रविवार, 4 जुलाई 2010

बिखरे सितारे ६) है ये कैसा सफर ?

मजबूर जो किया अए ज़माने तूने,

इरादा नही था, इस बयानी का,

एक दास्ताँ छुपाते,छुपाते, बयाँ हो रही है...



हाँ..यही सत्य है...



माँ..तमन्ना की माँ..मासूमा..उनके बारेमे कहना चाह रही हूँ....क्योंकि उनके बचपन का, पूजा-तमन्ना के जीवन पे गहरा असर पड़ा...



मासूमा,अपने पिता का छत्र, दस साल की उम्र में ही खो बैठी...मासूमा के अन्य दो सगे भाई थे/हैं..मासूमा की माँ, उनके पिता की दूसरी पत्नी थीं...पहली पत्नी,थीं, उन्हीं की बड़ी बहन...जिनके देहांत के बाद उनके पिता ने अपनी प्रथम पत्नी की छोटी बहन से ब्याह किया..इतनाही नही..वे अपना बेपार करते थे...किसी अन्य देश गए,और वहाँ एक और शादी रचा ली..



जब उनका निधन हुआ,तो,मासूमा की माँ के पास कुछ नही था..सिवा इसके,की, जिस घर में वो रह रही थीं..ये भी गनीमत थी..तस्वीर में जो घर..तथा, द्वार दिख रहा है, वही मासूमा का घर था..जहाँ, पूजा का जन्म हुआ..जनम घर पे तो नही, शहर के अस्पताल में हुआ..लेकिन जनम के बाद पूजा को वहीँ लाया गया....



उसे वो घर ,वो पीछे दिखने वाला एक पलंग.... सब कुछ याद है...उस बंद द्वार से घर में प्रवेश होता..संकड़ी सीढियाँ चढ़ के..मुग़ल वाड़ा कहलाता था वो इलाक़ा.....काफ़ी चहल पहल हुआ करती...



अपने पती के देहांत के बाद घर का निचला हिस्सा, पूजा की नानी ने किराये पे चढा दिया..और ख़ुद सिलाई कढाई करके परिवार पलने पोसने लगीं....



परिवार में अपनी बड़ी बहन की दो बेटियाँ शुमार थीं..तथा, उनके बड़े भाई की एक अनाथ बेटी...छ: बच्चों को पढाना लिखाना..बीमारी तीमारदारी.. वो चिडचिडी तो होही गयीं..अपने भाई की बेटी के साथ कुछ ज़्यादा ही दुर्व्यवहार किया...जब मासूमा बड़ी हुई, तो उसे, इस मुमेरी बहन से, बेहद लगाव था..पूजा की इस मासी ने, पूजा से भी बेहद प्यार किया..



माँ के भाई ,जब पूजा छ: या सात साल की थी,तब देश छोड़ अन्य देश जा बसे...और पूजा की नानी वहीँ चली गयी...मासूमा के लिए उसका नैहर मानो तभी ख़त्म हो गया...लेकिन, फिरभी उसकी ममेरी बहन थी...अपने बच्चों को लेके वो वहीँ जाया करती...पर अपने पती के हाथों मजबूर...पती ने..पूजा के पिता ने, अपने बच्चों की, या अपनी पत्नी की, कभी ठीक से ज़िम्मेदारी नही सँभाली...मासूमा,इस कारन, बेहद असुरक्षित महसूस किया करती..इसे कहते हैं, चराग तले अँधेरा...! एक ओर पूजा के दादा-दादी बेहद इन्साफ पसंद और नेक लोग थे...वहीँ,अपनी बहू के साथ, ना इंसाफी कर गुज़रते..!



पूजा बड़ी होती गयी...और इस बात को महसूस करती रही..कई बातें वो नन्हीं जान नही समझ पाती..लेकिन जिसका पती, साथ ना दे, उस औरत का घर मे ठीक से सम्मान नही होता..ये भी एक सत्य है..पूजा के दादा,जिनकी पूजा आँखों का सितारा थी, अपनी बहू के साथ कई बार बेहद कठोर व्यवहार कर जाते..और पूजा रो पड़ती...अपने दादा से रूठ जाती..उनके साथ बात नही करती..बिस्तर में लेटे, लेटे सिसकती रहती...



ये भी होता,कि, ऐसे मे दादा आके, अपनी बहू से माफी भी माँग लेते..पर सिलसिला जारी रहता...और दिन गुज़रते गए...पूजा की पाठशाला मे दादा ही आया जाया करते..शिक्षक शिक्षिकाओं के संपर्क मे वही रहते..उनका शहर तथा आज़ू बाज़ू के ईलाकों मे रूतबा भी था..इज्ज़त भी थी..लेकिन घर की बातें,दहलीज़ के अन्दर ही रहती..पर उस कोमल,नन्हीं जान पे इसका असर पड़ता रहता...



और भी कई बातें थीं , जिन के कारण पूजा की माँ त्रस्त रही...पर उस सबके बारे मे फिर कभी..



क्रमश:

3 टिप्‍पणियां:

उम्मतें ने कहा…

सच कहूं तो इसे पढते हुए अंदर तमाम शीशे चटख जाते हैं किरचें बिखर उठती हैं !

रचना दीक्षित ने कहा…

fir vahi dard fir vahi chubhan ufff....

अरुणेश मिश्र ने कहा…

रोचक कथानक ।