शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

बिखरे सितारे-६ तूफ़ान भरी राहें!


गौरव: " तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे सांप या बिच्छू ने डंख मार दिया हो...इसकी जान जा रही हो...चीटी के काटने से यह मर थोड़े ही जायेगी?"
पूजा ने   उसे जल्दी जल्दी नहला डाला...
बच्ची केवल ३० दिन की थी..आगे पूरी ज़िंदगी पडी थी...पूजाकी आँखों के आगे भविष्य का नज़ारा घूम गया..अब आगे पढ़ें...

२ माह की बच्ची को लेके  पूजा बंगलोर अपने नैहर से चली आयी थी.
गुज़रते दिनों के साथ पूजाको रोज़ ही ना जाने कितनीही कठिनाईयों   का सामना करना पड़ता! चैन से वो बच्ची को स्तनपान भी न करा पाती..सास की दो मिनट के अन्दर आवाज़ लग जाती:
" तुम जब देखो तब इसे लिए बैठ जाती हो...यहाँ चाहे किसीको चाय चाहिए हो या नाश्ता...तुम्हें तो पहले उस लडकी की पडी रहती है..हमारे घरमे तो ये ३ री लडकी है..अब बेगम साहिबा उठिए और हमें पराठें बना दें!  लगता है,तुम्हें  और कोई कामही नही...!"
पूजा: बस पाँच मिनट रुक जाएँ आप.. मै तुरंत बना दूँगी...सुबह से ३ बार इसे रोता छोड़ मै उठ गयी हूँ.."
सासूमा :" तो हमपे एहसान किया है? घरके काम तुम नही करोगी   तो और कौन?"
गौरव: " सुना नही माँ ने क्या कहा? माँ से बढ़के   आज ये हो गयी? रखो इसे नीचे और माँ जो कह रहीं हैं करो.."
बिचारी उस नन्ही-सी जान को फिर  एकबार भूखे पेट अपने पलनेमे जाना पड़ा...बेचारी बड़ी करुण सुरमे रोने लगी..
पूजा गरम,गरम  पराठे बना अपनी सास को परोसती गयी..
पराठें बन गए तो कुत्तेको घुमाके लानेका आदेश मिला. पूजाने फिर बिनती की:" बच्ची भूक के मारे रोये जा रही है...मुझे १० मिनट देदो, मै घुमा लाऊँगी ..please !
गौरव:" तुमने लडकी को सरपे चढ़ा रखा है...चलो मेरे साथ लिफ्ट में नीचे उतारो, मै दफ्तर निकल पडूँगा, तुम  कुत्तेको घुमाके ले आओ...ये भी बाहर जानेके लिए मचल रहा है..."
अंतमे हुआ वही जो गौरव और उसकी सास चाहती!पूजा की आँखें नम होती जा रही थीं..जब भी उसके पलने के पास से पूजा गुज़रती, वो बड़ी आशासे अपनी माँ को देखती...और तवज्जो न पाके  रो उठती.
कुत्तेको  घुमाने के पश्च्यात उसने सबकी इजाज़त ली तब वो बच्ची को दूध पिला सकी.

