( पिछली कड़ी में बताया था, की, माँ तथा पूजा किशोर के परिवार से मिलने दिल्ली गए..और वहाँ धर्मांतर सवाल उठाया गया, जो माँ को मंज़ूर नही था, और पूजा भी उसका गाम्भीर्य देख परेशान हो उठी...अब आगे पढें..)
आज ,मै पूजा, खुद आप से रु-b -रु हो रही हूँ...जिन हालातों से गुज़री...जिस मोड़ पे ये दास्ताँ हैं...उस गहराई तक, मुझे ही जाना होगा....अपने मन को टटोल खंगाल के लिखना होगा...
मेरे प्रीतम ने जब पहली बार प्यार का इज़हार किया तब एक कविता लिखी थी, जिसे दोहरा रही हूँ...और उसका अंतिम चरण आज बयाँ करती हूँ...
सूरज की किरने ताने में,
चांदनी के तार बानेमे,
इक चादर बुनी सपनों में,
फूल भी जड़े,तारे भी टाँके,
क़त्रये शबनम नमी के लिए,
कुछ सुर्ख टुकड़े भरे,
बादलों के, उष्मा के लिए,
कुछ रंग ऊषा ने दिए,
चादर बुनी साजन के लिए...
पहली फुहार के गंध जिस में,
साथ संदली सुगंध उसमे,
काढे कई नाम जिस पे,
जिन्हें पुकारा मनही मनमे,
कैसे थे लम्हें इंतज़ार के?
बयाने दास्ताँ थी आँखें,
खामोशी लिखी लबों पे,
चादर बुनी सपनों में,
क्यों बिखरे सितारे इसके?
क्यों उधडे ताने इसके?
कहाँ गए बाने इसके?
कैसे जोडूँ तुकडे इसके?
रंग औ नमी, लाऊं कहाँ से?
रौशनी लाऊं किधर से?
चांदनी की ठंडक आए कैसे?
दोबारा इसे बुनूँ कैसे?
सोच, सोच के मन बिखरता जा रहा था...जब दिल्ली से माँ और मै लौटे तो दादा-दादी से आँखें चुराने का मन हो रहा था...क्या बताती उन से? हादसे वाली बात तो कहने से रही..बाकी बातें बताते हुए माँ को सुन लिया...
मै घंटों घरके पिछवाडे की सीढियों पे बैठी रहती...या फिर नीम पे लगे झूले पे झूलती रहती..जानती थी की, मेरे घरवालों से मेरा दर्द देखा नही जा रहा था...दादा कभी चुपके-से आते और मेरे सर पे हाथ फेर जाते..मन भी और जीवन भी किसी झूले की तरह झूल रहा था...मेरा वर्तमान ज़्यादा दुःख दाई था या मेरा अनागत? क्या लिखा गया था विधी के विधान में?या ये विधान मैंने लिखना था? मेरे भाग्य में क्या अटल था?
'उन्हें' मन ही मन कई ख़त लिख डाले...कागज़ पे भी लिखे..और फाड़ के फ़ेंक दिए...मेरे किस जवाब में सभी की भलाई थी? गरिमा थी? मेरा उत्तर दायित्व क्या था? मेरी अपनी अस्मिता...उसका क्या?
एक उत्तर धीरे, धीरे स्पष्ट होने लगा....धर्मान्तरण के लिए नकार..चाहे जो हो....मै हर वो तौर तरीके अपना लेने के वास्ते तैयार थी, लेकिन, कागजात पे धर्मांतर? एक गांधीवादी परिवार में जनम लेके? मै तो ना हिन्दू थी ना मुस्लिम...थी तो केवल एक हिन्दुस्तानी..उसपे कैसे आँच आने देती?
मैंने तथा माँ ने 'उन्हें' तथा उनकी माँ को अलग अलग ख़त लिखे...जिस में स्पष्ट कर दिया की , ब्याह के लिए ये शर्त मंज़ूर नही..सब रीती रिवाज निबाह लूँगी...लेकिन ब्याह के बाद..हर काम ,हर सेवा के लिए तैयार हूँ...लेकिन ये शर्त मंज़ूर नही..और खतो किताबत एक लंबा सिलसिला शुरू हो गया...खतों के इंतज़ार का...कई बार ख़त पहुँच ने में एक माह तक लगता...पोस्टल खाते की स्ट्राइक भी हुई और रेल की भी...हमने शहर में रहने वाले हमारे फॅमिली डॉक्टर का पता दे रखा.. वरना शहर से गाँव ख़त आने में २/३ दिन और लग जाते...
प्यार की डगर कितनी कठिन है, मन समझने लगा...हे ईश्वर...! ए मेरे अल्लाह! ये दर्द किसी को नसीब ना हो..किसी के जीवन में ऐसा दौर ना आए...ऐसी कठिन स्थिती...अपना दर्द सह लूँ लेकिन मेरे अपनों का???जिन्हें मै जान से प्यारी थी उनका...जिनकी आँखों का सितारा थी...जिनकी तमन्ना थी , उनका? नही नही....
क्रमश:
शनिवार, 24 अक्तूबर 2009
शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009
Bikhare sitare-ek yebhee diwali thee..20
'वो ' तो चले गए ...जाने से पूर्व एकबार पूजा को अपनी बाँहों में भरते हुए कहा ,"गर मेरी माँ ने कहा तो , क्या तुम 'convert' हो जाओगी?"
पूजा:" हाँ!
पूजा को इसका मतलब समझ में ही नही आया. उसने ,इस का अर्थ 'धर्म परिवर्तन' से है ,ये ना समझा, ना जाना...उसपे केवल एक हिन्दुस्तानी होने के संस्कार हुए थे...उसे लगा, तमन्ना नाम हटा के वो किसी अन्य नाम से पुकारी जायेगी...या घर में होने वाले पूजा पाठ आदि में शामिल होना होगा..
उसे इन सब से क़तई ऐतराज़ नही था...मन में इतना सवाल आया, के , पूजा नाम रहेगा...जिसे उस के दादा ने इतने प्यार से रखा था...घर में तो सब 'तमन्ना ' कह बुलाते थे...लेकिन अन्य कई दोस्त/परिवार उसे 'पूजा' ,इस नाम से ही संबोधित करते थे...शायद इनकी माँ को जब ये बात पता चलेगी,की, लडकी का नाम पूजा है...वो घर के हर तौर तरीके अपना लेगी,तो उन्हें क्या फ़र्क़ पडेगा??
पूजा ने अपने घर में ये बात बतानी चाहिए, ऐसा सोचा ही नही. लड़का पूजा से तकरीबन १० साल बड़ा था...पूजा इस कारण भी उसकी अधिक इज्ज़त करती..बड़े होने के नाते,'वो' कोई गलत बात तो नही कह सकते ये विश्वास उस के मन में था..इसीलिये चुम्बन को लेके वो परेशान हो उठी थी...
' उन्हें' दो माह बाद किसी सरकारी काम से बेलगाम आना पडा...'वो' रुके तो पूजा के घर पे ही..और वहाँ काम ख़त्म होते, होते मलेरिया से बीमार हो गए...उन्हें अस्पताल में भारती कराया गया...पूजा काफ़ी समय अस्पताल में गुज़ार देती..एक दिन उस के साथ बतियाते हुए वो बोले:" तुम्हें पता है, मै तुम्हें कब से प्यार करने लगा?"
पूजा ने लजाते हुए कहा:" नही तो?"
वो:" तुम्हारे बारे में केवल सुना था तुम्हारे दादा से...तब से...तसवीर तो उन्हों ने बाद में दिखाई...और साथ में यह भी कह दिया की, 'तमन्ना की मंगनी हो चुकी है'....मै बेहद निराश हो गया इस बात को सुन के.."
पूजा लजा के लाल हुए जा रही थी..उसके मन में एक बार आया की, वह भी कुछ कहे...जो उसे लगा था,जब उसे 'इनके' बारे में बताया गया...की, उसे भी 'उन्हें' देखने से पहले ही प्यार हो गया था....वो खामोश ही रही...
तबियत ठीक होने के पश्च्यात' वो 'चले गए...उनका नाम था , किशोर...और उन के जाने के बाद फिर वही बिरह की शामे...और मदहोशी भरी तनहा रातें...पहले पहले प्यार ने ये क्या जादू कर दिया ??
एक माह बाद पूजा तथा उसकी माँ, मासूमा दिल्ली गए...लड़के के अन्य परिवार वालों से मिलने...माँ को शादी की बात भी करनी थी...घरवालों के खयालात से रु-b -रु भी होना था..
वहाँ जब 'धरम परिवर्तन' की बात चली तो माँ को ये पता चला,के, पूजा ने पहले ही हामी भर दी है...! उन्हों ने एकांत में पूजा को कोसते हुए कहा:" ये तुम ने क्या कह दिया किशोर से ?"
पूजा:" क्या कहा मैंने?"
उसने अचंभित होके माँ से पूछा...
माँ:" तुम धर्म परिवर्तन के लिए राज़ी हो, ये बात तुमने कैसे कह दी? बिना बड़ों का सलाह मशवरा लिए? मै तो हैरान रह गयी...!"
पूजा:" मैंने धरम परिवर्तन के बारे में तो नही कुछ कहा...मुझे तो 'उन्हों' ने 'convert' होने के बारे में कहा था ...मैंने तो उस बात के लिए हामी भरी थी...पूजा पाठ तो करना होगा,गर उनकी माँ की इसी में खुशी है..."
माँ:" पागल लडकी...ये काम इतना आसान नही...तुमसे कानूनन मज़हब बदलने के लिए कहा गया है...प्यार में ये कैसी शर्त ? जैसे हम लोगों ने कोई शर्त नही रखी, वैसे उन्हों ने भी तुम्हें , तुम जैसी हो स्वीकार कर लेना चाहिए..तुम शादी के बाद जो चाहे करो...शादी से पूर्व नही..और शादी के बाद भी, मै नही सलाह दूँगी...एक हिन्दुस्तानी हो, वही रहो...इस माहौल में क्या तुम खुद को ढाल पाओगी ? जब तक प्यार का नशा है तब तक ठीक...जब ज़मीनी हकीकत सामने आयेगी, तब क्या करोगी?"
माँ बोले चली जा रही थी और पूजा दंग रह गयी...! अब वो क्या करे? उसे वो पल भी याद आए, जब किशोर ने कुछ 'गलत' जगहों पे उसे छुआ था...अब वो क्या करे...? माँ को तो हरगिज़ नही बता सकती...
कुछ देर बाद किशोर ने उससे मुखातिब हो कहा:" तुमने तो धर्म परिवर्तन के लिए हाँ कर दी थी...और तुम्हारे घरवालों को ये बात ही नही पता? मेरी माँ तो इस के बिना शादी के लिए राज़ी हो नही सकती...मै माँ की इच्छा के विरुद्ध जा नही सकता...और वो तुम्हारे दादा...और भाई...उन्हें लगता है,की, इस रिश्ते को नकारते हुए उनका काम हो जायेगा?"
पूजा:" लेकिन जैसे तुम्हारी माँ को तुम दर्द नही पहुँचा सकते, मै भी नही पहुँचा सकती.."
किशोर:" लेकिन तुमने तो हामी भर दी थी..अब क्या मुकर जाओगी?"
पूजा निशब्द हो गयी..माँ ने कहा था,की, वो पूजाके दादा दादी की सलाह के बिना कुछ नही करेंगी..किशोरकी माँ का रवैय्या पूजा के साथ बेहद सख्त रहा था...वो उसे अपमानित करने का एकभी मौक़ा नही छोड़ती.."वैसे अच्छा ही हुआ, आँचल जल गया.. हमारे घरमे आना मतलाब आग से खेलना है..",उन्हों ने पूजा से कह दिया, जब पूजा के आँचल ने खिड़की में रखी अगरबत्ती से आग पकड़ ली...
उसके दादा को क्या कहेगी ?? और छोटे भाई बहन जो अपनी आपा को इतना मान देते हैं...??बहन अफशां और भाई आफताब..अब उसने कौनसा क़दम उठाना चाहिए...??? पूजा बेहद संभ्रम में पड़ गयी, और पहली बार उसे ज़बरदस्त सर दर्द ने घेर लिया...बेहद उदास और सहमी-सी हो गयी...उसके प्यार का अब क्या हश्र होगा?
आने वाली दिवाली तक तो उसके परिवार ने उसके ब्याह के बारेमे सोचा था,की, करही देंगे ...दिवाली बस आनेवाली थी...और उसके लिए क्या तोहफा था????..कभी वो किसी की तमन्ना बन, किसी की आँखों का तारा बन इस दुनिया में आयी थी...उस सितारे का क्या भविष्य था? क्या वो बिखरने वाला था...दादा-दादी के आँखों के सामने टूटने वाला था...?
क्रमश:
पूजा:" हाँ!
पूजा को इसका मतलब समझ में ही नही आया. उसने ,इस का अर्थ 'धर्म परिवर्तन' से है ,ये ना समझा, ना जाना...उसपे केवल एक हिन्दुस्तानी होने के संस्कार हुए थे...उसे लगा, तमन्ना नाम हटा के वो किसी अन्य नाम से पुकारी जायेगी...या घर में होने वाले पूजा पाठ आदि में शामिल होना होगा..
उसे इन सब से क़तई ऐतराज़ नही था...मन में इतना सवाल आया, के , पूजा नाम रहेगा...जिसे उस के दादा ने इतने प्यार से रखा था...घर में तो सब 'तमन्ना ' कह बुलाते थे...लेकिन अन्य कई दोस्त/परिवार उसे 'पूजा' ,इस नाम से ही संबोधित करते थे...शायद इनकी माँ को जब ये बात पता चलेगी,की, लडकी का नाम पूजा है...वो घर के हर तौर तरीके अपना लेगी,तो उन्हें क्या फ़र्क़ पडेगा??
पूजा ने अपने घर में ये बात बतानी चाहिए, ऐसा सोचा ही नही. लड़का पूजा से तकरीबन १० साल बड़ा था...पूजा इस कारण भी उसकी अधिक इज्ज़त करती..बड़े होने के नाते,'वो' कोई गलत बात तो नही कह सकते ये विश्वास उस के मन में था..इसीलिये चुम्बन को लेके वो परेशान हो उठी थी...
' उन्हें' दो माह बाद किसी सरकारी काम से बेलगाम आना पडा...'वो' रुके तो पूजा के घर पे ही..और वहाँ काम ख़त्म होते, होते मलेरिया से बीमार हो गए...उन्हें अस्पताल में भारती कराया गया...पूजा काफ़ी समय अस्पताल में गुज़ार देती..एक दिन उस के साथ बतियाते हुए वो बोले:" तुम्हें पता है, मै तुम्हें कब से प्यार करने लगा?"
पूजा ने लजाते हुए कहा:" नही तो?"
वो:" तुम्हारे बारे में केवल सुना था तुम्हारे दादा से...तब से...तसवीर तो उन्हों ने बाद में दिखाई...और साथ में यह भी कह दिया की, 'तमन्ना की मंगनी हो चुकी है'....मै बेहद निराश हो गया इस बात को सुन के.."
पूजा लजा के लाल हुए जा रही थी..उसके मन में एक बार आया की, वह भी कुछ कहे...जो उसे लगा था,जब उसे 'इनके' बारे में बताया गया...की, उसे भी 'उन्हें' देखने से पहले ही प्यार हो गया था....वो खामोश ही रही...
तबियत ठीक होने के पश्च्यात' वो 'चले गए...उनका नाम था , किशोर...और उन के जाने के बाद फिर वही बिरह की शामे...और मदहोशी भरी तनहा रातें...पहले पहले प्यार ने ये क्या जादू कर दिया ??
एक माह बाद पूजा तथा उसकी माँ, मासूमा दिल्ली गए...लड़के के अन्य परिवार वालों से मिलने...माँ को शादी की बात भी करनी थी...घरवालों के खयालात से रु-b -रु भी होना था..
वहाँ जब 'धरम परिवर्तन' की बात चली तो माँ को ये पता चला,के, पूजा ने पहले ही हामी भर दी है...! उन्हों ने एकांत में पूजा को कोसते हुए कहा:" ये तुम ने क्या कह दिया किशोर से ?"
पूजा:" क्या कहा मैंने?"
उसने अचंभित होके माँ से पूछा...
माँ:" तुम धर्म परिवर्तन के लिए राज़ी हो, ये बात तुमने कैसे कह दी? बिना बड़ों का सलाह मशवरा लिए? मै तो हैरान रह गयी...!"
पूजा:" मैंने धरम परिवर्तन के बारे में तो नही कुछ कहा...मुझे तो 'उन्हों' ने 'convert' होने के बारे में कहा था ...मैंने तो उस बात के लिए हामी भरी थी...पूजा पाठ तो करना होगा,गर उनकी माँ की इसी में खुशी है..."
माँ:" पागल लडकी...ये काम इतना आसान नही...तुमसे कानूनन मज़हब बदलने के लिए कहा गया है...प्यार में ये कैसी शर्त ? जैसे हम लोगों ने कोई शर्त नही रखी, वैसे उन्हों ने भी तुम्हें , तुम जैसी हो स्वीकार कर लेना चाहिए..तुम शादी के बाद जो चाहे करो...शादी से पूर्व नही..और शादी के बाद भी, मै नही सलाह दूँगी...एक हिन्दुस्तानी हो, वही रहो...इस माहौल में क्या तुम खुद को ढाल पाओगी ? जब तक प्यार का नशा है तब तक ठीक...जब ज़मीनी हकीकत सामने आयेगी, तब क्या करोगी?"
माँ बोले चली जा रही थी और पूजा दंग रह गयी...! अब वो क्या करे? उसे वो पल भी याद आए, जब किशोर ने कुछ 'गलत' जगहों पे उसे छुआ था...अब वो क्या करे...? माँ को तो हरगिज़ नही बता सकती...
कुछ देर बाद किशोर ने उससे मुखातिब हो कहा:" तुमने तो धर्म परिवर्तन के लिए हाँ कर दी थी...और तुम्हारे घरवालों को ये बात ही नही पता? मेरी माँ तो इस के बिना शादी के लिए राज़ी हो नही सकती...मै माँ की इच्छा के विरुद्ध जा नही सकता...और वो तुम्हारे दादा...और भाई...उन्हें लगता है,की, इस रिश्ते को नकारते हुए उनका काम हो जायेगा?"
पूजा:" लेकिन जैसे तुम्हारी माँ को तुम दर्द नही पहुँचा सकते, मै भी नही पहुँचा सकती.."
किशोर:" लेकिन तुमने तो हामी भर दी थी..अब क्या मुकर जाओगी?"
पूजा निशब्द हो गयी..माँ ने कहा था,की, वो पूजाके दादा दादी की सलाह के बिना कुछ नही करेंगी..किशोरकी माँ का रवैय्या पूजा के साथ बेहद सख्त रहा था...वो उसे अपमानित करने का एकभी मौक़ा नही छोड़ती.."वैसे अच्छा ही हुआ, आँचल जल गया.. हमारे घरमे आना मतलाब आग से खेलना है..",उन्हों ने पूजा से कह दिया, जब पूजा के आँचल ने खिड़की में रखी अगरबत्ती से आग पकड़ ली...
उसके दादा को क्या कहेगी ?? और छोटे भाई बहन जो अपनी आपा को इतना मान देते हैं...??बहन अफशां और भाई आफताब..अब उसने कौनसा क़दम उठाना चाहिए...??? पूजा बेहद संभ्रम में पड़ गयी, और पहली बार उसे ज़बरदस्त सर दर्द ने घेर लिया...बेहद उदास और सहमी-सी हो गयी...उसके प्यार का अब क्या हश्र होगा?
आने वाली दिवाली तक तो उसके परिवार ने उसके ब्याह के बारेमे सोचा था,की, करही देंगे ...दिवाली बस आनेवाली थी...और उसके लिए क्या तोहफा था????..कभी वो किसी की तमन्ना बन, किसी की आँखों का तारा बन इस दुनिया में आयी थी...उस सितारे का क्या भविष्य था? क्या वो बिखरने वाला था...दादा-दादी के आँखों के सामने टूटने वाला था...?
क्रमश:
मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009
bikhare sitare...19)intezaar ke pal.. !
(पिछली कड़ी में लिखा था...वो रात शायद पूजा के जीवन की सब से हसीं रात थी..आगे आने वाले तूफानों से बेखबर!)
पिया ने प्यार का इज़हार तो कर दिया ! पूजा पे मानो एक नशा-सा छा गया ...पहला प्यार और वो भी हासिल...! कितने ऐसे ख़ुश नसीब होते होंगे...और उसके सभी प्रिय जन भी ख़ुश...!
सितारों भरी रात और आधा चंद्रमा अपना सफ़र तय करता गया..मौसम तो बरसात का ,लेकिन साफ़ आसमान था..ज़बरदस्त क़हत पड़ा हुआ था......
आँगन में सब के बिस्तर बिछे थे...एक ओर दादा-दादी...घरके पिछवाडे वाले खलिहान में माँ बाबा...और बिना छत के बरामदे में वो और छोटी बहन..कुछ ही दूरीपर छोटा भाई...
दोनों बहने में एकही बड़े पलग पे थीं......पूजा तो करवट भी नही लेना चाह रही थी,की, बहन कहीँ छेड़ ना दे...! रात भर वो चाँद का सफ़र देखती रही...कल दोपहर एक बार फिर प्रीतम आनेवाले थे...ऐसा खुमार होता है, पहले प्यारका? सुबह पौं फटने वाली थी तब कहीँ जाके कुछ देर उसकी आँख लगी...और फिर सूरज की किरणे आँखों पे पडी...वो उठ गयी...
उसे डर था कहीँ आँखों के नीचे काले घेरे न पड़ जाएँ...लपक के उसने अपनी शक्ल आईने में देखी...नही लाल डोरे तो थे, लेकिन कालिमा नही थी...होठों पे सुर्खी थी...अपनेआप से वो लजा गयी....
कब होगी दोपहरी?? कब आयेंगे 'वो'?? कैसे लेंगे उससे बिदाई...?? वक़्त थमा तो नही...लेकिन इंतज़ार के पल को पूजा थामना चाह रही....और समय रुका तो नही....? ये सवाल भी मन में आ रहा था...इतनी देर हुई और घड़ी के पाँच मिनट ही कटे?
'वो' आए तो फिर एकबार उसने घर के अन्दर का रुख किया लेकिन इस बार 'उन्हें' अन्दर भेज दिया गया...पलकें झुकी रहीं...माँ रसोई में चली गयीं....और पहली बार साजन ने बाहें फैला के उसे अपने पास भीं लिया...उसको चूम लिया...पूजा इतनी नादान थी, की , चुम्बन कैसा होता है, ये उसने किसी अंग्रेज़ी फिल्म में भी नही देखा था...!
कुछ भरमा-सी गयी...उसे लगा यही 'शरीर सम्बन्ध' होता है...कुछ नाराज़गी के साथ उसने 'उन्हें' अपने से दूर किया...बाहों में भरना तो ठीक था... ! ये क्या??लेकिन नशा कम नही था...उसने अपनी हथेलियों में अपना मुख छुपा लिया...'वो' उसका चेहरा हथेलिओं से छुडाते रहे...कितना समय बीता?
माँ ने खाने के लिए आवाज़ लगाई तो वो 'उन से' खुद को छुडा के , स्नान गृह में भाग गयी...वहाँ के शीशे में देखा तो उस के होटों के आसपास ...? ये क्या लाल दाग?? और सुराही दार गर्दन कैसे छुपाये...? त्वचा पे सूर्ख दाग..? उफ़ ! ये क्या कर दिया उसके साजन ने?? सारा पोल खोल दिया...! अब वो अपने दादा-दादी माँ- बाबा के सामने कैसे जाए??उसे भूख तो बिलकुल नही थी...क्या प्यार में या बिरह में भूख मर जाती है??किताबों में पढ़ा था...फिल्मों में देखा था...आज उसके साथ घट रहा था..
एक बार फिर माँ की आवाज़ आयी...उसने अपनी साडी दोनों काँधों पर ओढ़ ली...गर्दन तो कुछ छुप गयी...लेकिन कपोलों का क्या करे? और होंट ??खानेके मेज़ पे पहुँची तो उसकी स्थिती एक चोर जैसे हो रही थी...वो अपनी निगाहें उठा नही पा रही थी..और' वो' हर मौके बे मौके उसे देख रहे थे...और वो वक़्त भी गुज़र गया...देखते ही देखते 'उनके' जाने का समय आ गया...और चले गए...
अब उसे अचानक बिरह क्या होता है, ये पता चला...अब ना जाने कब पिया मिलेंगे? ' उन्हों ने' कहा था,की, पूजा तथा उसके माँ बाबा देहली आयें...लेकिन कब??
उसके बडौदा लौट ने के दिन आ गए, परीक्षा का नतीजा लाना था...वहाँ उसे कुछ दिन रुकना था...और वहीँ उसे साजन का पहला ख़त मिला....छात्रावास में अपनी सहेलियों से वो छुपा नही पा रही थी,की, उस ख़त को वह अपने तकिये के नीचे छुपा के सोती थी..पकडी ही गयी....
परिक्षा में वो अच्छी सफलता पा गयी थी...जब लौटी तो अपने घर पे एक और ख़त इंतज़ार कर रहा था...बहन ने बड़ी छेड़ खानी करते, करते उसे वो ख़त दिया...कैसा पागल पन सवार था...!! उसके बाद आए ख़त में लिखा था, की, किसी सरकारी काम से 'उन्हें' बेलगाम आना था...और पागल पूजा दिन गिनने लगी...अबकी मुलाक़ात कैसी होगी...ना,ना...अब वो अधिक नजदीकियों से रोकेगी...ये बात ठीक नही...लेकिन कैसे?
'वो' आए...पूजा को अपने बाहों में भरते हुए, बस बिदा के पहले कहा.....क्या कहा..? उसी बात ने उसके प्यार की नींव हिला दी...उसे तो बात समझ में नही आयी...लेकिन जब पूजा और माँ, बाद में देहली पहुँचे तो उस बातका गाम्भीर्य सभीके ख्याल में आया....प्यार भरे दिल पे एक चोट का एहसास...प्यार में शर्तें?? क्या शर्त थी?? पूजा को अब क्या निर्णय लेना चाहिए था??क्या हुआ उनकी देहली के वास्तव्य में? क्या बात थी जो पूजा ने अपनी माँ या दादा दादी को नही बताई थी...या उसकी अहमियत उसे समझ नही आयी थी....?क्या भविष्य था उसके प्यार का ??
क्रमश:
पिया ने प्यार का इज़हार तो कर दिया ! पूजा पे मानो एक नशा-सा छा गया ...पहला प्यार और वो भी हासिल...! कितने ऐसे ख़ुश नसीब होते होंगे...और उसके सभी प्रिय जन भी ख़ुश...!
सितारों भरी रात और आधा चंद्रमा अपना सफ़र तय करता गया..मौसम तो बरसात का ,लेकिन साफ़ आसमान था..ज़बरदस्त क़हत पड़ा हुआ था......
आँगन में सब के बिस्तर बिछे थे...एक ओर दादा-दादी...घरके पिछवाडे वाले खलिहान में माँ बाबा...और बिना छत के बरामदे में वो और छोटी बहन..कुछ ही दूरीपर छोटा भाई...
दोनों बहने में एकही बड़े पलग पे थीं......पूजा तो करवट भी नही लेना चाह रही थी,की, बहन कहीँ छेड़ ना दे...! रात भर वो चाँद का सफ़र देखती रही...कल दोपहर एक बार फिर प्रीतम आनेवाले थे...ऐसा खुमार होता है, पहले प्यारका? सुबह पौं फटने वाली थी तब कहीँ जाके कुछ देर उसकी आँख लगी...और फिर सूरज की किरणे आँखों पे पडी...वो उठ गयी...
उसे डर था कहीँ आँखों के नीचे काले घेरे न पड़ जाएँ...लपक के उसने अपनी शक्ल आईने में देखी...नही लाल डोरे तो थे, लेकिन कालिमा नही थी...होठों पे सुर्खी थी...अपनेआप से वो लजा गयी....
कब होगी दोपहरी?? कब आयेंगे 'वो'?? कैसे लेंगे उससे बिदाई...?? वक़्त थमा तो नही...लेकिन इंतज़ार के पल को पूजा थामना चाह रही....और समय रुका तो नही....? ये सवाल भी मन में आ रहा था...इतनी देर हुई और घड़ी के पाँच मिनट ही कटे?
'वो' आए तो फिर एकबार उसने घर के अन्दर का रुख किया लेकिन इस बार 'उन्हें' अन्दर भेज दिया गया...पलकें झुकी रहीं...माँ रसोई में चली गयीं....और पहली बार साजन ने बाहें फैला के उसे अपने पास भीं लिया...उसको चूम लिया...पूजा इतनी नादान थी, की , चुम्बन कैसा होता है, ये उसने किसी अंग्रेज़ी फिल्म में भी नही देखा था...!
कुछ भरमा-सी गयी...उसे लगा यही 'शरीर सम्बन्ध' होता है...कुछ नाराज़गी के साथ उसने 'उन्हें' अपने से दूर किया...बाहों में भरना तो ठीक था... ! ये क्या??लेकिन नशा कम नही था...उसने अपनी हथेलियों में अपना मुख छुपा लिया...'वो' उसका चेहरा हथेलिओं से छुडाते रहे...कितना समय बीता?
