( इसके पहली किश्त में पूजा की मंगनी की बात बताई थी...अब आगे..)
पूजा ने अपनी मंगनी करवाके बचपना किया...जैसे समय बीतता रहा..उसे अपनी गलती महसूस हो रही थी...जो लड़का उस पे जान निछावर करता था,उसकी इज्ज़त तो करती,लेकिन प्यार या कोई आकर्षण ने दिलके द्वारों पे दस्तक नही दी..लड़के की माँ, पूजा पे वारे न्यारे थी..उसके मुँह से अनजाने में निकला शब्द वो तुंरत झेल लेती...ऐसी सास ढूँढे मिलना मुमकिन नही था..लेकिन गर जिसके साथ जीवन बिताना हो, उसके प्रती कोईभी कोमल भावना न हो तो, दोनों ओरसे जीवन नरक बन सकता था.....जब वो लड़का ३/४ चक्कर काट लेता,तब जाके पूजा उससे मिलने आगे आती...और कुछ ना कुछ बहाना बना, १०/१५ मिनटों मे चल देती...वो एक दोराहे पे आ खड़ी थी ...
पूजा ने अपनी मंगनी करवाके बचपना किया...जैसे समय बीतता रहा..उसे अपनी गलती महसूस हो रही थी...जो लड़का उस पे जान निछावर करता था,उसकी इज्ज़त तो करती,लेकिन प्यार या कोई आकर्षण ने दिलके द्वारों पे दस्तक नही दी..लड़के की माँ, पूजा पे वारे न्यारे थी..उसके मुँह से अनजाने में निकला शब्द वो तुंरत झेल लेती...ऐसी सास ढूँढे मिलना मुमकिन नही था..लेकिन गर जिसके साथ जीवन बिताना हो, उसके प्रती कोईभी कोमल भावना न हो तो, दोनों ओरसे जीवन नरक बन सकता था.....जब वो लड़का ३/४ चक्कर काट लेता,तब जाके पूजा उससे मिलने आगे आती...और कुछ ना कुछ बहाना बना, १०/१५ मिनटों मे चल देती...वो एक दोराहे पे आ खड़ी थी ...
मंगनी तकरीबन दो साल टिकी रही..वो लड़का जब कभी पूजाको छात्रावास में मिलने आता,पूजा टाल जाती..कभी,नीचे रखवाल दार को कह देती,मै वाचनालय में हूँ...या और कहीँ......' एक उदासी का आलम उसपे घिर आने लगा...कुछ तो निर्णय लेना ही था..वरना लड़के तथा उसके परिवारपे घोर अन्याय था..
पूजा के दिलो दिमाग़ पे इस बात का विपरीत असर होने लगा...स्नातकोत्तर हुई,पहली सेमिस्टर मे महा विद्यालय का रिकॉर्ड तोड़ने वाली पूजा, सालाना इम्तेहान के समय बीमार रहने लगी...पढ़ा हुआ भूल जाने लगी...
fine आर्ट्स में पोस्ट graduation का एक साल ख़त्म होनेवाला था..माँ उसे परिक्षा के पूर्व मिलने आयी और बताया कि, उनके शहर एक आईएस का लड़का assitant कलेक्टर बनके आया है...परिवार से घुल मिल गया है...
पूजा के दिलो दिमाग़ पे इस बात का विपरीत असर होने लगा...स्नातकोत्तर हुई,पहली सेमिस्टर मे महा विद्यालय का रिकॉर्ड तोड़ने वाली पूजा, सालाना इम्तेहान के समय बीमार रहने लगी...पढ़ा हुआ भूल जाने लगी...
fine आर्ट्स में पोस्ट graduation का एक साल ख़त्म होनेवाला था..माँ उसे परिक्षा के पूर्व मिलने आयी और बताया कि, उनके शहर एक आईएस का लड़का assitant कलेक्टर बनके आया है...परिवार से घुल मिल गया है...
इस लड़के से उनके परिवार का परिचय कैसे हुआ?
यही बताने जा रही हूँ...कारण वही हादसा था...जिस बंदूक से गोली चली थी,दादा जी ने वो बन्दूक तुंरत तहसील के दफ्तर में जमा करा दी थी..उसे जमा करके भी दो साल हो गए थे...दर असल,ये बन्दूक, एक जर्मन डॉक्टर ने उन्हें भेंट दी थी...
परवाने लिए उन्हों ने तहसीलदार के दफ्तर में आवेदन पत्र भी भेज रखा था....और ये आवेदन पत्र उन्हों ने हादसे के दो वर्ष पूर्व भेजा था...!सरकारी कारोबार था..दादाजी जब भी पता करने जाते, कुछ न कुछ बहाने बनाके उन्हें टाल दिया जाता....उस बंदूक को वापस हासिल करने तथा उसका परवाना चाहने, दादा तथा पूजा के पिता, assistant कलेक्टर से मिलने तहसील के दफ्तर मे चक्क्कर काटते रहते..
इन दो ढाई सालों मे कई अफसर आए और गए...काम नही बना..अबके एक IAS का अफसर आया है, शायद, अधिक ईमानदार होगा सोच, दोनों मिलने गए...और...... और वो लड़का विलक्षण प्रभावित हुआ...पिता पुत्र दोनों इज्ज़त दार लोग हैं,ये उसे तफ़तीश के बाद पता चला..दोनोका अंग्रेज़ी भाषा पे प्रभुत्व देखके भी वो दंग रह गया...इस पिछडे,दूर दराज़ ग्राम मे, oxford मे पढ़े लोग? हैरानी की बात थी......धीरे,धीरे पता चलता गया,कि, दादा दादी ने इस देश के ख़ातिर ,सारा ऐशो आराम छोड़ दिया था....बेलगाम के एक गाँव मे आ बसे थे...वो लड़का कर्नाटक कैडर का था....
यही वजह रही कि,उस परिवार के साथ उस अफसर की नज़दीकियाँ बढीं...वो उनके घर भी आने जाने लगा..अपने अन्य मित्रों कोभी( जो आस पास के इलाकों मे कार्यरत थे), कई बार साथ ले आता... ...ये फिल्मों मे दिखायी जानेवाली ज़मीदारों की कहानी नही थी...बल्कि, जब हादसा हुआ, और दादा जी पुलिस स्टेशन पहुँचे, तो स्थानीय पुलिस, जो दादा जी की बेहद इज्ज़त करते थे,उन्हों ने सलाह दी," आप FIR मे दर्ज करें,कि, जिस बंदूक का आपके पास परवाना था, गोली उसी से छूटी...तथा, पहले वकील बुलाके और फिर कुछ भी दर्ज कराएँ....."परवाने लिए उन्हों ने तहसीलदार के दफ्तर में आवेदन पत्र भी भेज रखा था....और ये आवेदन पत्र उन्हों ने हादसे के दो वर्ष पूर्व भेजा था...!सरकारी कारोबार था..दादाजी जब भी पता करने जाते, कुछ न कुछ बहाने बनाके उन्हें टाल दिया जाता....उस बंदूक को वापस हासिल करने तथा उसका परवाना चाहने, दादा तथा पूजा के पिता, assistant कलेक्टर से मिलने तहसील के दफ्तर मे चक्क्कर काटते रहते..
इन दो ढाई सालों मे कई अफसर आए और गए...काम नही बना..अबके एक IAS का अफसर आया है, शायद, अधिक ईमानदार होगा सोच, दोनों मिलने गए...और...... और वो लड़का विलक्षण प्रभावित हुआ...पिता पुत्र दोनों इज्ज़त दार लोग हैं,ये उसे तफ़तीश के बाद पता चला..दोनोका अंग्रेज़ी भाषा पे प्रभुत्व देखके भी वो दंग रह गया...इस पिछडे,दूर दराज़ ग्राम मे, oxford मे पढ़े लोग? हैरानी की बात थी......धीरे,धीरे पता चलता गया,कि, दादा दादी ने इस देश के ख़ातिर ,सारा ऐशो आराम छोड़ दिया था....बेलगाम के एक गाँव मे आ बसे थे...वो लड़का कर्नाटक कैडर का था....
लेकिन दादा जी ने साफ़ इनकार कर दिया...उस बात का भी बयान दूँगी...
उस हादसे के कुछ तपसील देना चाहती हूँ...वो बिना परवानेकी बन्दूक दादाजी हमेशा dismantle करके रखते..कभी कबार अलमारी से बाहर निकाल, उसकी साफ़ सफाई करते,और वापस अन्दर चली जाती...गाँव या बस्ती से दूर बने घरमे सुरक्षाके लिए बन्दूक ज़रूरी थी..बल्कि,एक बार किसीकी चींख सुन उन्हों ने हवा में गोली दाग दी थी...चोर एक औरत का हाथ काटते काटते भाग गए....! उसके हाथ से चांदीके भारी कड़े निकल नही रहे थे,तो हाथ काटने चले थे...
दादा जी वचन और अल्फाज़ के सच्चे थे..बोले," क़तई नही..ये तो मेरे पोते-पोतियों पे कितना ग़लत असर होगा..दादा ने झूठ कहा? सवाल ही नही..जो परिणाम होने वाले हों, सो हों..मै वही कहूँगा,जैसा की घटा.."
घटना कैसे घटी थी? दादा जी ने बन्दूक को साफ़ किया..तभी भैंसे दूधने के खातिर ग्वाला चला आया...दादा अपने सामने दूध निकलवाते...ताकि, ग्वाला एक बूँद भी पानी न मिला सके...और दूध मशहूर था..ऐसी मलाई, ऐसा गाढा दूध और कहीँ नही मिलता था...लोग इस ढूध के खतिर क़तार लगाये रहते..
जो व्यक्ती हमेशा हर चीज़ मे बेहद सतर्क रहता, वो बंदूक को वापस बिना अलमारी मे रखे चला गया..गोलियाँ बाहर निकली हुई हटीं..१२ गोलियां तो उन्हों ने उठाके, मेज़ की दराज़ मे रख दी थीं...
पूजा का छोटा भाई जब बाहर निकला तो बरामदे मे पड़ी बंदूक उसे दिखी...वो इतनी छोटी उम्र मे भी बेहतरीन निशाने बाज़ था...गुलेल से एक ही बार मे आम का या चीकू का फल टहनी से अलग कर देता..air gun भी बहुत ख़ूब चलाता..उसके लिए तो परवाने की ज़रूरत नही थी...चूहे भी मार गिराता...जो कि, खेती का नुकसान करते...
उसने जैसे ही बंदूक हाथ मे पकडी, सामने से बस्ती परका एक लड़का आया..उसी की उम्र का..उस लड़के ने भाई से उकसाते हुए कहा,
"चलाओ तो मुझ पे गोली...!"
वो भी खूब जनता था,कि, अगला कभी नही चलाएगा!
दादा जी की एक एहतियातन ताकीद थी...जब कभी निशाना check करना हों, हमेशा, ज़मीन की ओर..कभी ऊपर नही...राजू, (छोटे भाई को सब यही बुलाते) कभी भी किसी के ऊपर गोली नही दाग सकता...
खेलही खेल मे, राजू ने, उस लड़के की पैर की ओर निशाना लिया और बंदूक का ट्रिगर दबा दिया...
जैसा कि, दादा या अन्य परिवार वाले समझते थे,कि, बंदूक मे केवल १२ गोलियाँ होती हैं,वो बात सही नही थी...उसमे १३ गोलियाँ हुआ करतीं..आखरी गोली चल गयी..उस सुनसान खेतमे एक ज़ोरदार धमाका हुआ...पूजा तो थी नही...अन्य परिवारवाले दौडे...उस हादसे को बरसों बीते लेकिन,उस गोली की गूँज कोई नही भूला...या भुला सकता...
पूजा छात्रावास मे थी,जब ये घटना घटी....स्नातक पूर्व पढ़ाई चल रही थी...इसी अनुगूंज का असर पूजा की गैर मौजूदगी होके भी, उसके जीवन पे बेहद गहरा हुआ, ता-उम्र हुआ......उन परिणामों की चर्चा बाद मे....! जब उस IAS अफसर से पूजा के परिवार की मुलाक़ात हुई,तब पूजा, स्नातकोत्तर पढाई की एक साल पूरा कर चुकी थी...
लड़का तो नीचे गिर गया...बंदूक कमर से नीचे चली थी...दादा उसे लेके तुंरत अस्पताल दौडे...
अब एक बाप की नीयत देखिये..जिस बच्चे को गोली लगी थी,उसके बाप को अपने बेटे की जान प्यारी नही थी...और भी तो बच्चे थे..उसे तो पैसे निकलवाने थे! वो जाके छुप गया...चूँकि, दादा को पूरा शहर जानता था, पुलिस केस के पहले ही, दादा जी की सही लेके, surgery शुरू कर दी गयी..दादा जी बाद मे पुलिस स्टेशन पहुँचे..इज्ज़त इतनी थी,कि, हादसे के बारेमे जिस किसी ने सुना,( तबतक फ़ोन तो नही थे), वो सारे उनकी ज़मानत देने दौडे चले आए...
आगे, आगे क्या अंजाम हुए ?? क़िस्मत ने क्या रंग दिखाए? श्रवण कुमार ने शाप तो महाराजा दशरथ को दिया..लेकिन किस, किस ने भुगता?
पूजा के जीवन के दर्दनाक मोड़ तो उसी दागी गयी गोली के साथ शुरू हों गए...या और पीछे जायें,तो जब उसका पाठशाला मे रहते जो हादसा हुआ, तब से शुरू हुए...? तय करना कठिन है...जैसे मालिका आगे बढेगी...पाठक अपने अनुमान लगा लेंगे...कि, इस सवाल का जवाब किसी के पास नही...
एक मासूम, निर्दोष कथा नायिका का भविष्य क्या रहा? क्यों छली गयी एक निष्कपट लडकी ??
क्रमश:
10 टिप्पणियां:
इस कड़ी में पहली मंगनी का हश्र नहीं बताया आपने ,ऐसा लग रहा है कोई और पूजा की जिंदगी में कोई और आने वाला है !
आप निश्चय ही धाराप्रवाह लिखती हैं.
आज एक साथ 6 से लेकर 10 तक की पोस्ट पढ गया... बहुत अच्छा ढंग है आपका कहानी कहने का. हर बार कहानी में रहस्य का पुट देना आप नहीं भूलतीं. पढने वाले का आकर्षण बना रहता है. मैं व्यक्तिगत रुप से जुड़ गया हूँ कथा से... पूजा के साथ कुछ अनिष्ट न हो,मन ही मन ऐसी भावना भी पैदा होती जा रही है. देखता हूँ आगे क्या छिपा है रहस्य के गर्भ में!!
aapko niymit rup se nahi padh pata par jab bhi aapke blog par aata hoon to aapke lekhan ko salam karta hoon kyonki aapki kahaniya bahut intresting hoti hai...
श्रंखला बहुत ही बढ़िया चल रही है!
बढ़िया प्रवाह...जारी रहिये.
पूजा बीमर रहने लगी उसके बाद क्या हुया उत्सुकता बनी हुयी है शायद वोअसिस्टेन्ट कलेक्टर उस की जिन्दगी मे आने वाला है। देखते हैं--- आभार।
sach kaha samvedna ne......har baar ye dimag me bana rahta hai, aage kya hoga.......aur kitna wait karen!!......:)
अच्छी चल रही है कहानी. भाषा, प्रवाह, गति और विषय सब कुछ बांधने में सफल है
आप पाठकों को बांधे हुए हैं , सच बात है इसी तरह नियति हमको छलती है ।
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