मंगलवार, 23 मार्च 2010

बिखरे सितारे १२: अब तेज़ क़दम राहें..

(इन्हीं दिनों केतकी को पहले तो विषम ज्वर(typhoid )    और बाद में मेंदुज्वर हो गया..पूजा की माँ, मासूमा, दौड़ी चली आयी वरना बिटिया शायद ठीक नही हो पाती...क्योंकि साथ, साथ पूजा की सासू माँ की दोनों आँखें रेटिनल detachment से चली गयीं...उनकी देखभाल की सारी ज़िम्मेदारी पूजा पे थी...इस घटना के कुछ माह पूर्व पूजा के ससुर का देहांत हो गया था..वोभी पता नही क्यों,लेकिन केतकी से खूब ही नफरत करते थे...पूजा को अपने सास-ससुर के रवैय्ये से हमेशा अफ़सोस होता...क्योंकि खुद उसने अपने दादा-दादी का बेहद प्यार पाया था....उसका जन्म किसी त्यौहार की तरह मना था...जबकि,केतकी मानो घर के लिए बोझ थी...इन बातों का नन्हीं केतकी के मन पे क्या आघात हो रहा था, किसने सोचा?भविष्य किसने देखा था?...अब  आगे  पढ़ें ...)

केतकी ९वी क्लास में आई और गौरव की माँ का देहांत हो गया..जीवन के अंतमे उन्हें यह  एहसास होने लगा था,की, उन्हों ने पूजा के साथ  काफ़ी ज़्यादती की है, लेकिन पूजा या  गौरव को यह बात नही बताई...बात तो उनके  जानेके बाद गौरव के दोस्तने पूजाको बताई..समय तो निकल चुका था..और पूजा को इस बात का अफ़सोस रहा की, अपनी दादी के चल बसने से बच्चों को क़तई दुःख नही हुआ...वो जानती थी की, दादा-दादी क्या नैमत होते हैं!

१० वी में केतकी को अच्छे मार्क्स मिले. उसने विद्यान शाखा चुनी. उसे लगाव तो पर्यावरण से था और आगे चलके वो पर्यावरण के लियेही काम करना चाहती थी लेकिन १२ वी बाद गौरव ने उसकी एक न चलने दी. अंतमे जो दूसरा पर्याय था, वास्तुशास्त्र, वह उसने चुन लिया.
१२ वी में रहते उसने अपनी माँ से Bombay Natural History Society के सभासदस्यता   के  लिए १०० रु.माँगे...गौरव ने सुन लिया और उसे बेहद डांट सुनाई," पैसे पेडपे लगते हैं जो तुने कह दिया और हम कर दें?"
बेचारी छोटा-सा मूह लेके चुप रही. बादमे पूजाने उसे पैसे दिलाये. हैरत तो इस बात की थी, की, गौरव और पूजा दोनों इस संस्था के आजीवन सदस्य थे!
केतकी के साथ लगातार नाइंसाफी होती रही. लडकी बेहद संजीदा थी. न उसे किसी latest fashion से लेना देना होता न होटल न सिनेमा...खादी या हाथ करघेके बने कपडेका  का शलवार कुरता और कोल्हापुरी  चप्पल यह उसका परिधान रहता..वो अपनी माँ के साथ होती तानाशाही भी समझती थी. माँ बेटी में अब एक दोस्ताना रिश्ता कायम होता जा रहा था. ३ साल पहले जब गौरव के व्यवहार की वजह से पूजा का nervous breakdown हुआ तो बेटी ने अपनी माँ को मानसिक रूपसे बेहद साथ दिया था..
केतकी  जब वास्तु शास्त्र के  दूसरे वर्ष में आयी तब गौरव का उस शहरसे तबादला हो गया. बिटिया को पीछे छोड़ना पड़ा..पहले एक रिश्तेदार के घर और फिर एक छात्रालय में. माँ-बेटी दोनों एक दूसरेको बेहद मिस करतीं...जब कभी पूजा तनाव में होती, अपनी माँ एक ख़त लिखती जिसकी शुरुमे एक दुखी चेहरा होता और ख़त के अंतमे एक संतुष्ट चेहरा बनाती...जैसे की, माँ को बस लिखने भरसे मन परका बोझ उतर गया हो..अफ़सोस की,पूजा ने यह ख़त जतन से सम्भालके नही रखे...आनेवाली ज़िंदगी क्या रंग दिखलाएगी किसे पता था? पूजा में  ढेरों कला गुण थे,जिसका केतकी को बहुत अभिमान था. पूजा को पाक कलामे भी महारत हासिल थी.
पूजा को हमेशा अपने पती से छुपके केतकी की ज़रूरतों को पूरा करना पड़ता. और बेचारी की ज़रूरतें ही कितनी-सी थी? कई बार तो उसे भूखे  पेट सो जाना पड़ता! छात्रावास का भोजनालय, केतकी जबतक लौटती, बंद हो जाता और आसपास खान पान की कोई सुविधा नहीं थी.
केतकी वास्तुशास्त्र के ३रे  सालमे आ गयी और...
क्रमश:

21 टिप्‍पणियां:

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

बिखरे सितारे १२: अब तेज़ क़दम राहें.. का पहला भाग पढ़ा.
अच्छा लगा, \ अगले भाग के इन्तजार में...
- विजय तिवारी ' किसलय '

Apanatva ने कहा…

kahanee badee lay me chal rahee hai bandhe rakhatee hai...aage kee kadee ka intzar hai......

ज्योति सिंह ने कहा…

bahut hi sundarata se kahani aage badhti jaa rahi hai ,aapki kahani me kolahpuri chappal aur khadi ka zikr dekh mujhe apne purane din yaad aa gaye jab iska chalan bahut hua karta raha ,khadi pahankar to hum bade hi huye .achchhi lagi kahani .

Basanta ने कहा…

Another heartbreaking part of your great narration. Waiting for next.

गौतम राजऋषि ने कहा…

so far so good...

अमन महाशय कहाँ छूट गये हैं? शुक्र है कि केतकी तो कम-से-कम अपने पैरों पे खड़ी होने के काबिल हो रही है।

उधर आपका ये लिखना कि "आप तो सितारों को भी रौशन कर देते हैं" मुझे मूक कर गया। काश कि सचमुच ऐसा कर पाता मैं तो अपने इन दोस्तों को तो न खोता कम-से-कम...

bhagyareema ने कहा…

It was good that Finally Puja got a friend and what is more wonderful is that it was her daughter:)

Urmi ने कहा…

कहानी बहुत ही बढ़िया और दिलचस्प लगा! अब तो अगली कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार है!

vandana gupta ने कहा…

आज आपकी ये पूरी कहानी एक बार मे पढ ली और अफ़सोस हुआ कि पहले क्यूँ नहीं आ पायी।
कमाल की लेखन क्षमता है …………………॥कहानी कम और हकीकत का आभास ज्यादा है………………पहली बार मे ही पूरी कहानी एक बार मे पढने के लिये मजबूर कर देना यही लेखन की कामयाबी है।
अगली कडी का बेसब्री से इन्तज़ार है…………

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपके श्रम को नमन!
रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!

Dev ने कहा…

लेखनी से हिन्दू समाज को जगाने का अत्यंत सराहनीय प्रयास है
रामनवमी की शुभकामनाये

Dev ने कहा…

आज पहली बार बिखरे सितारे के भाग देखे और रोचकता खुद बा खुद बन गयी

R. Ramesh ने कहा…

dhanyavad yar...u r so kind..thanks friend..:)

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

रोचकता बनी है,आगे की प्रतीक्षा है,आभार.

Kumar Koutuhal ने कहा…

बहुत गहरी अनुभूतियां और अतयंत संतुलित मनोभाव के साथ आने संस्मरण प्रस्तुत किया है बधाई।

Bhagyashree ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
रचना दीक्षित ने कहा…

क्या लेखन कला है ?कमाल है ........एकदम बाँध कर रखती है. साँस की लय भी कहानी की लय से बांध जाना चाहती है.अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी. आभार

alka mishra ने कहा…

आपकी कहानी ने तो बाँध लिया है ,आगे वाली जल्दी से सुना दीजिये

Ravi Rajbhar ने कहा…

wah...shabda nahi mere pass is lekh ki tarif ke liye..
badhai swikaren.

दीपक 'मशाल' ने कहा…

शायद दुखभरे दिन बीते रे भैया.. सुख भरे दिन आये रे.. या आने वाले हैं???

चिराग जैन CHIRAG JAIN ने कहा…

बात कहना एक साधारण कर्म है किंतु बात को सलीक़े से कहना विशेष साधना! आपकी कहानी में भाषा का प्रवाह है और पाठक को जोड़ने का सामर्थ्य। कहानी उत्सुकता को भी जन्म देती है और संतुष्ट भी करती चलती है।
शीघ्र पूरी करें……
-प्रतीक्षारत पाठक

अगर आप काव्य-कर्म से जुड़ी हैं तो कृपया www.kavyanchal.com के लिए अपनी रचनाएँ और परिचय प्रेषित करें

-संपादक (काव्यांचल.कॉम)

BANJARA ने कहा…

इस उम्दा रचना के लिए बधाई