मंगलवार, 25 अगस्त 2009
'बिखरे सितारे' ९ ) मील का पत्थर!
ज़िंदगी में मोड़ किसको कहते हैं,ये नन्हीं तमन्ना कहाँ जानती थी...वो तो मोड़ पीछे छूट गए, तब उसे महसूस हुआ,कि, हाँ एक दोराहा पार हो गया..उसे ख़बर तक नही हुई...
एक झलक दिखाती हूँ, दादा पोती के नातेकी...ये क़िस्सा पूजासे कई बार सुन चुकी हूँ..पर हरबार सुननेको जी चाहता है..
जैसा,कि, मैंने लिखा था, सायकल चलाना, दादा ने ही पूजा को सिखाया..शुरू में तो चढ़ना उतरना नही आता...तो दादा साथ,साथ दौड़ा करते..एक दिन, सामने खड़ा ट्रक दिख गया,और पूजा उतरना सीख गयी...!
खेतों से गुज़रती पगडंडियों पे खूब सायकल चलाती रहती...ऐसे ही एक शाम की बात सुनाऊँ.....
तमन्ना, तेजीसे सायकल चलाती, खेत में बने रास्तेपे गुज़र रही थी...सामने से दादा दादी घूमने निकले नज़र आए .....दादा उसके सामने आके खड़े हो गए और मज़ाकिया लह्जेमे बोले,
" ये क्या तुम्हारे बाप का रास्ता है?"
पूजा, सायकल पे से उतर के हँसते,हँसते बोली,
" हाँ,ये मेरे बाप रास्ता है...बाप के बाप का भी है,लेकिन ठेंगा! आपके बाप का तो नही है!"
दादा-दादी खुले दिल से हँसते हुए, बाज़ू पे हो गए!
ऐसे हँसते खेलते दिन भी हुआ करते...जो अधिक थे...बस,एक माँ का दर्द उसे सालता रहता...!
पूजा की माँ के लिए कहूँगी...
'ना सखी ना सहेली,
चली कौन दिशा,
यूँ अकेली अकेली...'
नैहर के रौनक़ वाले माहौल से यहाँ पहुँच , मासूमा, वो नैहर की सखियाँ,वो गलियाँ, वो रौनक़.....याद बहुत करती...पर अपने बच्चों में पूरी तरह मन लगाये रखती...
उम्र के १३ साल पार करते करते, पूजा का एक भयानक हादसा हो गया..वो ९ वि क्लास में जा चुकी थी...अस्पताल में महीनों गुजरने पड़े... मेंदू के 'सेरेब्रल' पे चोट आ गयी थी...माँ उसे, पाठ्यक्रम की किताबें, अस्पताल में पढ़के सुनाया करती...सालाना परीक्षामे वो अपने क्लास में पहले क्रमांक से पास हो गई..
सीधे अस्पतालसे निकल परीक्षा हॉल में उसे पहुँचाया गया..उसे तो दोबारा चलना सीखना पड़ा था..गणित एक ऐसा विषय था, जो पढ़के नही सुनाया जा सकता..और वहीँ उसे केवल ४० अंक मिले.....आत्म विश्वाश खो बैठी...ये एक उसके जीवन में बड़ा अहम मील का पत्थर साबित हुआ...
उस ज़माने में, अब जैसे PCB या PCM का ऑप्शन होता है,तब नही था..पूजा बेहतरीन डॉक्टर बन सकती थी..ये कई जानकारों ने उसे बताया..सिर्फ़ डॉक्टर नही,उसके हाथों में एक शल्य चिकित्चक की शफ़ा थी.. पर उसने 'fine arts' में दाखिला ले लिया...उसकी आगे की जीवनी जब देखती हूँ,तो लगता है,पहला निर्णायक मोड़ तो यहीँ आ गया..
अपने गाँव से निकल वो पहली बार, बडोदा शहर आयी...ये विषय तब उसी शहरमे पढाया जाता था...सोलवाँ साल लग गया था..पूजा तीक्ष्ण बुद्धी और मेहनती थी...कलाके कई आयाम वो अपने आपसे ही पार कर लेती...अपने गुरुजनों की लाडली शागिर्द बनी रही...
अब केवल साल में दो बार उसका अपने घर आना बन पाता..दादा, दादी,माँ, उसे शिद्दत के साथ याद आते और उतनी ही शिद्दत के साथ पूजा भी अपना घर याद करती...अन्य लड़कियाँ छात्रावास के मज़े उठाती..लेकिन पूजा कुछ अलग ही मिट्टी की बनी थी...संग सहेलियों के जाती आती..लेकिन इस तरह की आज़ादी से वो कभी बहक नही गयी...
परिवार में अबतक,एक बहन के अलावा, एक भाई भी आ चुका था...जो पूजासे ८ साल छोटा था...
छुट्टीयाँ ,भाई बहनों के झगडे..पुरानी सखी सहेलियों से मेल जोल, इन सब में बीत जातीं..जब वो छूट्टी में आती तो,मानो एक जश्न -सा मन जाता...
एक ऐसी ही छुट्टी में उसके लिए एक पैगाम आया..पैगाम तो उसे उम्र की १४/१५ साल से आते रहे...पर कुछ निर्णय क्षमता तो नही थी...बचपना था...मंगनी होगी तो, घर मेहमान आयेंगे, खूब रौनक़ होगी...एक बुआ जो बड़े सालों बाद ऑस्ट्रेलिया से भारत आयी थी,और पूजा उसे बहद प्यार करती....
बस वो बुआ घर आयें,इस बचकानी हरकत में पूजाने मंगनी के लिए हाँ कर दी थी...उम्र ही क्या थी..१७ पूरे! खूब रौनक़ हुई...ये अल्हड़ता ,मासूमियत नही तो और क्या था? पूजा को कभी भी अपने रूप का ना एहसास रहा ना, कोई दंभ...बल्कि,जब कोई सखी सहेली उसे सुंदर कहती,तो वो अपने आपको आईने में निहारती..क्या पाती..?एक छरहरे जिस्मकी, लडकी...गुलाबी गोरा रंग, बड़ी, बड़ी आँखें..लम्बी गर्दन...लड़कियाँ उसे कहती,' तुम्हारे दांत तो नकली लगते हैं...! असली जीवन में होते हैं ऐसे दांत किसी के...पूजा को कई बार न्यून गंड का भाव भर आता...जब ये सब बातें सुनती...ईर्षा वश भी ऐसा कुछ कहा जा सकता था, उसे कभी समझा ही नही.....
मेहमानों के आगे वो छुपी,छुपी-सी रहती....
दूसरी ओर,जब उसके क़रीबी दोस्त रिश्तेदार आस पास होते,तो नकलची बन,या अपनी शरारतों से खूब हँसाती भी रहती...
जब कभी कोंलेज या स्कूल के ड्रामा में हिस्सा लेती,तो अपने किरदार ऐसे चुनती,जहाँ, उसकी मोटी,मोटी आखों में भरे आँसू नज़र आयें..के वो अपनी माँ या सहेलियों से पूछे..'मेरी आँखें कैसी दिखती थीं? आँसुओं से भरी हुई...?
परदेपर की नायिका कितनी सुंदर दिखती जब अपने पलकों पे आँसू तोलती...'
कहाँ पता था,कि, असली और नकली अश्रुओं में कितना फ़र्क़ होता है..जब असली आँसू बरसते हैं,तो उन्हें छुपाते रहना पड़ जाता है...मन चाहे रो रहा हो ज़रोज़ार, अधरों पे मुस्कान खिलानी पड़ती है...
शायद हर युवा लडकी अपनेआप से ऐसी बातें पूछती हो...जैसे पूजा-तमन्ना पूछती....
लड़कपन अब यौवन की दहलीज़ पे खड़ा था...! और एक हादसा हो गया...पूजा हॉस्टल में थी,तब उसे ख़बर मिली..उसका छोटा भाई, जो तब ११ /12 साल का होगा...उसके हाथ से बंदूक की गोली छूट गयी...पूरी तरह अनजानेमे....पर उस अनुगूंज का असर कहाँ ,कहाँ नही पहुँचा.......
यहाँसे पूजा की ज़िंदगी वाक़ई में एक ऐसा मोड़ ले गयी,जिसके दूर दराज़ असर हुए...एक दर्द का सफर शुरू हो गया...
क्रमश:
इसी पोस्ट में पूजाकी एक तस्वीर डाल रही हूँ...इसमे उम्र १७ साल की थी...अभी लडकपन अधिक झलकता..तो एक ओर वो बेहद संजीदा भी थी...
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19 टिप्पणियां:
Pooja kee ye kahani bahut hee achchee lag rahi hai aapke blog par pahalu bar aayee bahut rochak hai aapka lekhan. Aapka mere blog par aane aur tippani dene ka shukriya.
वाह क्या बात है! अत्यन्त सुंदर, दिलचस्प और शानदार रूप से आपने आलेख किया है ! बहुत बढ़िया लगा!
Aise hi lekhni ki shamaa jalaaye rakkhhen.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आठवें भाग की तस्वीरें और नौवां भाग पूरा पढ़ लिया ज्यों ज्यों आगे पढता जा रहा हूँ एक उत्सुकता सी बढ़ती जारही है कि किसी तरह यह कहानी /उपन्यास /आत्मकथ्य /जल्दी से जल्दी पढ़लूँ |फिलहाल तो उत्सुकता यह है कि छोटे भाई के हाथ से चली बंदूक की गोली किसी शीशे से न टकरा गई हो और शीशे के टुकड़े या छर्रे पूजा की आँख में न लग गए हों फिर ध्यान आया कि पूजा तो होस्टल में थी | खैर | यह खुशी की बात है कि घटना के साथ साथ लेखक के विचार ,चिंतन ,भावनाएं भी चल रही है |
एक शंका जरूर है कि प्रस्तुत तस्वीर वाकई १७ साल की उम्र की है या २३-२४ की |कृपया अन्यथा न ले और चाहें तो मेरी इस लाइन को डिलीट कर दें
क्षमा जी,
क्षमा कीजियेगा, यहाँ तक आने में देर हुई, चूंकि अंतरजाल पर सब उपलब्ध है इसिलिये पूजा की कहानी शुरूआत से पढ़ना चाहूंगा।
बहरहाल अभी जितना भी पढ़ा तो यह लगा कि किसी आँखों देखे हाल को सुन रहा हूँ, शब्द शिल्प इतना अच्छा है कि पढ़ते हुये तस्वीर आँखों मे बनी जाती है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बृजमोहन जी ,
यहीँ पे एक जवाब दे रही हूँ ..आपके ब्लॉग पे भी पोस्ट कर दूँगी ..
ये तस्वीर उसी उम्र में ली गयी ,जो बताई है ! ये सच है,की, पूजा अपनी उम्र से कहीँ अधिक सयानी भी थी..साथ,साथ एक अल्हड़ता तो थी ही...अभी उस उम्र का पड़ाव भी आही जाएगा..जिस का अपने ज़िक्र किया है..
वो घर जहाँ वो खड़ी है,उसकी तस्वीर मैंने पोस्ट की है..अगली कड़ी में और अधिक जानकारी सामने आ जायेगी...अच्छा लगा आपकी टिप्पणियाँ पढ़के!
bबहुत उतसुकता हो गयी है आगे पढने की आपके शिल्प और शैली ने मन मोह लिया बधाई
kshama ji aapki kahani poori padhne ko mazboor karti hai. bahut achchi lagi.
अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
again an excellent trick from the magician of words....
bahut he acha kshama ji...
बढ़िया लिख रहे हो भइया जी!
यह रस-कलश आगे भी छलकाते रहना।
बधाई!
क्षमा जी,
क्षमा कीजियेगा,
अपनी पहली टिप्पणप में आपको बहिन जी के स्थान पर भइया जी लिख गया था।
रचना करती, पाठ-पढ़ाती, आदि-शक्ति ही नारी है।
फिर क्यों अबला बनी हुई हो, क्या ऐसी लाचारी है।।
प्रश्न-चिह्न हैं बहुत, इन्हें अब शीघ्र हटाना होगा।
नारी के अस्तित्वों को, फिर भूतल पर लाना होगा।।
pooja ki tasveere post ko or khoosurat bna rahi hai..i hope ki puja ki aage ki lyf jyada dukh bhari na ho...jaisa aapne likha hai..दर्द का सफर शुरू हो गया...
आप के ब्लाग मे पहली बार आया हूं,पूजा के जीवन के रोचक प्रंसगों को बहुत ही सुन्दर तरीके से प्रस्तुति के लिये बधाई,अगली कडी का इंतजार रहेगा
Pooja bikul 17 varsh ki hi hai, vaise bhi saadi pahan kar ladkiyan badi lagti hain...
aapki shabd silp par to main vaise bhi mugdh hun....danke ki chhot par kaha tha aaj bhi kahti hun...
pathakon ko kahani ki rau mein baandhe rakhna aasan nahi hai aur aap ba-khubi yah kaam kar rahi hain...
Salaam qakool karein hamara
bahut hi sundar hai yeh tasveer......... saree mein bahut hi khoobsoorat lag rahi hai tasveer.....
kai mod aise hote hain jo chhoot jaate hain...... to un modon pe hum waapis nahi ja sakte......
और पूजा 17 बरस की हो गई, सगाई ब्याह की बातें शुरु हो गई हैं, एक अल्हड़पन से गुजरना हो रहा है और तभी छोटे भाई के हाथों से गोली चल जाती है; इस घटना ने पूजा में क्या परिवर्तन लाए होंगे ? और उसकी शादी क्या उसके लिए एक सपने जैसा अहसास था जो पूरा हुआ होगा या नहीं ?
मन में बहुत सी जिज्ञासाएँ जन्म ले रहीं हैं ।
और यही एक सफल लेखिका की पहचान है कि वह अपनी लेखनी से पाठक को बांधे रखे ।
लेकिन यह तो एक सत्य घटना पर आधारित आत्म-कथात्मक कहानी है, तस्वीरें कहानी को जीवंत बना रहीं हैं ।
17 बरस की अल्हड़ जिंदगी में बसे सपनों और उम्मीदों के साथ पूजा के वर्तमान में आए संकटों और भावनात्मक पक्ष का सुंदर चित्रण हुआ है ।
जिंदगी के एक खूबसूरत मोड़ पर खड़ी पूजा की आगे की कहानी जानने की उत्सुकता बढ़ती जा रही है ।
पूजा जाने क्यों वहीदा रहमान की झलक दिखला गयी है...उसका अचानक से सयानी हो जाना...उसकी बहन लेकिन अभी तक बिलकुल पार्श्व में ही है।
थोड़ा आशंकित हूँ कि बंदूक की उस गोली का परिणाम क्या हुआ? इस गोली को तो इतनी करीस से जानता हूँ कि कह सकता हूं कि परिणाम अच्छा तो नहीं ही हुआ होगा...
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