छलकती ही रहती है चाहे वे सामने हों या नहों । बिटिया का ब्याह और मै नही जा सकूँगी.....इस वाक्य में आपके दिल का सारा दर्द उभर आया है ।
- स्रियां जीवन में कितनी गंभीर समस्याओं से झूझ रही होती है...इसका शब्दों मे सचित्र वर्णन आपने किया है आपने क्षमाजी!.. मीनाक्षी ने कहा… कमाल है ...देखते ही देखते पहली से अब 2010 मे की किश्त भी पढ़ ली ....शायद कथा के पात्र हमारे में से ही कोई होता है एक जादुई प्रवाह में बस पढ़ती चली गयी .....
- इस सफ़र की सख्त धूप में आप की टिप्पणियों के घने साए साथ चलते रहे...रहगुज़र आसान होती गयी...बहुत,बहुत शुक्रिया!
- अगली दो कड़ियों में सफ़र में अन्य साथी,जिनकी रहनुमाई न होती तो सफ़र पूरा न होता , उनका ज़िक्र ज़रूर करुँगी..
- क्रमशः
शुक्रवार, 27 अगस्त 2010
इन सितारों से आगे..3
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8 टिप्पणियां:
ये अच्छा संकलन किया है, कई बार टिप्पणिया पढ़कर भी यादें ताज़ा हो जाती हैं जैसे रचना के पात्र एकबार फिर सामने आ गए हों. शुक्रिया क्षमा जी.
आपका हमसफ़र होना....
बेहतर अनुभव...
लिखते रहें...बांटते रहें...
श्रंखला मार्मिक तो थी परंतु साथ ही लेखन कला और मनोभावों के सुन्दर चित्रण का एक ऐसा उदाहरण रही जिसमें पाठक साथ ही बहता गया।
आभार और बधाई!
मुझे अब भी याद है उस दिन मैं बहुत दुखी हो गया था !
aapko ek mahine se nahi dekhi to sochi tabiyat to sahi hai ,magar aaj khabar mili ki bete ki sagai me vyast rahi ,chaliye aapko badhai bahut bahut ,poore pariwaar ki tasvir bhi dekhi ,aapki bahan aur maa ko bhi dekhi ,bahoon ki muskaan bahut pyaari hai .aap bhi bahut khoobsurat lag rahi hai .mujhe khushi hui aapke khalipan ko bharte dekh .
बहुत सुन्दरता से आपने प्रस्तुत किया है क्षमा जी! बेहद पसंद आया!
देख के अच्छा लगा कि ब्लॉग पर अच्छे लेखन की क़द्र हो रही है और अब कई लोग आपकी इस बेहतरीन कहानी का मज़ा ले रहे हैं.. अगली कहानी का इन्तेज़ार है..
क्षमा जी, टिप्पणियों के लिए शुक्र गुज़ारी कैसी ?
आपकी लेखनी अद्भूत रही | ये मेरा मानना है |
आज मैंने अपने ब्लॉग पर “क्षमा जी का ब्लॉग –एक अनुभव “ इस शीर्षक से पोस्ट डाली है | जरूर पढ़िएगा |
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