मजबूर जो किया अए ज़माने तूने,
इरादा नही था, इस बयानी का,
एक दास्ताँ छुपाते,छुपाते, बयाँ हो रही है...
हाँ..यही सत्य है...
माँ..तमन्ना की माँ..मासूमा..उनके बारेमे कहना चाह रही हूँ....क्योंकि उनके बचपन का, पूजा-तमन्ना के जीवन पे गहरा असर पड़ा...
मासूमा,अपने पिता का छत्र, दस साल की उम्र में ही खो बैठी...मासूमा के अन्य दो सगे भाई थे/हैं..मासूमा की माँ, उनके पिता की दूसरी पत्नी थीं...पहली पत्नी,थीं, उन्हीं की बड़ी बहन...जिनके देहांत के बाद उनके पिता ने अपनी प्रथम पत्नी की छोटी बहन से ब्याह किया..इतनाही नही..वे अपना बेपार करते थे...किसी अन्य देश गए,और वहाँ एक और शादी रचा ली..
जब उनका निधन हुआ,तो,मासूमा की माँ के पास कुछ नही था..सिवा इसके,की, जिस घर में वो रह रही थीं..ये भी गनीमत थी..तस्वीर में जो घर..तथा, द्वार दिख रहा है, वही मासूमा का घर था..जहाँ, पूजा का जन्म हुआ..जनम घर पे तो नही, शहर के अस्पताल में हुआ..लेकिन जनम के बाद पूजा को वहीँ लाया गया....
उसे वो घर ,वो पीछे दिखने वाला एक पलंग.... सब कुछ याद है...उस बंद द्वार से घर में प्रवेश होता..संकड़ी सीढियाँ चढ़ के..मुग़ल वाड़ा कहलाता था वो इलाक़ा.....काफ़ी चहल पहल हुआ करती...
अपने पती के देहांत के बाद घर का निचला हिस्सा, पूजा की नानी ने किराये पे चढा दिया..और ख़ुद सिलाई कढाई करके परिवार पलने पोसने लगीं....
परिवार में अपनी बड़ी बहन की दो बेटियाँ शुमार थीं..तथा, उनके बड़े भाई की एक अनाथ बेटी...छ: बच्चों को पढाना लिखाना..बीमारी तीमारदारी.. वो चिडचिडी तो होही गयीं..अपने भाई की बेटी के साथ कुछ ज़्यादा ही दुर्व्यवहार किया...जब मासूमा बड़ी हुई, तो उसे, इस मुमेरी बहन से, बेहद लगाव था..पूजा की इस मासी ने, पूजा से भी बेहद प्यार किया..
माँ के भाई ,जब पूजा छ: या सात साल की थी,तब देश छोड़ अन्य देश जा बसे...और पूजा की नानी वहीँ चली गयी...मासूमा के लिए उसका नैहर मानो तभी ख़त्म हो गया...लेकिन, फिरभी उसकी ममेरी बहन थी...अपने बच्चों को लेके वो वहीँ जाया करती...पर अपने पती के हाथों मजबूर...पती ने..पूजा के पिता ने, अपने बच्चों की, या अपनी पत्नी की, कभी ठीक से ज़िम्मेदारी नही सँभाली...मासूमा,इस कारन, बेहद असुरक्षित महसूस किया करती..इसे कहते हैं, चराग तले अँधेरा...! एक ओर पूजा के दादा-दादी बेहद इन्साफ पसंद और नेक लोग थे...वहीँ,अपनी बहू के साथ, ना इंसाफी कर गुज़रते..!
पूजा बड़ी होती गयी...और इस बात को महसूस करती रही..कई बातें वो नन्हीं जान नही समझ पाती..लेकिन जिसका पती, साथ ना दे, उस औरत का घर मे ठीक से सम्मान नही होता..ये भी एक सत्य है..पूजा के दादा,जिनकी पूजा आँखों का सितारा थी, अपनी बहू के साथ कई बार बेहद कठोर व्यवहार कर जाते..और पूजा रो पड़ती...अपने दादा से रूठ जाती..उनके साथ बात नही करती..बिस्तर में लेटे, लेटे सिसकती रहती...
ये भी होता,कि, ऐसे मे दादा आके, अपनी बहू से माफी भी माँग लेते..पर सिलसिला जारी रहता...और दिन गुज़रते गए...पूजा की पाठशाला मे दादा ही आया जाया करते..शिक्षक शिक्षिकाओं के संपर्क मे वही रहते..उनका शहर तथा आज़ू बाज़ू के ईलाकों मे रूतबा भी था..इज्ज़त भी थी..लेकिन घर की बातें,दहलीज़ के अन्दर ही रहती..पर उस कोमल,नन्हीं जान पे इसका असर पड़ता रहता...
और भी कई बातें थीं , जिन के कारण पूजा की माँ त्रस्त रही...पर उस सबके बारे मे फिर कभी..
क्रमश:
अगली पोस्ट मे कुछ और तस्वीरें लेके आ जाऊँगी...कोशिश मे हूँ,कि, पूजाके दादा-दादी की कुछ तस्वीरें हासिल हों...तथा उसके घरकी...जहाँ वो पली बढ़ी...
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9 टिप्पणियां:
क्षमा जी,
कैसे कहूं लेकिन बयान करने के लिए शब्द नही मिल रहे हैं! आपके लिखे हुए हर लफ्ज़ में इतनी गहराई है की एक पल के लिए भी मैंने अपनी आंके झपकाई नही!
आशा करता हूँ आगे भी ऐसे ही आपको पढने का मौका मिलता रहेगा!
दास,
सुरेन्द्र "मुल्हिद"
bahut hi gahare bhaw ..........atisundar ......badhaaee
boht tragic story hai puja ki..m touched///
क्या कहूँ....मैं कुछ नहीं कह सकता......आज इतनी ताब नहीं बची.......!!अभी रो लेने को जी है....!!
Bahoot hi maarmik hoti jaa rahi hai aapki lekhne....bhaav shabdon ka roop le kar utar rahe hain......
जीवन के सत्य को उद्घाटित करने के लिए साहस की जरूरत होती है..आप अत्यंत प्रभावशील तरीके से विचारों अनुभवों और जीवन के कालखंड को अभिव्यक्त कर पा रही हैं...
प्रकाश पाखी
अत्यन्त सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये कहानी प्रशंग्सनीय है!
आप धीरे-धीरे बहुत मार्मिकता के साथ तथ्यों को प्रस्तुत करती जा रही हैं ।
परिवार,परिवेश और आस-पड़ौस का सुंदर चित्रण हुआ है ।
आगे पती को पति लिखिए ।
कथा की रोचकता बरकरार है...मुश्किल काम है ये वैसे तो किसी भी कहानीकार के लिये इतने लंबी कहानी में तार-तम्य बनाये रखना...लेकिन आप बखूबी कर पा रही हैं...
चलता हूँ छठे किश्त पे...
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