बड़े दिनों बाद लिख रही हूँ. सोचती रहती थी,की,लिखूं तो क्या लिखूं? फिर अचानक कुछ अरसा पूर्व मराठी अखबार पढी हुई एक खबर दिमाग में कौंध गयी. वो खबर जब से पढी थी,तब से मन अशांत था.
खबर एक लडकी की थी. जो १०वी क्लास में पढ़ती है. नाम 'नकोशा'.उसकी स्कूल में एक शिबिर चल रहा था,उस दौरान एक समाज सेविका ने उसका नाम पढ़ा तो चौंक गयी. उन्हों ने लडकी से पूछा," क्या तुम अपने नाम का मतलब जानती हो?"
लडकी: नहीं!
समाज सेविका: यहाँ पे तुम्हारे साथ कोई आया है?
लडकी: मेरी दादी है.
जब दादी से बात हुई थी,तो उस लडकी के नाम और जनम की राम कहानी बाहर आयी. नकोशा के पहले उसके माँ-बाप को एक लडकी हुई थी. इस बार सब को लड़के की उम्मीद थी. लडकी हुई तो सब ने उसे 'नकोशी'(unwanted )कर के बुलाना शुरू कर दिया. वो ३ माह की हुई तब उसकी माँ भी चल बसी. लडकी की चाहत किसी को भी न थी,इसलिए 'नकोशी' परसे 'नकोशा ' ये नाम उसे चिपक गया.
जब नकोशा को ये बात पता चली तो पूरा दिन उसने रो के काटा.' मुझे और किसी भी नाम से बुलाओ, लेकिन ये नाम हटा दो', कह के वो बिलखती रही. पाठशाला के बच्चों ने तथा शिक्षकों ने उसे shrawanee कह के बुलाना शुरू किया. लेकिन नाम बदलने की प्रक्रिया लम्बी है.
शिक्षित,अमीर खानदानों में जहा लडकी नहीं चाहिए होती है,वहां नकोशा के अनपढ़ परिवार को कोई क्या कहे?नकोशा का ये किस्सा मुझसे भुलाये नहीं भूलता.