( गतांक : मै केबिन में गयी तो डॉक्टर बोले, मै बिना किसी लागलपेट के सीधी बात कह रहा हूँ.तुम्हारे पति को AIDS है. उसके बचने की उम्मीद नही है. लेकिन तुम्हें तथा तुम्हारे बच्चों को तुरंत अपना चेकअप कराना होगा.HIV positive होने की शक्यता नकारी नही जा सकती...'
" मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गयी! हे भगवान्! बस इतनाही होना बचा था? जाते,जाते हमें ये आदमी क्या तोहफा दे चला??"
" मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गयी! हे भगवान्! बस इतनाही होना बचा था? जाते,जाते हमें ये आदमी क्या तोहफा दे चला??"
अब आगे....)
दीपाके जीवन का वो सब से भयानक दिन था....पूरी रात,वो तथा बच्चे सो नहीं पाए...एक दूसरे को बिलग के रोते रहे!
अगले दिन खून की जाँच करानी थी...विधी का क्या विधान था??किस जुर्म की सज़ा मिलनेवाली थी? लेकिन अगले दिन दीपा के पती का निधन हो गया. अब जाँच और आगे टल गयी. समाज के नियम थे जो निभाने थे.
दीपा के येभी ध्यान में आया की बैंक में पैसा बिलकुल नहीं था! गाडी तो दीपा अपने मायके में थी,तभी बिक चुकी थी! नौकरों ने आना बंद कर दिया. सब ज़ेवरात कहाँ गए,उसे कभी पता नहीं चला. बैंक के locker में कुछ भी नहीं था! यहाँ तक की दाल रोटी के भी लाले पड़ते दिखाई देने लगे!
मकान किराए का था. मकान मालिक भला आदमी था. उसने रसोई में सामान भरवा दिया. ना जाने उसे कैसे इन सब हालात का पता चला?
पति के निधन के दो हफ़्तों बाद खून की जाँच करने की मोहलत मिली. दो दिनों बाद रिपोर्ट मिलनी थी. दीपा और बच्चों का डर के मारे हाल बुरा था! एक तो आर्थिक तौर से पति ने उन्हें बिलकुल निर्धन करके छोड़ा था!ऐसे में HIV positive आता है तो समाज भी धुत्कार देगा!! क्या होगा भविष्य?कबतक ज़िंदगी मुहाल होगी? और इलाज के लिए पैसे कहाँ से आयेंगे??सारे बुरे विचार दीपा के दिलो दिमाग में आते रहे...कहते हैं,की,जो अपना मन अपने बारे में सोच लेता है,उतना बुरा तो दुश्मन भी नहीं सोच सकता!
ईश्वर की अनंत कृपा की जाँच निगेटिव आयी!इतने दिनों में एक तो अच्छी बात हुई! मकान मालिक ने तकरीबन छ: माह घर में बिना किराये के रहने की इजाज़त दे दी. दीपा ने १५००/- माह की नौकरी पकड़ ली और स्कूल में पढ़ते बच्चों ने ७५०/- रुपये माह की नौकरी कर ली! किसी तरह बच्चों के इम्तेहान पार पड़ गए...
अब मकान मालिक की बेटी हाथ धोके पीछे पड़ गयी घर खाली करने के लिए! २५००/- रुपये किराये का एक फ्लैट लिया जिसका छ: माह का किराया दीपा के भाई ने भर दिया.
इत्तेफ़ाक़ से दीपा के पति का एक plot था,जो उसके रहते बिक नहीं पाया था. दीपा के हाथ वो कागज़ात लग गए! दीपा के पिता ने अपनी ओरसे पूरी सहायता कर उस plot को दीपा के नाम करवा लिया. अब उसे बेचना और वो भी जल्दी,बेहद ज़रूरी था. इससे पहले की उसपे अन्य कोई अपना अधिकार माँग बैठे!!
दीपा की बहन भी अपनी तरफ से दीपा को आर्थिक तौरसे थोड़ी बहुत मदद करही रही थी. किसी तरह दौड़ धूप करके दीपा के भाई ने वो plot बिकवा दिया.... अब समय था,एक हलकी-सी चैन की साँस लेने का,की दीपा का भाई हार्ट attack से चल बसा ! और इस सदमे से परिवार अभी उभरा नहीं था,की, दीपाका बहनोई एक हादसे में चल बसा! दीपा के माता पिता पे अब और दो बेवाओं की ज़िम्मेदारी आन पडी....एक अपनी बहू...एक अपनी बेटी,जो पती के निधन के बाद अपने मायके चली आयी. दीपा के सभी सहारे टूटते गए!तीन बहन भाई.....और एक भी परिवार सम्पूर्ण नहीं...सुखी नहीं!
दूसरी ओर दीपा को पता चला की,नरेंद्र अभी भी उसकी आस लगाये बैठा है!
क्रमश: