मंगलवार, 30 मार्च 2010

बिखरे सितारे 13: जुदाई

 (पूजा को हमेशा अपने पती से छुपके केतकी की ज़रूरतों को पूरा करना पड़ता. और बेचारी की ज़रूरतें ही कितनी-सी थी? कई बार तो उसे भूखे  पेट सो जाना पड़ता! छात्रावास का भोजनालय, केतकी जबतक लौटती, बंद हो जाता और आसपास खान पान की कोई सुविधा नहीं थी.
केतकी वास्तुशास्त्र के ३रे  सालमे आ गयी और...अब आगे पढ़ें...)

.....और अमन बी.कॉम के प्रथम वर्षमे. अमन अपने माता पिताके साथ रहता था. जब गौरव का तबादला हुआ तब अमन १२ वी कक्षा में था. उस साल उसे ३ महाविद्यालय बदलने पड़े! खैर!
वास्तुशाश्त्र के ३ रे वर्ष में जब एक बार केतकी अपने माँ पिता के पास आई हुई थी तब, उसने अपनी माँ को बताया की, उसे एक लड़का पसंद है. लड़का, राघव, इंजीनियरिंग का course कर रहा था और वो भी ३ रे साल में था. वो केतकी की बचपनकी सहेली, मुग्धा के क्लास में था.
केतकी ने एक दिन राघव की मुलाक़ात अपनी माँ तथा पितासे करवा दी. लड़का वाक़ई मेघावी और ख़ुशमिज़ाज था. अपनी माँ बाप की एकलौती औलाद. पहले तो पूजा समझी उसके माता पिता उसी शहरमे रहते हैं. उसकी खुशीका ठिकाना न रहा, क्योंकि पूजा और गौरव ने सेवा अवकाश के बाद उसी शहर में रहने का फैसला कर लिया था. लेकिन ये पूजाकी यह खुशफहमी ज़्यादा दिन टिकी नहीं. राघव छ्त्रवास में रहके पढ़ रहा था तथा, उसके माता पिता hydarabaad के बाशिंदे थे. फिरभी पूजा ख़ुश ही हुई की, कमसे कम अपने देशमे तो था!

उस साल पूजा और गौरव के विवाह को २५ साल पूरे होनेवाले थे. पूजा हर प्रकारसे अपनी शादी को खुशगवार  बनाये रखने का यत्न किया करती. उसने उस समय उनके जहाँ जहाँ तबादले हुए थे, वहाँ के सब मित्र परिवारों को न्योता दिया. कुछ उसकी अपनी स्कूलकी सहेलियाँ भी शामिल थीं. भाई  बहन के परिवार भी आए.
शादी की सालगिरह पड़ती इतवारके रोज़ थी,लेकिन शनिवार की रात को मनाने का   तय हुआ, की, बाहर से आनेवाले लोगों को लौटने में सुविधा हो. शनिवारको देर रात ,मतलब रातके एक डेढ़ बजे तक कुछ करीबी दोस्त सहेलियाँ बतियाते रहे. मतलब इतवार का दिन शुरू ही हो गया था. बहन आदि दो दिन रुक के लौटने वाले थे.

सुबह को पूजाके कमरेमे कुछ जल्दी ही खिटर  पिटर सुनाई दी. पूजा ने आँख खोली तो भी उसके पास खड़ा था...बहन के कंधेपे पर्स थी...माजरा कुछ समझमे नही आया...बहन ने पूजा के हाथ में चाय की प्याली थमाई...पूजा फटी फटी आँखों से सबको देखे जा रही थी..!
भाई बोला: "आपा आप चाय तो पियो!"
पूजा ने दो घूँट लिए और बहनसे बोली:" तू पर्स लटकाए क्यों घूम रही है?"
भाई . ने पीछे से अपनी आपा को गले लगते हुए कहा:"आपा, दादिअम्मा नहीं रहीं...सुबह, सुबह गुज़र गयीं...चलिए जाना है.."
कुछ पल तो पूजा की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई...और फिर उसे एहसास हुआ की, उसके जीवन  का एक अध्याय ख़त्म हुआ. उसके दादा तो जिस साल गौरव का यहाँ तबादला हुआ उसी साल चल बसे थे.दादिअम्मा मानो शादी का सालगिरह हो जानेके इन्तेज़ारमे थीं...

वो ज़ारोज़ार रो पडी. चाहे जिस भी उम्र में उसके दादा दादी का निधन हुआ, उन तीनो भाई बहनों के लिए वो एक सपूर्ण अध्याय का समापन था...
जब उनकी गाडियाँ  उनके फ़ार्म हाउस  के गेट से अन्दर पहुँची तो पूजा के लिए उस घरको बिना दादा दादी के देखना असह्य हो उठा..सच का सामना करना ही था...

चंद रोज़ वहाँ रुक, पूजा लौट आई...गौरव और बच्चे तो उसी रोज़ शामको लौट गए.पूजा ने अपने मनको केतकी के ब्याह के विचारों में लगाने की कोशिश की.
सालगिरह के कुछ रोज़ पहले ही पूजा ने अपनी एक सहेली के साथ मिलके अपनी कलाकृतियों की प्रदर्शनी की थी,जो बहुत कामयाब हुई थी. पूजा ख़ुश थी,की, अब उसे एक स्थायी काम मिल गया. उनका चाहे कहीं तबादला हो, उसकी सहेली उसी शहरसे देखरेख  करेगी. पूजा ने डिज़ाइन   आदिका ज़िम्मा खुदपे ले लिया था..लेकिन चंद ही रोज़ में सहेली ने अपनी मजबूरी बता दी...इतनी माथा पच्ची उसके बस की नही थी.

इधर पूजा को पता चला की, राघव तो अगले साल आगेकी पढाई के लिए अमरीका जानेवाला था....वहीँ नौकरी भी करनेवाला था...तथा, केतकी ने भी आगेकी  ( M.arch ) . के लिए वहीँ जानेकी सोच रखी थी. पूजा अंदरही अन्दर  टूटने लगी. उसकी लाडली इतनी दूर अपना घोंसला बना लेगी, उसने कभी सोचही नही था...

केतकी का आखरी साल ख़त्म हुआ औरपूजा ने अमरीका जाने की तैय्यारी शुरू कर दी. उसे शिश्यव्रुत्ती भी मिल रही थी. GRE  की तैय्यारी करने के लिए वो अपने माँ पिता के साथ रहने चली आई इनटर्न शिप उसने वहीँ से की. एन दिन कंप्यूटर के  आगे बैठ केतकी कुछ काम रही थी. पूजा  उसके लिए फल काटके ले गयी ..... प्लेट पकडाते हुए  उसने पीछेसे केतकी के गले में बाहें डाली और कहा," तुम्ही बच्चे मेरी दुनिया हो..."
केतकी ने एक झटके से उसे परे करते हुए कह दिया," माँ तुम अपनी दुनिया अब हमसे अलग बनाओ...अपनी दुनिया में हमें मत खींचो...अब मुझे पढाई करने दो प्लीज़.."
पूजा झट से हट गयी और अपने कमरे में जाके खूब रोई...उसका मानो जीने का हर सहारा छीन रहा था...वो और और अकेली पड़ती जा रही थी...गौरव तो अपने दफ्तर के काम में व्यस्त रहता...लेकिन वैसे भी औरत के इन कोमल भावों को उसने कब समझा?

  उसी समय गौरव फिर एक तबादला हुआ...अबके अमन को भी पीछे छोड़ना पड़ा क्योंकि, उसका M.BA का साल था. इसबार तबादले के पश्चात जो घर मिला वो बेहद बड़ा था...ना अडोस ना पड़ोस...केतकी आती जाती रहती...अब अपनी माँ के साथ उसका बर्ताव बेहद चिडचिडा हो गया था..पूजा का नर्वस ब्रेक डाउन हो गया था. ...केतकी इन सब बातों को अब बर्दाश्त नही कर पा रही थी. इन सब बातों के लिए उसे उसकी माँ भी उतनीही ज़िम्मेदार लग रही थी जितने के पिता..

जो भी हो माँ तो माँ थी...उसने अपनी जोभी जमा पूंजी गौरव से छुपाके राखी थी,वो केतकी के अमेरिका जानेके खर्च में लगा दी. और फिर वो दिनभी आ गया जब उसे अमरीका जाना था...हवाई अड्डे पे पूजा ,गौरव और केतकी खड़े थे..पूजा के आँखों से पिछले महीनों से रोका हुआ पानी बह निकला था...उसने अपनी लाडली के आँखों में झाँका...वहाँ भविष्य के सपने चमक रहे थे..जुदाई का एकभी क़तरा उन आँखों में नही था...एक क़तरा जो पूजा को उस वक़्त आश्वस्त करता,की, उसकी बेटी उसे याद करगी..उसकी जुदाई को महसूस करेगी...उसे उस स्कूल के दिनका एक आँसू याद आ रहा था,जो नन्हीं केतकी  ने बहाया था...जब स्कूल बस बच्ची को पीछे भूल आगे निकल गयी थी...समय भी आगे निकल गया था...माँ की ममता पीछे रह गयी थी...
क्रमश:

मंगलवार, 23 मार्च 2010

बिखरे सितारे १२: अब तेज़ क़दम राहें..

(इन्हीं दिनों केतकी को पहले तो विषम ज्वर(typhoid )    और बाद में मेंदुज्वर हो गया..पूजा की माँ, मासूमा, दौड़ी चली आयी वरना बिटिया शायद ठीक नही हो पाती...क्योंकि साथ, साथ पूजा की सासू माँ की दोनों आँखें रेटिनल detachment से चली गयीं...उनकी देखभाल की सारी ज़िम्मेदारी पूजा पे थी...इस घटना के कुछ माह पूर्व पूजा के ससुर का देहांत हो गया था..वोभी पता नही क्यों,लेकिन केतकी से खूब ही नफरत करते थे...पूजा को अपने सास-ससुर के रवैय्ये से हमेशा अफ़सोस होता...क्योंकि खुद उसने अपने दादा-दादी का बेहद प्यार पाया था....उसका जन्म किसी त्यौहार की तरह मना था...जबकि,केतकी मानो घर के लिए बोझ थी...इन बातों का नन्हीं केतकी के मन पे क्या आघात हो रहा था, किसने सोचा?भविष्य किसने देखा था?...अब  आगे  पढ़ें ...)

केतकी ९वी क्लास में आई और गौरव की माँ का देहांत हो गया..जीवन के अंतमे उन्हें यह  एहसास होने लगा था,की, उन्हों ने पूजा के साथ  काफ़ी ज़्यादती की है, लेकिन पूजा या  गौरव को यह बात नही बताई...बात तो उनके  जानेके बाद गौरव के दोस्तने पूजाको बताई..समय तो निकल चुका था..और पूजा को इस बात का अफ़सोस रहा की, अपनी दादी के चल बसने से बच्चों को क़तई दुःख नही हुआ...वो जानती थी की, दादा-दादी क्या नैमत होते हैं!

१० वी में केतकी को अच्छे मार्क्स मिले. उसने विद्यान शाखा चुनी. उसे लगाव तो पर्यावरण से था और आगे चलके वो पर्यावरण के लियेही काम करना चाहती थी लेकिन १२ वी बाद गौरव ने उसकी एक न चलने दी. अंतमे जो दूसरा पर्याय था, वास्तुशास्त्र, वह उसने चुन लिया.
१२ वी में रहते उसने अपनी माँ से Bombay Natural History Society के सभासदस्यता   के  लिए १०० रु.माँगे...गौरव ने सुन लिया और उसे बेहद डांट सुनाई," पैसे पेडपे लगते हैं जो तुने कह दिया और हम कर दें?"
बेचारी छोटा-सा मूह लेके चुप रही. बादमे पूजाने उसे पैसे दिलाये. हैरत तो इस बात की थी, की, गौरव और पूजा दोनों इस संस्था के आजीवन सदस्य थे!
केतकी के साथ लगातार नाइंसाफी होती रही. लडकी बेहद संजीदा थी. न उसे किसी latest fashion से लेना देना होता न होटल न सिनेमा...खादी या हाथ करघेके बने कपडेका  का शलवार कुरता और कोल्हापुरी  चप्पल यह उसका परिधान रहता..वो अपनी माँ के साथ होती तानाशाही भी समझती थी. माँ बेटी में अब एक दोस्ताना रिश्ता कायम होता जा रहा था. ३ साल पहले जब गौरव के व्यवहार की वजह से पूजा का nervous breakdown हुआ तो बेटी ने अपनी माँ को मानसिक रूपसे बेहद साथ दिया था..
केतकी  जब वास्तु शास्त्र के  दूसरे वर्ष में आयी तब गौरव का उस शहरसे तबादला हो गया. बिटिया को पीछे छोड़ना पड़ा..पहले एक रिश्तेदार के घर और फिर एक छात्रालय में. माँ-बेटी दोनों एक दूसरेको बेहद मिस करतीं...जब कभी पूजा तनाव में होती, अपनी माँ एक ख़त लिखती जिसकी शुरुमे एक दुखी चेहरा होता और ख़त के अंतमे एक संतुष्ट चेहरा बनाती...जैसे की, माँ को बस लिखने भरसे मन परका बोझ उतर गया हो..अफ़सोस की,पूजा ने यह ख़त जतन से सम्भालके नही रखे...आनेवाली ज़िंदगी क्या रंग दिखलाएगी किसे पता था? पूजा में  ढेरों कला गुण थे,जिसका केतकी को बहुत अभिमान था. पूजा को पाक कलामे भी महारत हासिल थी.
पूजा को हमेशा अपने पती से छुपके केतकी की ज़रूरतों को पूरा करना पड़ता. और बेचारी की ज़रूरतें ही कितनी-सी थी? कई बार तो उसे भूखे  पेट सो जाना पड़ता! छात्रावास का भोजनालय, केतकी जबतक लौटती, बंद हो जाता और आसपास खान पान की कोई सुविधा नहीं थी.
केतकी वास्तुशास्त्र के ३रे  सालमे आ गयी और...
क्रमश:

सोमवार, 15 मार्च 2010

बिखरे सितारे:11 फिसलता बचपन

अध्याय  २:बिखरे सितारे:१० फिसलता बचपन (पूर्व भाग:जब बच्ची कुछ ठीक हुई तो उसने अपनी माँ से एक कागज़ तथा पेन्सिल माँगी...और अपनी माँ पे एक नायाब निबंध लिख डाला..." जब मै बीमार थी तो माँ मुझे बड़ा गन्दा खाना खिलती थी..लेकिन तभी तो मै अच्छी हो पायी..वो रोज़ गरम पानी और साबुनसे मेरा बदन पोंछती...मुझे खुशबूदार पावडर लगती...बालों में हलके हलके तेल लगाके, धीरे, धीरे मेरे बाल काढ़ती...." ऐसा और बहुत लिखा...पूजा ने वो नायाब प्रशस्ती पत्रक उसकी टीचर को पढ़ने दिया...जो खो गया..बड़ा अफ़सोस हुआ पूजा को...

और दिन बीतते गए....बच्चे समझदार और सयाने होते गए..अब आगे पढ़ें...)

ऐसा नही था,की, पूजाकी ज़िंदगी में हलके फुल्के लम्हें आते ही नही थे...आते,लेकिन उसके बच्चों के कारण...उनके सयाने पन में  भी निहायत भोलापन  था,मासूमियत थी..
एक बार पूजा खानेकी मेज़ लगा रही थी..पास ही में TV. था...जिसपे चित्रहार चल रहा था..उसका ५/६ साल का बेटा, अमन, देख रहा था..अचानक उसने अपनी माँ से सवाल किया:" माँ ! आप  अपनी शादी के पहले बगीचे में गाना गाते थे या सड़क पे?"
पूजा बेसाख्ता हँस पडी,बोली:" अरे बेटू ये सब तो फिल्मों में होता है...ऐसे थोडेही कोई गाना गता है....!"
बेटा:" आपने कहीँ नही गाना गया?"
पूजा:' नही तो!"
बेटा:" तो फिर आपको शादी करने को किसने कहा? पापा ने आपसे कहा या आपने पपासे?"
पूजा:" हम दोनोने एक दुसरे से कहा ..."
बेटा:" क्या??तुमने भी कहा?"
पूजा:" हाँ...!"
अब बेटेकी भोली आँखें   अचरज से और भी गोल गोल   हो गयीं...!
बेटा:" तुमको इस आदमी के साथ शादी करने के लिए सलकाली ओलडल   तो नही आया था?"
अब पूजा हँस  हँस के बेहाल हुए जा रही थी...!
बेटा:" तो माँ तुम्हाला  दिमाग खलाब  हो गया था जो तुमने इस आदमी के साथ शादी की?"
पूजा हँसते,हँसते लोटपोट हुए जा रही थी...क्या कहती  की, भोलेपनमे बेटे ने हक़ीक़त कह दी थी?

देखते ही,देखते बच्चों का भोला बचपन हाथों से फिसलता जा रहा था...वक़्त की तेज़ रफ़्तार कौन रोक पाया? बिटिया का बचपन तो घर के बड़ों ने छीन लिया था...वो समय से पहले खामोश और परिपक्व हो रही थी...पूजा देख रही थी,लेकिन कुछ कर नही पा रही थी...एक अपराधबोध तले वो दबी जाती,की, बिटिया पे समझदारी थोपी जा रही थी, और पूजा हतबल होके देखती जा रही थी...

इन्हीं दिनों केतकी को पहले तो विषम ज्वर(typhoid )    और बाद में मेंदुज्वर हो गया..पूजा की माँ, मासूमा, दौड़ी चली आयी वरना बिटिया शायद ठीक नही हो पाती...क्योंकि साथ, साथ पूजा की सासू माँ की दोनों आँखें रेटिनल detachment से चली गयीं...उनकी देखभाल की सारी ज़िम्मेदारी पूजा पे थी...इस घटना के कुछ माह पूर्व पूजा के ससुर का देहांत हो गया था..वोभी पता नही क्यों,लेकिन केतकी से खूब ही नफरत करते थे...पूजा को अपने सास-ससुर के रवैय्ये से हमेशा अफ़सोस होता...क्योंकि खुद उसने अपने दादा-दादी का बेहद प्यार पाया था....उसका जन्म किसी त्यौहार की तरह मना था...जबकि,केतकी मानो घर के लिए बोझ थी...इन बातों का नन्हीं केतकी के मन पे क्या आघात हो रहा था, किसने सोचा?भविष्य किसने देखा था?
क्रमश:

शनिवार, 6 मार्च 2010

बिखरे सितारे:१० बिटिया का तोहफा.

(पूर्व  भाग :वो दिनभी आया जब बिटिया को स्कूल जाना था....उन्हीं दिनों बिटिया ने अनजाने ही अपनी माँ को एक यादगार तोहफा दिया...जिसकी क़द्र बरसों बाद पूजा को हुई...उस का एहसास हुआ,की, वो तोहफा कितना नायाब था...अब आगे पढ़ें)

केतकी ३ साल की हुई तो स्कूल  जाने लग गयी. एक दिन स्कूल से फोन आया की, वापसी पे स्कूल बस बिना उसे लिए निकल गयी है...पूजा जल्दी जल्दी स्कूल पहुँची...बच्ची को दफ्तर में बिठाया गया था..उसके गाल पे एक आँसू लटका हुआ पूजा को नज़र आया...उसने धीरेसे उसे अपनी तर्जनी से पोंछ दिया और बच्ची को  गले लगा लिया..
माँ ने वो एक बूँद पोंछी तो बिटिया बोल उठी: " मुझे डर  लगा,तुम्हें आने में देर होगी,तो, पता नही कहीँ से  ये पानी मेरे गालपे आ गया..!"
बरसों बाद जब पूजा को ये वाक़या याद आया,तो लगा, काश वो उस एक बूँद को मोती में तब्दील कर एक डिबियामे संजो के रख सकती...बिटिया से मिला वो एक बेहतरीन तोहफा था...क्या हालात हुए,जो पूजा को ऐसा महसूस हुआ? अभी तो उस तक आने में समय है...इंतज़ार करना होगा...!
दिन बीतते गए...गौरव के तबादलों के साथ बच्चों के स्कूल बदलते गए...पूजा में हर किस्म का हुनर था..उसने कभी पाक कला के वर्ग लिए तो कभी बागवानी सिखाई...कमाने लगी तो उसमे थोडा आत्म विश्वास जागा..बच्चों का भविष्य, उनकी पढ़ाई...खासकर बिटियाकी, मद्देनज़र रखते हुए, उसने पैसों की बचत करना शुरू कर दी...हर महीने वो थोडा-सा सोना खरीद के रख लेती...गुज़रते वक़्त के साथ पूजा का यह क़दम बेहतरीन साबित हुआ..
एक और बात पूजा को ता-उम्र याद रहेगी...बिटिया ५/६ सालकी थी...बहुत तेज़ बुखार से बीमार पडी..रोज़ सुबह शाम इंजेक्शन लगते...जब डॉक्टर आते तो वो उनसे कहती,: " अंकल, माँ को बोलो दूसरी तरफ देखे..उसे बोलो, मुझे बिलकुल दर्द नही होता..माँ! आँखें  बंद करो या दरवाज़े के बाहर देखो तो..."
पूजा की आँख भर आती...!
जब बच्ची कुछ ठीक हुई तो उसने अपनी माँ से एक कागज़ तथा पेन्सिल माँगी...और अपनी माँ पे एक नायाब निबंध लिख डाला..." जब मै बीमार थी तो माँ मुझे बड़ा गन्दा खाना खिलती थी..लेकिन तभी तो मै अच्छी हो पायी..वो रोज़ गरम पानी और साबुनसे मेरा बदन पोंछती...मुझे खुशबूदार पावडर लगती...बालों में हलके हलके तेल लगाके, धीरे, धीरे मेरे बाल काढ़ती...." ऐसा और बहुत लिखा...पूजा ने वो नायाब प्रशस्ती पत्रक उसकी टीचर को पढ़ने दिया...जो खो गया..बड़ा अफ़सोस हुआ पूजा को...

और दिन बीतते गए....बच्चे समझदार और सयाने होते गए...
क्रमश: