सोमवार, 21 मार्च 2011

दीपा १३


( गतांक: ब्याह अच्छे से हो गया...लडकी बिदा हो गयी...उसी शहरमे...और दीपा भयानक depression में चली गयी. उसका nervous breakdown ही हो गया!  बरसों उसने अपनेआप को सहेजे रखा था...अब वो बिखर,बिखर गयी..
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अब दीपा को लगने लगा जैसे उसके जीवन का मकसद ख़त्म हो गया! एक भयानक अकेलेपन ने उसे घेर लिया. एक खालीपन,जिसे वो किसी के साथ चाहकर भी बाँट नहीं सक रही थी...क्योंकि कोई थाही नहीं उसके जीवन में! अब उसे एक साथी की कमी बेहद खलने लगी. अपना समाज इतना परम्परावादी है,की, औरत की इस ज़रुरत को समझना उसके परे है.
 
अब उसे अजय याद आता जो बहुत संजीदा था. अगर दीपा उसके पीछे लग उसका ब्याह न करवाती तो शायद वो अबतक रुका रहता! शायद नरेंद्र भी रुक जाता! लेकिन वो हालात अलग थे. बेटी का भविष्य उसके लिए अपनी हर निजी खुशी से बढ़के मायने रखता था! जब बेटी की ज़िम्मेदारी से वो फारिग हो गयी तो ज़िंदगी अचानक नीरस,बेमक़सद बन गयी. 
 
ऐसे समय में बच्चों ने काफी समझदारी और परिपक्वता का दर्शन दिया. दोनों ने माँ को दोबारा ब्याह करने की सलाह दी. इस तरह की संस्थाओं में उसका नाम भी दर्ज कराया. इस कारण दीपाका संकुचित दायरा थोडा विस्तारित   होने लगा.  चंद सज्जन मर्दों से उसका नेट की सहायता से परिचय हुआ. वो स्वयं अपने आप को टटोल रही थी. उसे खुद नहीं पता था की,आखिर जीवन में वो चाहती क्या है?शादी चाहती है या केवल दोस्ती?शायद ऐसी दोस्ती,जिसमे समर्पण हो,ज़िम्मेदारी हो,लेकिन बंधन का बोझ न हो! कई विधुर और विभक्त हुए लोगों ने उसके आगे शादी के प्रस्ताव रखे. वो कुछ लोगों से मिली भी. पर सच तो ये था,की,शादी के ख्याल से उसे डर लगता! 
और इन्हीं दिनों उसका परिचय प्रसाद से हुआ. वो डिवोर्सी था. पर उससे उम्र में करीब १० साल छोटा. बहुत दिनों तक तो दीपा ने उसे टाल दिया. अंत में जाके दोस्ती स्वीकार की. दोनों का ईमेल तथा फ़ोन के ज़रिये आपस में ख़यालों का आदान प्रदान शुरू हुआ. प्रसाद तो पूरी तरह से उसके प्यार में डूब गया था. उसके हर ख़त में," मै तुमसे बेहद प्यार करता हूँ," ये वाक्य कुछ नहीं तो दस बार होता! प्रसाद अहमदाबाद का बाशिंदा था. अंत में दीपा ने अहमदाबाद जाके उससे मिलने का फैसला किया और वो गयी. वो खुद अब किसी किशोरी की तरह उसे मिलने के लिए बेताब हो उठी थी.
 
क्रमश: 







शुक्रवार, 11 मार्च 2011

दीपाकी चंद तस्वीरें

२)महाराष्ट्रियन साड़ी में दीपा...जब वो प्रथम अपत्य के समय उम्मीद से थी.  
३)दीपा-लाल साड़ी में..
४)बेटी के जनम पे...
५)बेटे के जनम पे...
६)अपने नन्हें मुन्नों के साथ...
७)सबसे बीचोबीच बैठी,लम्बी चोटियोंवाली बच्ची दीपा!
८)समंदर के किनारे...बच्चों के साथ...उसके साथ हुए 'हादसे'के एकदम बाद...
९)अन्य तीनो तस्वीरें जब दीपा अपने बेटे के समय गर्भवती थी..

गुरुवार, 3 मार्च 2011

दीपा 12

(गतांक :अब समय था,एक हलकी-सी चैन की साँस लेने का,की दीपा का भाई हार्ट attack से चल बसा ! और इस सदमे से परिवार अभी उभरा नहीं था,की, दीपाका बहनोई एक हादसे में चल बसा! दीपा के माता पिता पे अब और  दो बेवाओं की ज़िम्मेदारी आन पडी....एक अपनी बहू...एक अपनी बेटी,जो पती के निधन के बाद अपने मायके चली आयी. दीपा के सभी सहारे टूटते  गए!तीन बहन भाई.....और एक भी परिवार सम्पूर्ण नहीं...सुखी नहीं!

दूसरी ओर दीपा को पता चला की,नरेंद्र अभी भी उसकी आस लगाये बैठा है! 
अब आगे....)
 
दीपाका पूरा परिवार ही सदमों से गुज़र रहा था. उन सदमों में दो और परिवार जुड़े हुए थे. एक तो दीपा के बहनोई का, दूसरा उसकी भाभी के मायके का!! कौन किसे सहारा दे!!
 
इधर जब दीपा को नरेंद्र के बारेमे पता चला तो उसने फिर एक बार साफ़,साफ़ ना कर दी. अब उसे अपनी जवान हो रही बेटी की अधिक चिंता थी. एक भी गलत क़दम बेटी के भविष्य पे असर करता. नरेंद्र ने दीपा का आठ साल इंतज़ार किया,ये बात दीपा के लिए बहुत बड़ी थी.लेकिन समाज के सीमित दायरे में रहते हुए,दीपा को फूँक फूँक के क़दम उठाने थे!मजबूरियाँ थीं! बच्चे हमेशा ही उसकी प्राथमिकता रहे !
 
वैसे,बच्चों में परिपक्वता समय से पहले आ रही थी. बच्चे  नौकरी करते हुए पढ़ रहे थे .  अपनी आर्थिक अवस्था खूब समझते थे. कोई हठ ,कोई फ़िज़ूल खर्ची नहीं करते.
 
प्लाट के जो पैसे मिले थे, दीपा तथा उसके पिताजी ने मिलके,उसमे से एक छोटा-सा फ्लैट खरीदा. कम से कम किराये का झमेला बंद हुआ! बेटा महाविद्यालय में पहुँचा और उसे आठ हज़ार रुपये  माहवार की नौकरी मिली. वो कॉलेज की पढ़ाई बाहरसे ही कर रहा था. उसने ज़िद करके अपनी माँ की नौकरी छुडवा दी.  १५०० रुपयों के लिए,अब माँ क्यों इतना कष्ट करे,यही उसकी भावना थी. घर का सारा काम तो वो करती ही थी. 
 
दिन अपनी गती से बीतते  गए.  बेटी ने कंप्यूटर ग्राफिक्स में पदवी हासिल की और नौकरी पे लग गयी. दीपा को उस के ब्याह की चिंता रहने लगी. इत्तेफाक़न एक संजीदा और आकर्षक युवक को लडकी पसंद आ गयी. लड़के के माता-पिता ज़रा अकडू और पुराने ख़यालात के लोग थे. लड़का बहुत अच्छी तनख्वाह पे नौकरी कर रहा था. ख़ुशमिज़ाज था. दीपा ने अन्य बातें नज़रंदाज़ कर दीं. ब्याह तय हुआ तो घर में खुशी का माहौल आ गया! बरसों बाद ऐसा मौक़ा आ रहा था! सब दिलो जान से जुट गए. 

ब्याह अच्छे से हो गया...लडकी बिदा हो गयी...उसी शहरमे...और दीपा भयानक depression में चली गयी. उसका nervous breakdown ही हो गया!  बरसों उसने अपनेआप को सहेजे रखा था...अब वो बिखर,बिखर गयी..
 
क्रमश: