(पूर्व भाग:जब बच्ची कुछ ठीक हुई तो उसने अपनी माँ से एक कागज़ तथा पेन्सिल माँगी...और अपनी माँ पे एक नायाब निबंध लिख डाला..." जब मै बीमार थी तो माँ मुझे बड़ा गन्दा खाना खिलती थी..लेकिन तभी तो मै अच्छी हो पायी..वो रोज़ गरम पानी और साबुनसे मेरा बदन पोंछती...मुझे खुशबूदार पावडर लगती...बालों में हलके हलके तेल लगाके, धीरे, धीरे मेरे बाल काढ़ती...." ऐसा और बहुत लिखा...पूजा ने वो नायाब प्रशस्ती पत्रक उसकी टीचर को पढ़ने दिया...जो खो गया..बड़ा अफ़सोस हुआ पूजा को...
और दिन बीतते गए....बच्चे समझदार और सयाने होते गए..अब आगे पढ़ें...)
ऐसा नही था,की, पूजाकी ज़िंदगी में हलके फुल्के लम्हें आते ही नही थे...आते,लेकिन उसके बच्चों के कारण...उनके सयाने पन में भी निहायत भोलापन था,मासूमियत थी..
एक बार पूजा खानेकी मेज़ लगा रही थी..पास ही में TV. था...जिसपे चित्रहार चल रहा था..उसका ५/६ साल का बेटा, अमन, देख रहा था..अचानक उसने अपनी माँ से सवाल किया:" माँ ! आप अपनी शादी के पहले बगीचे में गाना गाते थे या सड़क पे?"
पूजा बेसाख्ता हँस पडी,बोली:" अरे बेटू ये सब तो फिल्मों में होता है...ऐसे थोडेही कोई गाना गता है....!"
बेटा:" आपने कहीँ नही गाना गया?"
पूजा:' नही तो!"
बेटा:" तो फिर आपको शादी करने को किसने कहा? पापा ने आपसे कहा या आपने पपासे?"
पूजा:" हम दोनोने एक दुसरे से कहा ..."
बेटा:" क्या??तुमने भी कहा?"
पूजा:" हाँ...!"
अब बेटेकी भोली आँखें अचरज से और भी गोल गोल हो गयीं...!
बेटा:" तुमको इस आदमी के साथ शादी करने के लिए सलकाली ओलडल तो नही आया था?"
अब पूजा हँस हँस के बेहाल हुए जा रही थी...!
बेटा:" तो माँ तुम्हाला दिमाग खलाब हो गया था जो तुमने इस आदमी के साथ शादी की?"
पूजा हँसते,हँसते लोटपोट हुए जा रही थी...क्या कहती की, भोलेपनमे बेटे ने हक़ीक़त कह दी थी?
देखते ही,देखते बच्चों का भोला बचपन हाथों से फिसलता जा रहा था...वक़्त की तेज़ रफ़्तार कौन रोक पाया? बिटिया का बचपन तो घर के बड़ों ने छीन लिया था...वो समय से पहले खामोश और परिपक्व हो रही थी...पूजा देख रही थी,लेकिन कुछ कर नही पा रही थी...एक अपराधबोध तले वो दबी जाती,की, बिटिया पे समझदारी थोपी जा रही थी, और पूजा हतबल होके देखती जा रही थी...
इन्हीं दिनों केतकी को पहले तो विषम ज्वर(typhoid ) और बाद में मेंदुज्वर हो गया..पूजा की माँ, मासूमा, दौड़ी चली आयी वरना बिटिया शायद ठीक नही हो पाती...क्योंकि साथ, साथ पूजा की सासू माँ की दोनों आँखें रेटिनल detachment से चली गयीं...उनकी देखभाल की सारी ज़िम्मेदारी पूजा पे थी...इस घटना के कुछ माह पूर्व पूजा के ससुर का देहांत हो गया था..वोभी पता नही क्यों,लेकिन केतकी से खूब ही नफरत करते थे...पूजा को अपने सास-ससुर के रवैय्ये से हमेशा अफ़सोस होता...क्योंकि खुद उसने अपने दादा-दादी का बेहद प्यार पाया था....उसका जन्म किसी त्यौहार की तरह मना था...जबकि,केतकी मानो घर के लिए बोझ थी...इन बातों का नन्हीं केतकी के मन पे क्या आघात हो रहा था, किसने सोचा?भविष्य किसने देखा था?
क्रमश:
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
8 टिप्पणियां:
बच्चे महसूस कर ही लेते हैं सब कुछ ! हालात अब भी साजगार नहीं !
आपका सन्देश मिला खुशी हुई ,बच्चे मन के सच्चे और हमारा यही भोला बढ्ती उम्र के साथ फ़ुर हो जाता है ,सुन्दर अति
kya baat....
bahut achhe se darshati bachpan aur bachpana...aage ka intjaar
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
lagta hai aapki kahani padhna bhi "salkali oldel" hai..............:P
hai na..:)
बहुत अच्छी पोस्ट
कहानी अच्छी जा रही है । केतकी को मेंदू ज्वर !!!!
जल्दी ही ठीक हो बच्ची ।
एक टिप्पणी भेजें