एक बार पूजा घरकी बालकॉनी  में खड़ी हो, बिटिया को परिंदे दिखा रही थी...वहाँ कौवे भी थे. कुत्तेको कव्वों से बेहद चिढ थी...उसने जैसे ही कव्वे को  देखा, उसने ज़ोरदार हमला बोल दिया...बच्ची डर के मारे चींख उठी..पूजा ने  उसे अपने काँधों पे चिपकाके वहाँ से हट जाने का  सोंचा...लेकिन गौरव ने टांग अड़ा दी:
गौरव:"ये मेरे कुत्तेसे डरती है? देखता हूँ कबतक डरती है..."
कहके उसने कुत्तेको और कव्वे दिखाए...कुत्ता और जोरसे भोंक के हमला बोलने लगा...
अंतमे पूजा गौरव के प्रतिकार करने के बावजूद बच्ची को कमरेमे ले आयी...बच्ची बुरी तरह सहम गयी थी..काँप-सी रही थी..उसे शांत करने के लिए स्तनपान के अलावा और कोई तरीका नही था...जैसे ही बच्ची दूध पीने लगी, गौरव ने  एक और तमाशा खड़ा कर दिय!
गौरव: " तुम तो एकदम गाँव की गंवार  औरतों की तरह इस चिपकाये फिरती  हो!इसे बोतल का दूध पिलाओ..मै देखता हूँ कैसे और कबतक नही पीती.."
उसने बच्ची को पलंग पे डलवाया और पूजाको आदेश दिया:" चलो लाओ दूध बनाके.."
पूजा: " आप तो जानते हैं की ये बोतल से नही पीती, थोड़ी और बड़ी होगी तब पीने लग जाय...!"
गौरव: " जो मै कह रहा हूँ, वैसा करो..अब लाओ ये बोतल मुझे पकडाओ ..तुम्हारेसे गर रोना धोना  बर्दाश्त न हो तो दूसरे कमरेमे चली जाओ!"
 पूजाने  गौरव को बोतल पकड़ा दी और सहमी-सी वहीँ पे कोनेमे बैठ गयी..
बच्ची बदहवास-सी अपनी माँ को घूरे जा रही थी..उसकी ओर बाहें फैला रही थी...उसे बोतल से चिढ थी..पूरे एक घंटा ये तमाशा चला ! अंतमे पूजाने बच्ची को  गौरव से छीन लिया और कमरा अंदरसे बंद कर दिया.

उस रात नींद में न जाने वो कितनी बार डरके रोते हुए उठी...लेकिन मासूम का प्यार देखो...सुबह अपने पितापे दृष्टी पड़तेही खिल उठी..पूजा की आँखों से   चुपचाप नीर बहा..हर गुज़रता दिन न जाने कितनी चुनौतियाँ भरा होता!
सास अक्सर मिलने जुलने वालों से कहती." अरी बड़ी चीवट जात है..पहले दो लड्कोंको  खा गयी..इसे जो पैदा होना था..कुलक्षनी है.."
इस मासूम जान की ज़िम्मेदारी अब केवल पूजाकी थी..बीमारी, दावा दारू, हर चीज़ में अडंगा खड़ा हो जाता..इतनीसी बीमारी के लिए कोई डॉक्टर के जाता है?
क्रमश:

5 टिप्‍पणियां:

रचना दीक्षित ने कहा…

अरी बड़ी चीवट जात है..पहले दो लड्कोंको खा गयी..इसे जो पैदा होना था..कुलक्षनी है.."
इस मासूम जान की ज़िम्मेदारी अब केवल पूजाकी थी..बीमारी, दावा दारू, हर चीज़

बहुत ही दर्द भरी अभिव्यक्ति
पर क्या करें चलना ही जिन्दगी है

Udan Tashtari ने कहा…

हम्म!! चलने दिजिये..आगे इन्तजार है.

R.Venukumar ने कहा…

तुम्हें तो पहले उस लडकी की पडी रहती है..हमारे घरमे तो ये ३ री लडकी है..

सास अक्सर मिलने जुलने वालों से कहती." अरी बड़ी चीवट जात है..पहले दो लड्कोंको खा गयी..इसे जो पैदा होना था..कुलक्षनी है.."

इस मासूम जान की ज़िम्मेदारी अब केवल पूजाकी थी..बीमारी, दावा दारू, हर चीज़ में अडंगा खड़ा हो जाता..इतनीसी बीमारी के लिए कोई डॉक्टर के जाता है?


क्षमा जी!
मार्मिक कहानी.
हमारे समाज का वीभत्स रूप प्रस्तुत हुआ है.. लड़कियों के प्रति यह जो उपेक्षणीय व्यवहार बना हुआ है ,चिन्तनीय है.

Ravi Rajbhar ने कहा…

bahut rochak .....dil ko chhu gai.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

maine bas do hi kadi padhi hai ab tak ,par sari baat jo samjh ayi isme wo antarman ko hila kar rakhne wala haikyonki aaj bhi ye ghatna vyapt hai kahin na kahin .