( गतांक: वो रात मेरी आँखों ही आँखों में गुज़री. डर,सदमा,गुस्सा....सब कुछ इतना था की, बता नही सकती. सुबह जब मैंने मेरे पतिसे रातवाली घटना के बारे में कहना चाहा तो जनाब ने कहा," अरे! वो तो मैही था! तुम्हें इतनी भी अक्ल नही?"
मैंने अपना सर पीट लिया!! ज़ाहिरन,उस आदमी को मेरे पति की शह थी. उसकी मर्ज़ी के बिना वो आदमी ऐसा क़दम उठाने की हिम्मत नही कर सकता था! "
किस्सा सुन मै दंग रह गयी! उफ़! कैसा पति था? और ये सब करने करवाने की वजह हम दोनों की समझ के परे!!
अब आगे...
आगे बढ़ने से पहले आप सभी को नए साल की ढेरों शुभकामनाएँ देती हूँ!)
दीपाने कुछ देर रुक फिर आगे की बातें बताना शुरू कर दीं...
दीपा: " जब हम घर लौटे तो मैंने मेरी एक सहेली को इस घटना के बारेमे बताया. वह भी हैरान रह गयी...लेकिन उसने एक बात की ज़िद की....मैंने जाके स्त्री रोग विशेषग्य को ज़रूर मिलना चाहिए...वह स्वयं मुझे ले जाने को तैयार थी.डॉक्टर से उसकी अच्छी खासी वाकफ़ियत थी. वैसे मेरा भी किसी तग्य से बात चीत करने का बड़ा दिल कर रहा था. मै राज़ी हो गयी. "
मै:" तो तुमने सब कुछ अच्छे से डॉक्टर को बताया?"
दीपा:" हाँ! डॉक्टर ने मुझ से बहुत अलग,अलग सवाल किये. मेरी शादी से लेके उस घटना तक, उस ने सैकड़ों बातों का ब्यौरा लिया.
हम पति-पत्नी के शारीरिक संबंधों को लेके भी उसने बहुत सारे सवाल पूछे. सच कहूँ,तो मुझे इन संबधों के बारे में बहुत कम जानकारी थी. उसकी बातों परसे मुझे एहसास हुआ की,हम दोनोमे शारीरिक सम्बन्ध ना के बराबर हैं!
तक़रीबन एक घंटे से अधिक बात चीत के पश्च्यात उसने कहा, तुम्हारा पति homosexual है. मैंने तो ये शब्द ही तब तक नही सुना था!
एक ओर मुझे अपने माता-पिता पे बेहद गुस्सा आ रहा था,की, उन्हों ने बेहद जल्दबाजी में मेरा रिश्ता तय कर दिया! जब कभी मैंने उन्हें मुझपे होनेवाले अत्याचारों के बारेमे बताना चाहा,उन लोगों ने अनसुना कर दिया.
मैंने इस घटना के बारे में भी उनको बताने का निर्णय ले लिया."
मै:" तो तुमने बताया? और उनकी क्या प्रतिक्रया हुई?"
दीपा:" बताया. मैंने जी जान तोड़ के बताया. रो,रो के कहा की इस व्यक्ती से मेरा पीछा छुड़ाया जाय. मेरे मामा भी वहीँ थे. मेरे माता पिता को लगा की,मै सब कुछ मन गढ़ंत बता रही हूँ! बल्कि मेरे मामा ने उनसे कहा, हमारी अपनी बेटी है...इतनी जी जान से बता रही है,तो झूठ कैसे हो सकता है?"
मै:" हद है! तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हारा विश्वास नही किया?"
दीपा:" नही, मेरे माता पिता को लगा की मै अपनी शादी निबाहना नही चाहती,इसलिए मनगढ़ंत किस्सा बयाँ कर रही हूँ!मुझे उस वक़्त इतना गुस्सा आया! मैंने उनसे कहा,एक दिन ये आदमी बेहद बुरी मौत मरेगा! एक दिन आपको विश्वास करना ही पडेगा,लेकिन तब तक बड़ी देर हो चुकी होगी...और मेरी ये तिलमिलाके कही गयी भविष्य वाणी सच निकली.....!खैर!
मेरे बारे में ये बात मेरी उस सहेली ने मेरे बचपन के दोस्त,अजय को भी बता दी. अजय ने ब्याह नही किया था. वो अचानक एक दिन मेरे पास पहुँचा और कहने लगा, तुम अपने बच्चों को लेके इस घर से निकल पड़ो. छोड़ दो ऐसे आदमी को...अलग हो जाओ...मै तुम से ब्याह करूँगा....अब तो मेरे पास अच्छी खासी नौकरी भी है. तुम्हारे बच्चों को पिता का प्यार भी मिलेगा....!"
मै:" ओह! अजय ने तो सच्चा प्यार निभाया! तुम्हारे साथ को परे कर खड़ा हो गया! आगे क्या हुआ?"
दीपा:" बताती हूँ...बताती हूँ...!"
क्रमश:
गुरुवार, 30 दिसंबर 2010
बुधवार, 22 दिसंबर 2010
दीपा 4
( गतांक: पती को अपना न्यूनगंड खलता था और इस बात को छुपा के रखने की चाहत में वो दीपा पे बात बेबात बरस पड़ता. उस के लिए ऐसा करना मर्दानगी थी....उस के इसी न्यूनगंड ने एक बार उससे बड़ी ही भयानक बात करवा दी. कम से कम दीपा के पास" उस " घटना के स्पष्टीकरण के लिए और कोई पर्याय नही. उस घटना का विवरण मै दीपाके शब्दों में देना चाहूँगी.
अब आगे पढ़ें. देरी के लिए माफी चाहती हूँ. व्यस्तता कुछ ज़्यादाही बढ़ गयी है.)
मेरी तथा दीपा की एक दिन बड़ी अन्तरंग बातें चल रहीं थीं. उसी दौरान उसने मुझे इस घटना के बारेमे बताया.उसी के शब्दों में बता रही हूँ.
दीपा: " एक बार हमलोग बच्चों को लेके गोआ घूमने गए. वापसी पे रत्नागिरी रुकना था. बस से सफ़र कर रहे थे. मै दोनों बच्चों के साथ सब से पिछली सीट पे बैठी थी. मेरे पती अलगसे,दो सीट छोड़ के बैठे थे. देखने वाले सहजही अनुमान लगा सकते होंगे की, हम पती-पत्नी में कुछ ख़ास लगाव नही है. खैर.
मेरी साथवाली सीट पे एक आदमी आके बैठ गया. मुझसे ज़रुरत से ज़्यादा सटके. मुझे उसकी हरकत बड़ी घिनौनी लगी. मैंने मेरे बेटे को अपनी जगह बिठाया और उसकी सीट पे मै बैठ गयी.
एक जगह बस रुकी तो मेरे पती ने उस आदमी से बड़े दोस्ताना तरीकेसे बातचीत शुरू कर दी. मन ही मन मुझे बेहद गुस्सा आया. लगा,कैसा इंसान है! देख रहा था,की, वो आदमी मुझसे कैसे सटके बैठा था,फिरभी उस पे इतना प्यार उमड़ रहा था!
मैंने बच्चों को कुछ खिलाया पिलाया और हमारा सफ़र जारी रहा. अब के वो आदमी मेरे पती के साथ बैठ गया.
हम रत्नागिरी पहुँच के एक होटल में ठहरे. वो आदमी भी उसी होटल में रुका. शाम को वो तथा मेरे पति एक साथ घूमने भी गए. होटल कुछ ख़ास आरामदेह नही था. लेकिन मुझे इस बात की अधिक परवाह नही रहती,क्योंकि नयी,नयी जगहें देखना मुझे खुद को बड़ा भाता था.
अगले दिन रात को जब हम चारों हमारे कमरेमे सो रहे थे तो अचानक से मेरी आँख खुली. मुझे लगा मानो मेरे बिस्तरपे कोई है! जब तक मै सम्भलती तब तक वो व्यक्ती मेरे जिस्म पे औंधा लेट गया. मै चीखना नही चाह रही थी. डर था की ,कहीँ बच्चे उठ गए तो बेहद घबरा जायेंगे. मैंने अपना पूरा ज़ोर लगा के उस व्यक्ती को धक्का लगाया. उसी हडबडी में मेरे सिरहाने रखा हुआ पानी का घडा धडाम से गिर पडा. उस पे स्टील का ढक्कन तथा ग्लास था. उसका भी काफ़ी ज़ोरसे आवाज़ हुआ. तभी कमरे के बाहर के गलियारे में maneger ने बत्ती जलाई और पूछा, सब ठीक तो है?
वो आदमी छलांग लगा के हट गया और दरवाज़े के पासवाली दीवार को सटके खड़ा हो गया . फिर दरवाज़ा खोलके बाहर निकल गया. मै बच गयी. जानती थी,की,ये बात मेरे पती को उसी समय बताने से क़तई फायदा नही. और ऐसा हो नही सकता था,की, घड़े की आवाज़ से वो जग ना गए हों! मै हैरान हुई की,बच्चे कैसे सोते रहे!
वो रात मेरी आँखों ही आँखों में गुज़री. डर,सदमा,गुस्सा....सब कुछ इतना था की, बता नही सकती. सुबह जब मैंने मेरे पतिसे रातवाली घटना के बारे में कहना चाहा तो जनाब ने कहा," अरे! वो तो मैही था! तुम्हें इतनी भी अक्ल नही?"
मैंने अपना सर पीट लिया!! ज़ाहिरन,उस आदमी को मेरे पति की शह थी. उसकी मर्ज़ी के बिना वो आदमी ऐसा क़दम उठाने की हिम्मत नही कर सकता था! "
किस्सा सुन मै दंग रह गयी! उफ़! कैसा पति था? और ये सब करने करवाने की वजह हम दोनों की समझ के परे!!
क्रमश:
अब आगे पढ़ें. देरी के लिए माफी चाहती हूँ. व्यस्तता कुछ ज़्यादाही बढ़ गयी है.)
मेरी तथा दीपा की एक दिन बड़ी अन्तरंग बातें चल रहीं थीं. उसी दौरान उसने मुझे इस घटना के बारेमे बताया.उसी के शब्दों में बता रही हूँ.
दीपा: " एक बार हमलोग बच्चों को लेके गोआ घूमने गए. वापसी पे रत्नागिरी रुकना था. बस से सफ़र कर रहे थे. मै दोनों बच्चों के साथ सब से पिछली सीट पे बैठी थी. मेरे पती अलगसे,दो सीट छोड़ के बैठे थे. देखने वाले सहजही अनुमान लगा सकते होंगे की, हम पती-पत्नी में कुछ ख़ास लगाव नही है. खैर.
मेरी साथवाली सीट पे एक आदमी आके बैठ गया. मुझसे ज़रुरत से ज़्यादा सटके. मुझे उसकी हरकत बड़ी घिनौनी लगी. मैंने मेरे बेटे को अपनी जगह बिठाया और उसकी सीट पे मै बैठ गयी.
एक जगह बस रुकी तो मेरे पती ने उस आदमी से बड़े दोस्ताना तरीकेसे बातचीत शुरू कर दी. मन ही मन मुझे बेहद गुस्सा आया. लगा,कैसा इंसान है! देख रहा था,की, वो आदमी मुझसे कैसे सटके बैठा था,फिरभी उस पे इतना प्यार उमड़ रहा था!
मैंने बच्चों को कुछ खिलाया पिलाया और हमारा सफ़र जारी रहा. अब के वो आदमी मेरे पती के साथ बैठ गया.
हम रत्नागिरी पहुँच के एक होटल में ठहरे. वो आदमी भी उसी होटल में रुका. शाम को वो तथा मेरे पति एक साथ घूमने भी गए. होटल कुछ ख़ास आरामदेह नही था. लेकिन मुझे इस बात की अधिक परवाह नही रहती,क्योंकि नयी,नयी जगहें देखना मुझे खुद को बड़ा भाता था.
अगले दिन रात को जब हम चारों हमारे कमरेमे सो रहे थे तो अचानक से मेरी आँख खुली. मुझे लगा मानो मेरे बिस्तरपे कोई है! जब तक मै सम्भलती तब तक वो व्यक्ती मेरे जिस्म पे औंधा लेट गया. मै चीखना नही चाह रही थी. डर था की ,कहीँ बच्चे उठ गए तो बेहद घबरा जायेंगे. मैंने अपना पूरा ज़ोर लगा के उस व्यक्ती को धक्का लगाया. उसी हडबडी में मेरे सिरहाने रखा हुआ पानी का घडा धडाम से गिर पडा. उस पे स्टील का ढक्कन तथा ग्लास था. उसका भी काफ़ी ज़ोरसे आवाज़ हुआ. तभी कमरे के बाहर के गलियारे में maneger ने बत्ती जलाई और पूछा, सब ठीक तो है?
वो आदमी छलांग लगा के हट गया और दरवाज़े के पासवाली दीवार को सटके खड़ा हो गया . फिर दरवाज़ा खोलके बाहर निकल गया. मै बच गयी. जानती थी,की,ये बात मेरे पती को उसी समय बताने से क़तई फायदा नही. और ऐसा हो नही सकता था,की, घड़े की आवाज़ से वो जग ना गए हों! मै हैरान हुई की,बच्चे कैसे सोते रहे!
वो रात मेरी आँखों ही आँखों में गुज़री. डर,सदमा,गुस्सा....सब कुछ इतना था की, बता नही सकती. सुबह जब मैंने मेरे पतिसे रातवाली घटना के बारे में कहना चाहा तो जनाब ने कहा," अरे! वो तो मैही था! तुम्हें इतनी भी अक्ल नही?"
मैंने अपना सर पीट लिया!! ज़ाहिरन,उस आदमी को मेरे पति की शह थी. उसकी मर्ज़ी के बिना वो आदमी ऐसा क़दम उठाने की हिम्मत नही कर सकता था! "
किस्सा सुन मै दंग रह गयी! उफ़! कैसा पति था? और ये सब करने करवाने की वजह हम दोनों की समझ के परे!!
क्रमश:
बुधवार, 15 दिसंबर 2010
दीपा 3
( गतांक: दीपाको समझ में आने से पहले वो परिणीता बन गयी! लड़के के बारे में किसी ने ख़ास खोज बीन की नही. पैसेवाला घर था,इसी में सब ख़ुश थे. वैसे भी लडकी के लक्षण ठीक नही थे !!अगर बाहर के लोग जान जाते तो और मुसीबत होती!
अजय बेहद निराश हो गया. लेकिन उम्र एक ही होने के कारण वह नौकरी भी नही कर सकता था! उसकी तो पूरी पढ़ाई होनी थी! पर उसने आनेवाले सालों में दीपाका बेहद अच्छा साथ निभाया! उसे हमेशा महसूस कराया की उसकी जद्दोजहद में वो अकेली नही है. अब आगे पढ़ें....)
दीपा ज़िंदगी की कई ज़मीनी हक़ीक़तों से अनजान थी. अट्ठारह साल की उम्र में वो ब्याहता हो गयी. हनीमून के लिए वो पति-पत्नी कश्मीर गए.उस के लिए कश्मीर घूमना ही बहुत बड़ी बात हो गयी. वैसे भी उसे घूमने का शौक़ था. यही शौक़ उस के पती को भी था.
कश्मीर से लौटे तो दीपा को आगे की पढ़ाई करने की ससुरालवालों ने इजाज़त दे दी. लेकिन महाविद्यालय जाके नही,बाहर से.उसने इतिहास विषय ले लिया. उसे कत्थक नृत्य का शौक़ था. उस ने वो भी सीखना जारी रखा.
इन दिनों में उसे जिस एक बात का परिचय हो गया वो था पती का बेहद गुस्सैल मिज़ाज. कब किस बात पे बिगड़ जाये पताही नही चलता. सिर्फ इतना ही नही....उसका दीपा पे हाथ भी उठ जाता. ....और कई बार हाथ में गर कुछ चीज़ होती तो वो भी उसके शरीर पे पड़ जाती. दीपा सुन्दर थी. ये बात भी उस के पती को असुरक्षित महसूस करा देती. सांवली-सी दीपा के दाहिने गाल पे पढने वाला भंवर उस का सब से बड़ा आकर्षण था.....और उस के लम्बे ,घने बाल!
हम उम्र सहेलियाँ और पड़ोसनों से धीरे धीरे दीपा को समझ में आने लगा की उसका पती गे है. तब तक सम लैंगिकत्व ये बात भी उसे पता नही थी. आगे चलके उसे एक लडकी और एक लड़का हुआ. लेकिन दीपा के शब्दों में शायद दो बार उस पे उसके पती ने बलात्कार कर दिया! पती को अपना न्यूनगंड खलता था और इस बात को छुपा के रखने की चाहत में वो दीपा पे बात बेबात बरस पड़ता. उस के ऐसा करना मर्दानगी थी....उस के इसी न्यूनगंड ने एक बार उससे बड़ी ही भयानक बात कर दी. कम से कम दीपा के पास" उस " घटना के स्पष्टीकरण के लिए और कोई पर्याय नही. उस घटना का विवरण मै दीपाके शब्दों में देना चाहूँगी.
क्रमश:
अजय बेहद निराश हो गया. लेकिन उम्र एक ही होने के कारण वह नौकरी भी नही कर सकता था! उसकी तो पूरी पढ़ाई होनी थी! पर उसने आनेवाले सालों में दीपाका बेहद अच्छा साथ निभाया! उसे हमेशा महसूस कराया की उसकी जद्दोजहद में वो अकेली नही है. अब आगे पढ़ें....)
दीपा ज़िंदगी की कई ज़मीनी हक़ीक़तों से अनजान थी. अट्ठारह साल की उम्र में वो ब्याहता हो गयी. हनीमून के लिए वो पति-पत्नी कश्मीर गए.उस के लिए कश्मीर घूमना ही बहुत बड़ी बात हो गयी. वैसे भी उसे घूमने का शौक़ था. यही शौक़ उस के पती को भी था.
कश्मीर से लौटे तो दीपा को आगे की पढ़ाई करने की ससुरालवालों ने इजाज़त दे दी. लेकिन महाविद्यालय जाके नही,बाहर से.उसने इतिहास विषय ले लिया. उसे कत्थक नृत्य का शौक़ था. उस ने वो भी सीखना जारी रखा.
इन दिनों में उसे जिस एक बात का परिचय हो गया वो था पती का बेहद गुस्सैल मिज़ाज. कब किस बात पे बिगड़ जाये पताही नही चलता. सिर्फ इतना ही नही....उसका दीपा पे हाथ भी उठ जाता. ....और कई बार हाथ में गर कुछ चीज़ होती तो वो भी उसके शरीर पे पड़ जाती. दीपा सुन्दर थी. ये बात भी उस के पती को असुरक्षित महसूस करा देती. सांवली-सी दीपा के दाहिने गाल पे पढने वाला भंवर उस का सब से बड़ा आकर्षण था.....और उस के लम्बे ,घने बाल!
हम उम्र सहेलियाँ और पड़ोसनों से धीरे धीरे दीपा को समझ में आने लगा की उसका पती गे है. तब तक सम लैंगिकत्व ये बात भी उसे पता नही थी. आगे चलके उसे एक लडकी और एक लड़का हुआ. लेकिन दीपा के शब्दों में शायद दो बार उस पे उसके पती ने बलात्कार कर दिया! पती को अपना न्यूनगंड खलता था और इस बात को छुपा के रखने की चाहत में वो दीपा पे बात बेबात बरस पड़ता. उस के ऐसा करना मर्दानगी थी....उस के इसी न्यूनगंड ने एक बार उससे बड़ी ही भयानक बात कर दी. कम से कम दीपा के पास" उस " घटना के स्पष्टीकरण के लिए और कोई पर्याय नही. उस घटना का विवरण मै दीपाके शब्दों में देना चाहूँगी.
क्रमश:
रविवार, 12 दिसंबर 2010
दीपा2
सबसे पहले माफी चाहती हूँ की इतने दिनों तक दूसरा भाग नही लिखा. ख़राब नेट और तबियत के चलते ये खाता हुई है!
( गतांक:" तो इतनी जल्दी शादी क्यों कर दी गयी तुम्हारी? ऐसी क्या परेशानी आन पडी थी तुम्हारे घरवालोंको?"...मैंने पूछ ही लिया..
"हाँ...बात कुछ ऐसी ही थी..."
दीपा ने सिलसिलेवार बताना शुरू कर दिया....
अब आगे).
दीपा बताने लगी तो अपने बचपन में खोती चली गयी. या यूँ कहूँ,बचपने में!!स्कूल के दिनों में उसका परिवार ऐसी जगह पे रहता था,जहाँ मकान से मकान जुड़े हुए थे...उनके आँगन भी जुड़े हुए थे. बच्चे हर समय पड़ोसियों के आते जाते रहते. माहौल ऐसा रहता जैसे एक बड़ा-सा परिवार इकट्ठे रह रहा हो.गरमी की रातों में सब के बिस्तर आँगन में लगते और एक दूसरे से गप लड़ाते हुए सब नींद की आगोश में चले जाते!
