शनिवार, 25 जून 2011

प्यार तेरे रंग हज़ार! 2

( गतांक:मेरा किरदार यहाँ क्या था? मैंने कौनसा रोल निभाया....या निभाने की कोशिश की,ये अगली बार....बड़े ही फ़िल्मी ढंगसे यहाँ प्रेम का एक त्रिकोण बनता जा रहा मुझे नज़र आ रहा था...अब आगे...)

मै अक्सर अपने स्क्रैप पे कोई कविता या नज़्म  लिखती  रहती. कई लोग उसे पसंद करते,उनमे से अर्चना एक थी. उसने मुझसे एक दिन पूछा," क्या मै तुम्हारी रचनाओं संकलन कर सकती हूँ?"
मैंने जवाब में कहा," क्यों नहीं? खुशी से करो!"
जब अर्चना को समय नहीं मिलता तो ये काम उसके लिए आयुषी कर दिया करती.

 एक दिन मैंने हमारी एक common सहेली के स्क्रैप पे आयुषी का कमेन्ट पढ़ा," क्या तुमने देखा सौगात दोबारा rediffconnxions पे लौटा है...उसने अपनी फोटो भी लगाई है और अर्चना के लिए मेसेज भी छोड़ा है?"
उस महिला का जवाब पढने मै आयुषी के स्क्रैप पे गयी. वहाँ उसने लिखा था," हाँ देखा और पढ़ा...जिसमे अर्चना को खुशी मिले ,सौगात वही कर रहा है तो करने दो....दोनों खुश रहें...god bless them both !"

मै उत्सुकतावश अर्चनाके स्क्रैप पे गयी. वहाँ सौगात का मेसेज था," तुम्हें सालगिराह बहुत,बहुत मुबारक हो! आज सुबह मुमानी जान के यहाँ कई तरीकों से तुम्हें बधाई देने के बाद, तुम्हारी इच्छा के अनुसार मै स्क्रैप पे भी तुमसे  अपने दिलकी बात कह रहा हूँ...आय  लव यू....आय लव यू,आय लव यू!"


अर्चना शादीशुदा थी और सौगात इतने खुलेआम अपने प्यार का इज़हार उससे कर रहा था? बात मुझे ज़रा अटपटी तो लगी! मै लिंक लेके सौगात के स्क्रैप पे गयी....देखना चाह रही थी,की,अर्चना ने उसका क्या जवाब दिया! 
अर्चना ने लिखा था," I adore you & will always adore you!"
 एक तरह से इतना निडर होके अपने प्यार का इज़हार करना....सौगात की ये बात मुझे अच्छी भी लगी. मैंने पर्सनल मेसेज बॉक्स में अर्चना को एक ख़त लिखा," अर्चना! ज़िंदगी हर किसी को खुश रहने का दोबारा मौक़ा नहीं देती. गर तुम्हें ये मौक़ा मिल रहा है तो मै तुम्हारे साथ हूँ....गँवाना नहीं...तुम ने मेरी कहानी," आकाशनीम" पढी ना?"

अर्चना का जवाब आया," सौगात को मै बचपन से जानती हूँ...उसके दिलकी हर बात मुझे पता रहती है......ऐसा नहीं की,मेरी शादी के लिए मैंने कम तकलीफें उठाई. ये शादी भी मेरी मर्ज़ी से हुई है...मेरी ज़िद से हुई है...बस .....! शायद ज़िंदगी में कई लोगों को कुछ हासिल हो जाने के बाद उसकी कद्र नहीं रहती.....शायद मेरे शौहर को भी वो कद्र नहीं रही... वैसे भी सब कुछ छोड़ देना इतना आसान नहीं...हाँ! कभी,कभी जी करता है,घंटों बैठ के रोती रहूँ! वो तो मेरी मसरूफियत है,जो मुझे रोने धोने का समय नहीं देती...!
वैसे मैंने "नीले पीले फूल" भी तो पढी...शायद मेरी ज़िंदगी इन दोनों कहानियों का मिश्रण है!"

मैंने लिखा," भगवान करे,तुम हमेशा इतनी मसरूफ़ रहो की,रोने धोने का तुम्हें मौक़ा  ही न मिले!"

इन सब बातों के चलते मैंने गौर किया की,आयुषी बड़े दिनों से स्क्रैप पे कुछ लिख नहीं रही है. ना मेरे पूछने पर ही कुछ जवाब दे रही है! इसे क्या हो गया? ये जो मेरे तथा अर्चना के लिए कहती थी," तुम दोनों मेरे लिए दो नायाब रत्न हो....!"कहाँ खो गयी है? 


क्रमश:




गुरुवार, 16 जून 2011

प्यार तेरे रंग हज़ार..

चंद साल पूर्व मै rediffconnexion की मेम्बर बनी. स्क्रैप पे जो प्रोफाइल था वहाँ मैंने अपना वर्क प्रोफाइल डाला. जिन विषयों में मेरी रुची थी....जो मेरे रोज़गार के भी ज़रिये थे,मैंने उन सभी के बारे में विस्तार से जानकारी दी थी.हफ्ते भर के अन्दर मै निराश हो गयी. मुझसे दोस्ती के लिए सब हाथ बढ़ा रहे थे,मेरे कामकाज में किसी को रुची नहीं थी. 

मैंने जल्द ही जो मालूमात ज़रूरी नहीं थी,तुरंत हटा दी. अपना सेल नंबर भी हटा दिया.गर कोई पूछता," आप कहा रहती हैं,तो मेरा जवाब होता,"हिंदी हैं हम,वतन है हिन्दोस्तान हमारा!"

खैर ! ऐसे ही निराशा के दौर में कुछ अच्छे दोस्त मिले. खासकर दो महिलाएँ थीं,जो मुझसे बड़े प्यारसे पेश आतीं...अर्चना जो एक डॉक्टर थी और विवाहिता.आयुषी,जो अपनी पढाई पूरी कर चुकी थी. जॉब के तलाश में थी. अर्चना और आयुषी की  मुझसे पहलेही आपस में जानपहचान थी.मतलब कुछ चंद माह पूर्व.मेल मिलाप नहीं.
मैंने अपने प्रोफाइल पे अपनी एक फोटो लगा रखी थी,जिसमे मैंने बडाही पारंपरिक पोशाख पहना था.सर चुनर से ढंका हुआ था. अन्य सदस्यों  की तरह,इन दोनोको भी इस तस्वीर ने आकर्षित किया.
आयुषी तथा अर्चनाने अपनी कोई तस्वीर नहीं लगाई थी. 

खैर समय बीतता रहा.एक दिन किसी अन्य सदस्य ततः आयुषी के बीच हुआ सम्वाद मैंने उन्हीं के स्क्रैप पे पढ़ा. मै अचानक सजग हो गयी. कुछ तो कहीं गड़बड़ है.....यहाँ पे एक तीसरे,बेहद सुदर्शन युवक का पदार्पण हुआ.नाम था उसका ,सौगात.और इसी के साथ,साथ,कुछ रिश्तों  की गुत्थियाँ बनी और धीरे,धीरे सुलझने भी लगीं.सुलझी....मतलब मेरे सामने कुछ अधिक स्पष्ट होता गया.इस गुत्थी में जो किरदार फंसे थे,वो तो फंसे ही रहे.ये एक अनजान दुनियामे क़दम रखने की फिसलन थी.....उसकी कीमत चुकानी थी,या दर्द सहना था....जोभी हो....इन सबसे निपटना और खुशी,खुशी बाहर निकलना ना -मुमकिन-सा लग रहा था...

मेरा किरदार यहाँ क्या था? मैंने कौनसा रोल निभाया....या निभाने की कोशिश की,ये अगली बार....बड़े ही फ़िल्मी ढंगसे यहाँ प्रेम का एक त्रिकोण बनता जा रहा मुझे नज़र आ रहा था...
क्रमश: