(इन्हीं दिनों केतकी को पहले तो विषम ज्वर(typhoid ) और बाद में मेंदुज्वर हो गया..पूजा की माँ, मासूमा, दौड़ी चली आयी वरना बिटिया शायद ठीक नही हो पाती...क्योंकि साथ, साथ पूजा की सासू माँ की दोनों आँखें रेटिनल detachment से चली गयीं...उनकी देखभाल की सारी ज़िम्मेदारी पूजा पे थी...इस घटना के कुछ माह पूर्व पूजा के ससुर का देहांत हो गया था..वोभी पता नही क्यों,लेकिन केतकी से खूब ही नफरत करते थे...पूजा को अपने सास-ससुर के रवैय्ये से हमेशा अफ़सोस होता...क्योंकि खुद उसने अपने दादा-दादी का बेहद प्यार पाया था....उसका जन्म किसी त्यौहार की तरह मना था...जबकि,केतकी मानो घर के लिए बोझ थी...इन बातों का नन्हीं केतकी के मन पे क्या आघात हो रहा था, किसने सोचा?भविष्य किसने देखा था?...अब आगे पढ़ें ...)
केतकी ९वी क्लास में आई और गौरव की माँ का देहांत हो गया..जीवन के अंतमे उन्हें यह एहसास होने लगा था,की, उन्हों ने पूजा के साथ काफ़ी ज़्यादती की है, लेकिन पूजा या गौरव को यह बात नही बताई...बात तो उनके जानेके बाद गौरव के दोस्तने पूजाको बताई..समय तो निकल चुका था..और पूजा को इस बात का अफ़सोस रहा की, अपनी दादी के चल बसने से बच्चों को क़तई दुःख नही हुआ...वो जानती थी की, दादा-दादी क्या नैमत होते हैं!
१० वी में केतकी को अच्छे मार्क्स मिले. उसने विद्यान शाखा चुनी. उसे लगाव तो पर्यावरण से था और आगे चलके वो पर्यावरण के लियेही काम करना चाहती थी लेकिन १२ वी बाद गौरव ने उसकी एक न चलने दी. अंतमे जो दूसरा पर्याय था, वास्तुशास्त्र, वह उसने चुन लिया.
१२ वी में रहते उसने अपनी माँ से Bombay Natural History Society के सभासदस्यता के लिए १०० रु.माँगे...गौरव ने सुन लिया और उसे बेहद डांट सुनाई," पैसे पेडपे लगते हैं जो तुने कह दिया और हम कर दें?"
बेचारी छोटा-सा मूह लेके चुप रही. बादमे पूजाने उसे पैसे दिलाये. हैरत तो इस बात की थी, की, गौरव और पूजा दोनों इस संस्था के आजीवन सदस्य थे!
केतकी के साथ लगातार नाइंसाफी होती रही. लडकी बेहद संजीदा थी. न उसे किसी latest fashion से लेना देना होता न होटल न सिनेमा...खादी या हाथ करघेके बने कपडेका का शलवार कुरता और कोल्हापुरी चप्पल यह उसका परिधान रहता..वो अपनी माँ के साथ होती तानाशाही भी समझती थी. माँ बेटी में अब एक दोस्ताना रिश्ता कायम होता जा रहा था. ३ साल पहले जब गौरव के व्यवहार की वजह से पूजा का nervous breakdown हुआ तो बेटी ने अपनी माँ को मानसिक रूपसे बेहद साथ दिया था..
केतकी जब वास्तु शास्त्र के दूसरे वर्ष में आयी तब गौरव का उस शहरसे तबादला हो गया. बिटिया को पीछे छोड़ना पड़ा..पहले एक रिश्तेदार के घर और फिर एक छात्रालय में. माँ-बेटी दोनों एक दूसरेको बेहद मिस करतीं...जब कभी पूजा तनाव में होती, अपनी माँ एक ख़त लिखती जिसकी शुरुमे एक दुखी चेहरा होता और ख़त के अंतमे एक संतुष्ट चेहरा बनाती...जैसे की, माँ को बस लिखने भरसे मन परका बोझ उतर गया हो..अफ़सोस की,पूजा ने यह ख़त जतन से सम्भालके नही रखे...आनेवाली ज़िंदगी क्या रंग दिखलाएगी किसे पता था? पूजा में ढेरों कला गुण थे,जिसका केतकी को बहुत अभिमान था. पूजा को पाक कलामे भी महारत हासिल थी.
पूजा को हमेशा अपने पती से छुपके केतकी की ज़रूरतों को पूरा करना पड़ता. और बेचारी की ज़रूरतें ही कितनी-सी थी? कई बार तो उसे भूखे पेट सो जाना पड़ता! छात्रावास का भोजनालय, केतकी जबतक लौटती, बंद हो जाता और आसपास खान पान की कोई सुविधा नहीं थी.
केतकी वास्तुशास्त्र के ३रे सालमे आ गयी और...
क्रमश:
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मंगलवार, 23 मार्च 2010
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