कल लक्ष्मी पूजन हो गया और मुझे बरसों पहले की एक दिवाली याद दिला गया! मेरा बेटा तब आठ साल का था. बिटिया दस साल की थी.तब तक मैंने बच्चों के हाथों में कभी पैसे नही थमाए थे.धनतेरस का दिन था. दोनों बच्चों को मैंने पचास-पचास रुपये दिए और कहा," तुम दोनों बाज़ार जाओ और अपनी पसंद की चीज़ ले आओ." दोनों के साथ मैंने एक नौकर भेजा क्योंकि बहुत भीड़ भाड़ थी. बच्चों ने अपनी अपनी सायकल निकाली और खुशी खुशी चल दिए.
घंटे डेढ़ घंटे के बाद दोनों लौटे. बेटा बहुत चहकता हुआ मेरे पास आया और एक पाकेट मुझे थमाता हुआ बोला, "माँ! माँ! देखो मै तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ! सोनेका हार! तुम इसे पहनोगी ना?"
मैंने पाकेट खोल के देखा तो उसमे एक पीतल का हार था! मैंने अपने बेटे को गले से लगा के चूम लिया! अपने लिए कुछ न लेके कितनी चाव से वो मेरे लिए एक गहना लेके आया था! मैंने उससे कहा," बेटा मै इसे ज़रूर पहनूँगी! मेरा बच्चा मेरे लिए इतने प्यार से तोहफा लाया है...मै उसे कैसे नही पहनूँगी? दिवाली के दिन पहनूँगी!" मेरी आँखों में आँसू भर आये थे!
दिवाली के दिन पूरा समय मैंने वही हार गले में डाल रक्खा. बेटा बहुत खुश हुआ. उस हार को मैंने बरसों संभाल के रखा. किसी एक तबादले के दौरान वो खो गया. मुझे बेहद अफ़सोस हुआ. काश! वो हार आज मेरे पास होता तो मै अपने बेटे से बताती की, उस हार की मेरे लिए कितनी अहमियत थी!
प्यारे दोस्तों ! आप सभी को दिवाली की अनंत शुभ कामनाएँ !