मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

बिखरे सितारे :भाग २: सैलाबे दर्द...

पिछले  भाग  में  पढ़ा :मकान मालकिन चाभी ले गयी, और पूजा पर गौरव औरभी गरज पडा..पूजा से बोला ना गया..बोलती भी तो उसकी कौन सुनता? उसने अपनी सास तथा जेठानी के मुखपे एक कुटिल -सी मुस्कान देखी.
और फिर इसतरह के वाक़यात का एक सिलसिला-सा बनता गया..
अब आगे:


पूजा इन हालातों में अपने आपको बेहद अकेला महसूस करने लगी...पलकों पे आँसूं तैरते रहते और वो उन्हें अन्दर  ही अन्दर पी जाती..किसे कहे..किसे सुनाये..जिसके साथ वो दो बातें प्यारकी करना चाहती, जिससे दो बातें प्यारकी सुनना चाहती, वो बडाही बेदर्द निकला...पूजा को विश्वास नही होता की,गौरव इस तरह का बर्ताव करेगा...दिन गुज़रते रहे..वो मुरझा-सी गयी...


ब्याह को तीन माह होने आए और उसके पैर भारी हो गए...एक अतीव आनंद उसके मनमे समाया...खुदके माँ बन्ने से अधिक उसे इस बात की खुशी हुई, की, उसकी माँ नानी बनेगी..उसकी दादी परनानी बनेगी...वो लोग कितने ख़ुश होंगे...और खुशी का ज़रिया उनकी लाडली पूजा तमन्ना  होगी..लेकिन विधीका विधान कुछ और था...उसे रक्त स्त्राव  शुरू हो गया, और गर्भ पात हो गया..उसके मनमे आया,काश, उसने अपने नैहर ख़त न लिखा होता..! उसके पीहर में सब कितने निराश हो जायेंगे  जब ये खबर  सुनेंगे!.सभी को पूजा की चिंता होगी..की उसका स्वस्थ तो ठीक है...


जब पूजा को  ऑपरेशन के लिए ले गए तो उसे लोकल अनेस्थेशिया  देने का भी  उस महानगर  के doctors को ध्यान नही रहा...जैसे साग सब्ज़ी  काटनी हो उस तरह से वो ऑपरेशन कर दिया गया..पूजा चींख चींख के कहती रही,की, उसे बेहद दर्द है, और डॉक्टर ने डांट दिया," इतना दर्द तो सहनाही पडेगा..."
इतना अमानवीय बर्ताव उसने कहीँ न देखा था ना  सुना था..! जब कमरेमे आयी तो पीली फक्क पड़ गयी थी..गर उसके दादी दादा उसकी ये हालत देखते तो उनपे क्या गुज़रती?


गौरव का उसके साथ बर्ताव उन्हें कितना दर्द पहुँचाता? उसने क्या करना चाहिए? चुपचाप सहना चाहिए या....?गौरव और उसके परिवारवालों को समय देना चाहिए? फिलहाल उसे चुपही रहना चाहिए...नैहर में कुछ नही बताना चाहिए,उसके मनने उसे गवाही दी...किसे पता था,की, इतनी कोमल लडकी शारीरिक मानसिक दर्द का ऐसा सैलाब थाम सकती थी?


ब्याह के छ: माह बाद उसे अपने नैहर जाने का मौक़ा मिला..उसके पिता उसे लेने आए..


क्रमश:

रविवार, 13 दिसंबर 2009

भाग २ :बिखरे सितारे:२ पीका नगर

अबतक  की  मलिका  का  सारांश: भाग  २  :बिखरे सितारे:२  पीका नगर

एक गांधी वादी,मुस्लिम परिवार में   पूजा/तमन्ना का  जन्म हुआ...उसका बचपन गाँव में बीता. दादा दादी का भरपूर प्यार उसने पाया. खुले विचारों में पली बढ़ी. लेकिन एक समस्या उसे हमेशा परेशान करती रही...अपनी माँ के प्रति दादा का सख्त व्यवहार...पिता की ओरसे भी माँ छली गयी..

यौवन की दहलीज़ पे उसकी मुलाक़ात किशोर से हुई. किशोर सरकारी, तबादलों वाली नौकरी में कार्यरत था. मुलाक़ात भी अजीब हालात में हुई...पूजाके भाईके हाथ से( जो तब केवल १२/१३ साल का था),बंदूक से गोली छूट गयी...दादाजी ने अपनी ओरसे बंदूक खाली कर दी थी,लेकिन उसमे एक गोली रह गयी थी.भाई  को भी नही पता था. खेतपर के किसी लड़के के उकसाए जानेपर, उसने उसके पैरों पर निशाना ले गोली दाग दी.

खून में लथपथ उस लड़के को दादा जी अस्पताल ले गए. लड़का तो ठीक हो गया. लेकिन दादा जी बंदूक ज़प्त कर ली गयी. उन्हों ने हादसे की ज़िम्मेदारी पूरी तरह खुद पे ले ली. वो बेहद सत्य वचनी थे.इन्ही हालातों के चलते IAS के अफसर किशोर से उस परिवार की मुलाक़ात हुई. पूजा उस वक़्त छात्रावास में थी. लौटी तो किशोर से परिचय हुआ. दोनों के मनमे प्यार पनपा.

किशोर का दिल्ली तबादला हो गया. जानेसे पूर्व उसने पूजासे अपना धरम परिवर्तन की मांग की. मासूम पूजा बात की गहराई को समझी नही और उसने हाँ कर दी.

जब पूजा की माँ और पूजा किशोर के परिवार से मिलने दिल्ली गए तो वहाँ इस बात का ज़िक्र छिड़ा. पूजा की माँ हैरान हो गयी..खुद पूजा को भी जब बात का गाम्भीर्य  पता चला तो वो भी सकते में आ गयी..उसने अपनी गलती मान ली और किशोर से इस बात का विरोध जताया. वो प्यार करके हार गयी..सपने चकनाचूर हुए.

इसमे उसके मूहसे यह बात कोशोर के चंद दोस्तों के आगे निकल गयी और वो खूब रोई. इन दोस्तों में एक गौरव भी था. गौरव ने अपने परिवार की सहमती से पूजा के साथ ब्याह करने का निर्णय लिया. पूजाके परिवार ने स्वीकार किया.

ब्याह के पश्च्यात पूजा की समझमे आ गया की, गौरव की मानसिकता किशोर से अलग नही थी...उसने चाहा की, पूजा उसके परिवारकी एहसान मंद रहे,की, उन्हों ने एक' ऐसी, लडकी से ब्याह करने की इजाज़त दी..मानो वो किसी की उतरन हो! सुहाग रात को ही पूजा को यह बात सुननी पडी और वो दर्द से  कराह उठी.

अब आगे पढ़ें:

पूजा ने अपने आप को ऐसे माहौल में बेहद अकेला पाया. पूरा दिन वो घरवालों के ताने सुनती. शाम जब गौरव घर आता, तो घरवाले पूजा के खिलाफ उसके कान भरते. पूजा को समझ में नही आया,की, गर ऐसे हालात थे,तो गौरव ने उसके साथ शादी क्यों की...उसने कुछ छुपाया नही था...

घरका सारा काम,बिना किसी नौकर चाकर के उसने संभाल लिया था, लेकिन जी जान लगा के भी, उसे ताने ही सुनने पड़ते थे.
बल्कि, जिस रात वो सब लखनऊ से दिल्ली पहुँचे उसके अगले दिन की बात:

गौरव अपनी भाई के साथ सुबह कहीँ घूमने गया. पड़ोस का एक कमरा  इन दोनों के खातिर  तीन दिनों के लिए,  लिया गया था.गौरव ने लौटते ही पूजा से पूछा
:" तुमने वहाँ झाडू लगाई?"

पूजा:" ना..नही तो..मुझे नही पता था..मै तो सवेरे ४ बजे ही नीचे आ गयी थी.."
( उस दिन करवा चौथ का व्रत था)

गौरव: " तो झाडू तुम्हारा बाप आके लगाएगा या मेरा बाप?"

गौरव ने भरे हुए घर में,सबके सामने, पूजा का अपमान किया..पूजा की आँखें भर आयीं..

पूजा:" मै अभी लगा देती हूँ..."
पूजा का इतना कहना भर था,की, उस घरकी मालकिन वहाँ आ पहुँची और बोली:" माफी चाहती हूँ, हमें आज ही कमरा चाहिए.."

पूजा के मनमे झाडू का विचार भी आता तो चाभी गौरव के पास थी...और गौरव बाहर चला गया था...

मकान मालकिन चाभी ले गयी, और पूजा पर गौरव औरभी गरज पडा..पूजा से बोला ना गया..बोलती भी तो उसकी कौन सुनता? उसने अपनी सास तथा जेठानी के मुखपे एक कुटिल -सी मुस्कान देखी.
और फिर इसतरह के वाक़यात का एक सिलसिला-सा बनता गया..

क्रमश:

.

गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

Poojaki kahani!

माफी  चाहती  हूँ ,की , पिछली  कड़ी के बाद इतना लम्बा अंतराल हो गया...२/३ दिनों के भीतर अगली कड़ी लिख दूँगी! ख़राब तबियत के कारण नही पोस्ट कर पाई...