माँ ने खाने के लिए आवाज़ लगाई तो वो 'उन से' खुद को छुडा के , स्नान गृह में भाग गयी...वहाँ के शीशे में देखा तो उस के होटों के आसपास ...? ये क्या लाल दाग?? और सुराही दार गर्दन कैसे छुपाये...? त्वचा पे सूर्ख दाग..? उफ़ ! ये क्या कर दिया उसके साजन ने?? सारा पोल खोल दिया...! अब वो अपने दादा-दादी माँ- बाबा के सामने कैसे जाए??उसे भूख तो बिलकुल नही थी...क्या प्यार में या बिरह में भूख मर जाती है??किताबों में पढ़ा था...फिल्मों में देखा था...आज उसके साथ घट रहा था..
एक बार फिर माँ की आवाज़ आयी...उसने अपनी साडी दोनों काँधों पर ओढ़ ली...गर्दन तो कुछ छुप गयी...लेकिन कपोलों का क्या करे? और होंट ??खानेके मेज़ पे पहुँची तो उसकी स्थिती एक चोर जैसे हो रही थी...वो अपनी निगाहें उठा नही पा रही थी..और' वो' हर मौके बे मौके उसे देख रहे थे...और वो वक़्त भी गुज़र गया...देखते ही देखते 'उनके' जाने का समय आ गया...और चले गए...
अब उसे अचानक बिरह क्या होता है, ये पता चला...अब ना जाने कब पिया मिलेंगे? ' उन्हों ने' कहा था,की, पूजा तथा उसके माँ बाबा देहली आयें...लेकिन कब??
उसके बडौदा लौट ने के दिन आ गए, परीक्षा का नतीजा लाना था...वहाँ उसे कुछ दिन रुकना था...और वहीँ उसे साजन का पहला ख़त मिला....छात्रावास में अपनी सहेलियों से वो छुपा नही पा रही थी,की, उस ख़त को वह अपने तकिये के नीचे छुपा के सोती थी..पकडी ही गयी....
परिक्षा में वो अच्छी सफलता पा गयी थी...जब लौटी तो अपने घर पे एक और ख़त इंतज़ार कर रहा था...बहन ने बड़ी छेड़ खानी करते, करते उसे वो ख़त दिया...कैसा पागल पन सवार था...!! उसके बाद आए ख़त में लिखा था, की, किसी सरकारी काम से 'उन्हें' बेलगाम आना था...और पागल पूजा दिन गिनने लगी...अबकी मुलाक़ात कैसी होगी...ना,ना...अब वो अधिक नजदीकियों से रोकेगी...ये बात ठीक नही...लेकिन कैसे?
'वो' आए...पूजा को अपने बाहों में भरते हुए, बस बिदा के पहले कहा.....क्या कहा..? उसी बात ने उसके प्यार की नींव हिला दी...उसे तो बात समझ में नही आयी...लेकिन जब पूजा और माँ, बाद में देहली पहुँचे तो उस बातका गाम्भीर्य सभीके ख्याल में आया....प्यार भरे दिल पे एक चोट का एहसास...प्यार में शर्तें?? क्या शर्त थी?? पूजा को अब क्या निर्णय लेना चाहिए था??क्या हुआ उनकी देहली के वास्तव्य में? क्या बात थी जो पूजा ने अपनी माँ या दादा दादी को नही बताई थी...या उसकी अहमियत उसे समझ नही आयी थी....?क्या भविष्य था उसके प्यार का ??
क्रमश:
शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009
bikhare sitare...17)kuchh bachpan kuchh yauwan
१) जहाँ पूजा ( बायीं तरफ) पहली बार अपने प्रीतम से मिली ...'उनका ' सरकारी घर २) पूजाकी दादी ३)उसके पिताजी के साथ..४) जब 'वो सुबह तारा पहली बार घर लाया गया तब परम में ली गयी एक तसवीर...आ लौट चले बचपनमे...!५)उस बाल सखी के साथ, जिसने माँ मासूमा के साथ ज़बरदस्त घात किया...६) अपने दादा जी के साइड कार पे...७) साडी में ...यौवन की दहलीज़..!८)किसकी दुल्हन बनी?
गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009
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