सोमवार, 17 अगस्त 2009

बिखरे सितारे ! ७) तानाशाह ज़माने !

पूजा की माँ, मासूमा भी, कैसी क़िस्मत लेके इस दुनियामे आयी थी? जब,जब उस औरत की बयानी सुनती हूँ, तो कराह उठती हूँ...

लाख ज़हमतें , हज़ार तोहमतें,
चलती रही,काँधों पे ढ़ोते हुए,
रातों की बारातें, दिनों के काफ़िले,
छत पर से गुज़रते रहे.....
वो अनारकली तो नही थी,
ना वो उसका सलीम ही,
तानाशाह रहे ज़माने,
रौशनी गुज़रती कहाँसे?
बंद झरोखे,बंद दरवाज़े,
क़िस्मत में लिखे थे तहखाने...

इसी इतिहास की पूजा के जीवन में पुनरावृती हुई...अभी उस तलक आने में देर है..कई मील के पत्थर पार करने हैं...रु-ब-रु होना है, एक मासूमियत से......

अपनी माँ की साडियाँ ओढे, उनकी बड़ी बड़ी चप्पलें पैरों में पहने, वो ६/७ सालकी बच्ची, 'बड़े' होने के सपने देखती रही...दिन ब दिन बचपन फिसलता गया...छोटे,छोटे घरौंदे बनाना , झूठ मूट की दावतें...मेलों में जाना...कांच की चूडियाँ...पीतल के गहने...हर रात परियों की कहानियाँ सुनते,सुनते सो जाना...बचपन की बीमारियाँ..और दादा-दादी का परेशाँ होना...दादा उसके साथ खूब खेला करते...उसे सायकल चलाना उन्हीं ने सिखाई...आगे चलके कार चलना भी,पूजा,उन्हीं के बदौलत सीखी...

फिर भी एक डर का साया मंडराता रहा...कभी माँ को लेके...कभी ख़ुद को लेके...खेतों पे खेलने मज़दूरों के बच्चे आते...और इस बच्ची पे बुरी निगाह रखते....

किसी एक दिवाली की छुट्टी में काफ़ी सारा गृह पाठ मिला था...ख़त्म तो करना ही था..पूजा बीमार हो गयी...ये चंद लड़के गाँव की स्कूल में पढ़ते थे..पूजा से बड़े थे...लड़कों ने गृहपाठ पूरा करने में मदत की...और फिर उसे अकेले में पाके, उसकी अस्मत पे हाथ डालना चाहा...पूजा को ये सब समझ में तो नही आता...और जब उसे ये बताया जाता,कि, उसके माता पिता ने ऐसा ही कुछ किया..तभी वो जन्मी,तो उसका नन्हा मन मान लेने को राज़ी नही होता..

वो ये सब बातें माँ को या दादी को पूछे या बताये भी कैसे? दूसरी ओर, ये लड़के उसे एक अपराध बोध के तले दबाते रहते...कहते," हमने तुम्हारी इतनी मदद कर दी...तुम एहसान फ़रामोश हो...इतना भी नही कर सकती?"

ईश्वर ने सदबुद्धी दी ....उसे इन सब हरकतों से घृणा भी हुई...पाठशाला से जब वो बस लेके लौटती,अक्सर तो दादा दादी उसे सड़क किनारे लेने आ जाते..लेकिन कई बार मुमकिन न होता...सुनसान रास्ते...ईख के खेत...इन सब को पार करते हुए, पूजा कई बार इन भयावह दुर्घटनाओं से बाल बाल बची...वो अपनी ओर से घर वालों कहती,कि, उसे लेने आया करें...लेकिन वजह नही बता पाती...बाल मन पे एक सदमा-सा लगता गया...

दूसरी तरफ़,वो माँ को तड़पता देखती...कितना सही है,जब कहा जाता है, बच्चों के आगे बड़ों ने संभल के बातें करनी चाहियें...उनके बेहद दूरगामी असर हो सकते हैं...! जब कि, दादा अपनी पोती के प्रती, हर तरह से इतने संवेदन शील थे...अपनी बहू को डांटते समय यही बात भूल जाते...!

समय गुज़रता रहा.....और पूजा के मनमे अपने पिता के प्रती भी,एक तिरस्कार की भावना पनपने लगी...पर वो किसे सुनाये? और क्या कहे? उसे उनका बर्ताव समझ में तो नही आता...लेकिन कहीँ तो कुछ ग़लत हो रहा है, इस बात की गवाही उसका बाल मन देता...अपनी माँ के प्रती भी ग़लत हो रहा है...पर क्या..कैसे? अपने डर को वो बरसों शब्द बद्ध नही कर पायी...लेकिन इन काले सायों ने उसे ता-उम्र डरा दिया...

इन माँ-बेटी की कहानी, हाथ में हाथ डाले आगे बढ़ती रहेगी...कभी मासूमा का बचपन तो कभी पूजा का...कभी माँ का यौवन तो कभी पूजा का लड़कपन...एक दूसरेसे इन किस्सों को जुदा करना मुमकिन नही...

क्रमश:

24 टिप्‍पणियां:

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

you know what kshama,
you are a magician of words....
great article and great thoughts behind it....
i am no one to comment on this one but still would like to say awesome work.

गर्दूं-गाफिल ने कहा…

क्षमा जी

सुरेन्द्र जी की टिप्पणी आपको जादूगर कह रही है
किन्तु यह सम्मान कुछ कम नहीं
किन्तु मुझे तो आप
संवेदनाओं का सागर लगती हो

सच है की दुनिया अपने मन की नहीं होती
अगर होती तो फिर कुछ और बुरी ही होती
क्योकी हम ईश्वरसे आधिक काबिल तो नहीं
इसलिए हर आंसू को मानिये उसी का मोती

BrijmohanShrivastava ने कहा…

एक बहुत दर्द भरी गंभीर रचना

जीवन सफ़र ने कहा…

संवेदनशील दर्द भरी कहानी।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सम्वेदना और बच्ची के मन में उलझन बढती जा रही है .......... कहानी आगे कहा ले जायेगी ...........

Crazy Codes ने कहा…

ab tak ki kahani ne man mein aage ki kahani janane ki ikchha ko aur balvti kiya hai... chahunga jald se jald meri is ikchha ko purna karein...

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

abhi poori nahi hui he aapki rachna..isliye kuchh likhane ka sambal nahi jutaa paa rahaa hu, darasal..abhi mene " ek vi bhi divaali thi" se shuru ki aour "vo subah ka tara", vo din bhi kya din the", kanhaa le chali jindagi", " maa aour pooja", aour din gujarte arhe", " he ye kesa safar", tanashaah jamana"..........padhhi...sach me abhi rukanaa nahee chahtaa thaa, padhte rahna chahtaa thaa...jaldi likhe..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मैं विस्मित हूँ,स्तब्ध हूँ....शब्द नहीं प्रशंसा के लिए

वरुण झा ने कहा…

आप के शब्दों में क्रांति झलकती है। आशा है कि आप अपनी भावनाओं को हमेशा जागृत रखेंगे।

Urmi ने कहा…

पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ कि आप मेरे ब्लॉग पर आए और टिपण्णी देने के लिए शुक्रिया !
मेरे नए ब्लॉग पर आपका स्वागत है -
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम!

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

सुंदर रचना.. वाह.. जारी रखें..

vallabh ने कहा…

aapki kahhani me aage kya hai... utsukataa badhati ja rahi hai...
achchha lekhan, badhai..

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

क्रमशः .......... उलझन में फसे व्यक्ति को अत्यधिक व्यथित करती है, भगवन के न्याय की तरह................

भावनात्मक संवेदनाओं से युक्त यह कहानी रोचकता बनाये हुए है..................

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

aapka shabd sansaar vrihat hai aur samvedansheelata vishal....
meri lekhni mein wo taab nahi jo kuch kah paaye....isliye jhuk kar salam karti hun....apko aur aapki kalam ko...
saadar..

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

in kisso ko zuda karna mushkil hai..kahi dil me gahre utar jate hai ye kisse,sochne ko majboor kar dete hai...

BrijmohanShrivastava ने कहा…

बंद झरोखे ,बंद दरवाज़े ,किस्मत में थे तहखाने |कहानी बहुत बड़ी होती जारही है क्या इसे उपन्यास का रूप देने का इरादा है

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

kyaa kahun....kuchh samajh hi nahi paa rahaa....bas thoda goom ho gayaa hun....!!

BrijmohanShrivastava ने कहा…

कहानी २६ जुलाई से शुरू हुई है और आज उसकी सातों किश्तें ध्यान पूर्वक पढी -रोचक |गांधी जी वाली बात भी और उस जोड़े का गावं में आ बसने वाली बात भी |जोड़ा राज घराने से ताल्लुक रखता था दादा दादी बखुशी बेटे बहू पोती को लेने गए फिर बहू से दुर्व्यवहार का कारण अस्पष्ट रहा |पूजा का अपने पिता से भी रुष्ट रहना कारण थोडा और स्पष्ट हो जाता |तीसरी कड़ी का तीसरा पद छटवीं और सातवीं लाइन में मासूमा शब्द आजाता तो ठीक रहता -मेरा ....................................तो हमने एक माँ तलाशी | मेरे ख्याल से कहानी जैसे आत्मकथा में परिवर्तित होने लगी हो | हो सकता है भ्रान्ति हो क्योंकि कहानी के सारे भाग एक साथ ही पढ़ डाले |यदि दुबारा पढूं और चिंतन करुँ तो स्पष्ट भी हो सकता था और आपको लिखने की जरूरत न होती |मगर हो सकता है दो चार दिन बाद फिर पढना हो पाए या नहीं भी तो मैंने टिप्पणी लिख ही दी |क्षमा से क्षमा प्रार्थना के साथ |

दर्पण साह ने कहा…

aap hamesha hi accha likjhti hai...

apki lekhni se lagta hai jaise aap kalam se nahi jaadu ki chadi se likhti hoon...


pooja ki kahan girl next door ki lagti hai...

agli kadi ka intzaar...

balki agli kai ladi ka ek saath intzaar.
kyunki blog main kabhi kabhi aata hoon.

Neeraj Kumar ने कहा…

क्षमा जी,
आपकी रचना को पढता रहा...इसमें वह सच जो दुनिया के सामने आता नहीं, और आ भी जाता है तो लोग आँखे मूंद लेते हैं... और यह हर जगह होता है...मेट्रो में, शहरों में, गाँव में, गलियों में, स्कूल में, आफिस में, और घरों में भी...
और ऐसा भी नहीं कि बच्चियों के साथ ही बल्कि बच्चों के साथ भी...
लिखतीं रहें क्योंकि कम ही लोग यह सब लिखने कि हिम्मत या इच्छा रखते हैं...

गर्दूं-गाफिल ने कहा…

लाख ज़हमतें , हज़ार तोहमतें,
चलती रही,काँधों पे ढ़ोते हुए,
रातों की बारातें, दिनों के काफ़िले,
छत पर से गुज़रते रहे.....
वो अनारकली तो नही थी,
ना वो उसका सलीम ही,
तानाशाह रहे ज़माने,
रौशनी गुज़रती कहाँसे?
बंद झरोखे,बंद दरवाज़े,
क़िस्मत में लिखे थे तहखाने...


क्षमा जी
क्या खूब नज्म लिखी है
आपके वाक्यात पढ़ते मुझे शिवानी और मीना कुमारी की यद् आ गई
शिवानी की तरह आपके शब्द चित्र और मीना कुमारी की तरह दर्द का दरिया

ये कैसा अद्भुत संयोग है

आपकी लेखनी मंत्रमुग्ध कर देती है

फ़िलहाल इतना ही

मनोज भारती ने कहा…

जीवन की कठिन स्थितियों को उकेरने की सफल कोशिश । समाज में लड़कियाँ कब सुरक्षित हो पाएँगी , यह आज भी यक्ष प्रश्न बना हुआ है ।

संवेदनशील मुद्दे पर रचनात्मक लेखन के लिए बधाई स्वीकार करें ।

Basanta ने कहा…

Nice narration!

It may come later in the story but I feel that the writer has written very little, almost negligible about Puja's father. So readers don't get any chance to conclude about him/his character. I would also like to know more about the relationship between Puja's mother and her grandparents.

Or I may have missed these facgts due to my poor Hindi. I am sorry for that.

I will continue reading this sequel.

गौतम राजऋषि ने कहा…

...तो मैं फिर से निकल पड़ा हूं पूजा/तमन्ना की जीवन-यात्रा पर।

कुछ डरावनी बातें सहमा कर रख देती हैं क्योंकि मैं नहीं चाहता कि पूजा के साथ कुछ भी बुरा हो। लेकिन मासूमा के संग दादा जी का दुर्व्यवहार का कारण क्या है?

शाय्द आगे स्पष्ट हो...