शनिवार, 29 दिसंबर 2012

काश ऐसा संभव हो!

बलात्कार की  पीडिता की मौत की खबर सुनी . मेरे 60  वर्षीय जीवन  में इतना संताप,इतना दर्द मुझे किसी घटना से शायद ही कभी हुआ हो जितना कि पिछले कुछ दिनों में हुआ । मै कानून को अपने हाथों में लेने के हक में कभी नहीं रही .लेकिन आज लग रहा  है कि इन मुजरिमों को सजाए मौत तो मिलनी ही चाहिए,लेकिन फांसी के फंदे से नहीं।  इनकी सब से पहले तो आंतें बहार निकाल देनी चाहिए।सरेआम इनके एकेक अंग को काट के इन्हें चीलों और गिद्धों  के हवाले कर देना चाहिए। इन्हें अंतिम संस्कार भी नसीब न हो। और ये काम महिलाओं ने करना चाहिये .

लगने  लगा है कि बड़े शहरों में शाम 6 बजे के बाद महिलाओं के लिए अलग से बस सेवा मुहैय्या होना ज़रूरी है।


11 टिप्‍पणियां:

Ramakant Singh ने कहा…

आपके कथन के समर्थन में मेरी पोस्ट > विक्रम वेताल ७ २२.१२.१२ प्रकाशित ...

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बेटी दामिनी,

हम तुम्हें मरने ना देंगे
जब तलक जिंदा कलम है

शारदा अरोरा ने कहा…

आह , जब रक्षक ही भक्षक बन जाएँ तो नारी कैसे सुरक्षित रहे ..

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

यह मन का आक्रोश है...जिसे ठंडा नहीं होना चाहिए...

sourabh sharma ने कहा…

एक बच्ची जो अपने परिवार को सहारा देने के लिए इतनी दृढ़ता से खड़ी थी गुंडों की दरिंदगी का शिकार हो गई। सचमुच अब विचार करने का वक्त आ गया है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट में अधिक सुरक्षा बढ़ाई जाए। मैंने तो ट्रेनों में भी लोगों को लेडीज के सामने शराब पीते देखा है। विरोध किया तो उन्होंने कांस्टेबल के साथ जाकर सेटिंग कर ली। फिर भी हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। इस आग को बूझने नहीं देना चाहिए जब तक हम महिलाओं को गरिमामय जगह अपनी सार्वजनिक में न दे दें। आपके सरोकार देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

फाँसी नहीं, संगसार किया जाना चाहिए ऐसे दरिंदों को... सरे आम!!

रचना दीक्षित ने कहा…

बलिदान व्यर्थ ना जाये अब हमें यही सुनिश्चित करना है. यही श्रधांजली होगी हम सब की तरफ से.

tips hindi me ने कहा…

इस आक्रोश को एक मंजिल मिलनी चाहिए |

नये साल पर कुछ बेहतरीन ग्रीटिंग आपके लिए

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

:(

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बिल्कुल सहमत हूँ आपसे क्षमा जी ! मैनें तो तभी कहा था... कि ऐसे मुजरिमों को वो ज़िंदगी देनी चाहिए... जो मौत से भी बदतर हो !
किसी मर्ज़ के लिए जब हम दूसरे देश का इलाज अपना सकते हैं ... तो अन्याय के विरुद्ध दूसरे देश का क़ानून अपने यहाँ क्यों नहीं ला सकते...? और अगर क़ानून यहाँ नहीं ला सकते तो मुजरिमों को न्याय के लिए वहाँ क्यों ना भेज दें......???
~सादर !!!

kumar zahid ने कहा…

ये दर्द सभी का है,
ये फर्ज सभी का है,
जो बोझ चढ़ा सर पर
वो कर्ज सभी का है।