१० वी क्लास तक तो लड़के लड़कियाँ सब इकट्ठे खेलते ,इकट्ठे स्कूल जाते,पुस्तकालय जाते. आपस में किताबों का आदान प्रदान चलता. लेकिन १० वी क्लास में आते ही दीपाकी माँ ने इकट्ठे खेलने कूदने पे बंदिश लगा दी.
दीपाके पड़ोस में एक लड़का रहता था,जो था उसी क्लास में लेकिन पढता किसी अन्य शहरमे. १० वी क्लास के बाद जब गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू हुई तो पुस्तकालय से किताबें लाने का ,आपस में बाँट के पढने का सिलसिला शुरू हो गया. तब ये लड़का भी पड़ोस में आया हुआ था. दीपा की सहेली ने दीपाकी एक किताब उस लड़के को दे रखी थी. दीपा ने जब वो वापस चाही तो सहेली ने कहा,पड़ोस से ले लो.
दीपा डर गयी. माँ ने लड़कों से बोलचाल मेलजोल बंद जो कर रखा था. सहेली ने दीपाके घर से उस लड़के को आवाज़ लगा के पूछा ," किताब कब तक पढके ख़त्म होगी?'
लड़का:" हो गयी...ले जाओ चाहो तो...!"
सहेली:" बड़ी जल्दी हो गयी?"
लड़का:" हाँ! हो गयी...ले जाओ और दीपा को दे दो.लेकिन उसे कहो बाद में फिर एक बार मुझे ही दे दे!!"
दीपा जब किताब पढने बैठी तो कुछ पन्ने पलटने के बाद उसमे से एक चिट्ठी निकली. उस पे लिखा हुआ था," दीपा,मै तुम से बहुत प्यार करता हूँ! जवाब ज़रूर देना. किताब मुझे ही लौटाना. किसी और के हाथ ना लगे!"
दीपा रोमांचित हो उठी,क्योंकि लड़का उसे भी बहुत पसंद था! पर अब क्या किया जाये? उस लड़के के साथ, जिसका नाम अजय था, वो खुद तो मिल बोल सकती नही थी. माँ की पैनी निगाह रहती! उसने अपनी एक सहेली को विश्वास में लेके बताया की, माजरा क्या है. सहेली ने उनकी किताबें एक दूजे को पहुँचाने का ज़िम्मा स्वीकार कर लिया. छुट्टियों के दौरान वो उनकी थोड़ी बहुत मुलाक़ातें भी करवा देती. जब वो अपने स्कूल के शहर लौट जाता तो उसके ख़त उसी सहेली के घर पे आया करते.
इस तरह दो साल बीत गए. दीपा खतों को घर में रखने से डरा करती,लेकिन फाड़ के फ़ेंक देने का भी दीपा का मन नही करता! ऐसे में इन मकानों के पीछे वाले कूएमे वो ख़त डाल दिया करती!१२ वी क्लास में जब वो दोनों आए तो दीपा की माँ के हाथ एक ख़त पड़ गया. और इम्तेहानों के ख़त्म होते ही झट मंगनी पट ब्याह! दीपाको समझ में आने से पहले वो परिणीता बन गयी! लड़के के बारे में किसी ने ख़ास खोज बीन की नही. पैसेवाला घर था,इसी में सब ख़ुश थे. वैसे भी लडकी के लक्षण ठीक नही थे !!अगर बाहर के लोग जान जाते तो और मुसीबत होती!
अजय बेहद निराश हो गया. लेकिन उम्र एक ही होने के कारण वह नौकरी भी नही कर सकता था! उसकी तो पूरी पढ़ाई होनी थी! पर उसने आनेवाले सालों में दीपाका बेहद अच्छा साथ निभाया! उसे हमेशा महसूस कराया की उसकी जद्दोजहद में वो अकेली नही है.
क्रमश:
( गतांक:" तो इतनी जल्दी शादी क्यों कर दी गयी तुम्हारी? ऐसी क्या परेशानी आन पडी थी तुम्हारे घरवालोंको?"...मैंने पूछ ही लिया..
"हाँ...बात कुछ ऐसी ही थी..."
दीपा ने सिलसिलेवार बताना शुरू कर दिया....
अब आगे).
दीपा बताने लगी तो अपने बचपन में खोती चली गयी. या यूँ कहूँ,बचपने में!!स्कूल के दिनों में उसका परिवार ऐसी जगह पे रहता था,जहाँ मकान से मकान जुड़े हुए थे...उनके आँगन भी जुड़े हुए थे. बच्चे हर समय पड़ोसियों के आते जाते रहते. माहौल ऐसा रहता जैसे एक बड़ा-सा परिवार इकट्ठे रह रहा हो.गरमी की रातों में सब के बिस्तर आँगन में लगते और एक दूसरे से गप लड़ाते हुए सब नींद की आगोश में चले जाते!
१० वी क्लास तक तो लड़के लड़कियाँ सब इकट्ठे खेलते ,इकट्ठे स्कूल जाते,पुस्तकालय जाते. आपस में किताबों का आदान प्रदान चलता. लेकिन १० वी क्लास में आते ही दीपाकी माँ ने इकट्ठे खेलने कूदने पे बंदिश लगा दी.
दीपाके पड़ोस में एक लड़का रहता था,जो था उसी क्लास में लेकिन पढता किसी अन्य शहरमे. १० वी क्लास के बाद जब गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू हुई तो पुस्तकालय से किताबें लाने का ,आपस में बाँट के पढने का सिलसिला शुरू हो गया. तब ये लड़का भी पड़ोस में आया हुआ था. दीपा की सहेली ने दीपाकी एक किताब उस लड़के को दे रखी थी. दीपा ने जब वो वापस चाही तो सहेली ने कहा,पड़ोस से ले लो.
दीपा डर गयी. माँ ने लड़कों से बोलचाल मेलजोल बंद जो कर रखा था. सहेली ने दीपाके घर से उस लड़के को आवाज़ लगा के पूछा ," किताब कब तक पढके ख़त्म होगी?'
लड़का:" हो गयी...ले जाओ चाहो तो...!"
सहेली:" बड़ी जल्दी हो गयी?"
लड़का:" हाँ! हो गयी...ले जाओ और दीपा को दे दो.लेकिन उसे कहो बाद में फिर एक बार मुझे ही दे दे!!"
दीपा जब किताब पढने बैठी तो कुछ पन्ने पलटने के बाद उसमे से एक चिट्ठी निकली. उस पे लिखा हुआ था," दीपा,मै तुम से बहुत प्यार करता हूँ! जवाब ज़रूर देना. किताब मुझे ही लौटाना. किसी और के हाथ ना लगे!"
दीपा रोमांचित हो उठी,क्योंकि लड़का उसे भी बहुत पसंद था! पर अब क्या किया जाये? उस लड़के के साथ, जिसका नाम अजय था, वो खुद तो मिल बोल सकती नही थी. माँ की पैनी निगाह रहती! उसने अपनी एक सहेली को विश्वास में लेके बताया की, माजरा क्या है. सहेली ने उनकी किताबें एक दूजे को पहुँचाने का ज़िम्मा स्वीकार कर लिया. छुट्टियों के दौरान वो उनकी थोड़ी बहुत मुलाक़ातें भी करवा देती. जब वो अपने स्कूल के शहर लौट जाता तो उसके ख़त उसी सहेली के घर पे आया करते.
इस तरह दो साल बीत गए. दीपा खतों को घर में रखने से डरा करती,लेकिन फाड़ के फ़ेंक देने का भी दीपा का मन नही करता! ऐसे में इन मकानों के पीछे वाले कूएमे वो ख़त डाल दिया करती!१२ वी क्लास में जब वो दोनों आए तो दीपा की माँ के हाथ एक ख़त पड़ गया. और इम्तेहानों के ख़त्म होते ही झट मंगनी पट ब्याह! दीपाको समझ में आने से पहले वो परिणीता बन गयी! लड़के के बारे में किसी ने ख़ास खोज बीन की नही. पैसेवाला घर था,इसी में सब ख़ुश थे. वैसे भी लडकी के लक्षण ठीक नही थे !!अगर बाहर के लोग जान जाते तो और मुसीबत होती!
अजय बेहद निराश हो गया. लेकिन उम्र एक ही होने के कारण वह नौकरी भी नही कर सकता था! उसकी तो पूरी पढ़ाई होनी थी! पर उसने आनेवाले सालों में दीपाका बेहद अच्छा साथ निभाया! उसे हमेशा महसूस कराया की उसकी जद्दोजहद में वो अकेली नही है.
क्रमश:
शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010
दीपा 1
बड़े दिनों से सोच रही थी,दीपा के बारे में लिखने का. एक और गुत्थियोंवाली ज़िंदगी...जिसकी गुत्थियाँ सुलझाते हुए पेश करने की चाहत है.
दीपासे परिचय हुए ज्यादा समय नही हुआ. लेकिन अंतरंगता बहुत तेज़ी से बढ़ गयी. दीपा अभिनेत्री है. वैसे उसे नाटकों में काम करने का अधिक अनुभव रहा. मेरे घर पे एक छोटी फिल्म की शूटिंग होनेवाली थी. उसमे दीपा का किरदार था. उसका तथा अन्य किरदारों का साज सिंगार और परिधान मेरी ज़िम्मेदारी थी. कला दिग्दर्शन भी मेरा था. दीपा के संग परिचय इसी तरह शुरू हुआ और एकदमसे बढ़ गया जब हमें पता चला की हम दोनों का नैहर एक ही शहर का है. या वो जिस शहर में पली बढ़ी,उसके करीब ही मेरा गाँव था...मेरा नैहर था. हम पढ़े भी एकही पाठशालामे! बस फिर क्या था!!शूटिंग में जब भी ब्रेक होता हम दोनोकी अनवरत बातें चलतीं.
शूटिंग तो ख़त्म हो गयी लेकिन तीन चार रोज़ के बाद मैंने उसे दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया . पता चला की उसके शौहर का निधन हो चुका था. बातें गहराईं तो लगा कुछ तो उलझन उसके साथ रही है....मैंने हिचकते हुए पूछा," दीपा, क्या तुम्हारे पती gay थे?"
"हाँ!"दीपाने कहा तो सहजता से पर एक कसक मुझे महसूस हुई. वो आगे बोली," मेरा ब्याह हुआ तब मेरी उम्र अठारह साल की थी....ज़िंदगी के कई पहलुओं से मै अनभिग्य थी. पढ़ाई तो मेरी शादी के बाद पूरी हुई...!
" तो इतनी जल्दी शादी क्यों कर दी गयी तुम्हारी? ऐसी क्या परेशानी आन पडी थी तुम्हारे घरवालोंको?"...मैंने पूछ ही लिया..
"हाँ...बात कुछ ऐसी ही थी..."
दीपा ने सिलसिलेवार बताना शुरू कर दिया....
क्रमश:
दीपासे परिचय हुए ज्यादा समय नही हुआ. लेकिन अंतरंगता बहुत तेज़ी से बढ़ गयी. दीपा अभिनेत्री है. वैसे उसे नाटकों में काम करने का अधिक अनुभव रहा. मेरे घर पे एक छोटी फिल्म की शूटिंग होनेवाली थी. उसमे दीपा का किरदार था. उसका तथा अन्य किरदारों का साज सिंगार और परिधान मेरी ज़िम्मेदारी थी. कला दिग्दर्शन भी मेरा था. दीपा के संग परिचय इसी तरह शुरू हुआ और एकदमसे बढ़ गया जब हमें पता चला की हम दोनों का नैहर एक ही शहर का है. या वो जिस शहर में पली बढ़ी,उसके करीब ही मेरा गाँव था...मेरा नैहर था. हम पढ़े भी एकही पाठशालामे! बस फिर क्या था!!शूटिंग में जब भी ब्रेक होता हम दोनोकी अनवरत बातें चलतीं.
शूटिंग तो ख़त्म हो गयी लेकिन तीन चार रोज़ के बाद मैंने उसे दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया . पता चला की उसके शौहर का निधन हो चुका था. बातें गहराईं तो लगा कुछ तो उलझन उसके साथ रही है....मैंने हिचकते हुए पूछा," दीपा, क्या तुम्हारे पती gay थे?"
"हाँ!"दीपाने कहा तो सहजता से पर एक कसक मुझे महसूस हुई. वो आगे बोली," मेरा ब्याह हुआ तब मेरी उम्र अठारह साल की थी....ज़िंदगी के कई पहलुओं से मै अनभिग्य थी. पढ़ाई तो मेरी शादी के बाद पूरी हुई...!
" तो इतनी जल्दी शादी क्यों कर दी गयी तुम्हारी? ऐसी क्या परेशानी आन पडी थी तुम्हारे घरवालोंको?"...मैंने पूछ ही लिया..
"हाँ...बात कुछ ऐसी ही थी..."
दीपा ने सिलसिलेवार बताना शुरू कर दिया....
क्रमश:
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