Khoyee khoyi-see poojako ek din maa ne bata diya ki uska pyar ektarfa nahi hai..laaj aur khusheeke maare laal hoti pooja maa ke galese lipat gayee..
- पूजाकी लिखी चंद पंक्तियाँ पेश कर रही हूँ...इसकी आखरी पंक्तियाँ आज नही.... फिर कभी...
"सूरज की किरनें ताने में,
चाँदनी के तार बाने में,
इक चादर बुनी सपनों में,
फूल भी जड़े, तारे भी टाँके,
क़त्रये शबनम नमीके लिए,
कुछ सुर्ख तुकडे भरे,
बादलों के उष्मा के लिए,
कुछ रंग ऊषाने दे दिए
चादर बुनी साजन के लिए...
पहली फुहार के गंध जिसमे,
साथ संदली सुगंध उसमे,
काढे कई नाम उसपे,
जिन्हें पुकारा मनही मनमे
कैसे थे लम्हें इंतज़ार के,
बयाने दास्ताँ थी आँखें,
ख़ामोशी थी लबों पे...
चादर बुनी सपनों में..."
ऐसा ही हाल था,पूजा के मन का .....उसके साथ घरवाले भी बेहद खुश थे...उनकी आँखों का सितारा चमकने लगा था...उन आँखों की चमक उसके दादा, दादी, माँ, बहन , भाई....सभी के आँखों में प्रतिबिंबित हो रही थी...भाई काफ़ी छोटा था...फिरभी उसकी 'आपा' खुश थी, इतना तो उसे नज़र आ रहा था...
पूजा ने घरको गुल दानों में फूल पत्तियाँ लगा, खूब सजाया...लाज के मारे वो घर में किसी से निगाहें मिला नही पा रही थी...फिरभी, गुलदान सजा रही पूजा को दादा ने धीरेसे अपने गले से लगा लिया...और देरतक उसके माथे पे हाथ फेरते रहे...उनकी आँखों की नमी किसी से छुपी नही...
और पूजा की आँखें..अपने पहले प्यारको सलाम फरमा रही थीं...छुप छुप के...
दिन धीरे, धीरे सरकते रहा...शाम गहराती रही...और वो वक्त भी आया जब उसे अपने साजन की जीप की आवाज़ सुनाई दी...वो कमरेमे भाग खड़ी हुई...बहन उसे धकेल के अपने भावी जीजाके पास ले आयी...अंधेरे में उन कपोलों की रक्तिमा छुपी रही...बगीचे में अभी चाँद ऊपर निकलने वाला था..जिसमे लाज भरी अखियाँ तो नज़र आती, लालिमा नही...
कुछ देर बाद परिवार ने उन दोनों को अकेले छोड़ दिया...'उसने' पूजा की लम्बी पतली उंगली को छुआ और उसकी आँखों में झाँक के कहा,
" क्या तुम्हें एक जद्दो जहद भरी ज़िंदगी मंज़ूर है?"
पूजाने ब-मुश्किल अपनी सुराही दार गर्दन हिला दी...
रात गहराती रही...अगले दिन 'वो' दोपहर के भोजन के लिए आनेवाला था..और वहीँ से अलविदा कह दिल्ली के चल पड़ने वाला था...
वो रात कैसे कटी? ज़िंदगी की सबसे हसीं रातों में से एक रात...या...
क्रमश:
Suddenly goole transliteration has stopped functioning..sorry for the inconvenience.